भारत के परमाणु ऊर्जा युग के प्रमुख शिल्पी डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन का जीवन, योगदान और विरासत

भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की नींव रखने वाले और उसे वैश्विक मंच पर मजबूती से स्थापित करने वाले वैज्ञानिकों की सूची में डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। 20 मई 2025 को 95 वर्ष की आयु में उधगमंडलम (ऊटी) में उनके निधन से एक युग का समापन हो गया। वे केवल एक वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी योजनाकार, प्रशासक और भारत के आत्मनिर्भर परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के प्रमुख स्तंभ थे।

डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन का जीवन, योगदान और विरासत

डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन का जीवन परिचय, व्यक्तिगत विवरण एवं पेशेवर प्रोफ़ाइल को नीचे एक टेबल में व्यवस्थित रूप में दिया गया है –

डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन का जीवन परिचय, व्यक्तिगत विवरण एवं पेशेवर प्रोफ़ाइल

विवरणजानकारी
पूरा नामडॉ. एम. आर. श्रीनिवासन
जन्म5 जनवरी 1930, बैंगलोर, मैसूर राज्य, भारत (अब कर्नाटक)
मृत्यु20 मई 2025 (आयु 95), उदगमंडलम, तमिलनाडु, भारत
राष्ट्रीयताभारतीय
सिटिज़नशिपभारत
शिक्षा संस्थान– विश्वेश्वरैया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग
– मैकगिल विश्वविद्यालय
विशेषज्ञता के क्षेत्रमैकेनिकल इंजीनियरिंग
प्रमुख संस्थान– भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC)
– परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE)
– अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA)
– योजना आयोग
प्रसिद्धि के लिए जाने जाते हैंभारत का शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम, गैस टरबाइन क्षेत्र में योगदान
संतानशारदा श्रीनिवासन (प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद)
प्रमुख पुरस्कार– पद्म श्री (1984)
– पद्म विभूषण (2015)

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

डॉ. श्रीनिवासन का जन्म 1929 में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा के बाद इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और तत्पश्चात विदेश जाकर परमाणु इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता हासिल की। उनके करियर की नींव विज्ञान, अनुसंधान और राष्ट्र निर्माण की भावना पर आधारित थी। उनका झुकाव विज्ञान की ओर प्रारंभ से ही था और उन्होंने अपने जीवन को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य के साथ समर्पित कर दिया।

परमाणु ऊर्जा विभाग से जुड़ाव

सन् 1955 में वे भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy – DAE) से जुड़े और देश के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक माने जाने वाले डॉ. होमी जहांगीर भाभा के साथ काम करने का अवसर प्राप्त किया। यह वह कालखंड था जब भारत स्वतंत्र हुआ ही था और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की खोज कर रहा था। श्रीनिवासन ने भाभा की दृष्टि को मूर्त रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अप्सरा रिएक्टर में योगदान

डॉ. श्रीनिवासन के आरंभिक योगदानों में भारत के पहले अनुसंधान परमाणु रिएक्टर “अप्सरा” के निर्माण में उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही। अगस्त 1956 में अप्सरा रिएक्टर ने पहली बार क्रिटिकलिटी हासिल की और भारत उन कुछ गिने-चुने देशों में शामिल हो गया, जिन्होंने परमाणु अनुसंधान रिएक्टर का सफल निर्माण किया था। यह भारत के लिए आत्मविश्वास का प्रतीक था और श्रीनिवासन इसके तकनीकी क्रियान्वयन में एक मुख्य अभियंता के रूप में उभरे।

प्रमुख परियोजनाओं में नेतृत्व

उनके दीर्घ और व्यापक करियर में अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाएँ शामिल रहीं। कुछ मुख्य पड़ाव निम्नलिखित हैं:

  • 1959: भारत के पहले व्यावसायिक परमाणु ऊर्जा संयंत्र की परियोजना में प्रिंसिपल प्रोजेक्ट इंजीनियर के रूप में कार्यभार संभाला।
  • 1967: मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन में मुख्य परियोजना अभियंता बने। इस परियोजना के माध्यम से उन्होंने स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा दिया और भारत की इंजीनियरिंग क्षमताओं को विश्व मंच पर स्थापित किया।
  • 1974: उन्हें पावर प्रोजेक्ट्स इंजीनियरिंग डिवीजन का निदेशक बनाया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने राष्ट्रव्यापी परमाणु ऊर्जा विस्तार को दिशा दी।

AEC और NPCIL का नेतृत्व

डॉ. श्रीनिवासन का सबसे प्रतिष्ठित कार्यकाल 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में देखा गया, जब उन्हें भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission – AEC) का अध्यक्ष और DAE का सचिव नियुक्त किया गया।

  • 1984: न्यूक्लियर पावर बोर्ड के अध्यक्ष बने।
  • 1987: उन्हें AEC के अध्यक्ष पद पर पदोन्नत किया गया और उसी दौरान उन्होंने न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) की स्थापना की, जो आज भारत में सभी व्यावसायिक परमाणु बिजली संयंत्रों का संचालन करता है।

स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता की दिशा में योगदान

डॉ. श्रीनिवासन का मानना था कि भारत को परमाणु प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को प्रोत्साहित किया और अनुसंधान एवं विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उनके नेतृत्व में भारत ने विदेशी निर्भरता को कम करते हुए कई रिएक्टर डिजाइनों का स्वदेशीकरण किया।

परमाणु ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि

डॉ. श्रीनिवासन के योगदान के फलस्वरूप भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। उनके कार्यकाल के अंत तक:

  • 7 परमाणु ऊर्जा इकाइयाँ चालू अवस्था में थीं।
  • 7 इकाइयाँ निर्माणाधीन थीं।
  • 4 इकाइयाँ योजना स्तर पर थीं।

यह प्रगति दर्शाती है कि उन्होंने कितनी दूरदर्शिता के साथ योजनाओं को क्रियान्वित किया और भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ किया।

सम्मान और पुरस्कार

डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए। इनमें भारत सरकार द्वारा दिया गया “पद्म विभूषण” सर्वोच्च है। इसके अलावा विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधियाँ एवं विशेष पुरस्कार दिए गए।

डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन के प्रमुख पुरस्कार और सम्मान निम्नलिखित हैं:

  1. पद्म विभूषण – भारत सरकार द्वारा 2015 में प्रदत्त, यह भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
  2. पद्म भूषण – भारत सरकार द्वारा 1990 में सम्मानित।
  3. पद्म श्री – भारत सरकार द्वारा 1984 में सम्मानित।
  4. कन्नड़ राज्योत्सव पुरस्कार – कर्नाटक राज्य सरकार द्वारा 2017 में प्रदत्त।
  5. एशियाई वैज्ञानिक 100 – एशियन साइंटिस्ट पत्रिका द्वारा 2016 में सूचीबद्ध।
  6. हीरक जयंती पुरस्कार – केंद्रीय सिंचाई एवं विद्युत बोर्ड (CWC) द्वारा प्रदान किया गया।
  7. सर्वश्रेष्ठ डिजाइनर पुरस्कार – इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) द्वारा प्रदान किया गया।
  8. संजय गांधी पुरस्कार – विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए।
  9. ओम प्रकाश भसीन पुरस्कार – विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिए।
  10. होमी भाभा स्वर्ण पदक – भारतीय विज्ञान कांग्रेस द्वारा।
  11. होमी भाभा लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार – भारतीय परमाणु सोसाइटी द्वारा।
  12. प्रतिष्ठित पूर्व छात्र पुरस्कार – विश्वेश्वरैया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बैंगलोर द्वारा।

निजी जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि

डॉ. श्रीनिवासन के परिवार में भी विद्वता की परंपरा रही है। उनकी बेटी शारदा श्रीनिवासन एक प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद हैं और उन्हें भी अनेक अकादमिक सम्मानों से नवाजा गया है। शारदा ने अपने पिता की स्मृति में उन्हें एक प्रेरणादायक वैज्ञानिक, एक आदर्श पिता और राष्ट्रभक्त के रूप में याद किया।

अन्य जिम्मेदारियाँ और संस्थागत योगदान

अपने वैज्ञानिक और प्रशासनिक योगदानों के अतिरिक्त, डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन ने अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभाईं। उनके नेतृत्व और मार्गदर्शन ने भारत की परमाणु नीति, ऊर्जा योजना, उच्च शिक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों को गहराई से प्रभावित किया। उनकी प्रमुख जिम्मेदारियाँ निम्नलिखित थीं:

  • 1990–1992:
    अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA), वियना में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्य किया।
  • 1996–1998:
    भारत सरकार के योजना आयोग के सदस्य रहे। इस दौरान उन्होंने ऊर्जा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभागों की जिम्मेदारी संभाली।
  • 2002–2004 और 2006–2008:
    भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (National Security Advisory Board) के सदस्य के रूप में कार्य किया।
  • 2002–2004:
    कर्नाटक राज्य में उच्च शिक्षा पर टास्क फोर्स के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला, जहाँ उन्होंने राज्य की उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार हेतु कई नीतिगत सुझाव दिए।
  • वे वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूक्लियर ऑपरेटर्स (WANO) के संस्थापक सदस्य भी थे, जो परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा और दक्षता सुनिश्चित करने वाली एक वैश्विक संस्था है।
  • वे इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग और इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) के फेलो रहे।
  • साथ ही, इंडियन न्यूक्लियर सोसाइटी के एमेरिटस फेलो के रूप में भी सम्मानित किए गए।

इन जिम्मेदारियों के माध्यम से डॉ. श्रीनिवासन ने न केवल भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास को दिशा दी, बल्कि शिक्षा, रणनीतिक नीति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्रों में भी अपना अमूल्य योगदान दिया।

“एक युग का अंत: डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन का निधन”

डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन का निधन भारत के वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वे 20 मई 2025 को तमिलनाडु के प्रसिद्ध हिल स्टेशन उदगमंडलम (ऊटी) में अपने निवास स्थान पर 95 वर्ष की आयु में शांतिपूर्वक चले गए। उनका जीवन देश की सेवा में समर्पित रहा, और उनका निधन भारत की परमाणु ऊर्जा यात्रा के एक युग के अंत के रूप में देखा जा रहा है।

उनकी पुत्री, प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद् डॉ. शारदा श्रीनिवासन ने उनके निधन की पुष्टि करते हुए कहा कि उनका जीवन एक मिशन था—भारत को वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाना। उन्होंने अपने पिता को “दूरदर्शी वैज्ञानिक और महान प्रेरणा स्रोत” के रूप में याद किया।

डॉ. श्रीनिवासन का अंतिम संस्कार 21 मई 2025 को तमिलनाडु में परिवार और नजदीकी वैज्ञानिक समुदाय की उपस्थिति में पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ संपन्न हुआ। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, और देश के शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों सहित अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने उनके योगदान को श्रद्धांजलि अर्पित की।

उनका निधन ऐसे समय हुआ है जब भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की दिशा में अग्रसर है। उनके द्वारा रखी गई परमाणु ऊर्जा की आत्मनिर्भर आधारशिला आज भारत की ऊर्जा सुरक्षा की रीढ़ बन चुकी है।

डॉ. श्रीनिवासन की स्मृति में परमाणु ऊर्जा विभाग, भारतीय विज्ञान संस्थान, और कई तकनीकी संस्थानों ने विशेष संगोष्ठियों और स्मृति व्याख्यानों की घोषणा की है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उनके योगदान से प्रेरणा ले सकें।

उनका जाना केवल एक वैज्ञानिक का निधन नहीं, बल्कि एक विचारधारा, एक मिशन और एक दृष्टिकोण की विदाई है, जिसने भारत को विज्ञान के वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करने में मदद की।

उनके निधन पर शोक और श्रद्धांजलि

डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन के निधन पर भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, DAE, BARC, NPCIL, और विश्व भर के वैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों ने गहरा शोक व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि:

“डॉ. श्रीनिवासन का योगदान भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता की आधारशिला है। उनका दूरदर्शी नेतृत्व आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देता रहेगा।”

विरासत

डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन की विरासत केवल उनके द्वारा बनाए गए रिएक्टरों या परियोजनाओं में ही नहीं, बल्कि उस सोच और दृष्टिकोण में भी जीवित है जिसे उन्होंने भारतीय विज्ञान में प्रवाहित किया। उन्होंने भारत को परमाणु विज्ञान में एक आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में जो योगदान दिया, वह आने वाले युगों तक प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने वैज्ञानिक सोच, तकनीकी श्रेष्ठता और राष्ट्र सेवा को एकत्र कर एक ऐसा मार्ग प्रशस्त किया, जिस पर चलकर भारत ने वैश्विक परमाणु शक्ति समूह में अपनी प्रतिष्ठित जगह बनाई।

डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन का जीवन हमें यह सिखाता है कि प्रतिबद्धता, दूरदृष्टि और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कोई भी राष्ट्र सीमाओं से परे जाकर आत्मनिर्भर बन सकता है। भारत उन्हें एक कृतज्ञ राष्ट्र के रूप में सदैव स्मरण करेगा।

उनकी स्मृति में देश के विभिन्न विज्ञान संस्थानों में व्याख्यान, अनुसंधान छात्रवृत्तियाँ और स्मृति व्याख्यानों का आयोजन किया जाना चाहिए, ताकि युवा पीढ़ी उनके आदर्शों को आत्मसात कर सके और भारत को विज्ञान और ऊर्जा के क्षेत्र में और ऊँचाइयों तक पहुँचा सके।

डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन को विनम्र श्रद्धांजलि।

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