यह लेख हिंदी साहित्य के भक्ति काल की रामाश्रयी शाखा या राम भक्ति काव्य धारा का एक व्यापक और गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसमें उन कवियों और रचनाओं का विस्तृत वर्णन है जिन्होंने भगवान श्रीराम को ईश्वर के अवतार रूप में स्वीकार कर अपनी समस्त काव्य साधना उन्हीं को समर्पित कर दी। इस धारा के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं, जिनकी रामचरितमानस ने भारतीय जनमानस को गहराई तक प्रभावित किया। लेख में तुलसीदास के जीवन, व्यक्तित्व, गुरु, पारिवारिक पृष्ठभूमि, प्रमुख रचनाओं (जैसे – विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली, बरवै रामायण आदि) के साथ-साथ उनके युगीन प्रभाव का भी विवेचन किया गया है।
इसके अतिरिक्त, रामानंद, अग्रदास, नाभादास, ईश्वरदास, केशवदास और नरहरिदास जैसे अन्य प्रमुख राम भक्त कवियों की रचनाओं और योगदान पर भी प्रकाश डाला गया है। राम भक्ति से संबंधित विभिन्न सम्प्रदायों जैसे श्री सम्प्रदाय, ब्रह्म सम्प्रदाय और रामावत सम्प्रदाय की विचारधारा और उनकी भूमिका का भी विवेचन है।
लेख में राम भक्ति काव्य की विशेषताओं जैसे दास्य भाव, लोक मंगल की भावना, समन्वयवाद, मर्यादा और आदर्श की प्रतिष्ठा, अवधी और ब्रज जैसी भाषाओं की उपयोगिता और दर्शन के प्रतीकों की चर्चा भी विस्तार से की गई है। यह लेख शोधार्थियों, प्रतियोगी परीक्षार्थियों, शिक्षकों तथा हिंदी साहित्य के सुधी पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी सामग्री प्रदान करता है।
प्रस्तावना
हिंदी साहित्य के भक्ति काल को सामान्यतः दो प्रमुख शाखाओं में विभाजित किया जाता है – निर्गुण भक्ति धारा और सगुण भक्ति धारा। सगुण भक्ति के अंतर्गत भगवान को मूर्त रूप में पूजनीय माना गया है और इसकी भी दो प्रमुख धाराएँ हैं – कृष्ण भक्ति शाखा तथा राम भक्ति शाखा। राम भक्ति काव्य धारा को ‘रामाश्रयी शाखा’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसके अंतर्गत कवियों ने राम को भगवान विष्णु का अवतार मानकर अपनी काव्य साधना की।
यह लेख राम भक्ति काव्य धारा के उद्भव, विकास, प्रमुख कवियों, उनकी रचनाओं, रामभक्ति से संबंधित सम्प्रदायों और इस काव्य धारा की विशेषताओं का विस्तारपूर्वक अध्ययन प्रस्तुत करता है।
राम भक्ति काव्य धारा (रामाश्रयी शाखा) का परिचय
राम भक्ति काव्य धारा में उन भक्त कवियों को सम्मिलित किया जाता है जिन्होंने भगवान राम को ईश्वर के रूप में स्वीकार कर, उन्हें अपने जीवन और काव्य का केंद्र बनाया। इन कवियों ने वाल्मीकि रामायण तथा पुराणों में वर्णित श्रीराम के आदर्शों को लोक जीवन में प्रतिष्ठित करने का कार्य किया। यह काव्यधारा तुलसीदास के व्यक्तित्व और कृतित्व के प्रभाव में इतनी समृद्ध और विस्तृत हुई कि अन्य रामभक्त कवियों की रचनाएँ तुलसी के प्रभाव से अछूती नहीं रहीं।
प्रमुख राम भक्त कवि – रामानंद, अग्रदास, ईश्वरदास, तुलसीदास, नाभादास, केशवदास, नरहरिदास आदि।
रामभक्ति से संबंधित प्रमुख सम्प्रदाय
- रामावत सम्प्रदाय (रामानंद सम्प्रदाय):
- प्रवर्तक: स्वामी रामानंद
- इन्होंने रामभक्ति को समाज के सभी वर्गों के लिए सुगम और सुलभ बनाया।
- इस सम्प्रदाय की पीठ गलताजी, जयपुर में कृष्णदास पयहारी द्वारा स्थापित की गई।
- एक उपशाखा ‘तपसी शाखा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
- श्री सम्प्रदाय:
- प्रवर्तक: रामानुजाचार्य
- इन्हें शेषनाग या लक्ष्मण का अवतार माना जाता है।
- ब्रह्म सम्प्रदाय:
- प्रवर्तक: मध्वाचार्य
- सिद्धांत: द्वैतवाद
राम भक्ति काव्य (रामाश्रयी शाखा) के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ
1. रामानंद (14वीं शताब्दी)
- परिचय: रामभक्ति काव्यधारा के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनके गुरु राघवानंद थे। इन्होंने सगुण और निर्गुण का समन्वय कर रामभक्ति को जनसामान्य के लिए सुलभ बनाया। हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इन्हें ‘आकाश धर्मगुरु’ कहा है।
- प्रमुख रचनाएँ:
- रामार्चन पद्धति
- वैष्णवमताब्ज भास्कर
- हनुमानजी की आरती – “आरती कीजे हनुमान लला की”
- रामरक्षास्त्रोत
2. अग्रदास
- परिचय: ये कृष्णदास पयहारी के शिष्य और नाभादास के गुरु थे। इन्होंने रामकाव्य में रसिक भावना का समावेश किया। यह स्वयं को ‘अग्रकली’ (जानकी की सखी) मानकर रचनाएँ करते थे।
- प्रमुख रचनाएँ:
- ध्यान मंजरी
- अष्टयाम
- रामभजन मंजरी
- उपासना बावनी
- हितोपदेश भाषा
3. ईश्वरदास
- प्रमुख रचनाएँ:
- भरतमिलाप
- अंगदपैज
4. तुलसीदास (1532 ई.)
- परिचय: तुलसीदास रामभक्ति काव्यधारा के सबसे बड़े और प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। आचार्य शुक्ल ने इन्हें ‘भारतीय जनता का प्रतिनिधि कवि’ कहा है। नाभादास ने इन्हें ‘कलिकाल का वाल्मीकि’ तथा ग्रियर्सन ने ‘लोकनायक’ की संज्ञा दी।
- जीवन परिचय:
- जन्म: 1532 ई.
- जन्म स्थान: राजापुर (चित्रकूट), उत्तर प्रदेश
- माता-पिता: हुलसी और आत्माराम
- बचपन का नाम: रामभोला
- पत्नी: रत्नावली
- गुरु: नरहरिदास
- समकालीन: सम्राट अकबर
- उल्लेखनीय संदर्भ: अमृतलाल नागर का उपन्यास ‘मानस का हंस’
- प्रमुख रचनाएँ (13):
- रामचरितमानस – 1574 ई. में अयोध्या में रचित, 7 कांडों वाला महाकाव्य, प्रमुख भाषा – अवधी, शैली – दोहा और चौपाई।
- विनयपत्रिका – दास्य भाव की चरम अभिव्यक्ति, तुलसी की आत्मा झलकती है।
- कवितावली – वीर रस प्रधान रामकथा; मुक्तक शैली।
- गीतावली – गीतिकाव्य; ब्रजभाषा में।
- दोहावली – नीति, भक्ति और जीवन-दर्शन से युक्त दोहों का संग्रह।
- कृष्णगीतावली – सूरदास के प्रभाव से लिखी गई।
- बरवै रामायण – रहीम के आग्रह पर रचित।
- रामाज्ञा प्रश्नावली – पं. गंगाराम के अनुरोध पर रची गई।
- हनुमानबाहुक – बाहु पीड़ा से मुक्ति हेतु रचित (अप्रामाणिक मानी जाती है)।
- रामलला नहछू – राम के बालस्वरूप पर आधारित।
- वैराग्य संदीपनी
- पार्वती मंगल – शिव-पार्वती विवाह।
- जानकी मंगल – राम-सीता विवाह।
5. नाभादास
- परिचय: तुलसीदास के समकालीन, अग्रदास के शिष्य। इनका असली नाम नारायण दास था। संत परंपरा के साधक और साधुसेवी।
- प्रमुख रचनाएँ:
- भक्तमाल – भक्ति आंदोलन के 200 संतों की जीवनगाथा।
- रामाष्टयाम
- रामचरित संग्रह
6. केशवदास (1555–1617 ई.)
- परिचय: रीतिकाल के प्रवर्तक माने जाते हैं, परंतु काल की दृष्टि से भक्तिकाल के कवि हैं। बुंदेलखंड के ओरछा राज्य में राजा वीरसिंह के दरबारी कवि थे। आचार्य शुक्ल ने इन्हें “कठिन काव्य का प्रेत” कहा है।
- प्रमुख रचनाएँ:
- कविप्रिया
- रसिकप्रिया
- रामचन्द्रिका – प्रमुख प्रबंधकाव्य, बुंदेली मिश्रित ब्रज भाषा, इसे ‘छंदों का अजायबघर’ कहा गया है।
- वीरसिंह चरित
- रत्नबावनी
- विज्ञानगीता
7. नरहरिदास
- परिचय: तुलसीदास के गुरु।
- प्रमुख रचना: पौरुषेय रामायण
अन्य भाषाओं में रामकथा
रामकथा केवल हिंदी साहित्य तक सीमित नहीं रही, बल्कि विभिन्न भाषाओं में इसकी रचना हुई:
- संस्कृत में: वाल्मीकि कृत रामायण (रामकथा का मूल स्रोत)
- जैन साहित्य में:
- विमलसूरि कृत पउम चरिउ
- पुष्पदंत कृत महापुराण
- सिद्ध साहित्य में: स्वयंभू कृत पउम चरिउ
- बांग्ला भाषा में: कृतिवासी कृत रामायण
राम भक्ति काव्य (रामाश्रयी शाखा) की विशेषताएँ
राम भक्ति काव्य धारा को विशिष्ट बनाने वाली कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- दास्य भाव की भक्ति: राम को प्रभु और स्वयं को सेवक मानने का भाव सर्वोपरि।
- समन्वय का प्रयास: सगुण और निर्गुण के सिद्धांतों का मेल।
- लोक कल्याण की भावना: राम को लोकनायक के रूप में प्रतिष्ठित किया गया।
- मर्यादा और आदर्श की स्थापना: राम मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में वर्णित।
- मुख्य काव्य भाषा: अवधी; सहायक भाषा: ब्रज।
- काव्य रूप: प्रबंध और मुक्तक दोनों प्रकार की रचनाएँ।
- लोक मंगल की सिद्धि: जनता के नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान का प्रयास।
- सामूहिकता और सामाजिक समरसता का संदेश
- दार्शनिक प्रतीकों की बहुलता
- समकालीन सामाजिक व्यवस्था की आलोचना और सुधार की भावना
राम भक्ति काव्य (रामाश्रयी शाखा) के कवि और काव्य – सारणी
क्रम | कवि | प्रमुख रचनाएँ |
---|---|---|
1 | रामानंद | रामार्चन पद्धति, हनुमान आरती |
2 | अग्रदास | ध्यान मंजरी, रामाष्टयाम, उपासना बावनी |
3 | ईश्वरदास | भरतमिलाप, अंगदपैज |
4 | तुलसीदास | रामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवितावली, दोहावली, गीतावली आदि |
5 | नाभादास | भक्तमाल, रामाष्टयाम |
6 | केशवदास | रामचन्द्रिका, कविप्रिया, रसिकप्रिया |
7 | नरहरिदास | पौरुषेय रामायण |
निष्कर्ष
राम भक्ति काव्य धारा हिंदी साहित्य की एक गरिमामयी शाखा है जिसमें आदर्श, मर्यादा, भक्ति, लोककल्याण और मानव मूल्य जैसे तत्वों का सशक्त समावेश है। इस काव्य धारा की सबसे प्रमुख विशेषता यह रही कि इसने राम को केवल एक धार्मिक व्यक्तित्व के रूप में नहीं देखा, बल्कि उन्हें एक नैतिक और सामाजिक आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया। तुलसीदास की रामचरितमानस ने इस धारा को लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा दिया।
तुलसीदास के अतिरिक्त रामानंद, अग्रदास, नाभादास जैसे कवियों ने भी इस काव्यधारा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। रामभक्ति काव्य न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक समरसता, भाषा-शैली, काव्य-शिल्प और लोक चेतना की दृष्टि से भी अविस्मरणीय धरोहर है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):
प्रश्न 1: राम भक्ति काव्य धारा क्या है?
उत्तर: राम भक्ति काव्य धारा (रामाश्रयी शाखा) हिंदी भक्ति काल की एक प्रमुख शाखा है जिसमें कवियों ने भगवान राम को विष्णु के अवतार के रूप में स्वीकार किया और उनके आदर्शों, मर्यादा, त्याग, भक्ति एवं लोकमंगलकारी स्वरूप का गुणगान किया। इसे ‘रामाश्रयी शाखा’ भी कहा जाता है।
प्रश्न 2: राम भक्ति काव्य धारा (रामाश्रयी शाखा) के प्रमुख कवि कौन-कौन हैं?
उत्तर: राम भक्ति काव्य धारा (रामाश्रयी शाखा) के प्रमुख कवि हैं –
- गोस्वामी तुलसीदास
- रामानंद
- अग्रदास
- ईश्वरदास
- नाभादास
- केशवदास
- नरहरिदास
प्रश्न 3: रामानंद का राम भक्ति में क्या योगदान है?
उत्तर: रामानंद रामावत सम्प्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने रामभक्ति को उच्चवर्ण के साथ-साथ निम्नवर्णीय समाज के लिए भी सुलभ बनाया और समाजिक समरसता का संदेश दिया। इन्हें ‘आकाश धर्मगुरु’ भी कहा गया है।
प्रश्न 4: तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर: तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ हैं –
- रामचरितमानस
- विनयपत्रिका
- कवितावली
- गीतावली
- कृष्णगीतावली
- बरवै रामायण
- दोहावली
- रामलला नहछू
- रामाज्ञा प्रश्नावली
- वैराग्य संदीपनी
- पार्वती मंगल
- जानकी मंगल
- हनुमानबाहुक
प्रश्न 5: रामचरितमानस की भाषा और शैली क्या है?
उत्तर: रामचरितमानस की भाषा अवधी है, और इसकी शैली दोहा-चौपाई आधारित है। इसमें तुलसीदास ने रामकथा को लोकभाषा में प्रस्तुत कर घर-घर तक पहुंचाया।
प्रश्न 6: राम भक्ति काव्य की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
- दास्य भाव की प्रधानता
- मर्यादा पुरुषोत्तम राम का आदर्श रूप
- लोकमंगल की भावना
- सगुण-निर्गुण समन्वय
- अवधी और ब्रजभाषा का प्रयोग
- प्रबंध व मुक्तक दोनों काव्य रूपों की रचना
- सामाजिक एवं नैतिक शिक्षा का समावेश
प्रश्न 7: नाभादास द्वारा रचित ‘भक्तमाल’ क्या है?
उत्तर: भक्तमाल नाभादास द्वारा रचित एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमें लगभग 200 संतों और भक्त कवियों के जीवन एवं काव्य का वर्णन किया गया है। यह भक्ति परंपरा का महत्वपूर्ण दास्तावेज है।
प्रश्न 8: क्या केशवदास राम भक्ति काव्यधारा के कवि हैं?
उत्तर: केशवदास की रचनात्मक प्रवृत्ति रीतिकाल की ओर अधिक झुकी हुई है, किंतु कालक्रम और ‘रामचन्द्रिका’ जैसे ग्रंथ के कारण उन्हें राम भक्ति काव्यधारा में भी स्थान दिया जाता है।
प्रश्न 9: तुलसीदास की भक्ति किस भाव से संबंधित है?
उत्तर: तुलसीदास की भक्ति में दास्य भाव प्रमुख है। उन्होंने स्वयं को प्रभु राम का सेवक माना और उनके चरणों में समर्पित भाव से रचनाएँ कीं।
प्रश्न 10: राम भक्ति काव्यधारा का सामाजिक प्रभाव क्या रहा?
उत्तर: इस धारा ने समाज में धार्मिक सहिष्णुता, मर्यादा, नैतिकता और समरसता के मूल्य स्थापित किए। यह उच्चवर्णीय परंपरा होने के बावजूद तुलसी जैसे कवियों ने इसे जनमानस की भाषा में रूपांतरित कर सामाजिक एकता और लोकमंगल को बढ़ावा दिया।
प्रश्न 11: राम भक्ति काव्य में तुलसीदास का स्थान इतना प्रमुख क्यों माना जाता है?
उत्तर: तुलसीदास ने रामचरितमानस के माध्यम से रामकथा को जनभाषा अवधी में प्रस्तुत कर उसे घर-घर तक पहुँचाया। उनकी व्यापक दृष्टि, भावनात्मक गहराई और सामाजिक सरोकारों ने उन्हें राम भक्ति काव्य का शिखरस्थ कवि बना दिया। वे न केवल काव्यकला में श्रेष्ठ थे, बल्कि धार्मिक और नैतिक मूल्यों के संवाहक भी थे।
प्रश्न 12: तुलसीदास की रचनाओं में ‘विनयपत्रिका’ का क्या महत्व है?
उत्तर: विनयपत्रिका तुलसीदास की आत्मनिष्ठ भक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें उनके भीतर के दैन्य, आत्म-पीड़ा, पश्चात्ताप और प्रभु के प्रति संपूर्ण समर्पण की भावना मुखर होती है। इसे तुलसी के हृदय का दर्पण कहा जाता है।
प्रश्न 13: रामचरितमानस में कितने कांड हैं और उनके नाम क्या हैं?
उत्तर: रामचरितमानस में कुल 7 कांड हैं:
- बालकांड
- अयोध्याकांड
- अरण्यकांड
- किष्किन्धाकांड
- सुंदरकांड
- लंकाकांड
- उत्तरकांड
प्रश्न 14: ‘रामचन्द्रिका’ किसकी रचना है और इसकी क्या विशेषता है?
उत्तर: रामचन्द्रिका केशवदास द्वारा रचित एक प्रमुख प्रबंधकाव्य है, जिसमें रामकथा का वर्णन छंदों के माध्यम से किया गया है। इसकी भाषा बुंदेलखंडी मिश्रित ब्रज है। इसे “छंदों का अजायबघर” भी कहा जाता है।
प्रश्न 15: अग्रदास की रचनाओं की क्या विशेषता है?
उत्तर: अग्रदास ने रसिक भावना का समावेश करते हुए रामकाव्य को कोमलता, माधुर्य और प्रेम की अभिव्यक्ति से भरपूर बनाया। वे स्वयं को ‘अग्रकली’ (जानकी की सखी) मानकर रचनाएँ करते थे, जो स्त्रीभावात्मक भक्ति का एक विशिष्ट उदाहरण है।
प्रश्न 16: नरहरिदास का राम भक्ति काव्य में क्या योगदान रहा है?
उत्तर: नरहरिदास तुलसीदास के गुरु थे। इन्होंने पौरुषेय रामायण जैसी रचना के माध्यम से रामकथा को भक्ति और पुरुषार्थ के सम्मिलन के साथ प्रस्तुत किया।
प्रश्न 17: राम भक्ति काव्य में प्रयुक्त मुख्य भाषाएँ कौन-सी थीं?
उत्तर: इस धारा में मुख्यतः अवधी और ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। अवधी का प्रयोग तुलसीदास ने किया, जबकि ब्रजभाषा में गीतावली, कवितावली जैसी रचनाएँ हुईं। केशवदास की रचनाओं में बुंदेली मिश्रित ब्रज भाषा पाई जाती है।
प्रश्न 18: भक्तमाल का महत्व क्या है?
उत्तर: भक्तमाल नाभादास द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें 200 से अधिक संतों और भक्त कवियों की संक्षिप्त जीवनगाथाएँ दी गई हैं। यह ग्रंथ भक्ति परंपरा के अध्ययन के लिए एक ऐतिहासिक दस्तावेज है।
प्रश्न 19: राम भक्ति काव्य में ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ की अवधारणा क्या है?
उत्तर: राम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहा गया क्योंकि उन्होंने धर्म, नीति और समाज के नियमों का पालन करते हुए आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श राजा और आदर्श पुरुष की भूमिका निभाई। यह अवधारणा राम भक्ति काव्य का केंद्रीय तत्व है।
प्रश्न 20: राम भक्ति काव्य धारा का साहित्यिक महत्व क्या है?
उत्तर: राम भक्ति काव्य धारा ने न केवल धार्मिक और नैतिक मूल्यों की स्थापना की, बल्कि साहित्यिक दृष्टि से भी अवधी और ब्रज जैसी लोकभाषाओं को गरिमा दी, प्रबंध और मुक्तक काव्य को समृद्ध किया और समाज में समरसता, आदर्श और आस्था का संचार किया। यह काव्यधारा हिंदी साहित्य की शाश्वत धरोहर है।
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