पोप का निधन न केवल रोमन कैथोलिक चर्च के लिए, बल्कि विश्वभर के करोड़ों कैथोलिकों के लिए एक अत्यंत भावनात्मक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक क्षण होता है। यह एक ऐसा क्षण है जब चर्च की बागडोर अस्थायी रूप से रिक्त होती है और परंपरा, विश्वास और गोपनीयता से जुड़ी एक पुरातन प्रक्रिया की शुरुआत होती है – जो नए पोप के चुनाव तक चलती है। यह प्रक्रिया “सिस्टीन चैपल” की दीवारों के भीतर, पवित्रताओं और प्रतीकों से परिपूर्ण वातावरण में संपन्न होती है।
“सेडे वेकांते” – रिक्त सिंहासन की परंपरा
पोप के निधन के तुरंत बाद रोमन कैथोलिक चर्च एक विशेष अवधि में प्रवेश करता है, जिसे लैटिन में Sede Vacante (सेडे वेकांते) कहा जाता है। इसका अर्थ है “रिक्त सिंहासन” – यानी अब पोप का पद औपचारिक रूप से खाली है और चर्च का सर्वोच्च नेतृत्व अस्थायी रूप से बिना मुखिया के है।
इस दौरान चर्च कोई बड़ा निर्णय नहीं ले सकता। समस्त प्रशासनिक, राजनयिक और आध्यात्मिक गतिविधियाँ सीमित हो जाती हैं, और चर्च अपने नए पोप के चुनाव की तैयारी में लग जाता है।
मृत्यु की पुष्टि और प्रशासनिक प्रक्रिया
पोप की मृत्यु की पुष्टि एक विशेष अधिकारी द्वारा की जाती है, जिसे कैमरलेन्गो (Camerlengo) कहा जाता है। यह व्यक्ति संक्रमण काल के दौरान वैटिकन की प्रशासनिक और वित्तीय जिम्मेदारियाँ संभालता है।
कैमरलेन्गो की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वह सबसे पहले पोप के निधन की पुष्टि करता है, फिर पोप के निजी आवास को सील करता है, उनके ‘रिंग ऑफ द फिशरमैन’ को तोड़ा जाता है – जिससे यह प्रतीकात्मक रूप से स्पष्ट होता है कि पोप का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। वर्तमान समय में यह पद कार्डिनल केविन फैरेल (Cardinal Kevin Farrell) के पास है।
वैटिकन का संचालन | अस्थायी शासन
पोप की मृत्यु के बाद वैटिकन का अधिकांश प्रशासन स्वतः भंग हो जाता है। हालांकि कुछ विशेष पदाधिकारी कार्यरत रहते हैं ताकि धार्मिक और प्रशासनिक कार्यों को सुचारू रूप से आगे बढ़ाया जा सके:
- कैमरलेन्गो – संक्रमणकाल का संचालन और नए पोप के चुनाव की तैयारी।
- विदेश मामलों के सचिव – अंतरराष्ट्रीय चर्च संपर्क बनाए रखते हैं।
- धार्मिक अनुष्ठानों के मास्टर – अंतिम संस्कार और धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन।
- कार्डिनल कॉलेज के डीन – अंतिम संस्कार की देखरेख और कॉन्क्लेव की प्रक्रिया का संयोजन।
पोप का अंतिम संस्कार | परंपरा और श्रद्धांजलि
पोप का अंतिम संस्कार एक अत्यंत गरिमामय और धार्मिक अनुष्ठान होता है। यह निधन के चौथे से छठे दिन के बीच आयोजित किया जाता है। इससे पहले, पोप के पार्थिव शरीर को सेंट पीटर्स बेसिलिका में आम दर्शन के लिए रखा जाता है, जहाँ लाखों श्रद्धालु अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
इसके बाद ‘नोवेंदियाली’ (Novendiali) नामक नौ दिवसीय शोककाल मनाया जाता है, जिसमें विशेष प्रार्थनाएँ और मिस्सा (Masses) आयोजित होती हैं।
विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि पोप फ्रांसिस ने 2024 में अपने अंतिम संस्कार की व्यवस्था को सरल बनाने का अनुरोध किया था और इच्छा जताई थी कि उन्हें संत मैरी मेजर बेसिलिका में दफनाया जाए – सलुस पोपूली रोमानी (Salus Populi Romani) के पास।
कॉन्क्लेव | पोप चुनाव की रहस्यमय प्रक्रिया
पोप की मृत्यु के 15 से 20 दिनों के भीतर कॉन्क्लेव (Conclave) आयोजित होता है – यही वह प्रक्रिया है जिसमें नया पोप चुना जाता है। यह एक अत्यंत गोपनीय और ऐतिहासिक प्रक्रिया होती है, जो वैटिकन के भीतर स्थित सिस्टीन चैपल में संपन्न होती है।
कौन करता है मतदान?
केवल वे कार्डिनल्स जो 80 वर्ष से कम आयु के हैं, वोट देने के पात्र होते हैं। सामान्यतः यह संख्या 120 के आसपास रहती है, हालांकि यह हाल की नियुक्तियों के कारण थोड़ी बढ़ भी सकती है। 80 वर्ष से अधिक आयु वाले कार्डिनल्स चुनाव में भाग नहीं लेते, लेकिन सामान्य बैठकों में चर्च की समसामयिक चुनौतियों पर चर्चा करते हैं।
क्या कोई भी व्यक्ति पोप बन सकता है?
सैद्धांतिक रूप से, कोई भी बपतिस्मा प्राप्त रोमन कैथोलिक पुरुष पोप चुना जा सकता है। हालाँकि, 1378 से अब तक केवल कार्डिनल्स को ही पोप के रूप में चुना गया है।
संभावित उम्मीदवार – पोप बनने की दौड़ में
हर कॉन्क्लेव में कुछ कार्डिनल्स विशेष रूप से ध्यान का केंद्र होते हैं, जिन्हें Papal Contenders कहा जाता है। इस बार चर्चा में हैं:
- कार्डिनल पिएत्रो पैरोलीन (इटली) – वेटिकन के विदेश सचिव, गहरी कूटनीतिक समझ।
- कार्डिनल लुइस एंटोनियो टैगले (फिलीपींस) – एशिया में चर्च के विस्तार के प्रतीक।
- कार्डिनल मत्तेओ ज़ुप्पी (इटली) – इटली के बिशपों के प्रमुख, सामाजिक न्याय के समर्थक।
- कार्डिनल क्रिस्टोफ़ शोनबोर्न (ऑस्ट्रिया) – पोप बेनेडिक्ट XVI के प्रिय शिष्य।
- कार्डिनल मार्क ओउलेट (कनाडा) – बिशपों की समिति के पूर्व प्रमुख।
मतदान प्रक्रिया | शपथ, बैलेट और धुआँ
कॉन्क्लेव की शुरुआत विशेष मास से होती है। इसके बाद सभी कार्डिनल्स गोपनीयता की शपथ लेते हैं और बाहरी दुनिया से उनका संपर्क पूर्ण रूप से बंद कर दिया जाता है। मतदान प्रतिदिन चार बार किया जा सकता है – दो बार सुबह और दो बार दोपहर में।
बैलेट का स्वरूप
प्रत्येक कार्डिनल को एक आयताकार बैलेट दिया जाता है, जिस पर लिखा होता है:
“Eligo in Summum Pontificem” – “मैं सर्वोच्च पोप के रूप में ___ को चुनता हूँ।”
कार्डिनल अपनी पसंद लिखते हैं और बैलेट को सील करके निर्धारित पात्र में डालते हैं।
धुएँ के संकेत
हर असफल मतदान के बाद बैलेट्स को जलाया जाता है। यदि कोई निर्णय नहीं हुआ, तो काला धुआँ निकलता है। जब कोई उम्मीदवार दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करता है और पोप पद स्वीकार कर लेता है, तो सफेद धुआँ निकलता है।
स्पष्टता के लिए धुएँ में विशेष रसायन मिलाए जाते हैं, और साथ ही सेंट पीटर्स की घंटी बजाई जाती है।
“Habemus Papam” – नये पोप की घोषणा
सफेद धुआँ निकलने के बाद पूरी दुनिया की निगाहें सेंट पीटर्स बेसिलिका की बालकनी पर टिक जाती हैं। वहाँ वरिष्ठ कार्डिनल डीकन सामने आकर घोषणा करते हैं:
“Habemus Papam” – “हमारे पास एक पोप है!”
इसके बाद नया पोप सामने आते हैं, भीड़ का अभिवादन करते हैं और अपना पहला सार्वजनिक आशीर्वाद देते हैं।
पोपीय नाम
पोप चुने जाने के बाद नया पोप एक नया नाम चुनता है, जो अक्सर उनके मिशन और प्रेरणा का संकेत होता है। जैसे – पोप फ्रांसिस ने संत फ्रांसिस ऑफ असीसी के नाम पर यह नाम चुना था।
गोपनीयता और सुरक्षा
कॉन्क्लेव की गोपनीयता सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। पोप बेनेडिक्ट XVI ने इस प्रक्रिया के नियमों को और भी कठोर बना दिया था। किसी भी प्रकार की जानकारी लीक करने पर स्वतः बहिष्कार (excommunication) का प्रावधान है।
सभी प्रतिभागियों – कार्डिनल्स, सहायकों, तकनीकी कर्मचारियों – को शपथ लेनी होती है कि वे कोई भी जानकारी साझा नहीं करेंगे, न ही किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का प्रयोग करेंगे।
पोप की मृत्यु के बाद जो प्रक्रिया शुरू होती है, वह केवल एक प्रशासनिक परिवर्तन नहीं, बल्कि रोमन कैथोलिक चर्च की आत्मा से जुड़ी एक गहन धार्मिक और प्रतीकात्मक यात्रा होती है। यह प्रक्रिया न केवल परंपरा और अनुशासन की मिसाल है, बल्कि यह उस आस्था और एकता को भी दर्शाती है जो विश्वभर के कैथोलिकों को जोड़ती है।
नए पोप का चुनाव चर्च को एक नया मार्गदर्शक देता है, जो न केवल धार्मिक विश्वासों का संरक्षक होता है, बल्कि वैश्विक शांति, न्याय और करुणा का संदेशवाहक भी होता है।
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