होम रूल लीग आंदोलन भारत में स्वशासन की मांग को लेकर प्रारंभ किया गया एक महत्वपूर्ण आंदोलन था, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण चरण माना जाता है। यह आंदोलन आयरलैंड के होम रूल लीग से प्रेरित था, जिसे 1873 में स्थापित किया गया था और इसके प्रमुख नेता रेडमंड थे। भारत में, इस आंदोलन का नेतृत्व दो प्रमुख नेताओं बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट द्वारा किया गया। इस आंदोलन ने भारतीयों में स्वशासन की भावना को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
होम रूल लीग
होम रूल लीग (Home Rule League) एक महत्वपूर्ण राजनीतिक आंदोलन था, जिसका उद्देश्य आयरलैंड में स्वशासन (होम रूल) स्थापित करना और ब्रिटिश शासन के नियंत्रण को कम करना था। यह आंदोलन 1873 में शुरू हुआ और 1882 तक सक्रिय रूप से जारी रहा। इस आंदोलन का नेतृत्व करने वाले प्रमुख नेताओं में से एक थे रेडमंड (John Redmond), जिन्होंने आयरलैंड में स्वशासन की मांग को जोर-शोर से उठाया। आयरलैंड के होम रूल आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक मजबूत जनांदोलन का रूप लिया और आयरिश राष्ट्रवाद के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। होम लीग आयरलैंड और भारत दोनों जगहों पर हुआ था, जिनका विवरण निम्नलिखित है –
आयरलैंड का होम रूल आंदोलन
आयरलैंड में होम रूल आंदोलन 19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश शासन से अधिक स्वायत्तता प्राप्त करने के लिए चला। यह आंदोलन उन राजनीतिक सुधारों की मांग कर रहा था जो आयरलैंड को ब्रिटेन से स्वतंत्र रूप से अपनी सरकार चलाने की अनुमति दें। इस आंदोलन के तहत कई विधेयक पेश किए गए, लेकिन प्रारंभिक दौर में ब्रिटिश सरकार ने इन्हें स्वीकार नहीं किया। हालाँकि, धीरे-धीरे इस आंदोलन को समर्थन मिलने लगा और आयरलैंड की स्वतंत्रता की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
भारतीय संदर्भ में होम रूल आंदोलन
होम रूल आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था, जो आयरलैंड के होम रूल आंदोलन से प्रेरित था। इस आंदोलन की शुरुआत बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट के नेतृत्व में हुई थी। इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार से भारत में स्वशासन (होम रूल) की मांग करना था। यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरमपंथी और नरमपंथी गुटों के लिए एक पुल का काम कर रहा था और इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आयरलैंड के होम रूल आंदोलन से प्रेरित होकर भारत में भी स्वशासन की मांग उठी। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं ने यह महसूस किया कि ब्रिटिश शासन से मुक्ति पाने के लिए संगठित और सक्रिय प्रयासों की आवश्यकता है। इसी संदर्भ में, बाल गंगाधर तिलक ने 28 अप्रैल 1916 को पुणे (बेलगांव) में होम रूल लीग की स्थापना की। तिलक का मानना था कि “स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे।” इस नारे के माध्यम से उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
भारत में होम रूल लीग की स्थापना
भारत में दो होम रूल लीग स्थापित की गईं –
बाल गंगाधर तिलक की लीग (अप्रैल 1916)
- तिलक ने 28 अप्रैल 1916 को पुणे (अब महाराष्ट्र) में होम रूल लीग की स्थापना की।
- यह लीग मुख्य रूप से पश्चिमी भारत — महाराष्ट्र, कर्नाटक, बरार और मध्य प्रांतों में सक्रिय थी।
- तिलक ने अपने प्रसिद्ध नारे “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा” के माध्यम से जनता को प्रेरित किया।
एनी बेसेंट की लीग (सितंबर 1916)
- एनी बेसेंट, जो एक ब्रिटिश समाज सुधारक और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की समर्थक थीं, ने मद्रास (अब चेन्नई, तमिलनाडु) में अपनी होम रूल लीग की स्थापना की।
- उनकी लीग का कार्यक्षेत्र पूरे भारत में फैला था और इसमें महिलाओं की भी भागीदारी थी।
- उन्होंने समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और अन्य प्रचार माध्यमों का उपयोग कर आंदोलन को गति दी।
तिलक और बेसेंट ने यह समझौता किया कि वे विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करेंगे और भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रयास करेंगे।
होम रूल लीग आंदोलन की रणनीति
होम रूल लीग आंदोलन की रणनीति निम्न प्रकार से थी –
- आंदोलन का संचालन शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से किया गया।
- सार्वजनिक सभाओं, भाषणों, पत्र-पत्रिकाओं और प्रचार अभियानों के माध्यम से भारतीय जनता को जागरूक किया गया।
- इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच सामंजस्य स्थापित करने में मदद की, जिसका परिणाम लखनऊ समझौते (दिसंबर 1916) के रूप में सामने आया।
- होम रूल लीग के दबाव के कारण ब्रिटिश सरकार को 1917 में मोंटेग्यू घोषणा जारी करनी पड़ी, जिसमें भारत को भविष्य में स्वशासन देने की बात कही गई थी।
होम रूल लीग आंदोलन के कारण
होम रूल आंदोलन के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे, जो निम्नलिखित हैं:
- 1909 का भारत सरकार अधिनियम
1909 में पारित मॉर्ले-मिंटो सुधार भारतीयों की उम्मीदों से बहुत कम था। यह अधिनियम अलग निर्वाचक मंडल की व्यवस्था तो करता था, लेकिन स्वशासन की कोई ठोस नींव नहीं रखता था। इससे भारतीयों में असंतोष बढ़ा। - राष्ट्रीय आंदोलन का ठहराव (1907-1914)
1907 में कांग्रेस के विभाजन और 1908 में बाल गंगाधर तिलक के कारावास के बाद राष्ट्रीय आंदोलन लगभग ठहर गया था। लेकिन जब तिलक 1914 में मांडले जेल से रिहा हुए, तो उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया। - एनी बेसेंट का प्रभाव
एनी बेसेंट एक आयरिश समाजवादी, लेखक और वक्ता थीं, जिन्होंने 1893 में भारत का दौरा किया और भारतीयों के समर्थन में कई प्रयास किए। उन्होंने भारतीयों को प्रेरित करने के लिए यह कहा कि “इंग्लैंड की जरूरत भारत का अवसर है।” उनकी सक्रिय भागीदारी ने आंदोलन को गति दी। - प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव (1914-1918)
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार भारत से समर्थन चाहती थी, लेकिन भारतीय नेता इस बात पर विभाजित थे कि ब्रिटेन का समर्थन किया जाए या नहीं। एनी बेसेंट और तिलक ने इसे भारतीयों के लिए स्वशासन की मांग उठाने का सही समय माना। - कांग्रेस में गरमपंथियों की वापसी
1915 में एनी बेसेंट के प्रभाव के कारण, कांग्रेस ने चरमपंथियों को फिर से पार्टी में शामिल करने की अनुमति दी। हालाँकि, कांग्रेस तिलक और एनी बेसेंट द्वारा होम रूल लीग की स्थापना के प्रस्ताव पर सहमत नहीं हुई, जिसके कारण उन्होंने स्वतंत्र रूप से लीग की स्थापना की।
होम रूल आंदोलन का विस्तार
- तिलक की होम रूल लीग की 6 शाखाएँ थीं और मुख्यालय दिल्ली में था।
- एनी बेसेंट की होम रूल लीग की 200 शाखाएँ थीं और उन्होंने मद्रास को अपना केंद्र बनाया।
- यह आंदोलन तेजी से पूरे भारत में फैल गया और विभिन्न क्षेत्रों में इसके कई केंद्र स्थापित हुए।
- महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रांत और बरार में तिलक का प्रभाव अधिक था, जबकि मद्रास, बंगाल, उत्तर प्रदेश और अन्य प्रांतों में एनी बेसेंट की लीग प्रभावी रही।
- इस आंदोलन के कारण भारतीय युवाओं, बुद्धिजीवियों और महिलाओं में भी राजनीतिक जागरूकता बढ़ी।
- भारतीय भाषाओं में प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं और सभाओं के माध्यम से यह आंदोलन जन-जन तक पहुँचा, जिससे स्वशासन की भावना पूरे देश में मजबूत हुई।
- इस आंदोलन ने भविष्य के राष्ट्रीय आंदोलनों को एक नई दिशा दी और भारतीय राजनीति में सक्रिय भागीदारी को प्रेरित किया।
- इस आंदोलन ने पूरे देश में स्वशासन की भावना को मजबूत किया।
होम रूल लीग आंदोलन के उद्देश्य
- ब्रिटिश सरकार से स्वशासन (होम रूल) प्राप्त करना।
- भारतीय जनता को स्वशासन की आवश्यकता और लाभों के प्रति जागरूक करना।
- राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान करना और कांग्रेस को अधिक सक्रिय बनाना।
- ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालकर भारत में संवैधानिक सुधारों को लागू कराना।
होम रूल लीग आंदोलन का प्रभाव
होम रूल लीग का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार से स्वशासन की मांग करना था, ताकि भारत को अपने आंतरिक मामलों को चलाने की स्वतंत्रता मिल सके। यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नरमपंथी और गरमपंथी दोनों गुटों के लिए एक सेतु का काम कर रहा था। तिलक के अलावा, एनी बेसेंट भी इस आंदोलन की प्रमुख नेता थीं, जिन्होंने मद्रास में होम रूल लीग की स्थापना की।
इस आंदोलन ने भारतीय जनता में जागरूकता पैदा की और ब्रिटिश सरकार पर दबाव बढ़ाया। 1917 में ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि भारत को धीरे-धीरे स्वशासन की ओर ले जाया जाएगा, जिससे यह आंदोलन और अधिक प्रभावी हो गया। हालाँकि, 1919 में मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के बाद इस आंदोलन की गति धीमी पड़ गई, लेकिन यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
होम रूल लीग आंदोलन, चाहे वह आयरलैंड में हो या भारत में, दोनों स्थानों पर स्वशासन और स्वतंत्रता की लड़ाई का प्रतीक था। आयरलैंड के रेडमंड और भारत के बाल गंगाधर तिलक एवं एनी बेसेंट जैसे नेताओं ने इस विचार को आगे बढ़ाया और लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत की। यह आंदोलन ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना और आगे चलकर भारत एवं आयरलैंड की स्वतंत्रता में योगदान दिया।
होम रूल आंदोलन के परिणाम
- ब्रिटिश प्रशासन का नरम रुख
1917 में ब्रिटिश सरकार ने कहा कि उसका लक्ष्य भारतीयों के साथ अधिक जुड़ाव बनाना और जिम्मेदार सरकार की स्थापना करना है। - एनी बेसेंट की रिहाई और कांग्रेस अध्यक्षता
एनी बेसेंट को 1917 में ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया, जिससे पूरे देश में विरोध हुआ। बाद में उन्हें रिहा किया गया और वह 1917 के कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष चुनी गईं। - 1919 का भारत सरकार अधिनियम
ब्रिटिश सरकार ने मोंटेग-चेम्सफोर्ड सुधारों के तहत प्रशासनिक सुधारों की घोषणा की, जिसने स्वशासी संस्थाओं की स्थापना की नींव रखी। - कांग्रेस में एकता
इस आंदोलन ने कांग्रेस के गरमपंथियों और नरमपंथियों को एक साथ लाने में मदद की। एनी बेसेंट के नेतृत्व में 1907 में कांग्रेस के विभाजन से बने मतभेद कम हो गए। - आंदोलन का प्रभाव
इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसक संघर्ष का मार्ग प्रशस्त किया। कांग्रेस अब केवल याचिका और प्रार्थना से आगे बढ़कर माँग और आंदोलन की रणनीति अपनाने लगी।
होम रूल आंदोलन की विशेषताएँ
- राजनीतिक जागरूकता का प्रसार
यह आंदोलन राजनीतिक बहस और शिक्षा पर केंद्रित था, जिससे स्वशासन की माँग जनता के बीच लोकप्रिय हो गई। - कांग्रेस की भूमिका
कांग्रेस ने होम रूल लीग के साथ मिलकर काम किया, जिससे आंदोलन को और अधिक समर्थन मिला। - महत्वपूर्ण नेताओं की भागीदारी
इस आंदोलन में मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, चित्तरंजन दास, मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, तेज बहादुर सप्रू, लाला लाजपत राय जैसे नेता शामिल हुए। - तिलक की धर्मनिरपेक्षता
तिलक ने जाति, धर्म और भाषा से ऊपर उठकर सभी भारतीयों से अपील की और स्वशासन की मांग को आगे बढ़ाया।
होम रूल लीग की गिरावट और विरासत
- प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं को संतुष्ट करने के लिए 1919 में भारत सरकार अधिनियम लागू किया, जिससे आंदोलन की गति धीमी हो गई।
- महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन (1920) के उदय के साथ ही होम रूल लीग का महत्व कम हो गया।
- हालांकि, इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नई ऊर्जा का संचार किया और जनता को आत्मनिर्भरता व राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया।
होम रूल लीग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था, जिसने भारतीय जनता को स्वशासन की अवधारणा से परिचित कराया और ब्रिटिश सरकार को भारतीयों की आकांक्षाओं को स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। इस आंदोलन ने भारतीय राजनीति में एक नए युग की शुरुआत की और बाद में महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम को और अधिक सशक्त किया।
होम रूल आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इसने जनता को यह अहसास कराया कि स्वशासन केवल एक सपना नहीं है, बल्कि इसे वास्तविकता में बदला जा सकता है। बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट के नेतृत्व में यह आंदोलन पूरे भारत में लोकप्रिय हुआ और भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना को प्रबल किया। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप कांग्रेस एक मजबूत राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा मिली।
इस आंदोलन ने भारतीयों को यह विश्वास दिलाया कि वे संगठित होकर अपनी स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। बाद के वर्षों में महात्मा गांधी के नेतृत्व में चले असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन की नींव इसी होम रूल आंदोलन के दौरान रखी गई थी। यही कारण है कि होम रूल आंदोलन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
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इन्हें भी देखें –
- क्रिप्स मिशन | असफलता के कारण, प्रभाव और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
- भारत का विभाजन
- भारत का एकीकरण
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिनियम | 1773-1945
- सम्राट स्कन्दगुप्त | 455 ईस्वी – 467 ईस्वी
- चौहान वंश (7वीं शताब्दी-12वीं शताब्दी)
- सम्राट हर्षवर्धन (590-647 ई.)
- काकतीय वंश |1000 ई.-1326 ई.
- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857-1858
- भाषा एवं उसके विभिन्न रूप
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