शब्द उस ध्वनि या ध्वनि समूह को कहते हैं जो किसी भाषा में एक अर्थ को प्रकट करता है। यह ध्वनि या ध्वनि समूह एक या एक से अधिक वर्णों से मिलकर बना होता है। उदाहरण के लिए:
- एक वर्ण से बने शब्द: न (नहीं), व (और)
- अनेक वर्णों से बने शब्द: कुत्ता, शेर, कमल, नयन, प्रासाद, सर्वव्यापी, परमात्मा आदि।
शब्द केवल अर्थपूर्ण ध्वनियों का समूह नहीं है, बल्कि यह भाषा का आधारभूत तत्व है, जिसके माध्यम से हम अपने विचारों, भावनाओं और सूचनाओं को व्यक्त करते हैं। भारतीय संस्कृति में शब्द को ब्रह्म के समान पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है।
शब्दों के संयोजन से वाक्य बनते हैं, जो संप्रेषण का प्रमुख साधन हैं।
भारतीय संस्कृति में शब्दों को बहुत महत्व दिया गया है। शब्दों का सही उपयोग और संयोजन करके हम अपने विचारों और भावनाओं को प्रभावी ढंग से व्यक्त कर सकते हैं।
शब्दों का सही चयन और उनका सही क्रम वाक्य की संरचना को परिभाषित करता है। एक या एक से अधिक शब्दों का सही उपयोग करके हम विभिन्न प्रकार के वाक्य बना सकते हैं, जो हमारे संप्रेषण को प्रभावी और स्पष्ट बनाते हैं।
शब्द किसे कहते हैं?
शब्द की परिभाषा – ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्ण समूह को शब्द कहते हैं।
शब्द एक ऐसी ध्वनि या ध्वनियों का समूह है, जो एक निश्चित अर्थ को व्यक्त करता है। इसे स्वतंत्र रूप से प्रयोग किया जा सकता है और यह भाषा का मौलिक इकाई है।
शब्द मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं –
- स्वतंत्र शब्द: ये वे शब्द हैं जो अपने आप में पूर्ण होते हैं और किसी अन्य शब्द पर निर्भर नहीं होते, जैसे: पानी, घर, पुस्तक।
- अर्ध-स्वतंत्र शब्द: ये वे शब्द हैं जो अपने आप में पूर्ण नहीं होते और इन्हें पूर्ण करने के लिए किसी अन्य शब्द की आवश्यकता होती है, जैसे: का, के, में।
- संयुक्त शब्द: ये वे शब्द होते हैं जो दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर बनते हैं, जैसे: पुस्तकालय (पुस्तक + आलय), जलपान (जल + पान)।
शब्द भाषा का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है और इसके माध्यम से हम अपने विचारों, भावनाओं, और जानकारी को दूसरों तक पहुंचा सकते हैं।
शब्दों का वर्गीकरण | शब्द भेद
हिंदी में शब्दों का वर्गीकरण निम्न चार आधारों पर किया गया है –
- उत्पत्ति / स्रोत/ इतिहास के आधार पर (तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी शब्द एवं संकर शब्द)।
- रचना व्युत्पति / रचना / बनावट के आधार पर (रुढ़ शब्द, यौगिक शब्द और योगरूढ़ शब्द)।
- रूप / प्रयोग/ व्याकरणिक विवेचन के आधार पर (विकारी शब्द और अविकारी शब्द)।
- अर्थ के आधार पर (एकार्थी शब्द, अनेकार्थी शब्द, समानार्थी/पर्यायवाची शब्द और विपरीतार्थी / विलोम शब्द)।
1. उत्पत्ति / स्रोत/ इतिहास के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण
उत्पत्ति / स्रोत/ इतिहास के आधार पर शब्द पञ्च प्रकार के होते हैं –
- तत्सम शब्द
- तद्भव शब्द
- देशज/देशी शब्द
- विदेशज/विदेशी/आगत शब्द
- संकर शब्द
(i) तत्सम शब्द
तत्सम शब्द वे शब्द हैं जो संस्कृत से सीधे लिए गए हैं और इनमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
हिंदी में अनेक शब्द संस्कृत से सीधे आये हैं और आज भी उसी रूप में प्रयोग किये जा रहे है। अतः संस्कृत के ऐसे शब्द जिन्हें ज्यों का त्यों प्रयोग में लाते हैं, तत्सम शब्द कहलाते हैं। उदाहरण – सूर्य, पुस्तक, विद्यालय, अग्नि, वायु, माता, पिता, प्रकाश, पत्र आदि।
तत्सम शब्द से सम्बंधित कुछ तथ्य
- जैसे संस्कृत में बिल्कुल वैसे ही हिन्दी में होंगे।
- संधि के प्रचलित नियमों में + से पहले और + के बाद आने वाले शब्द तत्सम कहलाते हैं। (विद्या + आलय)
- संस्कृत के उपसगोें से बने शब्द तत्सम होते हैं।
- विसर्ग(:) तथा अनुसार( ं ) मुख्य रूप से तत्सम शब्दों में पाया जाता है।
जैसे – उष्ट्र, महिष, चक्रवात, वातकि, भुशुण्डी, चन्द्र, श्लाका, शकट, हरिद्र आदि।
अर्द्धतत्सम शब्द
संस्कृत से वर्तमान स्थाई तद्भव रूप तक पहुंचने के मध्य संस्कृत के टूटे-फूटे स्वरूप का जो प्रयोग किया जाता था उसे अर्द्ध तत्सम कहा जाता है।
जैसे – अगिन या अगि
यह अग्नि(तत्सम) व आग(तद्भव) के मध्य का स्वरूप है।
(ii) तद्भव शब्द
तद्भव शब्द वे शब्द हैं जो संस्कृत से बदलकर (विकृत होकर) हिंदी में आए हैं।
हिंदी में अनेक शब्द ऐसे हैं जो निकले तो संस्कृत से है परन्तु प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिंदी से गुजरने के कारण बहुत बदल गए हैं। अतः संस्कृत के वे शब्द जो प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिंदी आदि से गुजरने के कारण परिवर्तित रूप में मिलते हैं, तद्भव शब्द कहलाते हैं। उदाहरण – सूरज (सूर्य), गांव (ग्राम) आदि।
संस्कृत | प्राकृत | हिंदी |
---|---|---|
उज्ज्वल | उज्जल | उजला |
कर्पूर | कप्पूर | कपूर |
संध्या | संझा | साँझ |
हस्त | हत्थ | हाथ |
तद्भव शब्द से सम्बंधित कुछ तथ्य
- संस्कृत वाले शब्दों से बनावट में मिलते-जुलते सरल शब्द तद्भव होते हैं।
- हिन्दी के उपसर्गों से बने शब्द तद्भव होते है।
- हिन्दी कि क्रियाऐं पढ़ना, लिखना, खाना आदि तद्भव होते हैं।
- अंकों को शब्दों में लिखने पर एक को छोड़ कर सभी तद्भव होते हैं।
- अर्धअनुस्वार( ँ) अर्थात चरम बिन्दु मुख्य रूप से तद्भव शब्दों में पाया जाता है। जैसे – चाँद, हँसना आदि।
यदि हम तत्सम को पिता माने तो तद्भव को पुत्र मान सकते हैं क्योंकि तत्सम, तद्भव के गुण रूप आदि एक दुसरे से पिता पुत्र की तरह मिलते है। इसके कुछ अपवाद भी है। लेकिन स्वभाविक रूप से यह माना जा सकता है कि दोनों में कुछ ना कुछ एक समान होगा।
(iii) देशज/देशी शब्द
ये वे शब्द हैं जो किसी भी अन्य भाषा से नहीं लिए गए हैं बल्कि हिंदी भाषा में ही उत्पन्न हुए हैं।
देशज का अर्थ है देश में जन्मा। अतः ऐसे शब्द जो क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति और आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए, देशज अथवा देशी शब्द कहलाते हैं। उदाहरण – चक्की, गाड़ी, कुर्सी, थैला, गड़बड़, पेट, टट्टी, पगड़ी, लोटा, टांग, ठेठ आदि।
देशज/देशी शब्द से सम्बंधित तथ्य
- वे शब्द जिनकी उत्पत्ति के स्त्रोत अज्ञात होते हैं। उन्हें देशज शब्द कहते हैं।
- संस्कृतेतर(संस्कृत से अन्य) भारतीय भाषाओं के शब्द देशज होते हैं।
- क्षेत्रीय बोलियों के शब्द तथा मनघड़ंत शब्द भी देशज होते हैं।
- ध्वनि आदि के अनुकरण पर रचित क्रियाएं जिन्हें अनुक्रणात्मक क्रियाएं भी कहते हैं देशज कहलाती हैं।
- जैसे – लड़का, खिड़की, लोटा, ढ़म-ढ़म, छपाक-छपाक, भौंकना।
(iv) विदेशज/विदेशी/आगत शब्द
ये वे शब्द हैं जो अन्य भाषाओं से हिंदी में लिए गए हैं। उदाहरण – स्कूल (अंग्रेजी), अस्पताल (अंग्रेजी), रिक्शा (जापानी) आदि।
विदेशज का अर्थ है विदेश में जन्मा। आगत का अर्थ है आया हुआ। हिंदी में अनेक ऐसे शब्द हैं जो विदेशी मूल के हैं परन्तु परस्पर संपर्क के कारण यहाँ प्रचलित हो गए हैं। अतः अन्य देश की भाषा से आये हुए शब्द विदेशज शब्द कहलाते हैं। विदेशज शब्दों में से कुछ को ज्यों का त्यों अपना लिया गया है। जैसे – आर्डर, कंपनी, कैम्प, क्रिकेट आदि। तथा कुछ को हिन्दीकरण (तद्भवीकरण) करके अपनाया गया है। जैसे – ऑफिसर – अफसर, लैनटर्न – लालटेन, हॉस्पिटल – अस्पताल, कैप्टेन – कप्तान, आदि।
हिंदी में विदेशज शब्द मुख्यतः दो प्रकार के हैं – मुस्लिम शासन के प्रभाव से आये अरबी – फारसी शब्द तथा यूरोपीय कंपनियों के आवागमन तथा ब्रिटिश शासन के प्रभाव से आये अंग्रेजी शब्द। हिंदी में अरबी शब्दों की संख्या लगभग 2500, फारसी शब्दों की संख्या लगभग 3500, एवं अंग्रेजी शब्दों की संख्या लगभग 3000 है।
अत्यंत प्रचलित वर्ग के विदेशी शब्द
अरबी – अजब, अजीब, अदालत, अक़्ल, अल्लाह, असर, आखिर, आदमी, इनाम, इजलास, इज़्ज़त, इलाज, ईमान, उम्र, एहसान, औरत, औसत, कब्र, कमाल, कर्ज, किस्मत, कीमत, किताब, कुर्सी, खत, खिदमत, खयाल, जिस्म, जुलूस, जलसा, जवाब, जहाज, दुकान, जिक्र, तमाम, तकदीर, तारीख, तकिया, तरक्की, दवा, दावा, दिमाग, दुनिया, नतीजा, नहर, नकल, फकीर, फिक्र, फैसला, बहस, बाकी, मुहावरा, मदद, मजबूर, मुकदमा, मुश्किल, मौसम, मौलवी, मुसाफ़िर, यतीम, राय, लिफाफा, वारिस, शराब, हक, हजम, हाजिर, हिम्मत, हुक्म, हैजा, हौसला, हकीम, हलवाई आदि।
फारसी – आबरू, आतिशबाजी, आफ़त, आराम, आमदनी, आवारा, आवाज़, उम्मीद, उस्ताद, कमीना, कारीगर, किशमिश, कुश्ती, कूचा, खाक, खुद, खुदा, खामोश, खुराक, गरम, गज, गवाह, गिरफ्तार, गिर्द, गुलाब, चादर, चालाक, चश्मा, चेहरा, जलेबी, जहर, जोर, जिन्दगी, जागीर, जादू, जुरमाना, तबाह, तमाशा, तनखाह, ताजा, तेज़, दंगल, दफ्तर, दरबार, दवा, दिल, दीवार, दुकान, नापसंद, नापाक, पाजामा, परदा, पैदा, पुल, पेश. बारिश, बुखार, बर्फी, मजा, मकान, मजदूर, मोरचा, याद, यार, रंग, राह, लगाम, लेकिन, वापिस, शादी, सितार, सरदार, साल, सरकार, हफ्ता, हजार आदि।
अंग्रेजी – अपील, कोर्ट, मजिस्ट्रेट, जज, पुलिस, टैक्स, कलक्टर, डिप्टी, अफसर, वोट, पेन्शन; कापी, पेंसिल, पेन, पिन, पेपर, लाइब्रेरी, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, डॉक्टर, कंपाउडर, नर्स, आपरेशन, वार्ड, प्लेग, मलेरिया, कॉलरा, हार्निया, डिप्थीरिया, कैंसर; कोट, कालर, पैंट, पतलून, हैट, बुश्शर्ट, स्वेटर, हैट, बूट, जम्पर, ब्लाउज, कप, प्लेट, जग, लैम्प, गैस, माचिस, केक, टॉफी, बिस्कुट, टोस्ट, चाकलेट, जैम, जेली; ट्रेन, बस, कार, मोटर, लारी, स्कूटर, साइकिल, बैटरी, ब्रेक, इंजनः यूनियन, रेल, टिकट, पार्सल, पोस्टकार्ड, मनी आर्डर, स्टेशन, ऑफिस, क्लर्क, गार्ड आदि।
कम प्रचलित वर्ग के विदेशी शब्द
इस वर्ग के विदेशज शब्दों में प्रत्येक की संख्या लगभग 100 के आस-पास है।
तुर्की – उर्दू, बहादुर, उज़बक, तुर्क, कुरत्ता, कलगी, कैंची, चाकू, काबू, कुली, गलीचा, चकमक, चिक्र, तमगा, तमंचा, ताश, तोप, तोपची, दारोगा, बावर्ची, बेगम, चम्मच, मुचलका, लाश, सौगात, बीबी, चेचक, सुराग, बारूद, नागा, कुर्ता, कूच, कुमुक, कुर्क, लाश, खच्चर, सराय, गनीमत, चोगा, आदि ।
पश्तो – पठान, मटरगश्ती, गुण्डा, तड़ाक, खर्राटा, तहस- नहस, टसमस, खचड़ा, अखरोट, चख-चख, पटाखा, डेरा, गटागट, गुलगपाड़ा, कलूटा, गड़बड़, हड़बड़ी, अटकल, बाड़, भड़ास आदि ।
पुर्तगाली – अनन्नास, अलमारी, आलपिन, आया, इस्त्री, इस्पात, कमीज, कमरा, कर्नल, काज, काफी, काजू, गमला, , एवं अरबी शब्दों की गोभी, गोदाम, चाबी, तौलिया, पपीता,नीलम, पादरी, फीता, बाल्टी, बोतल, मिस्त्री, संतरा आदि।
अत्यंत कम प्रचलित वर्ग के विदेशज शब्द
फ्रांसीसी / फ्रेंच – काजू, कारतूस, कर्फ्यू, कूपन, अंग्रेज, लम, फ़्रांस, फ्रांसीसी, बिगुल, आदि।
डच – तुरुप (ताश में), बम (टंगे का) आदि।
रुसी – रूबल, जार, मिग, वोदका, सोवियत, स्पूतनिक आदि।
चीनी – चाय, लीची, चीकू, चीनी, आदि।
जापानी – रिक्शा, सायोनारा आदि।
(v) संकर शब्द
दो भिन्न स्रोतों से आये शब्दों के मेल से बने नये शब्दों संकर शब्द कहते हैं। जैसे –
छाया (संस्कृत शब्द) + दार (फारसी शब्द) = छायादार (संकर शब्द)
पान (हिंदी शब्द) + दान (फारसी शब्द) = पानदान (संकर शब्द)
रेल (अंग्रेजी शब्द) + गाड़ी (हिंदी शब्द) = रेलगाड़ी (संकर शब्द)
सील (अंग्रेजी शब्द) + बंद (फारसी शब्द) = सीलबंद (संकर शब्द)
2. रचना / व्युत्पत्ति / रचना के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण
रचना या बनावट के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं –
- रूढ़ शब्द
- यौगिक शब्द
- योगरूढ़ शब्द
(i) रूढ़ शब्द
ये वे शब्द हैं जो किसी मूल शब्द से बने होते हैं और सामान्य प्रयोग में आते हैं।
जिन शब्दों के सार्थक खंड न हो सकें और जो अन्य शब्दों के मेल से न बने हों उन्हें रूढ़ शब्द कहते हैं। इसे मौलिक या अयौगिक शब्द भी कहा जाता है।
जैसे – चावल शब्द का यदि हम खंड करेंगे तो चा + वल या चाव + ल होगा, जो निरर्थक खंड होंगे। अतः चावल शब्द रूढ़ शब्द है। अन्य उदाहरण – घर, खाना, पानी, दिन, घर, मुँह, घोड़ा आदि।
(ii) यौगिक शब्द
‘यौगिक’ का अर्थ है – मेल से बना हुआ। जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों से मिल कर बनता है, उसे यौगिक शब्द कहते हैं।
ये वे शब्द हैं जो दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर बनाए जाते हैं।
जैसे – राजमहल (राजा + महल), जलपान (जल + पान), विज्ञान (वि + ज्ञान), सामाजिक (समाज + इक), विद्यालय (विद्या का आलय), राजपुत्र (राजा का पुत्र) आदि।
यौगिक शब्दों की रचना तीन प्रकार से होती है – उपसर्ग से, प्रत्यय से और समास से।
(iii) योगरूढ़ शब्द
वे शब्द जो यौगिक तो होते हैं, परन्तु जिनका अर्थ रूढ़ (विशेष अर्थ) हो जाता है, योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं। यौगिक होते हुए भी ये शब्द एक इकाई हो जाते हैं यानी ये सामान्य अर्थ को न प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं।
ये वे यौगिक शब्द हैं जिनका अर्थ उनके घटक शब्दों के अर्थों से अलग होता है।
जैसे – पीताम्बर, जलज, लंबोदर, दशानन, नीलकंठ, गिरधारी, दशरथ, हनुमान, लालफीताशाही, चारपाई आदि।
‘पीताम्बर’ का सामान्य अर्थ है ‘पीला वस्त्र’, किन्तु यह विशेष अर्थ में श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त होता है। इसी तरह, ‘जलज’ का सामान्य अर्थ है ‘जल से जन्मा, किन्तु यह विशेष अर्थ में केवल कमल के लिए प्रयुक्त होता है। क्योंकि कमल के अलावा, जल में जन्मे हुए किसी वस्तु को जलज नहीं कह सकते हैं।
बहुब्रीहि समास के सभी उदहारण योगरूढ़ शब्द के उदहारण हैं।
3. रूप / प्रयोग / व्याकरणिक विवेचन के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण
प्रयोग के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं –
- विकारी शब्द
- अविकारी शब्द
(i) विकारी शब्द
विकारी शब्द वे शब्द हैं जिनमे लिंग, वचन व कारक के आधार पर मूल शब्द का रूपांतरण हो जाता है।
ये वे शब्द हैं जिनका रूप बदलता है। इसमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, और क्रिया शामिल हैं। जैसे – लड़का, लड़के, सुंदर, सुंदरता आदि।
लड़का पढ़ रहा है। (लिंग परिवर्तन) लड़की
पढ़ रही है।
लड़का दौड़ रहा है। (वचन परिवर्तन) लड़के दौड़ रहे हैं।
लड़के के लिए आम लाओ। (कारक परिवर्तन) लड़कों के लिए आम लाओ।
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, और क्रिया शब्द विकारी शब्द होते हैं –
संज्ञा – ब्राह्मण, जयचंद, पटना, हाथ, पाँव, लड़का, लड़क किताब, पुलिस, सफाई, ममता, बालपन, ढेर, कर्म, सरह सिरदर्द आदि ।
सर्वनाम – मैं, तू, वह, यह, इसे, उसे, जो, जिसे, कौत्र क्या, कोई, सब, विरला आदि।
विशेषण – अच्छा, बुरा, नीला, पीला, भारी, मीठा, बुद्ध सरल, जटिल आदि।
क्रिया – खेलना, कूदना, सोना, जागना, लेना, देना, खाना पीना, जाना, आना आदि।
(ii) अविकारी शब्द
ये वे शब्द हैं जिनका रूप नहीं बदलता है। इसमें अव्यय, क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, आदि शामिल हैं।
अविकारी शब्द उन शब्दों को कहते हैं, जिन शब्दों का प्रयोग मूल रूप में होता है और लिंग, वचन व कारक के आधार पर उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात् जो शब्द हमेशा एक से रहते हैं।
जैसे- और, लेकिन, फिर, आज, में, एवं, आहा आदि।
सभी प्रकार के अव्यय शब्द अविकारी शब्द होते हैं –
क्रिया विशेषण अव्यय – आज, कल, अब, कब, परसों यहाँ, वहाँ, इधर, उधर, कैसे, क्यों।
संबंध बोधक अव्यय – में, से, पर, के ऊपर, के नीचे, से आगे, से पीछे, की ओर।
समुच्च्यबोधक अव्यय – और, परन्तु, या, इसलिए, तो, यदि, क्योंकि।
विस्मयादिबोधक अव्यय – आहा ! हा ! हाय ! ओह ! वाह। वाह ! राम राम ! या अल्लाह ! या खुदा !
4. अर्थ के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण
अर्थ के आधार पर शब्द चार प्रकार के होते हैं –
(i) एकार्थी शब्द
ये वे शब्द हैं जिनका केवल एक ही अर्थ होता है।
जिन शब्दों का केवल एक ही अर्थ होता है, एकार्थी शब्द कहलाते हैं। व्यक्तिवाचक संज्ञा के शब्द इसी कोटि के शब्द हैं।
उदाहरण – गंगा, पटना, जर्मन, राधा, मार्च, सूर्य, चंद्रमा आदि।
(ii) अनेकार्थी शब्द
ये वे शब्द हैं जिनके एक से अधिक अर्थ होते हैं।
जिन शब्दों के एक से अधिक अर्थ होते हैं, अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं।
उदाहरण – मक्खी (कीट और गोंद), कल (भविष्य और यंत्र), हार (गले की माला और पराजय), कनक (सोना और धतूरा), कर (हाथ और टैक्स), अर्थ ( प्रयोजन और धन) आदि।
बच्चे आम खा रहे हैं। महंगाई के कारण आम आदमी परेशान है।
उक्त वाक्यों में ‘आम’ (एक ही शब्द) भिन्न-भिन्न संदर्भ में आया है। पहले वाक्य में ‘आम’ का आशय एक प्रकार के ‘फल’ से हैं। दूसरे वाक्य में ‘आम’ का अर्थ ‘सामान्य जन’ से हैं। इसलिये आम अनेकार्थी शब्द है।
(iii) समानार्थी / पर्यायवाची शब्द
ये वे शब्द हैं जिनका अर्थ समान होता है।
हिंदी भाषा में अनेक शब्द ऐसे हैं जो सामान अर्थ देते हैं, इन्ही शब्दों को समानार्थी या पर्यायवाची शब्द कहते हैं।
उदाहरण –
सूर्य – रवि, सूरज, भानु।
आकाश – नभ, गगन, आसमान।
बादल – मेघ, जलद, वारिद।
फूल – पुष्प, सुमन, प्रसून।
(iv) विपरीतार्थी / विलोम शब्द:
ये वे शब्द हैं जिनका अर्थ एक-दूसरे के विपरीत होता है।
जो शब्द विपरीत अर्थ का बोध कराते हैं, उन शब्दों को विपरीतार्थी या विलोम शब्द कहते हैं।
उदाहरण – दिन – रात, अच्छा – बुरा, बड़ा – छोटा, पाप -पुण्य, सच – झूठ आदि।
शब्द समूह के लिए एक शब्द
(i) ईश्वर और धर्म में विश्वास होने के कारण रामधन नित्य पूजा पाठ करता था, लेकिन उसके पुत्र राधाकिशन का ईश्वर में विश्वास नहीं था। इसलिए वह पूजा पाठ में रुचि नहीं लेता था।
(ii) रामधन आस्तिक होने से नित्य पूजा पाठ करता था, लेकिन उसका पुत्र राधा किशन नास्तिक होने से पूजा पाठ में रुचि नहीं लेता था।
उपर्युक्त दोनों अनुच्छेदों में एक ही बात दो प्रकार से कही गई है। पहले अनुच्छेद में अधिक विस्तार है, जबकि दूसरे अनुच्छेद में अनेक शब्दों (वाक्यांश) के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग करके संक्षेप में कहा गया है।
वस्तुतः भाव प्रकाशन के लिए अनेक शब्दों के स्थान पर सूत्र रूप में एक शब्द का सार्थक प्रयोग किया जाता है। इसके कारण भाव परिवर्तन नहीं होता, अपितु भाषा में कसावट आ जाती है और वह प्रभावशाली बन जाती है।
उदाहरण–
- जिसे स्वीकार न किया जाए – अस्वीकृत
- जो धरती बंजर हो – अनुपजाऊ
- शिक्षा ग्रहण करने का स्थान – विद्यालय
- दूर तक की समझ रखने वाला – दूरदर्शी
- सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न – सर्वगुणसम्पन्न
- जिसका कोई पार न हो – अपार
इन्हें भी देखें-
- तत्सम और तद्भव शब्दों की सूची
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