भारत-चीन राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ

वर्ष 2025 भारत और चीन के राजनयिक संबंधों के लिए ऐतिहासिक महत्व रखता है, क्योंकि इस वर्ष दोनों देशों ने अपने संबंधों की 75वीं वर्षगांठ मनाई है। इस अवसर पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली क्यांग ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति को शुभकामनाएँ भेजीं। यह अवसर न केवल अतीत के अनुभवों की समीक्षा करने का है, बल्कि भविष्य के लिए एक सकारात्मक और स्थिर दिशा तय करने का भी संकेत है।

राजनयिक संबंधों की शुरुआत और प्रारंभिक दशा

भारत और चीन के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध 1 अप्रैल 1950 को स्थापित हुए, जब भारत ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) को मान्यता दी। यह कदम एशियाई एकता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और पड़ोसी देशों के साथ मित्रता की भारत की नीति का परिचायक था।

1954 में दोनों देशों ने “पंचशील सिद्धांत” के माध्यम से एक ऐतिहासिक समझौता किया, जिसमें पांच मुख्य बिंदु शामिल थे – संप्रभुता का सम्मान, गैर-हस्तक्षेप, समानता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और पारस्परिक लाभ। इसी दौर में “हिंदी-चीनी भाई-भाई” का नारा भी प्रचलन में आया, जिसने आपसी संबंधों में सौहार्द का वातावरण निर्मित किया।

बिगड़ते संबंध | तिब्बत और 1962 युद्ध

1959 में तिब्बत संकट और दलाई लामा को भारत में शरण मिलने की घटना ने द्विपक्षीय संबंधों में पहली दरार डाली। चीन ने इसे भारत द्वारा उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप माना, जबकि भारत ने मानवीय आधार पर दलाई लामा को शरण दी। यह विवाद 1962 के भारत-चीन युद्ध में बदल गया, जिसने दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों में लंबे समय तक तनाव पैदा किया।

1962 का युद्ध सीमा विवादों, विशेषकर मैकमोहन रेखा को लेकर, भारत-चीन संबंधों के लिए एक बड़ा झटका था। युद्ध के बाद भारत ने अपनी रक्षा नीति और विदेश नीति दोनों में व्यापक बदलाव किए।

पुनः संपर्क की शुरुआत और संवाद का दौर

राजीव गांधी की 1988 की चीन यात्रा

1962 के युद्ध के बाद संबंध लंबे समय तक शीतकालीन अवस्था में रहे, लेकिन 1988 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चीन यात्रा ने नए युग की शुरुआत की। इस यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने सीमा विवाद को बातचीत के जरिए सुलझाने और आर्थिक व राजनयिक सहयोग बढ़ाने का निर्णय लिया।

सीमा स्थिरता समझौते और विशेष प्रतिनिधि तंत्र

1993 में “सीमा पर शांति और स्थिरता समझौता” और 1996 में सैन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने हेतु हुए समझौतों ने एक नई व्यावहारिक प्रक्रिया शुरू की। 2003 में विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता प्रणाली शुरू हुई, जिसका उद्देश्य सीमा विवाद का स्थायी समाधान ढूँढना था।

प्रमुख सीमा विवाद और सैन्य टकराव

भारत और चीन के बीच 3,488 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) विवादित बनी हुई है। विभिन्न घटनाओं ने समय-समय पर संबंधों को चुनौती दी:

  • नाथु ला संघर्ष (1967): भारतीय सेना ने प्रभावी जवाब देकर चीन को पीछे हटने पर मजबूर किया।
  • अरुणाचल विवाद (1986–87): अरुणाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर चीन ने आपत्ति जताई।
  • डोकलाम संकट (2017): भारत ने भूटान के डोकलाम क्षेत्र में चीन के सड़क निर्माण का विरोध किया।
  • गलवान संघर्ष (2020): दशकों बाद हुई सबसे घातक झड़प जिसमें दोनों पक्षों को नुकसान हुआ।
  • तवांग टकराव (2022): चीन द्वारा तवांग में अतिक्रमण की कोशिश को भारतीय सेना ने विफल किया।

हाल की घटनाएँ और तनाव में नरमी

2024-25 की घटनाएँ

  • देपसांग और डेमचोक से वापसी: दोनों देशों ने 2024 के अंत में सैन्य वापसी पर सहमति जताई।
  • ब्रिक्स कज़ान शिखर सम्मेलन (2024): मोदी और शी जिनपिंग की पांच वर्षों बाद पहली औपचारिक मुलाकात हुई।
  • विशेष प्रतिनिधि और सचिव स्तरीय वार्ता (2025): बीजिंग में हुई इन बैठकों में सीमा स्थिरता और आपसी सहयोग पर चर्चा हुई।

आर्थिक संबंध | सहयोग और चुनौतियाँ

व्यापार और निवेश

  • 1984: व्यापार समझौता और MFN दर्जा।
  • 1994: दोहरे कराधान से बचाव हेतु समझौता (DTAA)।
  • 2023-24: द्विपक्षीय व्यापार $118.4 बिलियन तक पहुँचा, लेकिन भारत का व्यापार घाटा गहरा रहा।

भारत चीन से इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा API, और दूरसंचार उपकरण आयात करता है, जबकि लौह अयस्क और कार्बनिक रसायन निर्यात करता है। चीनी कंपनियों ने भारत के स्टार्टअप में व्यापक निवेश किया है — 2020 में ही $3.5 बिलियन का निवेश हुआ।

व्यापार असंतुलन की चुनौती

भारत का निर्यात मुख्यतः कच्चे माल तक सीमित है जबकि चीन भारतीय IT और फार्मा उत्पादों के लिए बाजार नहीं खोलता, जिससे व्यापार संतुलन बिगड़ता है।

सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंध

भारत और चीन के सांस्कृतिक संबंध हजारों वर्षों पुराने हैं:

  • बौद्ध धर्म भारत से चीन पहुंचा।
  • कुमारजीव, बोधिधर्म जैसे भिक्षुओं ने चीन में बौद्ध ग्रंथों का अनुवाद किया।
  • रेशम मार्ग पर दोनों सभ्यताओं का व्यापार, विचार और कलाओं का आदान-प्रदान हुआ।

वर्तमान में सांस्कृतिक सहयोग

  • चीन में योग और आयुर्वेद की लोकप्रियता बढ़ी है।
  • 2025 में टैगोर की चीन यात्रा के 100 वर्ष पूरे होने पर विश्वभारती विश्वविद्यालय द्वारा विशेष सेमिनार आयोजित होगा।
  • शैक्षिक आदान-प्रदान और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को पुनर्जीवित किया गया है।
  • कैलाश मानसरोवर यात्रा 2025 की गर्मियों तक फिर से शुरू करने पर सहमति बनी।

वैश्विक मंचों पर भारत-चीन सहयोग

भारत और चीन BRICS, SCO, G-20, और AIIB जैसे मंचों पर मिलकर काम कर रहे हैं:

  • 2024: वैश्विक दक्षिण (Global South) की एकता पर सहयोग।
  • ISA में चीन का समर्थन: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में भागीदारी।
  • जलवायु परिवर्तन, आपदा राहत और स्वास्थ्य प्रशासन: संयुक्त प्रयास।
  • AIIB और NDB में साझेदारी: क्षेत्रीय नेतृत्व का उदाहरण।

प्रमुख चुनौतियाँ

1. सीमा विवाद

LAC पर बार-बार होने वाली झड़पें अविश्वास को बढ़ावा देती हैं। गलवान जैसी घटनाएँ भारत की सुरक्षा रणनीति को प्रभावित करती हैं।

2. जल विवाद

ब्रह्मपुत्र पर चीन के बांध निर्माण से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर जल संकट का खतरा है। सूचना साझा करने की चीन की अनिच्छा समस्या को बढ़ाती है।

3. दक्षिण चीन सागर

भारत वियतनाम के साथ तेल अन्वेषण करता है, जिसे चीन अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है। इससे दोनों देशों में सामरिक मतभेद गहरे होते हैं।

4. ताइवान और हिंद-प्रशांत नीति

भारत एक-चीन नीति का पालन करता है, लेकिन ताइवान के साथ व्यापार और तकनीकी सहयोग चीन को चिंतित करता है।

5. BRI और CPEC

भारत BRI में शामिल नहीं है, जबकि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) भारत की संप्रभुता को चुनौती देता है। भारत ने इसके विकल्प के रूप में IMEC (भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर) का समर्थन किया है।

भारत और चीन के संबंधों का इतिहास मित्रता, संघर्ष, संवाद और प्रतिस्पर्धा का मिश्रण रहा है। 75 वर्षों की इस यात्रा में दोनों देशों ने कई बार संबंधों को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए हैं। वर्तमान में, आर्थिक सहयोग और वैश्विक मंचों पर संयुक्त कार्य के बावजूद, सीमा विवाद और रणनीतिक असहमति बड़े अवरोध बने हुए हैं।

भविष्य के लिए यह आवश्यक है कि दोनों देश संवाद के माध्यम से विवादों का समाधान निकालें, विश्वास बहाली की प्रक्रिया को मज़बूत करें और क्षेत्रीय व वैश्विक स्थिरता में अपनी भूमिका को समझदारी से निभाएँ।

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