भारतीय विधिक और संवैधानिक व्यवस्था में समय-समय पर समीक्षा और सुधार की आवश्यकता को देखते हुए विधि आयोग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। अप्रैल 2025 में भारत सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) दिनेश माहेश्वरी को 23वें विधि आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल विधिक सुधारों को गति देगा, बल्कि समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC) जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी ठोस सिफारिशें प्रस्तुत करेगा। इस विस्तृत लेख में हम 23वें विधि आयोग की संरचना, उद्देश्य, कार्यकाल, प्रमुख कार्यों, समान नागरिक संहिता पर इसके दृष्टिकोण और राजनीतिक महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
विधि आयोग की भूमिका और इतिहास
विधि आयोग भारत सरकार का एक महत्वपूर्ण सलाहकारी निकाय है जो देश में कानूनों की समीक्षा कर उन्हें अद्यतन और प्रासंगिक बनाए रखने हेतु सिफारिशें करता है। इसका गठन पहली बार 1834 में ब्रिटिश काल में किया गया था। स्वतंत्र भारत में प्रथम विधि आयोग की स्थापना 1955 में हुई थी और तब से अब तक कई आयोग गठित किए जा चुके हैं।
हर विधि आयोग को तीन साल के लिए नियुक्त किया जाता है और इसे विभिन्न विधिक मुद्दों पर सरकार को सलाह देने, पुराने कानूनों की समीक्षा करने, अप्रचलित नियमों को समाप्त करने और नये कानूनों की रूपरेखा तैयार करने का कार्य सौंपा जाता है।
23वें विधि आयोग का गठन
23वां विधि आयोग 1 सितंबर 2024 को औपचारिक रूप से गठित किया गया, जिसका कार्यकाल 31 अगस्त 2027 तक निर्धारित किया गया है। इसका उद्देश्य देश की वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और विधिक आवश्यकताओं को देखते हुए कानूनी सुधारों की अनुशंसा करना है।
आयोग की संरचना:
यह आयोग कुल सात सदस्यों से मिलकर बना है:
- अध्यक्ष: न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) दिनेश माहेश्वरी
- चार पूर्णकालिक सदस्य: इनमें प्रमुख रूप से वरिष्ठ वकील हितेश जैन और शैक्षणिक विशेषज्ञ पी. वर्मा (जो 22वें आयोग का भी हिस्सा थे) शामिल हैं।
- दो पदेन सदस्य: जिन्हें विधिक कार्य विभाग और विधायी विभाग से नामित किया गया है।
इसके अतिरिक्त, सरकार पांच अंशकालिक सदस्यों की नियुक्ति भी कर सकती है। यदि वर्तमान में सेवारत न्यायाधीशों को आयोग में शामिल किया जाता है, तो वे पूर्णकालिक सदस्य के रूप में सेवानिवृत्ति या आयोग के कार्यकाल के अंत तक कार्य करेंगे।
न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी: एक परिचय
न्यायमूर्ति माहेश्वरी भारत के सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीशों में से एक रह चुके हैं। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों की सुनवाई की और न्यायिक निष्पक्षता के लिए जाने गए। उनके निर्णयों में विधिक विवेक, सामाजिक संतुलन और संविधान की मूल भावना का स्पष्ट प्रतिबिंब देखने को मिलता है। उनके नेतृत्व में विधि आयोग से व्यापक, न्यायसंगत और व्यावहारिक सिफारिशों की अपेक्षा की जा रही है।
समान नागरिक संहिता (UCC): विधि आयोग का केंद्रीय विषय
UCC क्या है?
समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC) एक ऐसा कानूनी ढांचा है, जिसका उद्देश्य देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान व्यक्तिगत कानून लागू करना है, जो धर्म, जाति, लिंग या समुदाय से परे हो। इसका संबंध विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने, आदि से जुड़े व्यक्तिगत कानूनों से होता है।
विधि आयोग और UCC:
- 21वें विधि आयोग ने 2018 में अपनी रिपोर्ट में यह कहा था कि “वर्तमान समय में UCC न तो आवश्यक है, न ही वांछनीय।” इसने सरकार की उस समय की मंशा पर विराम लगा दिया था।
- 22वें विधि आयोग ने जुलाई 2023 में एक व्यापक परामर्श प्रक्रिया शुरू की थी, जिसमें 70 से अधिक परामर्श सत्रों के माध्यम से देश भर से नागरिकों, धार्मिक संगठनों, सामाजिक संस्थाओं और विशेषज्ञों की राय ली गई थी। इस प्रक्रिया के अंतर्गत एक प्रारंभिक 749-पृष्ठीय रिपोर्ट तैयार की गई, लेकिन आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी के लोकपाल के रूप में नियुक्त हो जाने के बाद यह प्रक्रिया अधूरी रह गई।
अब 23वें आयोग के समक्ष यह चुनौती है कि वह पूर्व की रिपोर्टों और सुझावों को ध्यान में रखते हुए UCC पर अंतिम और संतुलित सिफारिशें प्रस्तुत करे। यह कार्य अत्यंत संवेदनशील और जटिल है क्योंकि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में धार्मिक और सामाजिक विविधताएं व्यापक रूप से मौजूद हैं।
राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में UCC
UCC भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वैचारिक एजेंडे का एक प्रमुख स्तंभ रहा है। इससे पहले पार्टी ने अपने दो प्रमुख वादों—अनुच्छेद 370 की समाप्ति (जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला प्रावधान) और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को अपने दूसरे कार्यकाल (2019–2024) में पूरा कर लिया है। अब UCC को अंतिम वैचारिक मिशन के रूप में देखा जा रहा है।
राज्यों की भूमिका:
- उत्तराखंड: फरवरी 2024 में उत्तराखंड UCC लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया। इसकी पहल ने अन्य राज्यों को भी इस दिशा में सोचने के लिए प्रेरित किया है।
- गुजरात: गुजरात सरकार ने भी UCC के लिए ड्राफ्टिंग समिति का गठन किया है।
- केंद्र सरकार की स्थिति: केंद्र सरकार ने 2022 में सुप्रीम कोर्ट में यह कहा था कि विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों का अस्तित्व “राष्ट्र की एकता के लिए अपमानजनक” है। यह वक्तव्य यह दर्शाता है कि सरकार इस दिशा में गंभीरतापूर्वक कार्य कर रही है।
23वें विधि आयोग का प्रशासनिक और वित्तीय ढांचा
किसी भी आयोग की कार्यकुशलता उसके प्रशासनिक और वित्तीय समर्थन पर भी निर्भर करती है। 23वें विधि आयोग के लिए सरकार ने एक सुव्यवस्थित ढांचा प्रदान किया है:
- अध्यक्ष को ₹2.5 लाख मासिक मानधन मिलेगा, जिसमें पेंशन शामिल होगी।
- पूर्णकालिक सदस्यों को ₹2.25 लाख प्रतिमाह मानधन मिलेगा।
- आयोग एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करेगा, लेकिन यह विधि एवं न्याय मंत्रालय, विधायी विभाग, अन्य विधिक संस्थाओं और नागरिक समाज संगठनों के साथ समन्वय में कार्य करेगा।
आयोग से अपेक्षाएं और भविष्य की दिशा
न्यायमूर्ति माहेश्वरी के नेतृत्व में आयोग से यह अपेक्षा की जा रही है कि वह केवल UCC तक सीमित न रहकर अन्य महत्वपूर्ण कानूनी विषयों जैसे:
- न्यायिक प्रक्रियाओं में विलंब को कम करना
- डिजिटल कानूनों का आधुनिकीकरण
- साइबर अपराध पर स्पष्ट कानूनों की सिफारिश
- पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कानूनी ढांचे को मजबूत करना
- संवैधानिक संस्थाओं की जवाबदेही सुनिश्चित करना
जैसे विषयों पर भी व्यापक सुझाव देगा।
23वें विधि आयोग की स्थापना और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की अध्यक्षता में इसका कार्य प्रारंभ होना भारत के विधिक इतिहास में एक नया अध्याय है। यह आयोग न केवल UCC जैसे संवेदनशील विषय पर संतुलित और व्यावहारिक सुझाव देने की दिशा में कार्य करेगा, बल्कि भारतीय कानून व्यवस्था को अधिक प्रभावी, न्यायपूर्ण और समावेशी बनाने के लिए आवश्यक सिफारिशें भी प्रस्तुत करेगा। भारत जैसे विविधतापूर्ण लोकतंत्र में एक साझा नागरिक कानून का निर्माण एक बड़ा और जटिल कार्य है, लेकिन विधि आयोग की विशेषज्ञता, अनुभव और निष्पक्ष दृष्टिकोण के साथ यह कार्य सार्थक दिशा में आगे बढ़ सकता है।
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