भारत का केंद्रीय बजट (Union Budget) देश की आर्थिक संरचना का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सरकार की वित्तीय नीतियों और आर्थिक दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करता है। यह केवल आय-व्यय का विवरण नहीं, बल्कि देश की आर्थिक दिशा को निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है। संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत इसे वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement) कहा जाता है, जो आगामी वित्तीय वर्ष के लिए सरकार की योजनाओं और प्राथमिकताओं को दर्शाता है।
बजट का निर्माण भारत सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा किया जाता है, जिसमें राजस्व विभाग, व्यय विभाग और आर्थिक मामलों का विभाग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सरकार इस बजट के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों जैसे बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, रक्षा और सामाजिक कल्याण के लिए धन आवंटित करती है, जिससे देश की आर्थिक स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित की जाती है।
पिछले वर्षों में, बजट की प्रस्तुति की तारीख में बदलाव किया गया है, और अब इसे 1 फरवरी को संसद में पेश किया जाता है ताकि इसे 1 अप्रैल से लागू किया जा सके। बजट आम जनता, उद्योगपतियों, निवेशकों और सरकारी नीतियों से प्रभावित होने वाले सभी वर्गों के लिए महत्वपूर्ण होता है। यह सरकार की वित्तीय नीतियों, कराधान प्रणाली और व्यय संरचना का एक विस्तृत खाका प्रस्तुत करता है, जिससे देश की आर्थिक वृद्धि, रोजगार और विकास दर को गति मिलती है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 1 फरवरी 2025 को वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए केंद्रीय बजट प्रस्तुत किया गया। यह उनका आठवाँ बजट था, जो शिक्षा, रक्षा, उद्योग, और महिला कल्याण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सुधार और प्रोत्साहन पर केंद्रित था।
केंद्रीय बजट (Union Budget) का परिचय
बजट एक वित्तीय योजना है जो आय के स्रोतों और प्रस्तावित व्यय का विवरण प्रस्तुत करता है। यह दर्शाता है कि धन कहाँ से आएगा (राजस्व, प्राप्तियां, आय) और इसे कहाँ खर्च किया जाएगा (व्यय, खर्चे)। बजट किसी भी सरकार, संगठन या व्यक्ति के लिए वित्तीय प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है, जो आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
केंद्रीय बजट (Union Budget) का अर्थ
भारत में केंद्रीय बजट (Union Budget) एक महत्वपूर्ण वित्तीय दस्तावेज है, जिसमें सरकार द्वारा आगामी वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च) के लिए अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विस्तृत विवरण दिया जाता है। यह बजट देश की आर्थिक नीतियों को दिशा देने का कार्य करता है और विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य, शिक्षा, रक्षा, कृषि और अन्य सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन आवंटन की रूपरेखा तैयार करता है।
केंद्रीय बजट केवल एक आय-व्यय का विवरण नहीं होता, बल्कि यह आर्थिक नीतियों का खाका होता है, जो देश के वित्तीय प्रबंधन और आर्थिक विकास को सुनिश्चित करता है। इसमें कराधान, सरकारी व्यय, राजकोषीय घाटा, राजस्व संग्रहण और विभिन्न योजनाओं के वित्त पोषण से जुड़ी जानकारियां होती हैं।
संवैधानिक आधार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत, केंद्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement) कहा जाता है। यह भारत सरकार द्वारा हर वित्तीय वर्ष के लिए प्रस्तुत किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है, जिसमें सरकार की राजस्व प्राप्तियों और व्यय का पूरा लेखा-जोखा होता है। यह दस्तावेज सरकार की आगामी वित्तीय वर्ष की योजनाओं को दर्शाता है।
भारत में संसद की मंजूरी के बिना कोई भी धन खर्च नहीं किया जा सकता, इसलिए बजट का प्रस्तुतिकरण और अनुमोदन अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है। संसद के दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा में बजट पर विस्तृत चर्चा की जाती है और इसे विभिन्न चरणों से गुजरने के बाद मंजूरी दी जाती है।
वित्त मंत्रालय की भूमिका
केंद्रीय बजट के निर्माण की जिम्मेदारी भारत सरकार के वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance) की होती है। वित्त मंत्रालय के विभिन्न विभाग इस प्रक्रिया में अपनी भूमिका निभाते हैं:
- राजस्व विभाग (Department of Revenue) – कर और आय से संबंधित मामलों को एवं अन्य राजस्व प्राप्तियों को देखता है।
- व्यय विभाग (Department of Expenditure) – सार्वजनिक क्षेत्र में खर्च (सरकारी खर्चों) का प्रबंधन करता है।
- आर्थिक मामलों का विभाग (Department of Economic Affairs) – बजट निर्माण की प्रक्रिया का समन्वय करता है।
इन विभागों के सहयोग से बजट का मसौदा तैयार किया जाता है और इसे संसद में पेश करने से पहले प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री द्वारा अंतिम रूप दिया जाता है।
बजट प्रस्तुति और समय-सीमा
पहले, भारत का केंद्रीय बजट फरवरी के अंतिम कार्य दिवस को प्रस्तुत किया जाता था। लेकिन 2017 से, बजट की प्रस्तुति की तारीख 1 फरवरी कर दी गई, ताकि इसे नए वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च) की शुरुआत से पहले लागू किया जा सके।
बजट को संसद में वित्त मंत्री द्वारा पेश किया जाता है और इसे देशभर में डीडी नेशनल, डीडी न्यूज और संसद टीवी जैसे राष्ट्रीय चैनलों पर लाइव प्रसारित किया जाता है। यह पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और देश के नागरिकों को सरकार की वित्तीय योजनाओं के बारे में जानकारी देता है।
भारत के केंद्रीय बजट का इतिहास | 1947 से 2025 तक
भारत के स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से केंद्रीय बजट देश की आर्थिक दिशा निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण दस्तावेज रहा है। यह देश की आर्थिक नीतियों, प्राथमिकताओं, चुनौतियों और विकास लक्ष्यों को दर्शाता है। 1947 में पहला बजट प्रस्तुत किए जाने से लेकर 2025 तक, भारतीय बजट प्रणाली ने कई महत्वपूर्ण सुधारों, नीतिगत बदलावों और ऐतिहासिक फैसलों को देखा है।
1947 से 2025 तक केंद्रीय बजट के इतिहास और विभिन्न वित्त मंत्रियों द्वारा पेश किए गए बजटों की प्रमुख उपलब्धियों पर एक विस्तृत विवरण आगे दिया गया है –
1947-1950 | स्वतंत्र भारत का पहला बजट
भारत के पहले वित्त मंत्री आर. के. शण्मुखम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को स्वतंत्र भारत का पहला बजट पेश किया। यह बजट केवल सात महीने और पंद्रह दिन के लिए था, क्योंकि देश को नई आर्थिक नीतियां बनानी थीं।
- इस बजट में कुल राजस्व ₹171.15 करोड़ और कुल व्यय ₹197.39 करोड़ रखा गया था।
- यह बजट देश के वित्तीय ढांचे को स्थिर करने और नई सरकार की प्राथमिकताओं को निर्धारित करने का एक प्रयास था।
इसके बाद जॉन मथाई वित्त मंत्री बने, जो पहले भारत के रेल मंत्री भी रह चुके थे। उन्होंने पहली पंचवर्षीय योजना की नींव रखी लेकिन योजना आयोग के बढ़ते प्रभाव के विरोध में इस्तीफा दे दिया।
1950-1960 | पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत
1950 के दशक में, भारत ने आर्थिक विकास को गति देने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को लागू किया। इस दौरान सी. डी. देशमुख ने भारत के वित्त मंत्री के रूप में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।
- उन्होंने कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाया और आयकर पर अधिभार (surcharge) लगाया, जिससे सरकार की आय बढ़ी।
- इस दशक में औद्योगिक विकास के लिए औद्योगिक वित्तीय संस्थाओं (IDBI, ICICI) और दामोदर घाटी निगम (DVC) की स्थापना की गई।
इसके बाद टी. टी. कृष्णमाचारी वित्त मंत्री बने, जिन्होंने वेल्थ टैक्स और अन्य नीतिगत बदलाव किए।
1960-1970 | हरित क्रांति और स्वर्ण नियंत्रण अधिनियम
1960 के दशक में, भारत को कई आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इस समय देश में हरित क्रांति (Green Revolution) की शुरुआत हुई, जिससे कृषि उत्पादन में सुधार हुआ।
- मोरारजी देसाई, जो सबसे लंबे समय (10 बजट) तक वित्त मंत्री रहे, ने कृषि अनुसंधान और विकास पर जोर दिया।
- स्वर्ण नियंत्रण अधिनियम (Gold Control Act) लागू किया गया, जिससे सोने के आयात और व्यापार को सीमित किया गया।
- उन्होंने आयकर के लिए स्वयं-मूल्यांकन प्रणाली (Self-Assessment for Income Tax) शुरू की, जिससे कर प्रशासन आसान हुआ।
1969 में, इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए वित्त मंत्रालय का भी कार्यभार संभाला। उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण (Bank Nationalization) किया और श्वेत क्रांति (White Revolution) को बढ़ावा दिया, जिससे भारत दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर बना।
1970-1980 | कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं
1970 के दशक में, भारत को वैश्विक आर्थिक मंदी और तेल संकट जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
- यशवंतराव चव्हाण के वित्त मंत्री रहते हुए कोयला खदानों और बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
- चिदंबरम सुब्रमण्यम ने कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) और पारिवारिक पेंशन योजनाओं की शुरुआत की, जिससे श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा मिली।
इस दशक में आर्थिक नीतियों का मुख्य उद्देश्य गरीबों और किसानों के कल्याण पर केंद्रित था।
1980-1990 | आर्थिक उदारीकरण की ओर पहला कदम
1980 के दशक में, भारत ने आर्थिक सुधारों की दिशा में धीरे-धीरे कदम बढ़ाना शुरू किया। इस दौरान आर. वेंकटरमण और प्रणब मुखर्जी जैसे वित्त मंत्रियों ने आर्थिक नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव किए।
- इस दशक में अनिवासी भारतीयों (NRIs) से निवेश को आकर्षित करने के लिए नीतियां बनाई गईं।
- वी. पी. सिंह ने MODVAT (Modified Value Added Tax) और गरीबों के लिए विशेष योजनाएं शुरू कीं।
यह दशक आर्थिक सुधारों की नींव रखने का था, जिसने 1991 में बड़े बदलावों का मार्ग प्रशस्त किया।
1990-2000 | आर्थिक उदारीकरण और कर सुधार
1991 में, भारत के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण (Economic Liberalization) की शुरुआत की। उन्होंने LPG (Liberalization, Privatization, Globalization) नीति अपनाई।
- विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए नियमों को सरल बनाया गया।
- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने पर जोर दिया गया।
1997 में, पी. चिदंबरम ने “ड्रीम बजट” पेश किया, जिसमें आयकर दरों में कटौती, अधिभार हटाने और कर प्रणाली को सरल बनाने की घोषणा की गई।
2000-2010 | आर्थिक विकास और नई योजनाएं
इस दशक में, भारत ने तेज़ी से आर्थिक विकास किया।
- यशवंत सिन्हा ने CENVAT (Central Value Added Tax), विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs), और ऋण बाजार सुधार लागू किए।
- अरुण जेटली ने 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू किया और रेलवे बजट को केंद्रीय बजट में मिला दिया।
2010-2025 | डिजिटल भारत और आत्मनिर्भरता की दिशा में बदलाव
2010 के बाद, भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण और नई योजनाओं की शुरुआत हुई।
भारत के केंद्रीय बजट का इतिहास देश के आर्थिक विकास की कहानी को दर्शाता है। 1947 से अब तक, बजट नीतियां समय के साथ बदली हैं, और प्रत्येक दशक में नए सुधार और रणनीतियां लागू की गई हैं। आर्थिक उदारीकरण, कर सुधार, डिजिटलीकरण, आत्मनिर्भरता और सामाजिक कल्याण जैसे क्षेत्रों में हुए बदलावों ने भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।
आने वाले वर्षों में, केंद्रीय बजट भारत को एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
केंद्रीय बजट की संरचना और घटक
भारतीय सरकार का बजट मुख्य रूप से दो प्रमुख घटकों में विभाजित होता है:
- राजस्व बजट (Revenue Budget)
- पूंजी बजट (Capital Budget)
इसके अलावा, बजट में बजटीय प्राप्तियां (Budget Receipts) और बजटीय व्यय (Budget Expenditure) भी शामिल होते हैं।
1. राजस्व बजट (Revenue Budget)
राजस्व बजट सरकार की उन आय (Receipts) और व्यय (Expenditures) से संबंधित होता है जो सरकार की परिसंपत्तियों (Assets) और देनदारियों (Liabilities) को प्रभावित नहीं करते।
(क) राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts)
राजस्व प्राप्तियां वे आय होती हैं जो सरकार विभिन्न स्रोतों से प्राप्त करती है। इनसे न तो सरकार की कोई देयता (Liability) उत्पन्न होती है और न ही सरकारी परिसंपत्तियों में कमी आती है।
राजस्व प्राप्तियां मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं –
- कर प्राप्तियां (Tax Receipts):
- आयकर (Income Tax)
- कॉर्पोरेट कर (Corporate Tax)
- वस्तु एवं सेवा कर (GST)
- उत्पाद शुल्क (Excise Duty)
- सीमा शुल्क (Customs Duty) आदि।
- अकर प्राप्तियां (Non-Tax Receipts):
- दंड (Fines)
- अनुदान (Grants)
- दान (Donations)
- सरकारी ऋणों पर ब्याज से प्राप्त आय (Interest on Loans) आदि।
(ख) राजस्व व्यय (Revenue Expenditures)
राजस्व व्यय सरकार द्वारा किए जाने वाले नियमित खर्च होते हैं, जो सरकारी कार्यों और सार्वजनिक कल्याण के लिए आवश्यक होते हैं। ये खर्च न तो नई परिसंपत्तियां (Assets) उत्पन्न करते हैं और न ही सरकार की देनदारियों को कम करते हैं।
राजस्व व्यय में निम्न खर्चे शामिल हैं –
- सरकारी कर्मचारियों के वेतन (Salaries)
- पेंशन भुगतान (Pensions)
- सब्सिडी (Subsidies)
- अनुदान (Grants)
- शिक्षा, स्वास्थ्य, और अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च।
2. पूंजी बजट (Capital Budget)
पूंजी बजट सरकार की परिसंपत्तियों (Assets) और देनदारियों (Liabilities) से संबंधित होता है। इसका मुख्य उद्देश्य लंबी अवधि में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और बुनियादी ढांचे (Infrastructure) में निवेश करना है।
(क) पूंजीगत प्राप्तियां (Capital Receipts)
ये वे धनराशि होती हैं जो सरकार द्वारा जुटाई जाती हैं और जो या तो सरकारी देनदारियां उत्पन्न करती हैं या परिसंपत्तियों को कम करती हैं।
पूंजीगत प्राप्तियों के प्रमुख स्रोत निम्न हैं –
- ऋण (Loans):
- घरेलू स्रोतों (Domestic Sources) से ऋण
- विदेशी स्रोतों (Foreign Sources) से ऋण
- ऋण की वसूली (Recovery of Loans):
- सरकार द्वारा पहले दिए गए ऋणों की पुनर्प्राप्ति।
- विनिवेश (Disinvestment):
- सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSUs) की संपत्तियों को निजी क्षेत्र को बेचना।
(ख) पूंजीगत व्यय (Capital Expenditures)
पूंजीगत व्यय वे खर्च होते हैं जिनका उपयोग नए परिसंपत्तियों (Assets) के निर्माण या मौजूदा परिसंपत्तियों के विस्तार में किया जाता है। ये व्यय सरकार की देनदारियों को भी कम कर सकते हैं, जैसे कि ऋण चुकाना।
पूंजीगत व्यय में निम्न खर्चे प्रमुख रूप से शामिल हैं –
- बुनियादी ढांचे (Infrastructure) जैसे सड़कें, पुल, रेलवे, बंदरगाहों और हवाई अड्डों का निर्माण।
- मशीनरी, उपकरण और अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश।
- अस्पताल, स्कूल और विश्वविद्यालयों के निर्माण में निवेश।
- सार्वजनिक ऋण का पुनर्भुगतान (Repayment of Public Debt)।
भारतीय केंद्रीय बजट की संरचना दो प्रमुख घटकों – राजस्व बजट और पूंजी बजट में विभाजित होती है। राजस्व बजट दैनिक संचालन और कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित होता है, जबकि पूंजी बजट देश के दीर्घकालिक आर्थिक विकास और बुनियादी ढांचे के विकास को सुनिश्चित करता है।
इन घटकों का संतुलित प्रबंधन भारत की वित्तीय स्थिरता और सतत आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।
भारत में केंद्रीय बजट निर्माण प्रक्रिया
भारत में केंद्रीय बजट एक सुव्यवस्थित और बहु-चरणीय प्रक्रिया के तहत तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य सरकारी संसाधनों के कुशल आवंटन और पारदर्शिता को सुनिश्चित करना है। केंद्रीय बजट को संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement) कहा जाता है। इस प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण चरण शामिल होते हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है।
- मंत्रालयों से वित्तीय प्रस्ताव प्राप्त करना।
- वित्त मंत्री द्वारा लोकसभा में बजट प्रस्तुति।
- आर्थिक सर्वेक्षण का प्रकाशन।
- संसदीय चर्चा और विभागीय समितियों की समीक्षा।
- वित्त विधेयक और विनियोग विधेयक का पारित होना।
1. बजट की तैयारी (Preparation of the Budget)
केंद्रीय बजट की तैयारी की प्रक्रिया वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance) के अंतर्गत संचालित होती है। इसकी शुरुआत विभिन्न मंत्रालयों और विभागों द्वारा अपने वार्षिक वित्तीय प्रस्तावों और व्यय अनुमान (Financial Proposals and Expenditure Estimates) को प्रस्तुत करने से होती है।
बजट निर्माण में शामिल प्रमुख निकाय
- वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance)
- राजस्व विभाग (Department of Revenue): कर प्राप्तियों और अन्य राजस्व स्रोतों से संबंधित नीतियां तय करता है।
- व्यय विभाग (Department of Expenditure): सार्वजनिक क्षेत्र की वित्तीय आवश्यकताओं का प्रबंधन करता है।
- आर्थिक मामले विभाग (Department of Economic Affairs – Budget Division): बजट निर्माण की प्रमुख इकाई होती है।
- वित्तीय सेवाएं विभाग (Department of Financial Services): बैंकों, बीमा और अन्य वित्तीय संस्थानों से संबंधित मामलों को देखता है।
- नीति आयोग (NITI Aayog) – यह विभिन्न मंत्रालयों और क्षेत्रों में व्यय प्राथमिकताओं का विश्लेषण करता है और आर्थिक नीतियों पर सुझाव देता है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) – यह मौद्रिक नीतियों, मुद्रास्फीति और सरकारी उधारी से संबंधित अनुमान प्रस्तुत करता है।
बजट निर्माण के चरण
- विभिन्न मंत्रालयों और विभागों द्वारा अपने खर्च और आय के अनुमानों को वित्त मंत्रालय को भेजा जाता है।
- नीति आयोग और भारतीय रिज़र्व बैंक से आर्थिक अनुमान लिए जाते हैं।
- बजट प्रभाग (Budget Division) सभी जानकारियों को एकत्र करके बजट का प्रारूप (Draft Budget) तैयार करता है।
- अंत में, वित्त मंत्री प्रधानमंत्री और कैबिनेट की स्वीकृति के बाद बजट को अंतिम रूप देते हैं।
2. बजट का प्रस्तुतीकरण (Presentation of the Budget)
भारत में 2017 से पहले बजट प्रत्येक वर्ष फरवरी के अंतिम कार्य दिवस को प्रस्तुत किया जाता था। 2017 के बाद से, बजट को 1 फरवरी को पेश किया जाता है ताकि नए वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च) से पहले इसे लागू किया जा सके।
बजट भाषण का महत्व
- बजट भाषण में वित्त मंत्री आर्थिक रणनीतियों (Economic Strategies), नीतिगत पहल (Policy Initiatives) और आगामी वित्तीय वर्ष के लिए प्रस्तावित वित्तीय योजनाओं की जानकारी देते हैं।
- यह भाषण लोकसभा में अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में पढ़ा जाता है।
- बजट प्रस्तुति को राष्ट्रीय चैनलों जैसे दूरदर्शन (DD National), दूरदर्शन समाचार (DD News) और संसद टीवी (Sansad TV) पर लाइव प्रसारित किया जाता है।
3. आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey) की प्रस्तुति
बजट पेश करने से एक दिन पहले आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey) संसद में प्रस्तुत किया जाता है। यह दस्तावेज़ सरकार को अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करने और भविष्य की आर्थिक चुनौतियों और संभावनाओं की समीक्षा करने में मदद करता है।
आर्थिक सर्वेक्षण के प्रमुख घटक
- अर्थव्यवस्था का विस्तृत आकलन – सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि, मुद्रास्फीति, कर संग्रहण, राजकोषीय घाटा आदि।
- नीतिगत सिफारिशें – सरकारी योजनाओं, सुधारों और निवेश प्राथमिकताओं पर सुझाव।
4. बजट पर सामान्य चर्चा (General Discussion on Budget)
बजट प्रस्तुति के बाद संसद के दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा में 3 से 4 दिनों तक बजट पर सामान्य चर्चा होती है।
इस चरण (बजट पर सामान्य चर्चा) की विशेषताएँ
- इस चर्चा में सांसद बजट के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत करते हैं।
- इस दौरान कोई मतदान (Voting) या औपचारिक प्रस्ताव (Formal Motion) नहीं होता।
- इस चर्चा का उद्देश्य सरकार को बजट से संबंधित जनता की अपेक्षाओं और विपक्ष के विचारों से अवगत कराना होता है।
5. संसदीय समितियों द्वारा बजट की समीक्षा (Scrutiny by Parliamentary Committees)
बजट को विस्तृत जांच के लिए 24 स्थायी संसदीय समितियों (Departmental Standing Committees) को भेजा जाता है।
समिति की भूमिका
- ये समितियाँ विभिन्न मंत्रालयों के अनुदान मांगों (Demands for Grants) की समीक्षा करती हैं।
- ये अपने निष्कर्षों और सुझावों की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करती हैं।
6. अनुदान मांगों पर मतदान (Voting on Demands for Grants)
लोकसभा में प्रत्येक मंत्रालय की अनुदान मांगों (Demands for Grants) पर मतदान होता है।
कटौती प्रस्ताव (Cut Motions)
सांसद बजट में कटौती के लिए तीन प्रकार के कटौती प्रस्ताव ला सकते हैं:
- नीति कटौती (Policy Cut Motion): सरकार की किसी नीति के खिलाफ प्रस्ताव।
- आर्थिक कटौती (Economy Cut Motion): किसी विशेष व्यय में कमी की मांग।
- प्रतीकात्मक कटौती (Token Cut Motion): सरकार को किसी विशेष मुद्दे पर ध्यान दिलाने के लिए।
7. गिलोटिन प्रक्रिया (Guillotine Process)
यदि किसी मंत्रालय की अनुदान मांगों पर चर्चा पूरी नहीं होती, तो लोकसभा अध्यक्ष (Speaker) अंतिम दिन शेष मांगों को बिना बहस के मतदान के लिए रख देते हैं। इसे गिलोटिन प्रक्रिया कहा जाता है, जिससे समय पर बजट पारित हो सके।
8. विनियोग विधेयक (Appropriation Bill) का पारित होना
विनियोग विधेयक (Appropriation Bill) के माध्यम से सरकार को संविधान के संचित निधि (Consolidated Fund of India) से धन निकालने की अनुमति दी जाती है।
- यह विधेयक लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पारित होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करता है।
- इसके बाद यह एक कानून बन जाता है।
9. लेखानुदान (Vote on Account)
यदि 31 मार्च से पहले बजट पारित नहीं हो पाता, तो सरकार Vote on Account के तहत अस्थायी धनराशि का उपयोग कर सकती है।
- यह आमतौर पर दो महीने के खर्च को पूरा करने के लिए मंजूर किया जाता है।
- चुनावी वर्षों में इसे तीन से चार महीने के लिए भी बढ़ाया जा सकता है।
10. वित्त विधेयक (Finance Bill) का पारित होना
वित्त विधेयक (Finance Bill) में सरकार की कर नीतियों और नए कर प्रस्तावों को शामिल किया जाता है।
- यह विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है और इसे 75 दिनों के भीतर पारित करना अनिवार्य होता है।
- इसे संसद में मंजूरी मिलने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति से यह कानून बन जाता है।
भारत में केंद्रीय बजट एक सुव्यवस्थित और बहु-चरणीय प्रक्रिया के माध्यम से तैयार किया जाता है, जिसमें मंत्रालयों, वित्त मंत्रालय, संसद और राष्ट्रपति की भागीदारी होती है। इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य सरकारी वित्तीय संसाधनों का उचित प्रबंधन, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है।
केंद्रीय बजट में करों के प्रकार और बजटीय घाटा
किसी भी देश की आर्थिक नीति और वित्तीय प्रबंधन को समझने के लिए कर प्रणाली (Tax System) का ज्ञान आवश्यक होता है। कर सरकार के लिए राजस्व अर्जित करने का प्रमुख स्रोत होते हैं, जिससे वह विभिन्न विकास कार्यों, कल्याणकारी योजनाओं और प्रशासनिक खर्चों को पूरा करती है। भारत में केंद्रीय बजट के अंतर्गत करों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता है, जो करदाताओं और अर्थव्यवस्था पर भिन्न-भिन्न प्रभाव डालते हैं। इसके अतिरिक्त, बजट में होने वाले राजकोषीय घाटे (Budget Deficit) के प्रकारों को समझना भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सरकार की आर्थिक स्थिति और ऋण प्रबंधन को दर्शाता है।
प्रगतिशील और प्रतिगामी कर (Progressive & Regressive Taxes), प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर (Direct & Indirect Taxes) तथा बजटीय घाटे (Revenue Deficit, Fiscal Deficit, Primary Deficit) की विस्तृत चर्चा आगे की गयी है।
1. कर प्रणाली (Types of Taxes in Union Budget)
भारत की कर प्रणाली को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है –
1️⃣ प्रगतिशील कर बनाम प्रतिगामी कर (Progressive vs. Regressive Taxes)
2️⃣ प्रत्यक्ष कर बनाम अप्रत्यक्ष कर (Direct vs. Indirect Taxes)
1.1 प्रगतिशील कर बनाम प्रतिगामी कर (Progressive vs. Regressive Taxes)
सरकार करों को इस प्रकार डिज़ाइन करती है कि वे आय, संपत्ति और उपभोग क्षमता के अनुसार लोगों पर भिन्न-भिन्न प्रभाव डालते हैं।
(i) प्रगतिशील कर (Progressive Tax)
- परिभाषा:
यह कर प्रणाली इस सिद्धांत पर आधारित होती है कि आय बढ़ने के साथ-साथ कर की दर भी बढ़े। इसका उद्देश्य धन के समान वितरण को सुनिश्चित करना और सामाजिक असमानता को कम करना होता है। - विशेषताएँ:
✅ उच्च आय वालों से अधिक कर लिया जाता है।
✅ कम आय वालों पर कर का बोझ कम पड़ता है।
✅ धन के पुनर्वितरण में सहायक होता है। - उदाहरण:
- आयकर (Income Tax) – भारत में आयकर स्लैब प्रणाली के अनुसार अधिक आय वाले व्यक्तियों पर अधिक कर की दर लागू होती है।
- कॉर्पोरेट कर (Corporate Tax) – बड़ी कंपनियाँ अधिक कर दर का भुगतान करती हैं।
(ii) प्रतिगामी कर (Regressive Tax)
- परिभाषा:
प्रतिगामी कर उन करों को कहते हैं, जिनमें कर की दर सभी के लिए समान होती है, लेकिन इसका प्रभाव कम आय वर्ग के लोगों पर अधिक पड़ता है। - विशेषताएँ:
✅ सभी करदाताओं के लिए एक समान कर दर लागू होती है।
✅ कम आय वाले व्यक्तियों की क्रय शक्ति (Purchasing Power) पर अधिक प्रभाव पड़ता है।
✅ सामाजिक असमानता बढ़ सकती है। - उदाहरण:
- माल और सेवा कर (GST) – एक ही वस्तु पर कर दर सभी उपभोक्ताओं के लिए समान होती है, लेकिन गरीबों के लिए इसका प्रभाव अधिक होता है।
- कस्टम ड्यूटी (Custom Duty) – सभी उपभोक्ताओं के लिए समान होती है, लेकिन कम आय वालों के लिए अधिक भारदायक हो सकती है।
1.2 प्रत्यक्ष कर बनाम अप्रत्यक्ष कर (Direct vs. Indirect Taxes)
भारत में करों को उनके प्रभाव और भुगतान के तरीके के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है –
(i) प्रत्यक्ष कर (Direct Tax)
- परिभाषा:
यह वे कर होते हैं, जिन्हें व्यक्ति या संस्थान सीधे सरकार को भुगतान करता है। - विशेषताएँ:
✅ कर की जिम्मेदारी स्वयं करदाता की होती है।
✅ कर का बोझ किसी अन्य व्यक्ति पर स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।
✅ आमतौर पर आय और संपत्ति पर लगाया जाता है। - उदाहरण:
- आयकर (Income Tax) – व्यक्ति द्वारा अर्जित आय पर लगाया जाता है।
- कॉर्पोरेट कर (Corporate Tax) – कंपनियों की शुद्ध आय पर लगाया जाता है।
- संपत्ति कर (Property Tax) – संपत्ति के स्वामित्व पर लगाया जाता है।
(ii) अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax)
- परिभाषा:
ये कर वे होते हैं, जिन्हें किसी उत्पाद या सेवा के मूल्य में जोड़ा जाता है और अंततः उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान किया जाता है। - विशेषताएँ:
✅ कर का बोझ अन्य व्यक्तियों पर स्थानांतरित किया जा सकता है।
✅ आमतौर पर वस्तुओं और सेवाओं की खपत पर लगाया जाता है। - उदाहरण:
- माल एवं सेवा कर (GST) – उपभोक्ताओं द्वारा वस्तुएँ खरीदने या सेवाएँ प्राप्त करने पर लगाया जाता है।
- उत्पाद शुल्क (Excise Duty) – उत्पादकों द्वारा चुकाया जाता है, लेकिन उपभोक्ताओं को बढ़ी हुई कीमत के रूप में दिया जाता है।
- कस्टम ड्यूटी (Custom Duty) – आयातित वस्तुओं पर लगाया जाता है।
2. बजटीय घाटा (Budget Deficit and Classification)
जब सरकार की कुल आय (Revenue) उसकी कुल व्यय (Expenditure) से कम होती है, तो उसे बजटीय घाटा (Budget Deficit) कहते हैं। इसे मुख्य रूप से तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है –
- राजस्व घाटा (Revenue Deficit)
- राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
- प्राथमिक घाटा (Primary Deficit)
2.1 राजस्व घाटा (Revenue Deficit)
- परिभाषा:
जब सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ (Revenue Receipts) उसकी राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) से कम होती हैं, तो इसे राजस्व घाटा कहते हैं। - कारण:
✅ अनावश्यक सब्सिडी और योजनाओं पर अधिक व्यय।
✅ कर संग्रह में कमी। - प्रभाव:
❌ सरकार को ऋण लेकर इस घाटे को पूरा करना पड़ता है।
❌ सामाजिक कल्याण और विकास कार्य प्रभावित हो सकते हैं।
2.2 राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
- परिभाषा:
जब सरकार की कुल कुल व्यय (Total Expenditure) उसकी कुल प्राप्तियों (Total Receipts), ऋण को छोड़कर अधिक होती हैं, तो इसे राजकोषीय घाटा कहा जाता है। - कारण:
✅ सरकारी परियोजनाओं में अधिक व्यय।
✅ कर और गैर-कर राजस्व में कमी। - प्रभाव:
❌ अधिक ऋण लेने की आवश्यकता होती है।
❌ मुद्रास्फीति (Inflation) को बढ़ा सकता है।
2.3 प्राथमिक घाटा (Primary Deficit)
- परिभाषा:
जब सरकार का राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) से ब्याज भुगतान (Interest Payments) घटा दिया जाए, तो जो राशि बचती है, उसे प्राथमिक घाटा (Primary Deficit) कहते हैं। - कारण:
✅ सरकारी खर्चों में बढ़ोतरी।
✅ आर्थिक अनुशासन की कमी। - प्रभाव:
❌ सरकार की ऋण लेने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
❌ दीर्घकालिक वित्तीय अस्थिरता का संकेत देता है।
भारत की कर प्रणाली और बजटीय घाटे का गहरा प्रभाव देश की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है।
✅ प्रगतिशील कर प्रणाली सामाजिक असमानता को कम करती है, जबकि प्रतिगामी कर प्रणाली गरीबों पर अधिक भार डालती है।
✅ प्रत्यक्ष कर करदाताओं की आय पर सीधे लागू होते हैं, जबकि अप्रत्यक्ष कर उत्पादों और सेवाओं की कीमतों में जोड़े जाते हैं।
✅ बजटीय घाटे को नियंत्रित करना आवश्यक है, ताकि अर्थव्यवस्था संतुलित और दीर्घकालिक रूप से स्थिर बनी रहे।
सही कर नीतियाँ और वित्तीय अनुशासन भारत की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अंतरिम बजट बनाम केंद्रीय बजट (Interim Budget Vs Union Budget)
अंतरिम बजट और केंद्रीय बजट में मुख्य रूप से उनके उद्देश्य, दायरा और समय के आधार पर अंतर होता है।
1. उद्देश्य और दायरा (Purpose and Scope)
अंतरिम बजट | केंद्रीय बजट |
---|---|
अस्थायी वित्तीय प्रबंध के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे चुनाव के बाद नई सरकार को वित्तीय गतिविधियाँ जारी रखने में सहूलियत हो। | पूरे वित्तीय वर्ष के लिए सरकार की आर्थिक योजना, कर नीतियाँ और व्यय आवंटन को निर्धारित करता है। |
आवश्यक खर्चों को पूरा करने के लिए बनाया जाता है, जिसमें कोई नई नीति या योजना शामिल नहीं होती। | इसमें सरकार नई नीतियाँ, कर सुधार और योजनाएँ पेश कर सकती है। |
यह आमतौर पर चुनाव वर्ष में पेश किया जाता है, जब नई सरकार का गठन बाकी होता है। | यह हर साल 1 फरवरी को प्रस्तुत किया जाता है। |
2. कर परिवर्तन और नीतिगत सुधार (Tax Changes and Policy Adjustments)
- अंतरिम बजट में कोई बड़े कर सुधार या नई योजनाओं को शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यह केवल अल्पकालिक वित्तीय प्रबंधन के लिए होता है।
- केंद्रीय बजट में सरकार पूरे वर्ष के लिए कर सुधार, नई योजनाओं, और विकास संबंधी घोषणाएँ कर सकती है।
संतुलित बजट बनाम असंतुलित बजट (Balanced Vs Unbalanced Budget)
सरकारी वित्तीय स्थिति को दर्शाने के लिए बजट को संतुलित या असंतुलित रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
1. संतुलित बजट (Balanced Budget)
- जब सरकार की कुल आय और व्यय बराबर होते हैं, तो इसे संतुलित बजट कहा जाता है।
- यह वित्तीय स्थिरता (Financial Stability) और संतुलित आर्थिक प्रबंधन को दर्शाता है।
संतुलित बजट के लाभ
✅ मुद्रास्फीति नियंत्रण: सरकार अधिक धन नहीं छापती, जिससे कीमतें स्थिर रहती हैं।
✅ ऋण का न्यूनतम बोझ: सरकार को अधिक उधार लेने की आवश्यकता नहीं होती।
✅ आर्थिक अनुशासन: सरकार अनावश्यक खर्चों पर अंकुश लगाती है।
संतुलित बजट की सीमाएँ
❌ विकास दर कम हो सकती है, क्योंकि सरकार नए निवेश और बुनियादी ढाँचे के लिए अधिक खर्च नहीं कर सकती।
❌ आर्थिक मंदी के समय इसमें सुधार लाने की गुंजाइश कम होती है।
2. असंतुलित बजट (Unbalanced Budget)
जब सरकार की कुल आय और व्यय समान नहीं होते, तो इसे असंतुलित बजट कहा जाता है। यह दो प्रकार का होता है:
(i) अधिशेष बजट (Surplus Budget)
- जब सरकार की आय उसके व्यय से अधिक होती है, तो इसे अधिशेष बजट कहा जाता है।
- इसका उपयोग मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और सरकारी ऋण चुकाने के लिए किया जाता है।
✅ लाभ: सरकारी बचत बढ़ती है, और इसे भविष्य में निवेश किया जा सकता है।
❌ हानि: यदि सरकार अधिक कर वसूलती है और कम खर्च करती है, तो उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति (Purchasing Power) घट सकती है।
(ii) घाटा बजट (Deficit Budget)
- जब सरकार का व्यय उसकी आय से अधिक होता है, तो इसे घाटा बजट कहा जाता है।
- इस स्थिति में, सरकार को ऋण (Loans) और बॉन्ड्स जारी करने की आवश्यकता होती है।
✅ लाभ:
- आर्थिक मंदी के दौरान अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित (Stimulus Package) करने में मदद करता है।
- बुनियादी ढाँचे, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश बढ़ाने का अवसर मिलता है।
❌ हानि:
- सरकार को अधिक ऋण लेना पड़ता है, जिससे राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) बढ़ सकता है।
- अत्यधिक घाटे से मुद्रास्फीति (Inflation) में वृद्धि हो सकती है।
केंद्रीय बजट किसी भी देश की वित्तीय नीतियों और आर्थिक विकास का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ होता है। यह विकास योजनाओं, सामाजिक कल्याण और राजस्व नीतियों को परिभाषित करता है।
- अंतरिम बजट और केंद्रीय बजट के बीच का अंतर यह दर्शाता है कि किस प्रकार चुनावी वर्ष और सामान्य वर्षों में बजट प्रक्रिया भिन्न होती है।
- संतुलित बजट वित्तीय स्थिरता को दर्शाता है, जबकि असंतुलित बजट का उपयोग विकास को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है।
- राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit), अधिशेष बजट (Surplus Budget) और घाटा बजट (Deficit Budget) किसी भी देश की आर्थिक नीति को सीधे प्रभावित करते हैं।
इसलिए, एक प्रभावी बजट नीति का उद्देश्य वित्तीय स्थिरता और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखना होना चाहिए, ताकि देश की अर्थव्यवस्था सतत और समावेशी रूप से आगे बढ़ सके।
केंद्रीय बजट का महत्व | Significance of Union Budget
केंद्रीय बजट केवल सरकार के लिए ही नहीं, बल्कि आम नागरिकों, उद्यमियों, निवेशकों और विभिन्न व्यवसायों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह सरकार की आर्थिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है और विभिन्न क्षेत्रों में संसाधनों के वितरण का खाका तैयार करता है। बजट का प्रभाव देश की आर्थिक वृद्धि, महंगाई दर, रोजगार, निवेश और सामाजिक विकास पर पड़ता है।
बजट में सरकार अपने वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने, नए कर सुधार लाने, सार्वजनिक खर्च को सही दिशा देने और राजस्व संग्रहण को बढ़ाने की योजनाएं प्रस्तुत करती है। इसके अलावा, यह देश की विकास दर को गति देने और आर्थिक असमानता को कम करने के लिए आवश्यक रणनीतियों का निर्धारण करता है।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने और विकास को गति देने के लिए केंद्रीय बजट की अहम भूमिका होती है। यह विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रभावित करता है:
1. आर्थिक वृद्धि (Economic Growth)
- बजट के माध्यम से सरकार अवसंरचना (Infrastructure), विनिर्माण (Manufacturing), कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए धन आवंटित करती है।
- बड़े पैमाने पर निवेश रोजगार के अवसर बढ़ाता है, जिससे व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलता है।
- यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि में सहायक होता है और नवाचार व प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करता है।
2. सामाजिक कल्याण (Social Welfare)
- बजट में कई योजनाएँ और सब्सिडी शामिल होती हैं, जो गरीब, वंचित और पिछड़े वर्गों के कल्याण को सुनिश्चित करती हैं।
- मनरेगा (MGNREGA), प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, और अन्न योजना जैसी योजनाएँ बजट के माध्यम से वित्त पोषित की जाती हैं।
- यह बजट समान अवसर, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा को बढ़ावा देता है, जिससे समाज में समावेशी विकास (Inclusive Development) सुनिश्चित होता है।
3. आय वितरण (Income Distribution)
- बजट के माध्यम से सरकार कर प्रणाली को विनियमित करती है, जिससे विभिन्न वर्गों पर कर का उचित बोझ डाला जाता है।
- कर स्लैब में परिवर्तन, नई सब्सिडी योजनाएँ, और सामाजिक सुरक्षा उपाय अर्थव्यवस्था में धन के समान वितरण को सुनिश्चित करते हैं।
- सरकार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के माध्यम से आर्थिक असमानता को कम करने का प्रयास करती है।
भारत के बजट समारोह से जुड़े रोचक तथ्य
भारत का केंद्रीय बजट न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपराएँ भी जुड़ी हुई हैं। बजट समारोह की कुछ परंपराएँ ब्रिटिश शासनकाल से चली आ रही हैं, जबकि कुछ परंपराएँ हाल के वर्षों में शुरू हुई हैं। ये परम्पराएँ निम्नलिखित हैं –
- ब्रिफकेस परंपरा (Briefcase Tradition)
- लाल कपड़े में लपेटने की परंपरा (Red Cloth Wrapping)
- बजट प्रिंटिंग प्रक्रिया (Budget Printing Process)
- हलवा समारोह (Halwa Ceremony)
- बजट भाषण की अवधि (Budget Speech Length)
- बजट प्रस्तुति के दो भाग (Two Parts of Budget Presentation)
- आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey Release)
उपरोक्त सभी बिन्दुओं से जुडी जानकारियों को आगे विस्तार से बताया गया है –
1. ब्रिफकेस परंपरा (The Briefcase Tradition)
- ब्रिटिश शासनकाल से शुरू हुई परंपरा:
भारत में बजट दस्तावेजों को एक विशेष ब्रिफकेस में ले जाने की परंपरा ब्रिटिश शासन से आई थी। ब्रिटेन के वित्त मंत्री पार्लियामेंट में बजट पेश करने के लिए ‘ग्लैडस्टोन बॉक्स’ नामक चमड़े के लाल ब्रिफकेस का उपयोग करते थे। इसी परंपरा को भारत में भी अपनाया गया। - 1950 से 2018 तक उपयोग में रहा:
भारत में यह परंपरा 1950 में स्वतंत्रता के बाद अपनाई गई और 2018 तक जारी रही। हर वित्त मंत्री बजट दस्तावेजों को एक पारंपरिक ब्रिफकेस में लेकर संसद में आते थे, जो बजट की गोपनीयता और औपचारिकता का प्रतीक था। - 2019 में बदलाव:
2019 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस परंपरा को बदलकर बजट दस्तावेजों को “बही-खाता” (एक पारंपरिक भारतीय खाता-बही) में प्रस्तुत किया। यह कदम आत्मनिर्भरता और भारतीय परंपरा को अपनाने का संकेत था।
2. लाल कपड़े में लपेटने की परंपरा (Red Cloth Wrapping)
- ब्रिफकेस से पहले की परंपरा:
1950 से पहले बजट दस्तावेजों को एक लाल कपड़े में लपेटकर संसद में लाया जाता था। यह गोपनीयता बनाए रखने का एक तरीका था। - गोपनीयता का प्रतीक:
लाल कपड़ा यह दर्शाता था कि बजट दस्तावेज अत्यधिक संवेदनशील और गोपनीय हैं। इसे केवल बजट पेश होने के बाद सार्वजनिक किया जाता था। - ब्रिफकेस का स्थान:
1950 में ब्रिफकेस को अपनाने के बाद यह परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो गई, लेकिन 2019 में “बही-खाता” के रूप में एक बार फिर पारंपरिक शैली को अपनाया गया।
3. बजट प्रिंटिंग प्रक्रिया (Budget Printing Process)
- कड़ी सुरक्षा व्यवस्था:
बजट के प्रिंटिंग की प्रक्रिया अत्यंत गोपनीय होती है। बजट लीक न हो, इसलिए सभी कर्मचारियों को कुछ दिनों तक बाहरी दुनिया से पूरी तरह काट दिया जाता है। - नॉर्थ ब्लॉक में प्रिंटिंग:
बजट को वित्त मंत्रालय के नॉर्थ ब्लॉक स्थित प्रिंटिंग प्रेस में छापा जाता है। - बजट गोपनीयता:
✅ बजट प्रिंटिंग शुरू होने के बाद वित्त मंत्रालय के कुछ अधिकारी और कर्मचारी बाहरी संपर्क से कट जाते हैं।
✅ उनके मोबाइल और इंटरनेट सुविधा बंद कर दी जाती है।
✅ प्रिंटिंग प्रेस में सुरक्षा एजेंसियां हर समय तैनात रहती हैं।
✅ जब तक बजट संसद में प्रस्तुत नहीं किया जाता, तब तक दस्तावेजों को सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है।
4. हलवा समारोह (Halwa Ceremony)
- मीठे से शुभारंभ की परंपरा:
बजट तैयार करने की शुरुआत “हलवा समारोह” से होती है। वित्त मंत्रालय के कर्मचारी और अधिकारी गर्म हलवा खाते हैं, जो इस कार्य में उनकी कड़ी मेहनत को सराहने का एक तरीका होता है। - सामूहिक आयोजन:
✅ हलवा मंत्रालय में ही बनाया जाता है।
✅ इसे वित्त मंत्री, सचिव और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा वितरित किया जाता है।
✅ इसके बाद बजट प्रिंटिंग प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो जाती है। - महत्व:
हलवा समारोह भारतीय संस्कृति में शुभ कार्यों से पहले मीठा खाने की परंपरा को दर्शाता है।
5. बजट भाषण की अवधि (Lengh of the Budget Speech)
- सबसे छोटा बजट भाषण:
1977 में एच. एम. पटेल ने मात्र 800 शब्दों का सबसे छोटा बजट भाषण दिया था। - सबसे लंबा बजट भाषण:
2020 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2 घंटे 42 मिनट लंबा बजट भाषण दिया, जो अब तक का सबसे लंबा बजट भाषण था। - औसत बजट भाषण की अवधि:
आमतौर पर बजट भाषण 90 मिनट से 120 मिनट तक का होता है, जिसमें विभिन्न योजनाओं, नीतियों और आर्थिक दिशा-निर्देशों की घोषणा की जाती है।
6. बजट प्रस्तुति के दो भाग (Presentation in Two Parts)
- भाग 1 – आर्थिक सर्वेक्षण और नीतियाँ (Economic Survey & Policies):
✅ पहले भाग में आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey) के निष्कर्ष, देश की वित्तीय स्थिति, प्रमुख आर्थिक संकेतकों और आगामी वर्ष की योजनाओं को प्रस्तुत किया जाता है। - भाग 2 – कर और वित्तीय नीतियाँ (Taxation & Financial Policies):
✅ दूसरे भाग में कर ढांचे में बदलाव, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों की नई नीतियाँ, कर छूट, नई योजनाएँ और सरकार की आर्थिक रणनीति शामिल होती है।
7. आर्थिक सर्वेक्षण का प्रकाशन (Economic Survey Release)
- बजट से एक दिन पहले जारी होता है:
आर्थिक सर्वेक्षण बजट से एक दिन पहले संसद में पेश किया जाता है। - देश की आर्थिक स्थिति का आकलन:
✅ यह दस्तावेज सरकार को आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करने और आगामी बजट में आवश्यक सुधारों को लागू करने का अवसर देता है।
✅ इसमें विकास दर, राजकोषीय घाटा, मुद्रास्फीति, औद्योगिक उत्पादन, रोजगार दर जैसे प्रमुख आर्थिक संकेतक शामिल होते हैं। - नीतिगत मार्गदर्शन:
✅ आर्थिक सर्वेक्षण सरकार को यह सुझाव देता है कि किन क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने की जरूरत है और किन सुधारों की आवश्यकता है।
✅ बजट के लिए “नीतिगत रोडमैप” तैयार करने में मदद करता है।
भारत के बजट समारोह से जुड़ी परंपराएँ न केवल ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे सरकार की वित्तीय नीतियों, आर्थिक योजनाओं और प्रशासनिक प्रक्रियाओं का भी प्रतिबिंब हैं।
✅ ब्रिफकेस से बही-खाते तक की यात्रा भारतीय परंपराओं को अपनाने की दिशा में एक बड़ा कदम था।
✅ हलवा समारोह इस प्रक्रिया से जुड़े लोगों के उत्साह और समर्पण को दर्शाता है।
✅ बजट प्रिंटिंग प्रक्रिया की गोपनीयता यह सुनिश्चित करती है कि महत्वपूर्ण वित्तीय जानकारी सुरक्षित रहे।
✅ आर्थिक सर्वेक्षण बजट की नींव तैयार करता है, जिससे सरकार आर्थिक सुधारों को प्रभावी ढंग से लागू कर सके।
भारत का केंद्रीय बजट न केवल आर्थिक सुधारों का दस्तावेज होता है, बल्कि यह एक परंपरा, संस्कृति और ऐतिहासिक यात्रा का प्रतीक भी है।
भारत का केंद्रीय बजट देश की आर्थिक दिशा को निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह एक वित्तीय नीति का ढांचा प्रस्तुत करता है, जो सार्वजनिक व्यय, कराधान, राजस्व संग्रहण और विकास योजनाओं के माध्यम से देश के आर्थिक विकास को सुनिश्चित करता है। वित्त मंत्रालय और अन्य संबद्ध संस्थाओं के सहयोग से तैयार किया गया यह बजट, सरकार की नीतियों और प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से दर्शाता है और पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर इसका दूरगामी प्रभाव पड़ता है।
Polity – KnowledgeSthali
इन्हें भी देखें –
- भारतीय संसद | लोक सभा और राज्य सभा | संरचना और कार्य प्रणाली
- भारत के महान्यायवादी, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक: भूमिका, नियुक्ति और कर्तव्य
- भारत का मंत्रीपरिषद और मंत्रिमंडल: संरचना और कार्यप्रणाली
- भारत के उपराष्ट्रपति: पद, योग्यता, शक्तियाँ और कर्तव्य
- भारतीय संविधान में राष्ट्रपति का प्रावधान और उसके कर्त्तव्य
- प्रयागराज में परिवहन व्यवस्था | यातायात
- प्रयागराज | तीर्थराज प्रयाग | भारत का प्रमुख तीर्थ और ऐतिहासिक संगम नगर
- भारत में जाति व्यवस्था एवं वर्ण व्यवस्था | The Caste System in India
- अखाड़ा | शैव संप्रदाय | वैरागी वैष्णव संप्रदाय | उदासीन संप्रदाय
- प्रयागराज महाकुंभ मेला 1881 से महाकुंभ मेला 2025 तक का सफ़र