हुआंगयान द्वीप (Scarborough Shoal): दक्षिण चीन सागर में संप्रभुता का विवाद

दक्षिण चीन सागर (South China Sea) आज वैश्विक भू-राजनीति का सबसे संवेदनशील समुद्री क्षेत्र बन चुका है। यह न केवल एशियाई देशों के बीच सामरिक व आर्थिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन की राजनीति में भी निर्णायक भूमिका निभाता है। इस क्षेत्र में स्थित हुआंगयान द्वीप, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्कारबोरो शोएल (Scarborough Shoal) के नाम से जाना जाता है, लंबे समय से विवाद का केंद्र रहा है।

यह प्रवाल एटोल (coral atoll) फिलीपींस और चीन के बीच संप्रभुता विवाद का प्रतीक है। चीन इसे अपने ऐतिहासिक अधिकार क्षेत्र का हिस्सा मानता है, जबकि फिलीपींस का कहना है कि यह उसके विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में आता है। 2012 के बाद से चीन ने इस क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है और हाल ही में 2025 में इसे “राष्ट्रीय प्राकृतिक अभयारण्य” घोषित करने की योजना बनाई है। इसने विवाद को और भी गहरा कर दिया है।

इस लेख में हम हुआंगयान द्वीप की भौगोलिक संरचना, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, संप्रभुता विवाद, चीन की रणनीति, फिलीपींस की आपत्तियाँ, अमेरिका व अन्य देशों की प्रतिक्रिया और अंतरराष्ट्रीय कानून के परिप्रेक्ष्य में समाधान की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

भौगोलिक स्थिति और संरचना

हुआंगयान द्वीप एक त्रिकोणीय आकार का प्रवाल एटोल है, जिसका क्षेत्रफल लगभग 150 वर्ग किलोमीटर है। यह फिलीपींस के लूज़ोन द्वीप से लगभग 220 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है और पूरी तरह से समुद्र से घिरा हुआ है।

  • इस एटोल के बीच एक लैगून (lagoon) है, जो चारों ओर से रीफ (reef) से घिरा हुआ है।
  • यहाँ का समुद्री पर्यावरण अत्यंत समृद्ध है और यह क्षेत्र मत्स्य संसाधनों तथा जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है।
  • यहाँ पाए जाने वाले समुद्री जीव स्थानीय मछुआरों के जीवन-यापन का मुख्य स्रोत हैं।
  • समुद्री व्यापार के लिहाज से यह क्षेत्र सामरिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि दक्षिण चीन सागर से होकर वैश्विक समुद्री व्यापार का लगभग एक-तिहाई हिस्सा गुजरता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

हुआंगयान द्वीप पर दावा नया नहीं है।

  • चीन का दृष्टिकोण: चीन का कहना है कि यह क्षेत्र सदियों से उसके पारंपरिक समुद्री मानचित्रों और यात्राओं का हिस्सा रहा है। चीन “नाइन-डैश लाइन” (Nine-Dash Line) नामक सीमांकन का हवाला देता है, जिसके अंतर्गत पूरा स्कारबोरो शोएल आता है।
  • फिलीपींस का दृष्टिकोण: फिलीपींस का तर्क है कि द्वीप उसके विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के भीतर आता है, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS, 1982) में निर्धारित है। EEZ की सीमा तट से 200 समुद्री मील तक होती है और स्कारबोरो शोएल 220 किलोमीटर की दूरी पर आता है, यानी साफ तौर पर फिलीपींस के अधिकार क्षेत्र में।
  • स्पेन और अमेरिका का संदर्भ: औपनिवेशिक काल में यह क्षेत्र स्पेन के कब्ज़े में था। बाद में अमेरिका ने फिलीपींस का नियंत्रण संभाला, और 1946 में स्वतंत्रता मिलने के बाद फिलीपींस ने इस क्षेत्र को अपना माना।

2012 का मोड़ – चीन का नियंत्रण

2012 में इस विवाद ने नया मोड़ लिया।

  • अप्रैल 2012 में फिलीपींस नौसेना ने इस क्षेत्र में चीनी मछली पकड़ने वाले जहाजों को रोकने की कोशिश की।
  • इसके बाद दोनों देशों के बीच सामना (standoff) हुआ, और चीन ने अपनी नौसैनिक व अर्धसैनिक ताकतों को यहाँ तैनात करना शुरू कर दिया।
  • धीरे-धीरे चीन ने इस क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित कर लिया और फिलीपींस के मछुआरों की पहुँच पर प्रतिबंध लगा दिया।

इस घटना के बाद से फिलीपींस लगातार विरोध दर्ज करता रहा है, लेकिन व्यवहारिक रूप से चीन इस क्षेत्र पर काबिज है।

चीन की “राष्ट्रीय प्राकृतिक अभयारण्य” योजना (2025)

सितंबर 2025 में चीन ने घोषणा की कि हुआंगयान द्वीप को वह राष्ट्रीय प्राकृतिक अभयारण्य (National Marine Sanctuary) के रूप में विकसित करेगा।

  • चीन का दावा है कि यह कदम समुद्री जैव विविधता की रक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए उठाया जा रहा है।
  • लेकिन फिलीपींस का कहना है कि यह उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है और चीन अपनी सैन्य व राजनीतिक पकड़ मजबूत करने के लिए पर्यावरण संरक्षण का बहाना बना रहा है।
  • फिलीपींस ने इसे गैरकानूनी और अवैध करार दिया है और चीन से इस योजना को तुरंत वापस लेने की मांग की है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

इस विवाद ने वैश्विक शक्तियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।

  • अमेरिका: अमेरिका ने फिलीपींस के समर्थन में बयान जारी किया है और चीन की योजना को क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया है। अमेरिका और फिलीपींस के बीच Mutual Defense Treaty (1951) है, जिसके तहत दोनों देश एक-दूसरे की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।
  • ASEAN देश: दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संगठन (ASEAN) भी इस मुद्दे पर चिंतित है, क्योंकि चीन के आक्रामक कदम पूरे क्षेत्र में शक्ति संतुलन बिगाड़ सकते हैं।
  • अन्य देश और संगठन: यूरोपीय संघ, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने भी चिंता जताई है और विवाद को शांतिपूर्ण संवाद से हल करने की अपील की है।

अंतरराष्ट्रीय कानून और UNCLOS

हुआंगयान द्वीप विवाद को अंतरराष्ट्रीय कानून के नजरिए से समझना आवश्यक है।

  • संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS, 1982) के अनुसार, किसी भी देश का EEZ तट से 200 समुद्री मील तक होता है। स्कारबोरो शोएल फिलीपींस की इसी सीमा में आता है।
  • 2013 में फिलीपींस ने इस मामले को Permanent Court of Arbitration (PCA), हेग में उठाया।
  • 2016 का फैसला: PCA ने स्पष्ट किया कि चीन का “नाइन-डैश लाइन” ऐतिहासिक रूप से मान्य नहीं है और फिलीपींस के EEZ को मान्यता दी।
  • हालांकि, चीन ने इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया और इसे “अमान्य” घोषित कर दिया।

सामरिक और आर्थिक महत्व

हुआंगयान द्वीप विवाद केवल संप्रभुता का प्रश्न नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे सामरिक और आर्थिक हित छिपे हैं।

  1. मत्स्य संसाधन: यह क्षेत्र दुनिया के सबसे समृद्ध मत्स्य संसाधनों में से एक है।
  2. ऊर्जा भंडार: दक्षिण चीन सागर में विशाल तेल और प्राकृतिक गैस के भंडार मौजूद हैं।
  3. व्यापार मार्ग: वैश्विक समुद्री व्यापार का लगभग 30-35% हिस्सा यहीं से गुजरता है।
  4. सैन्य दृष्टिकोण: यहाँ नियंत्रण रखने से चीन को नौसैनिक शक्ति विस्तार का अवसर मिलता है।

फिलीपींस और चीन के संबंधों पर असर

हुआंगयान विवाद ने फिलीपींस-चीन संबंधों को बार-बार झकझोरा है।

  • कभी फिलीपींस ने चीन से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन हर बार द्वीप विवाद बाधा बना।
  • फिलीपींस की आंतरिक राजनीति में भी यह मुद्दा चुनावी वादों और राष्ट्रीय गर्व से जुड़ चुका है।
  • वहीं चीन इस क्षेत्र का उपयोग अपनी “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” और समुद्री रेशम मार्ग रणनीति के हिस्से के रूप में करता है।

भविष्य की संभावनाएँ

हुआंगयान द्वीप विवाद का समाधान आसान नहीं है। लेकिन कुछ संभावित रास्ते हो सकते हैं:

  1. संवाद और कूटनीति: दोनों देशों को बातचीत के ज़रिए समाधान खोजना होगा।
  2. क्षेत्रीय सहयोग: ASEAN को सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
  3. अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता: संयुक्त राष्ट्र या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की भूमिका अहम हो सकती है।
  4. संयुक्त विकास समझौता (Joint Development Agreement): फिलीपींस और चीन मत्स्य व ऊर्जा संसाधनों को साझा करने पर सहमत हो सकते हैं, लेकिन यह तभी संभव है जब संप्रभुता विवाद को अलग रखा जाए।

निष्कर्ष

हुआंगयान द्वीप (Scarborough Shoal) का विवाद केवल एक छोटे से प्रवाल एटोल की संप्रभुता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दक्षिण चीन सागर में शक्ति संतुलन, समुद्री संसाधनों, व्यापार मार्गों और पर्यावरणीय स्थिरता का प्रश्न है।

फिलीपींस का तर्क अंतरराष्ट्रीय कानून (UNCLOS) पर आधारित है, जबकि चीन अपने ऐतिहासिक दावों और शक्ति प्रदर्शन पर भरोसा करता है। 2016 में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने फिलीपींस के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन चीन ने उसे नकार दिया। 2025 में “प्राकृतिक अभयारण्य” की घोषणा ने इस विवाद को और जटिल बना दिया है।

यह स्पष्ट है कि अगर यह विवाद शांतिपूर्ण तरीके से हल नहीं हुआ तो न केवल फिलीपींस और चीन, बल्कि पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता खतरे में पड़ सकती है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि वह इस विवाद पर निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाधान की दिशा में प्रयास करे।


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