लिथियम | ऊर्जा की दुनिया का श्वेत सोना और उसका भू-रासायनिक रहस्य

आज की आधुनिक दुनिया तेजी से स्वच्छ ऊर्जा की ओर अग्रसर हो रही है, और इस ऊर्जा क्रांति में यदि कोई तत्व सबसे आगे खड़ा है, तो वह है लिथियम (Lithium)। इसे “व्हाइट गोल्ड” यानी “श्वेत सोना” कहा जाता है, क्योंकि इसकी मांग नवीकरणीय ऊर्जा, खासकर इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) और ऊर्जा भंडारण प्रणालियों में लगातार बढ़ती जा रही है। हाल ही में ड्यूक विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन ने लिथियम के सबसे बड़े स्रोतों में से एक – बोलीविया के सालार दे उयूनी (Salar de Uyuni) – में पाए जाने वाले खारे जल (brines) की अनूठी भू-रासायनिक प्रकृति को उजागर किया है। यह अध्ययन Science Advances नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ और इसने यह दिखाया कि लिथियम ब्राइन का रासायनिक स्वरूप समुद्र के जल से कैसे भिन्न है।

इस लेख में हम लिथियम के वैज्ञानिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं के साथ-साथ ड्यूक विश्वविद्यालय के इस नवीनतम अध्ययन के प्रमुख निष्कर्षों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

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लिथियम: तत्व के रूप में परिचय

लिथियम (Li) आवर्त सारणी में एक अल्कली धातु के रूप में वर्गीकृत है, जिसकी परमाणु संख्या 3 होती है। यह हल्का, सिल्वर–व्हाइट रंग का रासायनिक तत्व है और इसकी घनता सभी धातुओं में सबसे कम होती है। इसके कुछ प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं:

  • यह पानी के साथ तीव्र प्रतिक्रिया करता है, जिससे हाइड्रोजन गैस और क्षारीय हाइड्रॉक्साइड बनता है।
  • यह अति-सक्रिय धातु है, इसलिए इसे तेल या पैराफिन में संग्रहित किया जाता है।
  • यह एलॉय बनाने में सक्षम है, विशेषकर एल्युमिनियम और मैग्नीशियम के साथ, जिससे हल्के लेकिन मजबूत मिश्र धातु बनती हैं।

लिथियम की यह विशेषताएँ इसे एयरोस्पेस उद्योग, स्मार्टफोन बैटरियों, इलेक्ट्रिक वाहनों, और ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के लिए अनिवार्य बनाती हैं।

लिथियम का वैश्विक महत्व: व्हाइट गोल्ड क्यों?

21वीं सदी में लिथियम को “व्हाइट गोल्ड” कहा जाने का कारण इसकी ऊर्जा क्रांति में भूमिका है। विशेषकर निम्न क्षेत्रों में इसकी मांग तेजी से बढ़ी है:

क. इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बैटरियां:

लिथियम-आयन बैटरियां अधिक ऊर्जा घनता, लंबा जीवनकाल और तेजी से चार्जिंग की सुविधा प्रदान करती हैं, जिससे EVs की दक्षता बढ़ती है।

ख. नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण:

सौर और पवन ऊर्जा जैसी अस्थिर स्रोतों की ऊर्जा को भंडारित करने के लिए लिथियम-आधारित बैटरियों की आवश्यकता होती है।

ग. इलेक्ट्रॉनिक उपकरण:

मोबाइल, लैपटॉप, स्मार्टवॉच और अन्य डिवाइसेज़ में लिथियम-आधारित बैटरियां प्रयोग की जाती हैं।

घ. भविष्य की ऊर्जा रणनीतियाँ:

जैसे-जैसे देश कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए प्रतिबद्ध हो रहे हैं, लिथियम रणनीतिक खनिज बनता जा रहा है।

लिथियम के स्रोत: खनिज और ब्राइन

लिथियम मुख्यतः दो प्रकार के स्रोतों से प्राप्त किया जाता है:

क. हार्ड रॉक खनिज (Spodumene):

ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में लिथियम मुख्यतः कठोर चट्टानों से निकाला जाता है, विशेषकर स्पोड्यूमीन नामक खनिज से।

ख. सालार्स (Salars) या नमक मैदानों से खारे जल (Brines):

दक्षिण अमेरिका में बोलीविया, अर्जेंटीना और चिली के लिथियम त्रिकोण (Lithium Triangle) में नमक मैदानों में लिथियम-समृद्ध ब्राइन पाए जाते हैं।

इनमें से सालार्स से प्राप्त ब्राइन में लिथियम निकालने की प्रक्रिया अधिक पर्यावरण-संवेदनशील होती है और उसमें रासायनिक प्रक्रियाएं अहम भूमिका निभाती हैं।

सालार दे उयूनी: लिथियम का खजाना

सालार दे उयूनी, बोलीविया में स्थित है और यह:

  • विश्व का सबसे बड़ा नमक मैदान है।
  • दुनिया का सबसे विशाल लिथियम ब्राइन भंडार भी है।
  • समुद्र तल से लगभग 3656 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एक शुष्क उच्च क्षेत्र है।

यह क्षेत्र वैज्ञानिकों, सरकारों और खनन कंपनियों के लिए विशेष रुचि का विषय रहा है।

ड्यूक विश्वविद्यालय का अध्ययन: वैज्ञानिक रहस्योद्घाटन

ड्यूक विश्वविद्यालय द्वारा Science Advances में प्रकाशित अध्ययन ने सालार दे उयूनी के लिथियम ब्राइन में पाए गए भू-रासायनिक गुणों का गहन विश्लेषण किया। अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:

क. pH नियंत्रण में बोरॉन की भूमिका

  • समुद्री जल में pH का नियंत्रण मुख्यतः कार्बोनेट अणुओं द्वारा होता है।
  • परन्तु सालार्स के ब्राइन में pH बोरॉन यौगिकों द्वारा नियंत्रित होता है — मुख्यतः बोरिक एसिड और बोरेट्स द्वारा।
  • यह एक अभूतपूर्व खोज है, क्योंकि इससे यह स्पष्ट होता है कि सालार ब्राइन की रासायनिक गतिशीलता पूरी तरह अलग है।

ख. वाष्पीकरण के प्रभाव

खनन तालाबों में ब्राइन के वाष्पीकरण के दौरान:

  • बोरॉन की सांद्रता में वृद्धि होती है।
  • बोरिक एसिड टूटता है, जिससे हाइड्रोजन आयन (H⁺) उत्पन्न होते हैं।
  • इससे pH तेजी से घटता है और ब्राइन अत्यधिक अम्लीय बन जाती है।

यह अम्लीयता ब्राइन से लिथियम निकालने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है और इसके पर्यावरणीय प्रभावों को भी बदल सकती है।

यह अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है?

क. परिशुद्ध लिथियम निष्कर्षण तकनीकों के विकास के लिए मार्गदर्शक

यदि लिथियम के निष्कर्षण में रासायनिक वातावरण को बेहतर समझा जाए, तो अधिक कुशल और पर्यावरण-अनुकूल प्रक्रियाएँ विकसित की जा सकती हैं।

ख. भविष्य की पर्यावरणीय रणनीतियों के लिए आवश्यक

ब्राइन के अम्लीकरण की जानकारी खनन कंपनियों को जल संरक्षण, भूमिगत जल की रक्षा, और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के उपाय करने में मदद कर सकती है।

ग. नीति निर्धारण में योगदान

यह अध्ययन नीति निर्माताओं को बेहतर जानकारी देता है कि किस प्रकार लिथियम खनन को सतत (sustainable) बनाया जा सकता है।

भारत और लिथियम: एक उभरती रणनीति

भारत में लिथियम भंडार अभी सीमित हैं, लेकिन हाल ही में:

  • जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में 5.9 मिलियन टन लिथियम के संभावित भंडार की खोज ने आशा जगाई है।
  • भारत अर्जेंटीना, चिली, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ समझौते कर रहा है ताकि वह लिथियम आपूर्ति श्रृंखला को सुरक्षित कर सके।
  • अशोक लेलैंड, टाटा मोटर्स, और रिलायंस जैसी कंपनियाँ EV क्षेत्र में निवेश कर रही हैं, जिससे लिथियम की मांग और रणनीतिक महत्त्व बढ़ा है।

लिथियम निष्कर्षण: पर्यावरणीय चिंताएँ

हालाँकि लिथियम ऊर्जा संक्रमण का नायक है, लेकिन इसके खनन और निष्कर्षण से जुड़ी पर्यावरणीय समस्याएँ निम्नलिखित हैं:

  • अत्यधिक जल उपयोग, विशेषकर शुष्क क्षेत्रों में।
  • भूमिगत जल का प्रदूषण।
  • स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान।
  • स्थानीय जनजातीय समुदायों पर प्रभाव।

इसीलिए अध्ययन जैसे कि ड्यूक विश्वविद्यालय का यह शोध आवश्यक है, ताकि हम संतुलित विकास की दिशा में आगे बढ़ सकें।

लिथियम एक ऐसा खनिज बन चुका है, जिसकी आवश्यकता वैश्विक ऊर्जा भविष्य की रीढ़ है। लेकिन इसके पीछे छिपे भू-रासायनिक, पारिस्थितिकीय और सामाजिक तंत्र को समझना अनिवार्य है। ड्यूक विश्वविद्यालय द्वारा किया गया अध्ययन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयास है। इससे यह सिद्ध होता है कि लिथियम निष्कर्षण केवल एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक जटिल भू-रासायनिक संतुलन है, जिसे समझे बिना सतत विकास असंभव है।

भविष्य की ऊर्जा रणनीति बनाते समय हमें लिथियम जैसे संसाधनों की संवेदनशीलता, पर्यावरणीय प्रभाव, और स्थानीय समुदायों की भलाई को ध्यान में रखना होगा। तभी हम इसे सच्चे अर्थों में “व्हाइट गोल्ड” कह सकेंगे – न केवल आर्थिक दृष्टि से, बल्कि नैतिक और पारिस्थितिक दृष्टिकोण से भी।

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