गोबी मरुस्थल, जो चीन और मंगोलिया में स्थित है, विश्व के सबसे बड़े और सबसे अद्वितीय मरुस्थलों में से एक है। यह मरुस्थल कुल 12,95,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और यह पृथ्वी का पांचवां सबसे बड़ा और एशिया का सबसे बड़ा मरुस्थल है। यह उत्तर में अल्टेई पहाड़ और मंगोलिया के स्तेपी और चरागाह से घिरा हुआ है। इसके दक्षिण-पश्चिम में घंसू का गलियारा और तिब्बत का पठार स्थित है, जबकि दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में चीन के उत्तरी क्षेत्र के मैदान फैले हुए हैं। गोबी का यह क्षेत्र केवल भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि पारिस्थितिकीय और ऐतिहासिक महत्व के कारण भी प्रसिद्ध है। ‘गोबी’ शब्द मंगोलियन भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ‘जलरहित स्थान’।
गोबी मरुस्थल का संक्षिप्त विवरण
गोबी मरुस्थल का संक्षिप्त विवरण को तालिका के रूप में नीचे दिया गया है:
गोबी मरुस्थल का संक्षिप्त विवरण | |
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देश (विस्तार) | मंगोलिया, चीन |
मंगोलियाई अइमग | बयानख़ोंगोर, दोरनोगोवी, दुन्दगोवी, गोवी-अल्ताई, गोवीसुम्बेर, ओम्नोगोवी, सुख़बातर |
चीनी प्रदेश | भीतरी मंगोलिया |
पर्वतमाला | गोवी-अल्ताई पर्वतमाला |
विशेष | नेमेग्त द्रोणी |
लंबाई | 1,500 कि.मी. (932 मील), SE/NW |
चौड़ाई | 800 कि.मी. (497 मील), N/S |
क्षेत्रफल | 12,95,000 वर्ग कि.मी. (5,00,002 वर्ग मील) |
गोबी मरुस्थल का इतिहास और सभ्यता
गोबी मरुस्थल अतीत में महान मंगोल साम्राज्य का हिस्सा रहा है। अतीत में यहाँ पर रेगिस्तान न होकर मंगोल साम्राज्य की समृद्ध बस्तियाँ थी। यह क्षेत्र सिल्क रोड से जुड़े कई महत्वपूर्ण शहरों का भी केंद्र था। पुरातात्त्विक खुदाई में यहां प्राचीन बौद्ध स्तूपों, विहारों, मूर्तियों और भारतीय भाषाओं में लिखी पांडुलिपियों के अवशेष मिले हैं। 7वीं शताब्दी में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने इसी गोबी मरुस्थल के रास्ते भारत की यात्रा की थी। इन अवशेषों से पता चलता है कि प्राचीन समय में यह क्षेत्र भारतीय संस्कृति और बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र था।
गोबी मरुस्थल का भूगोल और विस्तार
गोबी मरुस्थल एशिया महाद्वीप में मंगोलिया और उत्तरी चीन के अधिकांश हिस्सों में फैला हुआ है। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण में लगभग 600 मील (965 किमी) और पूर्व से पश्चिम में लगभग 1000 मील (1610 किमी) तक है। यह तिब्बत और अल्ताई पर्वतमालाओं के बीच स्थित है। इसके चारों ओर पहाड़ियां हैं, जो इसे एक विशाल ढालू मैदान का रूप देती हैं। इस क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल लगभग 12,95,000 वर्ग किलोमीटर है, जिससे यह विश्व का पांचवां सबसे बड़ा मरुस्थल और एशिया का सबसे बड़ा मरुस्थल है।
गोबी मरुस्थल को तीन मुख्य भागों में विभाजित किया गया है –
- ताकला माकन रेगिस्तान: यह पश्चिमी भाग में स्थित है और अपनी रेत के विशाल टीलों के लिए प्रसिद्ध है।
- अलशान रेगिस्तान: यह मरुस्थल का मध्य भाग है और यहाँ ज्यादातर चट्टानी भूभाग पाया जाता है।
- मुअस या ओर्डोस रेगिस्तान: यह क्षेत्र पूर्वी भाग में स्थित है और इसकी स्थलाकृति मिश्रित है।
जलवायु और स्थलाकृति
गोबी मरुस्थल अपनी विशिष्ट जलवायु और स्थलाकृति के लिए जाना जाता है। यह मरुस्थल हिमालय की दूसरी तरफ स्थित है। हिमालय की ऊंची पर्वत श्रृंखलायें हिंद महासागर से आने वाली नम हवाओं को रोक देती हैं, जिसके कारण इस क्षेत्र में वर्षा नहीं हो पाती। गोबी मरुस्थल में तापमान में अत्यधिक परिवर्तन होता है। यहां का तापमान शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे तक चला जाता है। इस कारण गोबी दुनिया के सबसे ठंडे रेगिस्तानों में से एक है।
यहां की जलवायु में तेजी से बदलाव होता है। यहां सालभर तापमान में बड़े बदलाव देखे जाते हैं और 24 घंटे के भीतर भी तापमान में व्यापक परिवर्तन हो सकता है। गोबी में औसतन 50 से 100 मिमी वर्षा होती है, जो मुख्यतः गर्मी के मौसम में होती है। बारिश के मौसम में नदियां और धाराएं बहने लगती हैं, लेकिन यह पानी जल्द ही रेगिस्तान की शुष्क भूमि में समा जाता है।
पर्यावरण
गोबी मरुस्थल का पर्यावरण अत्यंत कठोर है। यहाँ की जलवायु मुख्य रूप से शुष्क और ठंडी होती है। यह दुनिया के उन रेगिस्तानों में से एक है जो ठंडे रेगिस्तान के रूप में जाने जाते हैं।
- तापमान: गोबी मरुस्थल में तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव देखा जाता है। गर्मियों में तापमान 45 से 65 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है, जबकि सर्दियों में यह शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है। दिन और रात के तापमान में भी बड़ा अंतर होता है।
- वर्षा: यहाँ पर सालाना वर्षा की मात्रा केवल 50 से 100 मिमी तक होती है। अधिकांश बारिश गर्मियों के दौरान होती है। लेकिन बारिश की अनुपस्थिति के कारण यहाँ अधिकांश नदियाँ सूखी रहती हैं।
- वनस्पति और जीव-जंतु: यहाँ की वनस्पति और जीव-जंतु कठोर पर्यावरण के अनुकूल हो चुके हैं। काष्ठीय और सूखा प्रतिरोधी पौधे, जैसे सैकसोल, यहाँ बहुतायत में पाए जाते हैं। यह पौधा रेत को स्थिर रखने और भू-क्षरण को रोकने में सहायक है। बेक्टरियन ऊँट (दो कूबड़ वाले ऊँट), जंगली गधे, बारहसिंगे, और गोबी भालू जैसे जानवर यहाँ की अनूठी जैव विविधता का हिस्सा हैं। गोबी भालू, जिसे ‘मज़ालाई’ भी कहा जाता है, अब विलुप्त होने के कगार पर है।
गोबी मरुस्थल का भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्त्व
गोबी मरुस्थल प्राकृतिक भू-रचनाओं और ऐतिहासिक अवशेषों के लिए भी जाना जाता है।
भू-रचनाएँ
गोबी मरुस्थल में कई अनूठी भू-आकृतियाँ देखी जाती हैं। यहाँ की भूमि ज्यादातर चट्टानी है और इसमें सूखी हुई नदियों की तलहटियाँ, नमक के मैदान, और झीलों के अवशेष शामिल हैं। भू-क्षरण और कटाव की प्रक्रियाओं ने यहाँ की भू-आकृतियों को विशेष रूप दिया है।
सभ्यता के अवशेष
गोबी मरुस्थल प्राचीन सभ्यताओं के अवशेषों का खजाना है। ‘सर औरेल स्टोन’ नामक पुरातत्वविद् ने यहाँ खुदाई के दौरान बौद्ध स्तूपों, विहारों, मूर्तियों और पांडुलिपियों की खोज की थी। इन अवशेषों में भारतीय संस्कृति और बौद्ध धर्म के प्रभाव की झलक मिलती है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीनकाल में यह क्षेत्र भारतीय सभ्यता का केंद्र था।
सिल्क रूट का महत्त्व
गोबी मरुस्थल ऐतिहासिक सिल्क रूट का भी हिस्सा था, जो एशिया और यूरोप के बीच व्यापार का मुख्य मार्ग था। इस रास्ते से चीनी व्यापारी कपड़े, जूते, चाय, तंबाकू, ऊन, और चमड़े का व्यापार करते थे।
गोबी मरुस्थल का पारिस्थितिकीय महत्व
गोबी मरुस्थल अपनी जैव विविधता के लिए भी प्रसिद्ध है। यह मरुस्थल दुर्लभ और अद्वितीय प्रजातियों का घर है। यहां बेक्टेरियन ऊंट, जिनके दो कूबड़ होते हैं, और जंगली गधे पाए जाते हैं। यहां विशेष प्रकार के भालू भी मिलते हैं, जिन्हें ‘मज़ालाई’ या ‘गोबी भालू’ कहा जाता है। ये भालू अब विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसके अतिरिक्त यहां जंगली घोड़े, गिलहरी, छोटे कद के बारहसिंघे और सैकसोल नामक पौधे भी पाए जाते हैं। सैकसोल पौधा अपने सूखा-प्रतिरोधी गुणों और भू-क्षरण को रोकने की क्षमता के लिए जाना जाता है।
जैव विविधता
गोबी मरुस्थल की जैव विविधता अत्यधिक रोचक और अद्वितीय है। यहाँ पाए जाने वाले कुछ प्रमुख जीव-जंतु और पौधे इस प्रकार हैं –
- पौधे: सैकसोल, काँटेदार झाड़ियाँ, और सूखी घास।
- जीव-जंतु:
- बेक्टरियन ऊँट: इस रेगिस्तान में पाए जाने वाले ऊँटों की दो कूबड़ वाली विशेष प्रजाति।
- गोबी भालू (मज़ालाई): यह विशेष भालू केवल गोबी मरुस्थल में पाया जाता है और अब विलुप्ति के कगार पर है।
- जंगली घोड़े और गधे: ये कठोर परिस्थितियों में जीवित रहने में सक्षम हैं।
गोबी मरुस्थल | जल संसाधन और मरूद्यान
गोबी मरुस्थल में जल का स्रोत बहुत सीमित है। यहाँ केवल कुछ स्थानों पर भूमिगत जल स्रोत या जलभृत पाए जाते हैं, जो झरनों और कुओं के माध्यम से उपलब्ध होते हैं।
मरूद्यान यहाँ के जीवन का मुख्य केंद्र हैं। ये ऐसे क्षेत्र होते हैं जहाँ जल की उपलब्धता होती है और वनस्पतियाँ पनपती हैं। इन मरूद्यानों में खानाबदोश लोग बसते हैं और अपने पशुओं को पालते हैं।
गोबी मरुस्थल पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव
गोबी मरुस्थल में भारतीय संस्कृति और बौद्ध धर्म का प्रभाव प्राचीन काल से देखा जा सकता है। 7वीं शताब्दी में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने गोबी मरुस्थल के रास्ते भारत की यात्रा की थी। उसने इस क्षेत्र में भारतीय बौद्ध धर्म और सभ्यता का व्यापक प्रभाव देखा। यह क्षेत्र भारतीय और चीनी सभ्यताओं के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक आदान-प्रदान का प्रमुख केंद्र था।
गोबी मरुस्थल पर मिलने वाले जीवाश्म और अनुसंधान
गोबी मरुस्थल को प्राचीन जीवाश्मों के लिए भी जाना जाता है। यहां डायनासोर के कई दुर्लभ जीवाश्म मिले हैं, जो वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इस मरुस्थल ने कई महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक और जीवाश्मीय खोजों का समर्थन किया है, जिससे पृथ्वी के भूगर्भीय और जैविक इतिहास को समझने में मदद मिली है।
गोबी मरुस्थल | पर्यावरणीय चुनौतियां और संरक्षण प्रयास
गोबी मरुस्थल का विस्तार एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती बन गया है। जलवायु परिवर्तन, भूजल स्तर के गिरने, जंगलों की कटाई और अत्यधिक पशु चराई के कारण यह मरुस्थल तेजी से फैल रहा है। चीन ने इस समस्या को रोकने के लिए वृक्षारोपण की एक विशाल योजना शुरू की है। राजधानी बीजिंग के बाहरी इलाकों से लेकर मंगोलिया तक पेड़ों की एक दीवार बनाई गई है, जिसे “ग्रीन वॉल” कहा जाता है। इसका उद्देश्य धूल भरी आंधियों, जिन्हें ‘येलो ड्रैगन’ कहा जाता है, से छुटकारा पाना और मरुस्थल के विस्तार को रोकना है।
आधुनिक युग में गोबी मरुस्थल
आज गोबी मरुस्थल न केवल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह क्षेत्र जीवाश्मों की खोज के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ कई प्राचीन डायनासोर के जीवाश्म पाए गए हैं, जो पृथ्वी के प्राचीन जीवन की जानकारी देते हैं।
गोबी मरुस्थल न केवल एक विशाल और अद्वितीय भूभाग है, बल्कि यह अपने भीतर इतिहास, भूगोल और जैव विविधता की अद्भुत कहानियाँ समेटे हुए है। इसकी कठोर जलवायु, अनूठी भौगोलिक संरचनाएँ और सांस्कृतिक महत्त्व इसे दुनिया के सबसे रोचक मरुस्थलों में से एक बनाते हैं। भारतीय संस्कृति के साथ इसके प्राचीन संबंध इसे और भी खास बनाते हैं। यह केवल अपनी जलवायु और भौगोलिक संरचना के लिए ही नहीं, बल्कि अपने पारिस्थितिकीय और ऐतिहासिक महत्व के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है।
हालांकि, इस मरुस्थल क्षेत्र को कई पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन चीन जैसे देशों द्वारा उठाए गए संरक्षण प्रयासों से उम्मीद है कि गोबी मरुस्थल अपनी जैव विविधता और प्राकृतिक सुंदरता को बनाए रख सकेगा। यह मरुस्थल न केवल मंगोलिया और चीन की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक अनमोल खजाना है।
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