वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत के इंजीनियरिंग व परिधान निर्यात में जबरदस्त उछाल

वित्तीय वर्ष 2024–2025 भारतीय निर्यात क्षेत्र के लिए कई मायनों में ऐतिहासिक और प्रेरणादायक रहा है। वैश्विक भू-राजनीतिक उथल-पुथल, व्यापार युद्धों, आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव और कई देशों के बीच बदलते व्यापारिक समीकरणों के बीच भारत ने अपने निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है, खासकर इंजीनियरिंग उत्पादों, वस्त्र (टेक्सटाइल) और परिधान (अपैरल) क्षेत्रों में।

वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी हालिया आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारत ने वैश्विक व्यापार की अनिश्चितताओं के बावजूद 6% से अधिक की निर्यात वृद्धि दर्ज की है। यह केवल संख्याओं की जीत नहीं है, बल्कि भारत की बढ़ती वैश्विक प्रासंगिकता, प्रतिस्पर्धात्मकता और रणनीतिक व्यापारिक क्षमता का प्रतीक है।

भारत का निर्यात: एक नई दिशा में अग्रसर

पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में कई बदलाव हुए हैं। कोविड-19 महामारी के बाद दुनिया भर में देशों ने वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की खोज शुरू की। चीन पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने की आवश्यकता ने भारत जैसे देशों के लिए नए अवसर पैदा किए। भारत ने इस स्थिति को अपने पक्ष में बदलने की दिशा में प्रभावी कदम उठाए हैं। इस वर्ष की निर्यात वृद्धि उसी का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

इंजीनियरिंग उत्पादों का निर्यात: तकनीक और गुणवत्ता का संगम

भारतीय इंजीनियरिंग क्षेत्र पारंपरिक रूप से एक मजबूत निर्यातक रहा है। वित्तीय वर्ष 2024–2025 में इस क्षेत्र ने 6.74% की वार्षिक वृद्धि दर्ज की है। जहाँ वित्तीय वर्ष 2023–2024 में इंजीनियरिंग उत्पादों का निर्यात $109.3 अरब था, वहीं FY25 में यह बढ़कर $116.67 अरब हो गया।

क्या है इस वृद्धि के पीछे की ताकत?

  1. तकनीकी उन्नयन: भारतीय कंपनियों ने उत्पादन और गुणवत्ता में निरंतर सुधार किया है। उच्च गुणवत्ता वाले इंजीनियरिंग उत्पाद अब वैश्विक मानकों पर खरे उतरते हैं।
  2. सरकारी समर्थन: ‘मेक इन इंडिया’ और ‘पीएलआई स्कीम’ जैसी योजनाओं ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूती दी है।
  3. नई बाजार रणनीति: पारंपरिक बाजारों के अलावा भारत ने लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे उभरते बाजारों में भी अपने निर्यात का विस्तार किया है।

हालांकि, चुनौतियाँ भी हैं सामने

जहाँ एक ओर यह वृद्धि प्रशंसनीय है, वहीं दूसरी ओर कुछ चिंताजनक संकेत भी दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका ने हाल ही में लोहे, स्टील और ऑटो पार्ट्स पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जिससे भारत को निर्यात होने वाले इन उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति से भारत को अमेरिका को होने वाले निर्यात में सालाना $4–5 अरब की गिरावट का सामना करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के कारण चीन अपने उत्पादों के लिए वैकल्पिक बाजारों की तलाश कर रहा है, जिससे प्रतिस्पर्धा और भी तेज हो गई है।

मार्च 2024: थोड़ी गिरावट की झलक

मार्च 2024 में इंजीनियरिंग वस्तुओं का निर्यात 4% घटकर $10.82 अरब रह गया, जो कि मार्च 2023 में $11.27 अरब था। यह गिरावट एक संकेत है कि बाजार में स्थायित्व लाने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप आवश्यक हैं।

वस्त्र और परिधान क्षेत्र: भारत की सॉफ्ट पावर का प्रतीक

वस्त्र और परिधान भारत का पारंपरिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। इस क्षेत्र ने FY25 में 6.32% की वार्षिक वृद्धि दर्ज की है। विशेष रूप से परिधान निर्यात में 10.03% की वृद्धि दर्ज की गई, जो समग्र वस्त्र निर्यात वृद्धि का प्रमुख प्रेरक रहा।

अमेरिका की रणनीति और भारत का लाभ

हाल के वर्षों में अमेरिका ने चीन से आयात में विविधता लाने की रणनीति अपनाई है। इसका उद्देश्य चीन पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना है। भारत इस रणनीति का प्रत्यक्ष लाभार्थी रहा है, खासकर परिधान क्षेत्र में।

प्रमुख कारण:

  1. लागत प्रतिस्पर्धात्मकता: भारत के परिधान उद्योग ने श्रम लागत और उत्पादन लागत को प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखा है।
  2. नवाचार और डिजाइन: अंतरराष्ट्रीय फैशन ट्रेंड के अनुरूप डिजाइनिंग और इनोवेशन पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  3. हरित उत्पादन: वैश्विक उपभोक्ताओं में पर्यावरण-जागरूकता बढ़ने के साथ, भारत ने टिकाऊ और इको-फ्रेंडली परिधान उत्पादन को अपनाया है, जिससे उसे अतिरिक्त लाभ मिला है।

भविष्य की दिशा: अवसर और रणनीति

भारत के निर्यातक वैश्विक प्रतिस्पर्धा, भू-राजनीतिक तनाव और व्यापार युद्धों से उत्पन्न अस्थिरता को समझते हैं। इसलिए अब नीति-निर्माताओं से अपेक्षा की जा रही है कि वे व्यापार विविधीकरण, लॉजिस्टिक सुधार, एफटीए (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) और निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं पर अधिक ध्यान दें।

क्या कहता है उद्योग?

  • नीति समर्थन की माँग: निर्यातक चाहते हैं कि सरकार अधिक स्पष्ट, दीर्घकालिक और लचीली नीतियाँ बनाए।
  • नई बाजारों की खोज: यूरोप, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और ASEAN देशों के साथ बेहतर व्यापारिक संबंधों पर ज़ोर दिया जाए।
  • प्रशिक्षण और कौशल विकास: विशेषकर टेक्सटाइल क्षेत्र में, प्रशिक्षित श्रमिकों की आवश्यकता लगातार बनी हुई है।

वैश्विक व्यापार की बदलती तस्वीर और भारत का स्थान

आज जब दुनिया अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध, यूरोप की ऊर्जा संकट, और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी स्थितियों से जूझ रही है, तब भारत को एक स्थिर, भरोसेमंद और प्रतिस्पर्धात्मक आपूर्तिकर्ता के रूप में देखा जा रहा है। वैश्विक कंपनियाँ चीन+1 नीति के तहत अपने उत्पादन और खरीद विकल्पों में विविधता ला रही हैं, और भारत इसका स्वाभाविक लाभार्थी बन सकता है।

प्रमुख अवसर:

  1. एफटीए का विस्तार: भारत को यूरोप, यूके, कनाडा और खाड़ी देशों के साथ व्यापार समझौतों को शीघ्रता से अंतिम रूप देना चाहिए।
  2. प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI): इसका दायरा बढ़ाकर अधिक उत्पाद क्षेत्रों को शामिल किया जा सकता है।
  3. डिजिटल निर्यात मंच: MSMEs के लिए वैश्विक डिजिटल बाज़ारों तक पहुँच को आसान बनाना एक क्रांतिकारी कदम होगा।

आत्मनिर्भर भारत से वैश्विक भारत की ओर

भारत का निर्यात क्षेत्र अब केवल संख्या का खेल नहीं रह गया है। यह देश की रणनीतिक सोच, वैश्विक दृष्टिकोण और उत्पादन क्षमताओं का प्रतिबिंब बन चुका है। परिधान और इंजीनियरिंग जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में निरंतर वृद्धि, नवाचार और नीति समर्थन के माध्यम से भारत ने यह दिखा दिया है कि वह वैश्विक चुनौतियों का डटकर सामना कर सकता है।

हालाँकि, भविष्य में स्थायित्व और निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए, सरकार और उद्योग को मिलकर काम करना होगा। व्यापार बाधाओं को दूर करना, लॉजिस्टिक लागत को कम करना, एफटीए को तेजी से लागू करना और हरित उत्पादन जैसे पहलुओं को प्राथमिकता देना आवश्यक है।

अगर यही गति बनी रही, तो आने वाले वर्षों में भारत न केवल एक प्रमुख निर्यातक के रूप में उभरेगा, बल्कि एक वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला लीडर के रूप में भी स्थापित होगा।

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