नालंदा विश्वविद्यालय न केवल भारत की, बल्कि पूरे विश्व की एक ऐसी अद्वितीय धरोहर है, जिसने शिक्षा, शोध और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के क्षेत्र में हजारों वर्षों तक अपनी अमिट छाप छोड़ी। यह विश्वविद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा, तर्क, दर्शन, और बौद्धिक विमर्श का ऐसा केंद्र था, जहाँ से पूरी दुनिया के छात्र ज्ञान की खोज में आते थे। आधुनिक समय में, जब शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक सहयोग और नवाचार की आवश्यकता महसूस की जा रही है, तब नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर से पुनर्जीवित हो रहा है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: नालंदा का गौरवशाली अतीत
नालंदा विश्वविद्यालय | स्थापना और विकास
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी ईस्वी के मध्य में गुप्त वंश के शक्तिशाली सम्राट कुमारगुप्त प्रथम (लगभग 450 ईस्वी) द्वारा की गई थी। यह विश्वविद्यालय वर्तमान बिहार राज्य के नालंदा ज़िले में स्थित था। नालंदा शब्द संस्कृत के “ना + अलं + दा” से बना है, जिसका अर्थ होता है – “जिसकी ज्ञान देने की प्रवृत्ति कभी रुके नहीं”। वास्तव में, यह नाम इस प्राचीन विश्वविद्यालय के उद्देश्य और कार्यों को पूर्णतः परिभाषित करता है।
उस काल में भारत बौद्ध, ब्राह्मण, जैन और सांख्य जैसे विभिन्न दार्शनिक विचारों का केंद्र था। बौद्ध धर्म के महायान शाखा के प्रभाव के साथ-साथ अन्य परंपराओं ने भी ज्ञान और विमर्श के इस वातावरण को समृद्ध किया। नालंदा विश्वविद्यालय का विकास इसी बौद्धिक पृष्ठभूमि में हुआ, जिसने इसे आने वाले लगभग 800 वर्षों तक एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का शिक्षा केंद्र बनाए रखा।
सम्राट नरसिंहगुप्त बालादित्य ने 470 ईस्वी में विश्वविद्यालय परिसर में एक विशाल और सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया, जिसमें 80 फीट ऊँची भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित की गई थी। उनके पश्चात अन्य गुप्त शासकों और पाल राजाओं ने भी इस विश्वविद्यालय का लगातार संरक्षण और विस्तार किया।
नालंदा विश्वविद्यालय की संरचना और वास्तुशिल्प
नालंदा विश्वविद्यालय का वास्तुशिल्प अत्यंत भव्य और सुव्यवस्थित था। इसके परिसर में कई स्तूप, विहार (आवासीय भवन), मंदिर और बौद्ध शिक्षण केंद्र स्थित थे। आठ विशाल विहार, 300 से अधिक कक्ष, अध्ययनशालाएं, तारण ताल (स्नानघर), पक्की नालियाँ, और पत्थर के शयनयंत्र यहाँ की संरचनाओं का हिस्सा थे। स्नानागारों में नीचे से ऊपर जल पहुंचाने की विशेष व्यवस्था भी थी। इन कलाकृतियों में स्टुको (Stucco), पत्थर, और धातु में निर्मित मूर्तियाँ और सजावटें शामिल थीं।
विशेष रूप से उल्लेखनीय है नालंदा का विशाल पुस्तकालय ‘धर्मगंज’, जो कई मंज़िलों में फैला हुआ था और इसमें लाखों पांडुलिपियाँ संग्रहित थीं। इस पुस्तकालय के तीन मुख्य भाग – रत्नसागर, रत्नोदधी, और रत्नरंजक – में दर्शनशास्त्र, आयुर्वेद, तर्कशास्त्र, व्याकरण, गणित, ज्योतिष, बौद्ध ग्रंथ और अनेक विषयों पर दुर्लभ ग्रंथ संरक्षित थे।
यहाँ की मूर्तिकला भी अद्वितीय थी। परिसर में तांबे और पीतल की बड़ी संख्या में बुद्ध प्रतिमाएं, अलंकरणयुक्त स्तंभ और सुशोभित दीवारें थीं। यहाँ की कलात्मक शैली में गुप्तकालीन कलाओं की झलक के साथ-साथ पाल शैली का भी प्रभाव देखा जा सकता है।
पूरा विश्वविद्यालय एक सुव्यवस्थित शहरी योजना का उदाहरण था। परिसर में वर्गाकार विहार होते थे, जिनके चारों ओर शिक्षकों और छात्रों के लिए कक्ष बने होते थे। इनके मध्य भाग में आमतौर पर एक प्रार्थना कक्ष या मंदिर होता था। नालंदा की वास्तुकला न केवल उसकी बौद्धिक ऊँचाई को दर्शाती थी, बल्कि उसके सांस्कृतिक वैभव का भी परिचायक थी।
नालंदा विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और वैश्विक आकर्षण
नालंदा विश्वविद्यालय की ख्याति केवल भारत तक सीमित नहीं थी। यह विश्वविद्यालय एशिया भर में ज्ञान का केन्द्र बन गया था। चीन, तिब्बत, जावा (इंडोनेशिया), श्रीलंका, कोरिया, चंपा, ब्रह्मदेश (म्यांमार), सुमात्रा और ईरान जैसे देशों से छात्र यहाँ अध्ययन के लिए आते थे।
प्रसिद्ध चीनी विद्वान ह्वेनसांग (Xuanzang) और यीजिंग (Yijing) नालंदा में अध्ययन करने के लिए भारत आए और उन्होंने यहाँ पर 10 वर्षों तक शिक्षा ग्रहण की। ह्वेनसांग ने लिखा कि उनके समय में विश्वविद्यालय में लगभग 8500 छात्र और 1510 शिक्षक थे। उन्होंने नालंदा के अनुशासित वातावरण, गहन अध्ययन, शिक्षकों की विद्वत्ता और कठोर प्रवेश प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन किया है। उनके अनुसार, यहाँ के छात्रों में अनुशासन, समर्पण और विनम्रता अद्भुत थी।
नालंदा विश्वविद्यालय | एक बौद्धिक परंपरा का शिखर
नालंदा न केवल बौद्ध धर्म का केन्द्र था, बल्कि यह एक अंतरविषयक (multi-disciplinary) शिक्षण संस्थान भी था। यह प्राचीन विश्वविद्यालय विविध ज्ञान शाखाओं का संगम था। यहाँ बौद्ध दर्शन के साथ-साथ व्याकरण (शब्दविद्या), तर्कशास्त्र (हेतुविद्या), चिकित्सा, खगोलशास्त्र, गणित और भाषाशास्त्र जैसे विषय पढ़ाए जाते थे।
यहाँ पढ़ाने वाले विद्वानों में शीलभद्र जैसे विद्वान प्रमुख थे, जो उस समय के प्राचार्य थे। ह्वेनसांग के अनुसार, शीलभद्र एकमात्र ऐसे विद्वान थे, जिन्हें विश्वविद्यालय में पढ़ाए जाने वाले सभी विषयों में पारंगत माना गया।
इस प्रकार, नालंदा विश्वविद्यालय अपने गौरवशाली अतीत, विशिष्ट संरचना, उच्च शिक्षा प्रणाली और वैश्विक मान्यता के कारण न केवल भारत, बल्कि समस्त एशिया में विद्या और संस्कृति का प्रतीक बना रहा।
नालंदा विश्वविद्यालय | राजकीय संरक्षण और संरक्षणकर्ताओं की भूमिका
नालंदा विश्वविद्यालय को अपने समय के अनेक शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ। सबसे पहले, 7वीं सदी में कन्नौज के प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन ने इसे संरक्षण और दान प्रदान किया। इसके पश्चात, 8वीं से 12वीं सदी तक पाल वंश के शासकों ने इस विश्वविद्यालय के विकास और संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पाल शासकों ने नालंदा के अतिरिक्त विक्रमशिला और ओदंतपुरी जैसे अन्य बौद्ध शिक्षाकेंद्रों की भी स्थापना की, लेकिन नालंदा की प्रतिष्ठा सबसे अधिक बनी रही। यह संरक्षण ही विश्वविद्यालय को 800 वर्षों तक शिक्षा और शोध का केंद्र बनाए रखने में सहायक रहा।
नालंदा में अध्ययन का वातावरण और प्रवेश प्रक्रिया
नालंदा में प्रवेश पाना अत्यंत कठिन माना जाता था। कहा जाता है कि यहाँ केवल उन्हीं छात्रों को प्रवेश दिया जाता था जो शास्त्रार्थ या तर्क-वितर्क में पारंगत होते थे। छात्रों की परीक्षा लेने के लिए एक विशेष पद्धति थी, जिसमें मौखिक परीक्षा के माध्यम से यह तय किया जाता था कि छात्र अध्ययन के योग्य है या नहीं।
यहाँ लगभग दस हजार विद्यार्थी और दो हजार शिक्षक रहते थे। शिक्षण पद्धति में बौद्ध दर्शन, व्याकरण, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, गणित, ज्योतिष, वेद, तथा अन्य शास्त्र सम्मिलित थे। पाठ्यक्रम अत्यंत विविध और गहन होते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम और शिक्षण
नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों के साथ-साथ व्याकरण, चिकित्सा, तर्कशास्त्र, गणित, खगोलशास्त्र और दर्शन जैसे विषयों का अध्ययन कराया जाता था। यहाँ के प्रमुख आचार्यों में शीलभद्र, धर्मपाल, चन्द्रपाल, गुणमति, स्थिरमति, प्रभामित्र, जिनमित्र, दिकनाग, ज्ञानचन्द्र, नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग और धर्मकीर्ति शामिल थे।
प्रवेश प्रक्रिया
नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश प्राप्त करना अत्यंत कठिन था। छात्रों को छह चरणों की प्रवेश परीक्षा पास करनी होती थी, जिसमें प्रत्येक चरण पर एक द्वार पंडित द्वारा परीक्षा ली जाती थी। केवल 20 से 30 प्रतिशत छात्र ही इस परीक्षा में सफल हो पाते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय की निःशुल्क शिक्षा और सुविधाएँ
नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा, आवास और भोजन की सभी सुविधाएँ निःशुल्क प्रदान की जाती थीं। इसका व्यय राजाओं और अमीर लोगों द्वारा दिए गए दान से चलता था, जिससे विश्वविद्यालय को 200 ग्रामों की आय प्राप्त होती थी।
विदेशी विद्वानों का आकर्षण और ह्वेनसांग का योगदान
नालंदा न केवल भारतवर्ष, बल्कि चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान, मंगोलिया, श्रीलंका, और दक्षिण-पूर्व एशिया के अनेक देशों से छात्रों को आकर्षित करता था। विश्व प्रसिद्ध चीनी विद्वान ह्वेनसांग (Xuanzang) ने 7वीं सदी में (637 से 642 ईस्वी तक) यहाँ अध्ययन किया था। उन्होंने नालंदा में 5 वर्षों तक शिक्षा प्राप्त की और लगभग 675 ग्रंथों का अध्ययन किया।
ह्वेनसांग ने अपने यात्रा-वृत्तांत में नालंदा की विस्तृत प्रशंसा की है। उनके अनुसार, यहाँ का वातावरण अत्यंत अनुशासित, समर्पित और ज्ञानवर्धक था। उनके साथ एक अन्य चीनी विद्वान इत्सिंग (Yijing) भी नालंदा में अध्ययन के लिए आए थे। इन यात्रियों की रचनाएँ आज नालंदा के इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं।
नालंदा का विनाश
लगभग 800 वर्षों तक ज्ञान की यह अखंड ज्योति 12वीं सदी में बुझा दी गई, जब 1193 ईस्वी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय पर आक्रमण कर इसे जला दिया। कहा जाता है कि नालंदा की विशाल पुस्तकालयों में लाखों पांडुलिपियाँ थीं, जो कई महीनों तक जलती रहीं।
यह विनाश भारतीय ज्ञान परंपरा के इतिहास में एक दुखद अध्याय था। इसके साथ ही एक ऐसा केंद्र समाप्त हो गया जहाँ से विज्ञान, तर्क, और आध्यात्मिकता का प्रकाश पूरी दुनिया में फैलाया गया था।
नालंदा की पुनः खोज और पुरातात्विक उत्खनन | पुनरुद्धार
नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों की पहली पहचान सर फ्रांसिस बुकानन ने 19वीं सदी के आरंभ में की थी। इसके बाद, भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान, अलेक्जेंडर कनिंघम के नेतृत्व में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसके व्यवस्थित उत्खनन की प्रक्रिया शुरू की गई।
इस उत्खनन में विश्वविद्यालय के कई विहार, स्तूप, मंदिर, मूर्तियाँ, और पांडुलिपियाँ प्राप्त हुईं, जिनसे इसकी प्राचीनता और समृद्धि का प्रमाण मिलता है। 1915 से 1937 के बीच किए गए उत्खनन में कुल 11 विहार और 6 मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए। नालंदा संग्रहालय में आज भी अनेक मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ सुरक्षित हैं।
आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय | आधुनिक पुनरुत्थान
21वीं सदी में नालंदा विश्वविद्यालय को एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय सहयोग से पुनर्जीवित किया गया। 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया – “नालंदा की पुनर्स्थापना”।
इसके बाद भारत सरकार ने 2010 में “नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम” पारित किया और विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य नालंदा की उसी बौद्धिक परंपरा को आधुनिक संदर्भों में पुनर्जीवित करना है।
इस नए नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना बिहार के राजगीर के पास की गई। यह विश्वविद्यालय अब एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान है, जो पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) के 18 देशों के सहयोग से संचालित होता है। इसमें अंतरराष्ट्रीय सहयोग के अंतर्गत सिंगापुर, चीन, जापान, थाईलैंड जैसे देशों की भागीदारी है। 2014 में इसका शैक्षणिक सत्र प्रारंभ हुआ।
प्रधानमंत्री द्वारा नए परिसर का उद्घाटन
19 जून 2024 को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नवीन परिसर का उद्घाटन किया। इस अवसर पर आसियान (ASEAN) के सभी 10 सदस्य देशों के राजदूत और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। यह उद्घाटन भारत की सांस्कृतिक कूटनीति और शिक्षा को वैश्विक मंच पर पुनः प्रतिष्ठित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक क्षण था।
नालंदा विश्वविद्यालय का नवीनतम विकास | वास्तुकला एवं पर्यावरणीय दृष्टिकोण
जून 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नए ‘नेट-ज़ीरो’ ग्रीन कैंपस का उद्घाटन किया, जो प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहरों के पास स्थित है। यह परिसर पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सतत विकास के सिद्धांतों पर आधारित है।
नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर 485 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी डिज़ाइन एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के माध्यम से चुनी गई, जिसमें प्रित्जकर पुरस्कार विजेता वास्तुकार बी. वी. दोषी की संस्था ‘वास्तु शिल्पा कंसल्टेंट्स’ विजयी रही। यह भारत का पहला ‘नेट ज़ीरो’ परिसर है, जिसका अर्थ है कि यहाँ ऊर्जा, जल और कचरा प्रबंधन में शून्य पर्यावरणीय प्रभाव होता है। परिसर में सौर ऊर्जा का प्रयोग, बायोगैस उत्पादन, वर्षा जल संचयन, पुनर्चक्रण आदि टिकाऊ रणनीतियाँ अपनाई गई हैं।
प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो. सचिन चतुर्वेदी की नियुक्ति | नालंदा के नए कुलपति
मई 2025 में प्रख्यात अर्थशास्त्री और नीति विशेषज्ञ प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति (Vice-Chancellor) के रूप में पदभार ग्रहण किया। उन्होंने ‘Research and Information System for Developing Countries (RIS)’ के महानिदेशक के रूप में भी कार्य किया है और विकासशील देशों के लिए नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी नियुक्ति से विश्वविद्यालय में वैश्विक संवाद और समावेशी शिक्षा की नई दिशा की उम्मीद की जा रही है।
प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी भारतीय विदेश नीति, विकासशील अर्थशास्त्र, वैश्विक संस्थाओं और नीति-निर्माण के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त विद्वान हैं। उनके नेतृत्व में विश्वविद्यालय से यह अपेक्षा की जा रही है कि वह अकादमिक गुणवत्ता, शोध की गहराई, और वैश्विक बौद्धिक विमर्श में अपनी नई भूमिका को निभाएगा। विश्वविद्यालय में अंतरविषयी शिक्षा, वैश्विक सहयोग, और भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणाली को आधुनिक संदर्भों में प्रस्तुत करने की दिशा में नए आयाम जुड़ने की संभावना है।
आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय | प्रशासनिक संरचना
नालंदा विश्वविद्यालय का विज़िटर भारत का राष्ट्रपति होता है। वर्तमान में प्रो. अरविंद पनगढ़िया इसके कुलाधिपति और संचालन मंडल के अध्यक्ष हैं। प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी इसके कुलपति हैं, जिन्होंने मई 2025 में नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति (Vice-Chancellor) के रूप में पदभार ग्रहण किया। संचालन मंडल में सदस्य देशों के प्रतिनिधि, बिहार सरकार के दो प्रतिनिधि, मानव संसाधन मंत्रालय का एक प्रतिनिधि तथा तीन प्रख्यात शिक्षाविद शामिल हैं। विश्वविद्यालय के पहले कुलाधिपति नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. अमर्त्य सेन थे, जिनके बाद सिंगापुर के विदेश मंत्री जॉर्ज यो ने यह पद संभाला। हालाँकि दोनों ने बाद में स्वायत्तता में हस्तक्षेप के कारण पद से इस्तीफा दे दिया।
आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय | शैक्षणिक कार्यक्रम
आज नालंदा विश्वविद्यालय में विभिन्न स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट कार्यक्रम संचालित होते हैं, जिनमें बौद्ध अध्ययन, भारतीय दर्शन, आयुर्वेद, गणित, खगोलशास्त्र, पर्यावरण अध्ययन, भाषा और साहित्य शामिल हैं। यह विश्वविद्यालय एक आवासीय विश्वविद्यालय है, जो छात्रों को एक समृद्ध शैक्षणिक वातावरण प्रदान करता है।
अकादमिक ढाँचा
नालंदा विश्वविद्यालय एक स्नातकोत्तर (Postgraduate) शोध संस्थान है, जो केवल मास्टर्स और पीएच.डी. डिग्रियाँ प्रदान करता है। वर्तमान में निम्नलिखित पांच स्कूल क्रियाशील हैं:
- ऐतिहासिक अध्ययन संकाय (School of Historical Studies – SHS)
- पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी अध्ययन संकाय (School of Ecology and Environmental Studies – SEES)
- बौद्ध अध्ययन, दर्शन और तुलनात्मक धर्म संकाय (School of Buddhist Studies, Philosophy and Comparative Religion – SBS, SPCR)
- भाषा, साहित्य एवं मानविकी संकाय (School of Languages and Literature/Humanities – SLLH)
- प्रबंधन अध्ययन संकाय (School of Management Studies – SMS)
इसके अतिरिक्त भविष्य में निम्न संकाय शुरू किए जाने की योजना है:
- अंतरराष्ट्रीय संबंध और शांति अध्ययन संकाय
- सूचना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संकाय
- सार्वजनिक नीति और विकास अध्ययन संकाय
विशेष केन्द्र एवं कार्यक्रम
विश्वविद्यालय में तीन प्रमुख केन्द्र कार्यरत हैं:
- बंगाल की खाड़ी केंद्र (Centre for Bay of Bengal)
- संघर्ष समाधान एवं शांति निर्माण केंद्र (Centre for Conflict Resolution and Peace Building)
- सामान्य अभिलेखीय संसाधन केंद्र (Common Archival Resource Centre)
भाषा एवं साहित्य संकाय ने वर्ष 2018 में पाली, संस्कृत, तिब्बती, कोरियाई और अंग्रेज़ी में एक वर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा कार्यक्रम आरंभ किए थे। मास्टर्स एवं डॉक्टोरल कार्यक्रम 2021 में आरंभ हुए। भविष्य में अन्य भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में भी पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे।
अंतरराष्ट्रीय साझेदारियाँ
नालंदा विश्वविद्यालय ने वैश्विक शिक्षण संस्थानों के साथ कई समझौते (MoUs) किए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- बीजिंग विश्वविद्यालय (Peking University)
- ओस्ट्रावा विश्वविद्यालय (University of Ostrava)
- डोंगगुक विश्वविद्यालय (Dongguk University)
- डीकिन विश्वविद्यालय (Deakin University)
- ओटानी विश्वविद्यालय (Otani University)
- कनाज़ावा विश्वविद्यालय (Kanazawa University)
- द सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क
- चुलालोंगकोर्न विश्वविद्यालय (Chulalongkorn University)
- आईसीडब्ल्यूए (ICWA), आईसीसीआर (ICCR), आईआईएएस (IIAS) आदि।
इन साझेदारियों का उद्देश्य ज्ञान, संस्कृति और शोध के अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है।
सामाजिक सरोकार और ग्रामीण जुड़ाव
नालंदा विश्वविद्यालय के आस-पास स्थित लगभग 200 गाँवों को इससे जोड़ा गया है, जिससे ग्रामीणों को भी शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक गतिविधियों में लाभ मिल सके। यह पहल प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की परंपरा को पुनः जीवंत करती है, जहाँ आस-पास के गाँव शिक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग हुआ करते थे।
विद्यार्थियों की संख्या और विविधता
शैक्षणिक वर्ष 2022-23 में विश्वविद्यालय में कुल 822 छात्र नामांकित थे। वर्ष 2023-24 में यह संख्या बढ़कर 1038 हो गई, जिनमें से 187 अंतरराष्ट्रीय छात्र हैं। ये छात्र मास्टर्स, ग्लोबल पीएचडी एवं शॉर्ट टर्म प्रोग्राम्स में अध्ययनरत हैं। छात्र भारत सहित दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, यूरोप और अमेरिका से आते हैं।
नालंदा की अंतरराष्ट्रीय मान्यता और यूनेस्को की घोषणा
नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों को 15 जुलाई सन् 2016 में यूनेस्को (UNESCO) द्वारा विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) घोषित किया गया। यह निर्णय 40वीं विश्व धरोहर समिति की बैठक में लिया गया, जिसमें नालंदा को सांस्कृतिक मानदंड (iv) और (vi) के आधार पर सूचीबद्ध किया गया। यह भारत का दूसरा यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, जो बिहार में स्थित है।
यह घोषणा न केवल भारत के लिए गौरव की बात है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक भी है कि नालंदा की बौद्धिक विरासत आज भी विश्व के लिए महत्त्वपूर्ण है।
नालंदा विश्वविद्यालय की विशेष उपलब्धियाँ
- बिहार का पहला प्लास्टिक मुक्त परिसर: विश्वविद्यालय ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहल करते हुए परिसर को प्लास्टिक मुक्त घोषित किया है।
- ग्लास बोतलों का प्रयोग: पेयजल अब प्लास्टिक बोतलों के स्थान पर कांच की बोतलों में दिया जाता है।
- बायोगैस उत्पादन: परिसर में अपशिष्ट से बायोगैस उत्पन्न करने की व्यवस्था की गई है।
नालंदा विश्वविद्यालय (राजगीर) से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
विवरण | जानकारी |
---|---|
पूरा नाम | नालंदा विश्वविद्यालय, राजगीर |
हिंदी नाम | नालंदा विश्वविद्यालय |
कैम्पस दृश्य | राजगीर में संध्या बेला में परिसर |
संस्थापक | विदेश मंत्रालय, भारत सरकार |
स्थापना तिथि | 25 नवम्बर 2010 (14 वर्ष पूर्व) |
जिसके नाम पर रखा गया | नालंदा महाविहार |
पूर्व नाम | नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय |
वास्तुकला शैली | वास्तुशास्त्र |
स्थिति / दर्जा | अनुसंधान विश्वविद्यालय, अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, केंद्रीय विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय महत्व का संस्थान (INI) |
मूल्य/मंत्र | आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद 1.89.1) |
मंत्र का हिन्दी अर्थ | हमारे पास सभी दिशाओं से श्रेष्ठ विचार आएं |
कुलाधिपति (चांसलर) | अरविंद पनगड़िया |
कुलपति (Vice-Chancellor) | प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी |
स्नातक छात्र | नहीं (केवल स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम) |
स्नातकोत्तर छात्र | 1,038 छात्र |
निधि/एंडोवमेंट | 210 मिलियन अमेरिकी डॉलर |
पर्यवेक्षक (विज़िटर) | भारत के राष्ट्रपति |
संबद्धता | NAAC, UGC, Ministry of External Affairs India (भारत सरकार का विदेश मंत्रालय) |
आधिकारिक वेबसाइट | nalandauniv.edu.in |
नालंदा – अतीत से भविष्य की ओर
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास हमें यह सिखाता है कि शिक्षा केवल रोजगार का माध्यम नहीं है, बल्कि यह मानवता के समग्र विकास, आत्मिक उन्नति और वैश्विक शांति का साधन है। नालंदा का अतीत अत्यंत गौरवशाली रहा है, और उसका पुनर्जागरण आधुनिक भारत के लिए एक चुनौती के साथ-साथ एक अवसर भी है।
नालंदा विश्वविद्यालय भारत की बौद्धिक विरासत का पुनरुत्थान है। यह केवल एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का केंद्र है, जो भारत के साथ-साथ सम्पूर्ण एशिया को एक साझा बौद्धिक मंच प्रदान करता है। आधुनिकता और परंपरा के समन्वय से सुसज्जित यह विश्वविद्यालय भविष्य के लिए न केवल शैक्षिक नेतृत्व का आदर्श प्रस्तुत करता है, बल्कि वैश्विक समरसता, पर्यावरणीय संवेदनशीलता और सांस्कृतिक संवाद का प्रतीक भी बनता जा रहा है।
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास शिक्षा, बौद्धिकता और सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक है। प्राचीन काल में यह विश्वविद्यालय एशिया का प्रमुख शिक्षा केंद्र था, और आज, आधुनिक युग में, यह वैश्विक शिक्षा और संवाद का केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी जैसे विद्वान के नेतृत्व में, नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर से विश्व मंच पर अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करने की दिशा में अग्रसर है।
“नालंदा विश्वविद्यालय एक विचार नहीं, एक जीवंत परंपरा है – जो अतीत की रोशनी में भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रही है।”
Student Zone – KnowledgeSthali
इन्हें भी देखें-
- यूनेस्को द्वारा घोषित 16 नए वैश्विक जियोपार्क्स (भू-पार्क)
- अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस 2025 | बदलते दौर में परिवारों की भूमिका और महत्व
- GDP (Gross Domestic Product) | अर्थव्यवस्था का आईना
- अमेरिका-सऊदी अरब $142 बिलियन का रक्षा समझौता 2025
- डसॉल्ट राफेल | आधुनिक युद्धक विमान की पराकाष्ठा
- अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता एवं नामांकन सूची | 2005–2025
- बानु मुश्ताक | अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका
- प्रोस्टेट कैंसर | लक्षण, जांच, उपचार और जो बाइडेन के मामले से जुड़ी जागरूकता की आवश्यकता
- 2025 में तेल और गैस भंडार के आधार पर विश्व के शीर्ष 10 देश
- शिरुई लिली महोत्सव | मणिपुर की सांस्कृतिक और पारिस्थितिक विरासत का अद्वितीय उत्सव