सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। यह हड़प्पा सभ्यता और सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केंद्र थे।
सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। यह टिगरिस और यूफ्रेटस के तट पर स्थित मेसोपोटामिया, नील नदी के तट पर स्थित मिस्त्र की सभ्यता एवं ह्याँगहो के तट पर स्थित चीनी सभ्यता के समकालीन थी।
सिन्धु घटी सभ्यता | हड़प्पा सभ्यता
यह सभ्यता सिंधु नदी के तट पर मिली थी इसीलिए से सिंधु घाटी सभ्यता कहते है। और इसकी सबसे पहले जानकारी हड़प्पा की खुदाई से हुई थी इसीलिए से हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है। रेडियो कार्बन C-14 जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता का सर्वमान्य काल 2350 ई. पू से 1750 ई.पू को माना जाता है।
चार्ल्स मैंसन ने सर्व प्रथम 1826 ई. में इसकी जानकारी दी। 1921 ई में तत्कालीन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल के समय रायबहादुर दयाराम साहनी ने हड़प्पा की खोज की। सिंधु सभ्यता को प्राकऐतिहासिक अथवा कांस्य युग में रखा जा सकता है। इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ एवं भूमध्यसागररीय थे।
ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं। चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने 1872 में इस सभ्यता के बारे मे सर्वेक्षण किया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे मे एक लेख लिखा।
हड़प्पा सभ्यता: सिंधु घाटी की प्राचीन नगरीकरण की कहानी
1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया। यह सभ्यता सिंधु नदी घाटी मे फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिंधु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरो के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता के 1400 केन्द्रों को खोज जा सका है जिसमे से 925 केन्द्र भारत मे है। 80 प्रतिशत्त स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियो के आस-पास है। अभी तक कुल खोजो मे से 3 प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है।
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक था। आरम्भ में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से इस सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। अतः विद्वानों ने इसे सिंधु घाटी की सभ्यता का नाम दिया, क्योंकि ये क्षेत्र सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में आते हैं पर बाद में रोपड़, लोथल, कालीबंगा, वनमाली, रंगापुर आदि क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले जो सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे। अतः इतिहासकार इस सभ्यता का प्रमुख केन्द्र हड़प्पा होने के कारण इस सभ्यता को हड़प्पा की सभ्यता नाम देना अधिक उचित मानते हैं।
इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहां की विकसित नगर निर्माण योजना। हड़प्पा तथा मोहन् जोदड़ो दोनो नगरों के अपने दुर्ग थे जहां शासक वर्ग का परिवार रहता था। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहां ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे।
इन नगर भवनों के बारे में विशेष बात ये थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे। यानि सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं और नगर अनेक आयताकार खंडों में विभक्त हो जाता था। ये बात सभी सिंधु बस्तियों पर लागू होती थीं चाहे वे छोटी हों या बड़ी। हड़प्पा तथा मोहन् जोदड़ो के भवन बड़े होते थे। वहां के स्मारक इस बात के प्रमाण हैं कि वहां के शासक मजदूर जुटाने और कर-संग्रह में परम कुशल थे। ईंटों की बड़ी-बड़ी इमारत देख कर सामान्य लोगों को भी यह लगेगा कि ये शासक कितने प्रतापी और प्रतिष्ठावान थे।
मोहन जोदड़ो: एक अद्वितीय संरचना और जल निकास प्रणाली का उदाहरण
मोहन जोदड़ो अब तक का सबसे प्रसिद्ध स्थल है विशाल सार्वजनिक स्नानागार, जिसका जलाशय दुर्ग के टीले में है। यह ईंटो के स्थापत्य का एक सुन्दर उदाहरण है। यह 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है। दोनो सिरों पर तल तक जाने की सीढ़ियां लगी हैं। बगल में कपड़े बदलने के कमरे हैं।
स्नानागार का फर्श पकी ईंटों का बना है। पास के कमरे में एक बड़ा सा कुंआ है जिसका पानी निकाल कर होज़ में डाला जाता था। हौज़ के कोने में एक जल निकासी स्थल है जिससे पानी बहकर नाले में जाता था। ऐसा माना जाता है कि यह विशाल स्नानागर धर्मानुष्ठान सम्बंधी स्नान के लिए बना होगा जो भारत में पारंपरिक रूप से धार्मिक कार्यों के लिए आवश्यक रहा है।
मोहन जोदड़ो की सबसे बड़ी संरचना है – अनाज रखने के कमरे, इन कमरों को कोठार कहा जाता था, जो 45.71 मीटर लंबा और 15.23 मीटर चौड़ा है। हड़प्पा में छः कोठार मिले हैं जो ईंटों के चबूतरे पर दो पांतों में खड़े हैं। हर एक कोठार 15.23 मी. लंबा तथा 6.09 मी. चौड़ा है और नदी के किनारे से कुछेक मीटर की दूरी पर है। इन बारह इकाईयों का तलक्षेत्र लगभग 838.125 वर्ग मी. है जो लगभग उतना ही होता है जितना मोहन जोदड़ो के कोठार का।
हड़प्पा के कोठारों के दक्षिण में खुला फर्श है और इसपर दो कतारों में ईंट के वृत्ताकार चबूतरे बने हुए हैं। फर्श की दरारों में गेहूँ और जौ के दाने मिले हैं। इससे प्रतीत होता है कि इन चबूतरों पर फ़सल की दवनी होती थी। हड़प्पा में दो कमरों वाले बैरक भी मिले हैं जो शायद मजदूरों के रहने के लिए बने थे। कालीबंगां में भी नगर के दक्षिण भाग में ईंटों के चबूतरे बने हैं जो शायद कोठारों के लिए बने होंगे। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि कोठार हड़प्पा संस्कृति के अभिन्न अंग थे।
हड़प्पा संस्कृति के नगरों में ईंट का इस्तेमाल एक विशेष बात है, क्योंकि इसी समय के मिस्र के भवनों में धूप में सूखी ईंट का ही प्रयोग हुआ था। समकालीन मेसोपेटामिया में पक्की ईंटों का प्रयोग मिलता तो है पर इतने बड़े पैमाने पर नहीं जितना सिंधु घाटी सभ्यता में।
मोहन जोदड़ो की जल निकास प्रणाली अद्भुत थी। लगभग हर नगर के हर छोटे या बड़े मकान में प्रांगण और स्नानागार होता था। कालीबंगां के अनेक घरों में अपने-अपने कुएं थे। घरों का पानी बहकर सड़कों तक आता जहां इनके नीचे नालियां बनी होती थीं। अक्सर ये नालिय ईंटों और पत्थर की सिल्लियों से ढकीं होती थीं।
सिंधु घाटी सभ्यता का काल खंड
सिंधु घाटी सभ्यता के कालखंड के निर्धारण को लेकर विभिन्न विद्वानों के बीच गंभीर मतभेद हैं। विद्वानों ने सिंधु घाटी सभ्यता को तीन चरणों में विभक्त किया है, ये हैं-
- प्रारंभिक हड़प्पा संस्कृति अथवा प्राक् हड़प्पा संस्कृति : 3200 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व
- हड़प्पा सभ्यता अथवा परिपक्व हड़प्पा सभ्यता : 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व
- उत्तरवर्ती हड़प्पा संस्कृति अथवा परवर्ती हड़प्पा संस्कृति : 1900 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व
सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्रीय विस्तार
- हड़प्पा सभ्यता भारत भूमि पर लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में त्रिभुजाकार स्वरूप में फैली हुई थी।
- यह उत्तर में ‘मांडा’ (जम्मू कश्मीर) तक, दक्षिण में ‘दैमाबाद’ (महाराष्ट्र) तक, पूर्व में ‘आलमगीरपुर’ (उत्तरप्रदेश) तक और पश्चिम में ‘सुत्कागेंडोर’ (पाकिस्तान) तक फैली हुई थी।
- यह सभ्यता सौराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश इत्यादि क्षेत्रों में भी विस्तृत थी।
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) की खोज
इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय ‘रायबहादुर दयाराम साहनी’ को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक ‘सर जॉन मार्शल’ के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद 1922 में ‘श्री राखल दास बनर्जी’ के नेतृत्व में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के ‘लरकाना’ ज़िले के मोहनजोदाड़ो में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला।
इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने क उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवतः यह सभ्यता सिंधु नदी की घाटी तक ही सीमित है, अतः इस सभ्यता का नाम ‘सिधु घाटी की सभ्यता‘ (Indus Valley Civilization) रखा गया। सबसे पहले 1927 में ‘हड़प्पा’ नामक स्थल पर उत्खनन होने के कारण ‘सिन्धु सभ्यता’ का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता’ पड़ा। पर कालान्तर में ‘पिग्गट’ ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को ‘एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियां‘ बतलाया।
सिन्धु घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन
हड़प्पाई लोगों का जीवन सुविधापूर्ण तथा ऐश्वर्यशाली था। सामाजिक व्यवस्था का मुख्य आधार परिवार था। मातृदेवी की पुजा तथा मुहरो पर अंकित चित्रो से यह परीलक्षित होता है की हड़प्पा समाज मातृसत्तात्मक प्रतीत होता है। लोग शाकाहारी तथा मांसाहरी दोनों थे। गेहूँ, जौ, तिल दालें मुख्य खाधान्न थे। स्त्री तथा पुरुषो में बहूमूल्य धातुओं से बने आभूषणो के प्रति आकर्षण देखने को मिलता है। सोने, चाँदी, हाथीदांत, ताम्र तथा सीपियों से निर्मित आभूषण प्रचलित थे। मनको के हार सामान्य रूप से प्रचलित थे।
मनका निर्माण की कार्यशाला (फैक्ट्री) चन्हुदड़ो में अवस्थित थी। सैंधववासी सूती एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे। शतरंज जैसा खेल यहाँ प्रचलित था। मछली पकड़ना तथा शिकार करना हड़प्पा सभ्यता के निवासियों का दैनिक क्रिया-कलाप था। सिंधु सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किए हुए लाल मिट्टी के वर्तन बनाते थे। सैंधव वासी मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे।
शवाधान प्रणाली
सिंधु सभ्यता के लोग अपने मृतको का 3 प्रकार से अंतिम संस्कार करते थे।
- पूर्ण शवाधान : मृतको को कब्र में दफनाने के परंपरा।
- आंशिक शवाधान : मृतक के शरीर को जंगल में रख देना जब पशु पक्षी उसके मांस को खा लेते थे तो हड्डीयों को दफना देना।
- दाह संस्कार : मृतक को जलाने की परंपरा।
धार्मिक जीवन
सिंधु सभ्यता में मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी। एक हड़प्पाई मूर्तिका में स्त्री के गर्भ से पौधे को निकलते हुए दिखाया गया है। यह इस बात का प्रमाण है की सिंधु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा किया करते थे।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर पशुपति शिव की मूर्ति उत्कीर्ण है, जिसके दाई और चीत्ता और हाथी तथा बाई और गैंडा और भैंसा उत्कीर्ण है। आसन के नीचे दो हिरण बैठे हुए है। सिर पर त्रिशूल जैसा आभूषण है। इससे पशुपति शिव की पूजा के प्रचलन का पता चलता है। अग्निकुंड लोथल एंव कालीबंगल से प्राप्त हुए है। स्वास्तिक चिन्ह संभवत: हड़प्पा सभ्यता की देने है। कूबड़वाला बैल तथा शृंगयुक्त पशु पवित्र पशु थे। लोग अंध विश्वास तथा जादू-टोना में विश्वास करते थे।
आर्थिक जीवन
सिंधु सभ्यता में कृषि संगठित रूप से की जाती थी तथा अधिशेष उत्पादन होता था। यहा गेंहू, जौ, कपास इत्यादि की खेती होती थी। सिंधु सभ्यता में मुख्य फसल गेंहूँ और जौ थी। कालीबंगा से जूते हुए खेत तथा हल की प्रतिकृति के साक्ष्य प्राप्त हुए है। सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को है।
कपास को यूनानी लोग सिन्डोन कहते है। व्यवस्थित सिंचाई का प्रमाण नहीं मिला है, किन्तु जल-संग्रह के लिए बांधो के निर्माण का साक्ष्य धौलाविरा से प्राप्त हुआ है। हड़प्पा संस्कृति कांस्ययुगीन संस्कृति थी तथापि अधिकांश औज़ार पत्थर से ही बनते थे। माप-तौल के मानकीकरण को स्थापित किया गया था। फुट तथा क्यूबिक की जानकारी लोगों को थी। माप के लिए दशमलव प्रणाली तथा तौल के लिए द्वि-भाजन प्रणाली के साक्ष्य विभिन्न स्थलों से प्राप्त हुए है।
लोथल से एक गोदीवाड़ा प्राप्त हुआ है। चन्हुदड़ो और लोथल में मनका बनाने का कारख़ाना था। हड़प्पा सभ्यता के लोग आंतरिक तथा बाह्य व्यापार से संलग्न थे। आंतरिक व्यापार बैलगाड़ी के माध्यम से संचालित होता था। मेसोपोटिमिया के सम्राट सारगौन के अभिलेख से हड़प्पाई व्यापार के प्रमाण मिलते है।
इसमें कहा गया है की दिलमन (बहरीन), मकन (मकरान) तथा मेलुहा (हड़प्पा) के व्यापारी हमारे यहाँ जहाज लाते है।हड़प्पा सभ्यता में वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी। तौल की इकाई संभवत: 16 के अनुपात में थी।
सिंधु काल में विदेशी व्यापार
आयातित वस्तुएँ | प्रदेश |
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ताँबा | खेतड़ी, बलूचिस्तान, ओमान |
चाँदी | अफगानिस्तान, ईरान |
सोना | कर्नाटक, अफगानिस्तान, ईरान |
टिन | अफगानिस्तान, ईरान |
गोमेद | सौराष्ट्र (गुजरात) |
लाजवर्त | मेसोपोटामिया |
सीसा | ईरान |
नगर निर्माण योजना
सिंधु घाटी की प्रमुख विशेषता इसकी नगर निर्माण योजना है। जो इसके समकालीन मिस्त्र तथा मेसोपोटामिंया की सभ्यता में अनुपस्थित थे।हड़प्पा सभ्यता स्थल से प्राप्त नगरीय अवशेष प्राय: दो भागों में विभाजित है – ऊपरी तथा निम्न भाग। ऊपरी भाग दुर्गीकृत है, जिसमें राजकीय इमारते, खाद्य भंडार गृह इत्यादि निर्मित है, जबकि निम्न भाग में छोटे भवनों के साक्ष्य मिले है। सभी भवन समान क्षेत्रफल में निर्मित है। ये सड़कों के किनारे एक आधार पर निर्मित है, तथा भवनों के दरवाजे गलियों की और खुलते है।
यहा के निवासियों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रिड पद्धति अपनाई। प्रत्येक सड़क एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी। सड़क तथा गली के दोनों और पक्की नालियाँ निर्मित है। मकानो की खिड़कियाँ मुख्य सड़क की तरफ न खुल कर पीछे गली में खुलती थी। (लोथल इसका अपवाद) लोथल में मकानो की खिड़कियाँ मुख्य सड़क की और मिलते है। मुख्य सड़क की चौड़ाई 10 मीटर होती थी। इसे राजपथ कहा जाता था। भवनों का निर्माण पक्की ईंटों से हुआ है।
सभी भवनों में स्नानागार बनाए जाते थे तथा इनसे पानी के निकास के लिए पाइपों का निर्माण किया गया था। मोहनजोदड़ो से विशाल स्नानागार प्राप्त हुआ है जिसका उपयोग संभवत: धार्मिक अनुष्ठान के लिए किया जाता था। स्नानागार का जलाशय 11.88 मी लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है।मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत है -अन्न कोठार गुजरात में स्थित धौलावीरा हड़प्पा सभ्यता का एक वृहद स्थल है, यह नगरीय स्थल अन्य स्थलों की भाँति दो भागो में नहीं बल्कि तीन भागों में विभक्त है।
दुर्ग, मध्यम नगर और निचला नगर। कलिबंगा एकमात्र हड़प्पाकालीन स्थल था जिसका निचला शहर भी दीवार से घिरा हुआ है। कालीबंगा से अलंकृत ईंट तथा लकड़ी की नाली के साक्ष्य मिले है।कालीबंगा का अर्थ है ‘काले रंग की चुड़ियाँ’। चन्हुदड़ो एकमात्र ऐसा स्थल है जहां वक्राकर इंटे मिली है। परंतु यहाँ किलेबंधी के साक्ष्य नहीं मिले है। सिंधु सभ्यता के नगरो में किसी मंदिर के अवशेष नहीं मिले है।
लिपि लेखन तथा मूर्तियाँ
हड़प्पाई लिपि चित्रात्मक है, जिसमें चित्रों के माध्यम से सम्प्रेषण का प्रयास हुआ है। इस लिपि को पढ़ने में अभी तक सफलता नहीं पाई जा सकी है। यह लिपि दाईं से बाई और लिखी जाती थी। जब अभिलेख एक से अधिक पंक्ति का होता था तो पहली पंक्ति दाईं से बाईं ओर तथा दूसरी पंक्ति बाईं से दाईं तरफ लिखी जाती थी। इसे ‘ब्रूस्ट्रोफेडन’ शैली कहा जाता है। इनका अंकन सेलखड़ी की आयातकार मुहरो, ताम्र की गुटिकाओं इत्यादि पर हुआ है। हड़प्पा की मोहरो पर सबसे अधिक एक शृंगी पशु का अंकन मिलता है। मोहनजोदड़ो से एक कांस्य निर्मित नर्तकी की मूर्ति मिली है।
सिंधु प्रदेश से भारी संख्या में आग में पकी मिट्टी की मूर्तीकाएँ प्राप्त हुई है।आग में पकी मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता था। इन मूर्तिकाओं में सर्वाधिक संख्या में पशु आकृतियां प्राप्त हुई है तथा पशु आकृतियों में कूबड़ वाले साँड की संख्या सर्वाधिक है। मानव मूर्तिकाओं में सर्वाधिक संख्या स्त्री मूर्तिकाओं की है।
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के नगर
अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग 1000 स्थानों का पता चला है जिनमें कुछ ही परिपक्व अवस्था में प्राप्त हुए हैं। इन स्थानों के केवल 7 को ही नगर की संज्ञा दी जाती है। ये हैं –
- हड़प्पा
- मोहनजोदाड़ो
- चन्हूदड़ों
- लोथल
- कालीबंगा
- हिसार (राखीगढ़ी)
- धौलावीरा
हड़प्पा (1921)
यह रावी नदी तट पर वर्तमान में मोंटगोमरी जिल्ला (पाकिस्तान) में स्थित है। 1826 में सर्वप्रथम चार्ल्स मैसन द्वारा हड़प्पा टीले का उल्लेख किया गया था। कनिंधम द्वारा 1853 तथा 1873 में सर्वेक्षण किया। इसकी खुदाई दयाराम साहनी ने 1921 ई. में की।
हड़प्पा से प्राप्त वस्तुएं –
- श्रमिक आवास
- अन्नागार
- लकड़ी का ताबूत
- R-37 कब्रिस्तान
मोहनजोदड़ो (1922)
मोहनजोदड़ो सभ्यता का उत्खनन 1922 ई. में राखाल दास बनर्जी मे किया। वर्तमान में यह सिंधु नदी के दाहिने किनारे पर पाकिस्तान के सिंध प्रांत में लरकाना जिले में है। मोहनजोदड़ो का अर्थ है – मृतकों का टीला
मोहनजोदड़ो से मिली वस्तुएं –
- पुरोहित आवास
- अन्नागार
- विशाल स्नानगृह
- घर में कुआं
- आदि शिव
- कांसे की बनी नर्तकी की मूर्ति
- सबसे चौड़ी सड़क
चन्हुदड़ो (1931)
इसकी खुदाई एन.जी. मजूमदार ने की और वर्तमान में यह सिंधु नदी के तट पर पाकिस्तान में स्थित है। यह एकमात्र ऐसा शहर है जो दुर्ग रहित है।
चन्हुदड़ो से मिली वस्तुएं :
- लिपस्टिक
- शीशा
- मनके और गुड़िया
- कुत्ते और बिल्ली के पैरों के निशान
लोथल
लोथल सभ्यता का उत्खनन एस. आर. राव ने भोगवा नदी के किनारे अमदवाद जिला (गुजरात) में करवाया था। यहा घर के दरवाजे सड़कों की और मिलते थे।
लोथल से मिली वस्तुएं :
- बंदरगाह (डॉकयार्ड)
- हाथी दाँत का पैमाना
- युग्म शवाधान
- चावल के दाने
- खिलौना
कालिबंगा
इसकी खुदाई बी. के. थापड़ तथा बी. बी. लाल ने की थी। वर्तमान में यह राजस्थान में घग्घर नदी के किनारे स्थित है। कालीबंगा का अर्थ होता है काली मिट्टी की चूड़ी।
कालिबंगा से मिली वस्तुएं :
- हल से जूते हुए खेत के निशान
- अलंकृत ईट
- हवन कुंड
- चूड़ी
हिसार (राखीगढ़ी)
राखीगढ़ी हरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती तथा दृषद्वती नदियों के शुष्क क्षेत्र में स्थित है। राखीगढ़ी सिन्धु घाटी सभ्यता का धोलावीरा के बाद दूसरा विशालतम ऐतिहासिक नगर है। इसकी प्रमुख नदी घग्घर है। राखीगढ़ी का उत्खनन व्यापक पैमाने पर 1997-1999 ई. के दौरान अमरेन्द्र नाथ द्वारा किया गया। राखीगढ़ी से प्राक्-हड़प्पा एवं परिपक्व हड़प्पा युग इन दोनों कालों के प्रमाण मिले हैं। हिसार (राखीगढ़ी) से मातृदेेवी अंकित एक लघु मुद्रा प्राप्त हुई है। राखीगढ़ी से महत्त्वपूर्ण स्मारक एवं पुरावशेष – दुर्ग-प्राचीर, अन्नागार, पीछे की तरफ कोठरियाँ बनी हुई स्तम्भयुक्त मण्डप प्राप्त हुए हैं, तथा ऊँचे चबूतरे पर बनाई गई अग्नि वेदिकाएँ भी मिली हैं।
धौलावीरा
वर्तमान में धौलावीरा गुजरात के कच्छ जिला में स्थित है। इसकी खुदाई आर. एस. बिष्ट ने की थी। यहा से स्टेडियम मिला था। यूनेस्को (UNESCO) की विश्व विरासत सूची में धौलावीरा को 40वीं विश्व विरासत स्थल के रूप में शामिल किया गया है।
इनके अलावा रोपड़ एवं सुरकोटदा नमक स्थल भी प्राप्त हुए है –
रोपड़
इसकी खुदाई यज्ञदत्त शर्मा ने की और यह वर्तमान में पंजाब में सतलुज नदी के किनारे पर स्थित है। यहा पर मानव के साथ कुत्ते को दफनाए जाने का प्रमाण मिला है।
सुरकोटदा
इसका उत्खनन जगतपति जोशी ने करवाया, वर्तमान में ये गुजरात में स्थित है। यहा से घोड़े की हड्डीयां मिली है।
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के दुर्ग
नगर की पश्चिमी टीले पर सम्भवतः सुरक्षा हेतु एक ‘दुर्ग’ का निर्माण हुआ था जिसकी उत्तर से दक्षिण की ओर लम्बाई 460 गज एवं पूर्व से पश्चिम की ओर लम्बाई 215 गज थी। ह्वीलर द्वारा इस टीले को ‘माउन्ट ए-बी’ नाम प्रदान किया गया है। दुर्ग के चारों ओर क़रीब 45 फीट चौड़ी एक सुरक्षा प्राचीर का निर्माण किया गया था जिसमें जगह-जगह पर फाटकों एव रक्षक गृहों का निर्माण किया गया था। दुर्ग का मुख्य प्रवेश मार्ग उत्तर एवं दक्षिण दिशा में था।
दुर्ग के बाहर उत्तर की ओर 6 मीटर ऊंचे ‘एफ’ नामक टीले पर पकी ईटों से निर्मित अठारह वृत्ताकार चबूतरे मिले हैं जिसमें प्रत्येक चबूतरे का व्यास क़रीब 3.2 मीटर है चबूतरे के मध्य में एक बड़ा छेद हैं, जिसमें लकड़ी की ओखली लगी थी, इन छेदों से जौ, जले गेहूँ एवं भूसी के अवशेष मिलते हैं। इस क्षेत्र में श्रमिक आवास के रूप में पन्द्रह मकानों की दो पंक्तियां मिली हैं जिनमें सात मकान उत्तरी पंक्ति आठ मकान दक्षिणी पंक्ति में मिले हैं।
प्रत्येक मकान में एक आंगन एवं क़रीब दो कमरे अवशेष प्राप्त हुए हैं। ये मकान आकार में 17×7.5 मीटर के थे। चबूतरों के उत्तर की ओर निर्मित अन्नागारों को दो पंक्तियां मिली हैं, जिनमें प्रत्येक पंक्ति में 6-6 कमरे निर्मित हैं, दोनों पंक्तियों के मध्य क़रीब 7 मीटर चौड़ा एक रास्ता बना था। प्रत्येक अन्नागार क़रीब 15.24 मीटर लम्बा एवं 6.10 मीटर चौड़ा है।
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) की विशेष इमारतें
सिंधु घाटी प्रदेश में हुई खुदाई कुछ महत्त्वपूर्ण ध्वंसावशेषों के प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा की खुदाई में मिले अवशेषों में महत्त्वपूर्ण थे –
- दुर्ग
- रक्षा-प्राचीर
- निवासगृह
- चबूतरे
- अन्नागार आदि ।
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) का विस्तार
अब तक इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत के पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के भागों में पाये जा चुके हैं। इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में ‘जम्मू’ के ‘मांदा’ से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने ‘भगतराव’ तक और पश्चिमी में ‘मकरान’ समुद्र तट पर ‘सुत्कागेनडोर’ से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ तक है। इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल ‘सुत्कागेनडोर’, पूर्वी पुरास्थल ‘आलमगीर’, उत्तरी पुरास्थल ‘मांडा’ तथा दक्षिणी पुरास्थल ‘दायमाबाद’ है।
लगभग त्रिभुजाकार वाला यह भाग कुल क़रीब 12,99,600 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। सिन्धु सभ्यता का विस्तार का पूर्व से पश्चिमी तक 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किलोमीटर था। इस प्रकार सिंधु सभ्यता समकालीन मिस्र या ‘सुमेरियन सभ्यता’ से अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली थी।
कृषि एवं पशुपालन
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) में कृषि एवं पशुपालन ही उन लोगों के जीविका का मुख्य आधार था। आज के मुकाबले सिंधु प्रदेश पूर्व में बहुत ऊपजाऊ था। ईसा-पूर्व चौथी सदी में सिकन्दर के एक इतिहासकार ने कहा था कि सिन्ध इस देश के ऊपजाऊ क्षेत्रों में गिना जाता था। पूर्व काल में प्राकृतिक वनस्पति बहुत थीं जिसके कारण यहां अच्छी वर्षा होती थी। यहां के वनों से ईंटे पकाने और इमारत बनाने के लिए लकड़ी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल में लाई गई जिसके कारण धीरे धीरे वनों का विस्तार सिमटता गया। सिंधु की उर्वरता का एक कारण सिंधु नदी से प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ भी थी।
गांव की रक्षा के लिए खड़ी पकी ईंट की दीवार इंगित करती है बाढ़ हर साल आती थी। यहां के लोग बाढ़ के उतर जाने के बाद नवंबर के महीने में बाढ़ वाले मैदानों में बीज बो देते थे और अगली बाढ़ के आने से पहले अप्रील के महीने में गेँहू और जौ की फ़सल काट लेते थे। यहां कोई फावड़ा या फाल तो नहीं मिला है लेकिन कालीबंगां की प्राक्-हड़प्पा सभ्यता के जो कूँट (हलरेखा) मिले हैं जिनसे यह पता चलता है कि राजस्थान में इस काल में हल जोते जाते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग गेंहू, जौ, राई, मटर, ज्वार आदि अनाज की खेती करते थे। इसके अलावा वे तिल और सरसों की भी खेती करते थे। सबसे पहले कपास भी यहीं पैदा की गई। इसी के नाम पर यूनान के लोग इस सिन्डन (Sindon) कहने लगे। हड़प्पा सभ्यता एक कृषि प्रधान सभ्यता थी पर यहां के लोग पशुपालन भी करते थे। बैल-गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर पाला जाता था . इस समय के लोगों को हाथी तथा गैंडे का ज्ञान था।
व्यापार
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) अथवा हड़प्पा सभ्यता के लोग आपस में पत्थर, धातु शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे। एक बड़े भूभाग में ढेर सारी सील (मृन्मुद्रा), एकरूप लिपि और मानकीकृत माप तौल के प्रमाण मिले हैं। इस सभ्यता के लोग पहिये के प्रयोग से परिचित थे और संभवतः आजकल के इक्के (रथ) जैसा कोई वाहन प्रयोग करते थे। ये अफ़ग़ानिस्तान और ईरान (फ़ारस) आदि देशों से व्यापार करते थे।
इस सभ्यता के लोगों ने उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में एक वाणिज्यिक उपनिवेश स्थापित किया जिससे उन्हें व्यापार में सहूलियत होती थी। बहुत सी हड़प्पाई सील मेसोपोटामिया में मिली हैं जिनसे लगता है कि मेसोपोटामिया से भी उनका व्यापार सम्बंध था। मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापार के प्रमाण मिले हैं साथ ही दो मध्यवर्ती व्यापार केन्द्रों का भी उल्लेख मिलता है – दलमुन और माकन। दिलमुन की पहचान शायद फ़ारस की खाड़ी के बहरीन के की जा सकती है।
- रेडियो कार्बन बिस्लेषण के द्वारा सिंधु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ई पू से 1750 ई पू मानी गई है।
- सिंधु सभ्यता को हडप्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।
- सबसे पहले खुदाई में हडप्पा नगर का पता चलने के कारण इस सभ्यता का नाम हडप्पा सभ्यता पड़ा।
- सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता ) में धातु के रूप में कांस्य का प्रयोग होने के कारण इसे कांस्य युग की सभ्यता भी कहा जाता है।
- सिंधु घाटी सभ्यता मे हडप्पा और मोहनजोदड़ो नामक दो नगर के बारे में पता चला।
- मोहनजोदड़ो का अर्थ मृतकों का टीला होता है।
- कालीबंगा का अर्थ काले रंग की चूडिय़ां होता है।
- सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य विशेषता यहा की नगर निर्माण योजना थी।
- यहा की नगर निर्माण में सुव्यवस्थित जल निकासी प्रणाली इस नगर निर्माण की प्रमुख विशेषता थी।
- हडप्पा सभ्यता का समाज मातृत्व सत्तात्मक था।
- कृषि इस सभ्यता की जीविका का मुख्य आधार था।
- इसके साथ ही साथ यहा की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि तथा पशुपालन के साथ उद्योग एवं व्यापार था।
- यही के निवासियों ने सर्व प्रथम कपास की खेती प्रारम्भ की।
- कपास के लिए मेसोपोटामिया मे सिंधु शब्द का प्रयोग किया जाता था। युनानी लोगों ने इसको सिण्डन कहा जो कि सिंधु का ही यूनानी रुपांतरण है।
- हड़प्पा सभ्यता में आंतरिक तथा विदेशी दोनों तरह का व्यापार होता था।
- व्यापार का आधार वस्तु विनिमय अर्थात वस्तुओ का आदान प्रदान था। माप तौल की इकाई संभवतः 16 के अनुपात में थी।
- इस सभ्यता में वणिक वर्ग द्वारा प्रशासन चलाया जाता था। इस सभ्यता में मातृ देवी की पूजा एवं उपासना का प्रमुख महत्व था। मातृ देवी के साथ साथ ही पशुपतिनाथ, लिंग, योनि, वृक्षों एवं पशुओं की भी पूजा की जाती थी।
- पशुओं मे कुबड वाले सांड की पूजा का प्रचलन था और इसका बहुत महत्व था। यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण पशु था।
- इस काल में मंदिरों के अवशेष नहीं मिले हैं। इस काल के निवासी मुहरों के निर्माण, मिट्टी के बर्तन का निर्माण, मूर्ति निर्माण जैसे कलाओं में माहिर थे।
सिंधु घाटी (हड़प्पा सभ्यता) के प्रमुख स्थल एवं उससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
प्रमुख स्थल | उल्लखनकर्ता | ई. | नदी | वर्तमान स्थिति | महत्वपूर्ण साक्ष्य |
हड़प्पा | दयाराम साहनी, माधव स्वरूप | 1921 | रावी | पाकिस्तान का मांटगोमरी जिला | ताँबा गलाने की भट्ठी, तांबे की इक्का गाड़ी, तांबे का पैमाना, अन्नगार |
मोहनजोदड़ो | राखालदास बनर्जी | 1922 | सिंधु | पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना जिला | स्नानागार, अन्नगार, सभागार, कांसे की नर्तकी की मूर्ति, पशुपति की मूर्ति सूती धागा |
चनहूदडो | गोपाल ममजूमदार | 1934 | सिंधु | पाकिस्तान (सिंध प्रांत) | काजल, कंघा, दवात, मनका बनाने का कारखाना |
रंगपुर | रंगनाथ राव | 1953-55 | मादर | गुजरात का काठियावाड़ जिला | चावल की भूसी |
रोपड़ | यज्ञदत्त शर्मा | 1953-55 | सतलज | पंजाब का रोपण जिला | मानव के साथ कुत्ते को दफनाने का साक्ष्य |
लोथल | रंगनाथ राव | 1955-1962 | भोगवा | गुजरात का अहमदाबाद जिला | हाथी दांत का पैमाना, गोदीवाड़ा, युग्मित शवधान, रंगाई के कुँड |
कोटदीजी | फजल अहमद | 1955 | सिन्धु | सिंध प्रांत का खैरपुर स्थान | पत्थर के वाणाग्र |
आलमगीरपुर | यज्ञदत्त शर्मा | 1958 | हिन्डन | उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला | सांप ततथा रीछ की मृण्मूर्ति |
कालीबंगा | बी. बी. लाल एवं बी. के. थापर | 1961 | घग्घर | राजस्थान का श्रीगंगानगर जिला | पक्की ईंटे, अलंकृत फर्श, अग्नि वेदियाँ, जुते हुए खेत |
धौलावीरा | जे. पी. जोशी | 1967-68 | गुजरात का कच्छ जिला | लंबा जलाशय, पालिश किए हुए सफेद पत्थर, | |
बनावली | रविन्द्र सिंह | 1973-74 | रंगोई | हरियाणा का हिसार जिला | मातृ देवी की मूर्ति, हल, जौ, मिट्टी के खिलौने |
हड़प्पा सभ्यता का पतन
समय के साथ हड़प्पा सभ्यता का पतन होने लगा। 1800 ई.पू. के आस-पास हड़प्पा सभ्यता बिखर गई। सिंधु सभ्यता के विनाश का संभवत: सबसे प्रभावी कारण बाढ़ था। हालाँकि विद्वानो ने इसके पतन के कई कारण बताएं है। उदाहरण के लिए, इस सभ्यता के प्रमुख शहरों में से एक, मोहनजोदड़ो, पहले लगभग पचहत्तर हेक्टेयर भूमि पर फला-फूला, लेकिन बाद में केवल तीन हेक्टेयर तक ही सीमित हो गया था।
किसी कारण से, हड़प्पा से आबादी पास के और बाहरी शहरों और पंजाब, ऊपरी दोआब, हरियाणा आदि स्थानों पर जाने लगी। लेकिन हड़प्पा सभ्यता के पतन का कारण क्या था यह अभी भी एक रहस्य है।
कुछ संभावित कारक जिनके कारण सभ्यता का पतन हो सकता है, वे इस प्रकार हैं:-
आर्यों का आगमन
आमतौर पर यह माना जाता है कि आर्य अगले बसने वाले थे। वे कुशल लड़ाके थे, इसलिए उनके हमले से हड़प्पा सभ्यता का विनाश हो सकता था। यहाँ तक कि आर्यों के महाकाव्यों में भी महान नगरों पर उनकी विजय का उल्लेख मिलता है। सिंधु घाटी की खुदाई के दौरान मिले मानव अवशेष उनकी मृत्यु के किसी हिंसक कारण की ओर इशारा करते हैं। पतन के बाद वैदिक काल शुरु हुआ।
जलवायु परिवर्तन
विशाल जलवायु परिवर्तन या प्राकृतिक आपदा का सिद्धांत विश्वसनीय लगता है। यह पता चला है कि 2000 ईसा पूर्व के आसपास सिंधु घाटी में कुछ बड़े जलवायु परिवर्तन होने लगे। इन परिवर्तनों के कारण मैदानी इलाकों और शहरों में बाढ़ आ गई थी। इतिहासकारों ने इस सिद्धांत को साबित करने के लिए सबूत भी ढूंढे हैं।
वर्षा में गिरावट और नदी का मार्ग बदलना
शहरों में औसत वर्षा में गिरावट के कारण मरुस्थल जैसी स्थिति का निर्माण हुआ। इससे कृषि में गिरावट आई, जिस पर अधिकांश व्यापार निर्भर थे। इसके कारण हड़प्पा सभ्यता के लोग किसी अन्य स्थान पर जाने लगे जिससे पूरी सभ्यता का पतन हो गया। कुछ विद्वानों के अनुसार, गिरावट का कारण घग्गर – हरका नदी के मार्ग में परिवर्तन है जिससे जगह की शुष्कता में वृद्धि हुई है।
विद्वानों के मतानुसार सिंधु सभ्यता का पतन
आर्यों का आक्रमण | ह्यिलर, स्टुअर्ट, पिग्गट, गार्डन चाइल्ड |
बाढ़ | मार्शल, मैके, एस.आर. राव |
जलवायु परिवर्तन | आरेल स्टाईन, ए.एन. घोष |
जलप्लावन | एस. आर. साहनी |
महामारी, बीमारी | के.यू. आर. केनेडी |
पारीस्थितिक असंतुलन | फेयर सर्विस |
सिंधु घाटी सभ्यता से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- सिंधु घाटी सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की थी।
- सैंधव सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलो में केवल 6 को ही बड़े नगर की संज्ञा दी गयी है; ये है – मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गणवारीवाला, धौलावीरा, राखीगढ़ी, कालीबंगन
- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हड़प्पा सभ्यता के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए है।
- लोथल एवं सूतकोतदा सिंधु सभ्यता का बंदरगाह था।
- सूतकोटदा, कालीबंगन एवं लोथल से सैंधवकालीन घोड़े के अस्थिपंजर मिले है।
- संभवत: हड़प्पा संस्कृति का शासन वणिक वर्ग के हाथों में था।
- पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानी कहा है।
- सिंधु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे।
- पर्दा-प्रथा एवं वेश्यावृति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थी।
- आग में पकी हुई मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता है।
- रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले है, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है।
- चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से ही प्राप्त हुए हैं।
- सिंधु घाटी सभ्यता लगभग 4350 वर्ष पुरानी है।
- सिंधु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि रेडियों कार्बन तिथि C-14 के अनुसार 2350 ई.पू. से 1750 ई.पू. मानी गई है।
- भारत में सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल धोलावीरा एवं राखीगढ़ी है।
- वर्तमान में धौलावीरा गुजरात के कच्छ जिला में स्थित है, इसकी खुदाई आर. एस. बिष्ट ने की थी।
- राखीगढ़ी वर्तमान में हरियाणा राज्य में स्थित है।
- अल्लादीनोंह सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे छोटा स्थल है।
- मोहनजोदड़ो का सबसे बड़ा भवन अन्न कोठार था।
- मोहनजोदड़ो का अर्थ होता है मृतकों का टीला।
- सिंधु घाटी की सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक थी। यह लिपि दायीं से बायीं और लिखी जाती थी।
- कालीबंगा सभ्यता की खोज बी. के. थापड़ तथा बी. बी. लाल ने की थी।
- कालीबंगा वर्तमान में घग्घर नदी (राजस्थान) के किनारे स्थित है।
- वर्तमान में गुजरात राज्य में स्थित सुरकोटड़ा की खोज जगतपति जोशी ने की थी।
- सिंधु सभ्यता के पतन का संभवत: सबसे प्रभावी कारण बाढ़ को माना जाता है।
- सिन्धु सभ्यता का विस्तार – सिन्धु सभ्यता का पश्चिमी पूरास्थल दाश्क नदी के किनारे स्थित सुतकागेंडोर (बलूचीस्तान), पूर्वी पूरास्थल हिंडन नदी के किनारे आलमगिरपुर (मेरठ, उत्तर प्रदेश), उत्तरी पूरास्थल चिनाब नदी के तट पर अखनूर के निकट माँदा (जम्मू कश्मीर), तथा दक्षिणी पूरास्थल गोदावरी नदी के तट पर दाइमाबाद (महाराष्ट्र) है।
इन्हें भी देखें –
- आकाशदीप कहानी- जयशंकर प्रसाद
- भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल | विश्व विरासत सूची
- बाघ अभयारण्य | भारत के बाघ संरक्षित क्षेत्र
- भारत के जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र | संरक्षित जैवमंडल क्षेत्र
- भारत के राष्ट्रीय उद्यान | National Parks of India
- कोरियाई युद्ध |1950-1953
- भारत का आधुनिक इतिहास (1857-Present)
- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857-1858
- ब्रिटिश राज (1857 – 1947)