एशियाई शेर जनगणना 2025 | गिर के गर्जन की वापसी

भारत के गर्व, एशियाई शेर (Panthera leo persica) की हालिया जनगणना, “एशियाई शेर जनगणना 2025”, भारत की वन्यजीव संरक्षण यात्रा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव सिद्ध हुई है। इस जनगणना के निष्कर्षों के अनुसार गुजरात के गिर वन और आसपास के क्षेत्रों में एशियाई शेरों की आबादी 891 तक पहुँच गई है, जो कि 2020 में दर्ज 674 शेरों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाती है। यह न केवल भारत के जैव विविधता संरक्षण प्रयासों की सफलता का प्रतीक है, बल्कि यह भी प्रमाणित करता है कि अगर वैज्ञानिक रणनीति, प्रशासनिक संकल्प और स्थानीय सहभागिता साथ हो, तो विलुप्ति की ओर बढ़ते किसी भी प्रजाति को पुनर्जीवित किया जा सकता है।

एशियाई शेर: एक ऐतिहासिक दृष्टि

एशियाई शेर कभी भारत के पूर्व से लेकर पश्चिम एशिया तक फैले हुए थे। उनके ऐतिहासिक आवास में पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, और यहां तक कि ईरान और इराक भी शामिल थे। लेकिन बीसवीं शताब्दी की शुरुआत तक अत्यधिक शिकार, आवास हानि और मानवीय गतिविधियों के चलते उनकी आबादी केवल गिर के जंगलों तक सीमित रह गई।

वैज्ञानिक नाम: Panthera leo persica

आवासीय क्षेत्र (वर्तमान): गिर राष्ट्रीय उद्यान और सौराष्ट्र क्षेत्र, गुजरात

संरक्षण स्थिति:

  • IUCN रेड लिस्ट: वल्नरेबल (हाल ही में एंडेंजर्ड से वल्नरेबल में पुनर्वर्गीकृत)
  • CITES: परिशिष्ट-I
  • भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची-I

जनगणना 2025: मुख्य तथ्य

गणना का संस्करण:

यह 16वीं बार एशियाई शेरों की जनगणना की गई है। इससे पूर्व 2020 में यह गणना हुई थी।

वर्तमान अनुमानित संख्या:

2025 में एशियाई शेरों की अनुमानित संख्या 891 दर्ज की गई है।

वृद्धि का कारण:

  • बेहतर संरक्षण रणनीतियाँ
  • वैज्ञानिक निगरानी प्रणाली
  • वन्यजीव प्रबंधन में सुधार
  • स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी

गणना में प्रयोग की गई आधुनिक तकनीकें

एशियाई शेर जनगणना 2025 के लिए उन्नत और वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया गया:

  1. डायरेक्ट बीट वेरिफिकेशन (Direct Beat Verification):
    यह एक उच्च सटीकता वाली पद्धति है जिसमें फील्ड स्तर पर गहन निगरानी की जाती है।
  2. कैमरा ट्रैप्स और हाई–रेज़ोल्यूशन कैमरे:
    शेरों की गतिविधियों को रिकॉर्ड करने हेतु इनका उपयोग किया गया।
  3. GPS रेडियो कॉलर:
    शेरों की आवाजाही और व्यवहार को ट्रैक करने के लिए आधुनिक रेडियो कॉलर लगाए गए।

एशियाई शेरों की जैविक विशेषताएँ

विशेषताविवरण
वजन (नर)160–190 किलोग्राम
वजन (मादा)110–120 किलोग्राम
ऊँचाई (कंधे तक)लगभग 110 सेंटीमीटर
लंबाई (पूंछ सहित)लगभग 2.7 से 3.2 मीटर
रंगरेतीला से लेकर बफ-ग्रे, हल्की चांदी जैसी चमक
अयालअफ्रीकी शेरों की तुलना में कम घना
पहचानपेट के नीचे स्पष्ट त्वचा की झिल्ली (belly fold)
सामाजिक संरचनाछोटे प्राइड्स, जटिलता में अफ्रीकी शेरों से कम

संरक्षण प्रयास: अतीत से वर्तमान तक

1. प्रोजेक्ट लायन (2020)

भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया यह प्रमुख कार्यक्रम भारतीय शेरों की सुरक्षा के लिए समर्पित है। इसके मुख्य घटक हैं:

  • आवास सुधार: गिर से बाहर नए सुरक्षित क्षेत्रों की पहचान
  • स्वास्थ्य सुविधाएँ: पशु चिकित्सा केंद्रों की स्थापना
  • रेडियो कॉलर और निगरानी प्रणाली: शेरों की गतिविधियों पर सतत नजर
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष में कमी: स्थानीय समुदायों को जागरूक कर रोकथाम

2. इंटरनेशनल बिग कैट्स एलायंस (2023)

भारत की पहल पर स्थापित इस अंतरराष्ट्रीय गठबंधन का उद्देश्य है:

  • शेर, बाघ, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, चीता, जैगुआर आदि बड़ी बिल्ली प्रजातियों का वैश्विक संरक्षण
  • 97 देशों का सहयोग
  • वन्यजीव तस्करी पर लगाम, अनुसंधान और नीति समन्वय को बढ़ावा

नई चुनौतियाँ और संभावनाएँ

हालांकि शेरों की संख्या में वृद्धि उत्साहजनक है, लेकिन कुछ चिंताएँ भी उभर कर सामने आई हैं:

1. मानव–वन्यजीव संघर्ष

जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 57% शेर संरक्षित वन क्षेत्रों से बाहर पाए गए हैं। यह स्थिति शेरों और स्थानीय ग्रामीण आबादी के बीच संघर्ष की संभावना को बढ़ा देती है।

  • मवेशियों पर हमले
  • शेरों की सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु
  • ग्रामीणों की प्रतिहिंसात्मक कार्रवाइयाँ

2. स्थानिक आबादी का खतरा

गिर में पूरी शेर आबादी केंद्रित होने के कारण, किसी भी संक्रामक रोग या प्राकृतिक आपदा से पूरी प्रजाति खतरे में आ सकती है। अतः नए संरक्षण स्थलों की स्थापना और शेरों का पुनर्स्थापन अत्यंत आवश्यक है।

समाधान की दिशा में कदम

  1. विकेन्द्रित आबादी:
    केवल गिर पर निर्भर न रहकर मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में भी एशियाई शेरों को बसाने की योजना।
  2. जागरूकता कार्यक्रम:
    ग्रामीणों को शेरों के महत्व और उनके साथ सह-अस्तित्व के लिए प्रशिक्षण।
  3. प्रौद्योगिकी का अधिक उपयोग:
    AI आधारित ट्रैकिंग, ड्रोन निगरानी, जियो-फेंसिंग तकनीकों की शुरुआत।
  4. पारिस्थितिक पर्यटन को बढ़ावा:
    स्थानीय आजीविका को जोड़ते हुए शेर संरक्षण को जनांदोलन बनाना।

एशियाई शेरों की संख्या में हुई यह उल्लेखनीय वृद्धि एक प्रतीक है – उस आशा का, कि यदि इच्छा और संसाधनों का सही समन्वय हो, तो प्रकृति पुनर्जीवित हो सकती है। गिर के जंगलों की गूंज अब और बुलंद हो चुकी है। लेकिन यह गूंज तब तक स्थायी नहीं बन सकती जब तक हम इसे व्यापक दृष्टिकोण से सुरक्षित नहीं करते।

शेर सिर्फ जंगल का राजा नहीं है, वह भारत की सांस्कृतिक, पारिस्थितिक और ऐतिहासिक पहचान का प्रतीक भी है।

इसलिए, अब समय है एक व्यापक और सतत रणनीति अपनाने का, ताकि भविष्य की पीढ़ियाँ भी गिर के जंगलों में शेरों की गर्जना सुन सकें – और गर्व से कह सकें, “यह भारत का जंगल है, यहाँ एशियाई शेर राज करता है।”

Geography – KnowledgeSthali
Current Affairs – KnowledgeSthali


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