सावन का महीना हिंदू धर्म में एक अत्यंत पावन और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण समय माना जाता है। यह महीना विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित है और समूचे भारत में इस दौरान शिवभक्ति की लहर देखने को मिलती है। यह श्रावण मास धार्मिक उत्साह, उपवास, जप-तप और पुण्य अर्जन का अवसर होता है। वर्ष 2025 में भी सावन का महत्त्व और श्रद्धालुओं की आस्था पहले की तरह ही गहराई से अनुभव की जाएगी।
इस लेख में हम सावन 2025 की प्रारंभ और समाप्ति तिथि, पूजा विधि, व्रत के नियम, शिव मंत्र, और इसके धार्मिक महत्त्व के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे।
सावन 2025: प्रारंभ और समाप्ति तिथि
सावन मास की शुरुआत और समाप्ति भारत के भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर भिन्न पंचांगों के अनुसार तय होती है। भारत में दो प्रमुख पंचांगों का अनुसरण होता है — पूर्णिमांत और अमांत।
1. उत्तर भारत (पूर्णिमांत पंचांग)
उत्तर भारत में पूर्णिमांत पंचांग का अनुसरण होता है, जिसमें महीने की गणना पूर्णिमा से की जाती है। इसमें श्रावण मास की तिथियां निम्नलिखित होंगी:
- सावन प्रारंभ तिथि: 11 जुलाई 2025
- सावन समाप्ति तिथि: 9 अगस्त 2025
उत्तर भारत के राज्यों में — उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, और छत्तीसगढ़ — इन तिथियों का पालन किया जाएगा।
2. पश्चिम एवं दक्षिण भारत (अमांत पंचांग)
इस क्षेत्र में अमांत पंचांग का पालन होता है, जिसमें महीना अमावस्या से शुरू होता है। इस गणना के अनुसार सावन 2025 की तिथियां होंगी:
- सावन प्रारंभ तिथि: 25 जुलाई 2025
- सावन समाप्ति तिथि: 23 अगस्त 2025
महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और गोवा में यह तिथियां मान्य होंगी।
सावन मास का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व
सावन का महीना वर्ष का सबसे पवित्र समय माना जाता है जब आकाश से वर्षा के रूप में प्रकृति हरियाली ओढ़ लेती है, और धरती पर जीवन की ऊर्जा पुनः प्रवाहित होती है। यह समय भगवान शिव के तप, शक्ति और कृपा को अनुभव करने का अवसर प्रदान करता है।
पौराणिक मान्यता
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय जब विष निकला था, तो संपूर्ण सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने वह विषपान किया। इस प्रक्रिया में उनका कंठ नीला हो गया, जिससे उन्हें “नीलकंठ” कहा गया। विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवताओं ने सावन के महीने में उन्हें गंगाजल चढ़ाया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि श्रावण में शिवलिंग पर जलाभिषेक करना अति पुण्यकारी होता है।
सावन सोमवार व्रत का महत्त्व और नियम
सावन सोमवारी व्रत क्या है?
श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव के नाम पर व्रत रखने की परंपरा है, जिसे सावन सोमवार व्रत कहा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से कुंवारी कन्याओं द्वारा अच्छे वर की प्राप्ति हेतु और विवाहित स्त्रियों द्वारा पति की दीर्घायु और सौभाग्य के लिए रखा जाता है।
व्रत रखने के नियम
- प्रातः स्नान और शिव पूजन
- प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
- स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूजा स्थल की सफाई करें।
- भोजन नियम
- कुछ लोग पूरे दिन उपवास रखते हैं और केवल शाम को फलाहार करते हैं।
- कुछ भक्त केवल फल, दूध या व्रत में अनुमत पदार्थों का सेवन करते हैं।
- अनाज, नमक, प्याज, लहसुन और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों से परहेज किया जाता है।
- पूजा के बाद जल ग्रहण
- कई उपवासी भक्त केवल पूजा पूर्ण होने के बाद ही जल ग्रहण करते हैं।
- सोमवार की कथा
- सावन सोमवार की व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। यह कथा शिवजी की कृपा प्राप्त करने का माध्यम मानी जाती है।
सावन में पूजा विधि (शिव पूजन)
पूजन सामग्री
- गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर (पंचामृत)
- बिल्वपत्र
- सफेद फूल
- चंदन, अक्षत, कपूर
- दीपक और धूपबत्ती
- शिव-पार्वती की प्रतिमा या चित्र
पूजा की प्रक्रिया
- स्थान की सफाई और तैयारी
- घर के पूजा स्थल या मंदिर की सफाई करें।
- लकड़ी की चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर शिव-पार्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- अर्चना और अभिषेक
- दीप प्रज्वलित कर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हुए भगवान शिव की स्तुति करें।
- शिवलिंग पर पंचामृत अर्पित करें।
- तत्पश्चात गंगाजल से अभिषेक करें।
- श्रृंगार
- बिल्वपत्र, पुष्प, चंदन, इत्र आदि से भगवान का श्रृंगार करें।
- मंत्र जाप और स्तुति
- शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र और श्रावण मास कथा का पाठ करें।
- पूजा के अंत में आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
सावन में जपने योग्य प्रमुख शिव मंत्र
1. पंचाक्षरी मंत्र – “ॐ नमः शिवाय”
- यह मंत्र भगवान शिव को समर्पित सबसे सरल और प्रभावशाली मंत्र है।
- इसका जाप साधक के भीतर आध्यात्मिक जागरण करता है और आत्मबल बढ़ाता है।
- प्रतिदिन 108 बार इस मंत्र का जाप अत्यंत शुभ माना जाता है।
2. महामृत्युंजय मंत्र
“ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”
अर्थ:
हम त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की उपासना करते हैं, जो सुगंधित हैं और पोषण देने वाले हैं। जैसे ककड़ी अपने डंठल से स्वतः अलग हो जाती है, वैसे ही हम मृत्यु के बंधनों से मुक्त होकर अमरता को प्राप्त करें।
- यह मंत्र जीवन की कठिनाइयों, रोगों और भय से मुक्ति के लिए जपा जाता है।
- प्रतिदिन 11, 21 या 108 बार इस मंत्र का जाप अत्यंत फलदायी माना जाता है।
सावन के अन्य धार्मिक आयोजन और परंपराएं
1. कांवड़ यात्रा
सावन के दौरान उत्तर भारत में विशेष रूप से कांवड़ यात्रा का आयोजन होता है, जिसमें लाखों भक्त गंगाजल लेकर हरिद्वार, गंगोत्री, वाराणसी आदि तीर्थ स्थलों से पैदल चलते हुए अपने गांव के शिव मंदिर में जलाभिषेक करते हैं। यह यात्रा भगवान शिव की भक्ति और श्रद्धा का एक अद्वितीय उदाहरण है।
2. श्रावणी अनुष्ठान और कथा
श्रावण मास में शिव पुराण का श्रवण, रुद्राभिषेक, रुद्राष्टाध्यायी, लघुरुद्र पाठ और सप्तशती का पाठ करना शुभ माना जाता है। कथा-वाचन और कीर्तन से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
सावन में पालन करने योग्य अन्य नियम
- सात्त्विक आहार – इस माह में शुद्ध, सात्त्विक भोजन का सेवन करें।
- नियमित व्रत और ध्यान – संयमित जीवन शैली अपनाएं और ध्यान, ध्यान, योग का अभ्यास करें।
- दान-पुण्य – सावन में गरीबों को अन्न, वस्त्र और जल का दान करें।
- शिव मंत्र लेखन – “ॐ नमः शिवाय” का लेखन भी फलदायक माना गया है।
निष्कर्ष
सावन माह केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धिकरण, संयम और भक्ति का समय है। यह अवसर है जीवन की दिशा को शिव-मार्ग पर मोड़ने का। भगवान शिव की भक्ति से न केवल मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है, बल्कि जीवन की बाधाएं भी दूर होती हैं।
श्रावण 2025 में भी यह महीना श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था, ऊर्जा और पुण्य का स्रोत बनेगा। यदि आपने अब तक सावन में व्रत या पूजा करने की योजना नहीं बनाई है, तो यह उत्तम अवसर है अपनी आत्मा को शिवमय बनाने का।
हर-हर महादेव!
ॐ नमः शिवाय।
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- सूफी सिलसिले: चिश्ती, सुहरावर्दी, फिरदौसी, कादिरी, नक्शबंदी, और शत्तारी सम्प्रदायों का अध्ययन
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- इस्लाम का महाशक्तिशाली उदय और सार्वजनिक विस्तार
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