भारत की वित्तीय स्थिरता का नया अध्याय: भारतीय रिज़र्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट – जून 2025

जैसे-जैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था लगातार अस्थिरता और अनिश्चितता के भंवर में फंसी हुई है, वैसे-वैसे भारत एक स्थिर, आत्मविश्वासी और प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में सामने आया है। जून 2025 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी की गई वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report – FSR) इस उभरते भारत की एक विस्तृत, संतुलित और आश्वस्तकारी झलक पेश करती है।

यह रिपोर्ट भारत की आर्थिक नींव, बैंकिंग एवं वित्तीय क्षेत्र की मजबूती, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति और नियामकीय पहलों का समग्र मूल्यांकन प्रस्तुत करती है। इसके माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि भारत आज न केवल विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है, बल्कि बाहरी वैश्विक जोखिमों के बावजूद अपने घरेलू आर्थिक इंजन की बदौलत आत्मनिर्भर और संरक्षित भी है।

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वैश्विक परिप्रेक्ष्य: जोखिमों से घिरी दुनिया में भारत की सतर्कता

भारतीय रिज़र्व बैंक की जून 2025 की रिपोर्ट की शुरुआत वैश्विक परिदृश्य की एक गंभीर चेतावनी से होती है। रिपोर्ट के अनुसार, विश्व आर्थिक परिदृश्य पहले से कहीं अधिक जटिल और चुनौतीपूर्ण हो चुका है। अल्पकालिक वित्तीय स्थिरता पर मंडराते खतरे लगातार बढ़ रहे हैं, जिनके पीछे कई वैश्विक कारक हैं:

नीति और व्यापारिक अनिश्चितता

अमेरिका द्वारा अप्रैल 2025 में भारी टैरिफ लगाए जाने से वैश्विक व्यापार प्रणाली पर गहरा असर पड़ा है। इससे व्यापारिक विश्वास में कमी आई है और विश्व व्यापार की गति धीमी हुई है। IMF, OECD और वर्ल्ड बैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं ने अपने वैश्विक विकास दर के अनुमानों में कटौती की है।

IMF के अनुसार, 2025 में वैश्विक विकास दर घटकर 2.8% तक सीमित रह सकती है—जो हाल के वर्षों में एक चिंताजनक गिरावट मानी जा रही है।

वैश्विक सार्वजनिक ऋण में विस्फोटक वृद्धि

IMF के अनुमान के अनुसार, दशक के अंत तक वैश्विक सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 100% तक पहुंच सकता है। यह स्थिति अर्थव्यवस्था की संप्रभुता और वित्तीय लचीलापन दोनों के लिए खतरा बन सकती है, विशेषकर उन देशों में जो पहले से ही राजकोषीय दबाव में हैं।

अस्थिर वित्तीय बाजार

वैश्विक बाजार अत्यधिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहे हैं। अप्रैल 2025 में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि वैश्विक बाज़ार अब अचानक झटकों (sudden shocks) के प्रति और अधिक संवेदनशील हो चुके हैं। कई देशों में एसेट वैल्यूएशन पहले से ही असामान्य रूप से ऊँचे स्तर पर हैं, जो संभावित वित्तीय बुलबुले की आशंका बढ़ाते हैं।

इन वैश्विक परिस्थितियों के बीच भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अधिक सतर्क रहना होगा ताकि वे बाहरी झटकों से सुरक्षित रह सकें।

भारतीय अर्थव्यवस्था: आंतरिक मजबूती और निरंतर विकास

दुनिया जहां धीमी गति से चल रही है, वहीं भारत ने घरेलू मांग, विवेकपूर्ण नीतियों और वित्तीय अनुशासन के दम पर विकास की राह को मजबूती से पकड़े रखा है।

GDP वृद्धि में स्थिरता

भारत की GDP वृद्धि दर 2024–25 में 6.5% रही, जो वैश्विक औसत से काफी अधिक है। RBI को विश्वास है कि 2025–26 में भी यही वृद्धि दर बनी रहेगी, जिसका समर्थन ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में तेजी, शहरी उपभोग की वापसी और निजी निवेश में सुधार से मिलेगा।

आर्थिक आकार में ऐतिहासिक विस्तार

2014–15 में भारत का GDP ₹106.57 लाख करोड़ था, जबकि 2024–25 तक यह ₹331.03 लाख करोड़ तक पहुँचने की उम्मीद है — यानी एक दशक में लगभग तीन गुना वृद्धि।

यह विस्तार भारत की दीर्घकालिक आर्थिक क्षमता और उद्यमशीलता का प्रमाण है।

मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: स्थिरता की रीढ़

CPI आधारित मुद्रास्फीति में ऐतिहासिक गिरावट

मई 2025 में भारत की हेडलाइन मुद्रास्फीति घटकर 2.8% पर आ गई—जो पिछले छह वर्षों का न्यूनतम स्तर है।

भविष्य में स्थिरता की उम्मीद

  • खाद्य मुद्रास्फीति पर दृष्टिकोण सकारात्मक है क्योंकि फसल उत्पादन अच्छा रहा है।
  • वैश्विक मंदी से कमोडिटी और कच्चे तेल की कीमतों में नरमी की संभावना है, जिससे आयातित मुद्रास्फीति पर भी नियंत्रण बना रह सकता है।

RBI अब अपने मध्यम अवधि के 4% लक्ष्य के करीब पहुंच चुका है, जिससे नीति निर्धारण में अधिक लचीलापन मिलेगा।

बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र की मजबूती: विकास की नींव

अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (SCBs): ऐतिहासिक रूप से मजबूत स्थिति

भारतीय बैंकिंग प्रणाली की सबसे बड़ी ताकत अब उसकी संतुलित बैलेंस शीट और जोखिम प्रबंधन की दक्षता बन चुकी है।

पूंजी पर्याप्तता

  • CRAR (Capital to Risk Weighted Assets Ratio): मार्च 2025 तक 17.3%
  • CET1 अनुपात: 14.7% — यह बैंकों की मूलभूत पूंजी की मजबूत स्थिति को दर्शाता है।

ऋण गुणवत्ता में सुधार

  • सकल एनपीए (GNPA) घटकर 2.3%
  • शुद्ध एनपीए (NNPA) सिर्फ 0.5%
  • प्रावधानीकरण कवरेज अनुपात (PCR): 76.3%

इन आंकड़ों से साफ है कि बैंक अब अधिक सुरक्षित, सतर्क और जवाबदेह तरीके से ऋण दे रहे हैं।

संकट में भी लचीलापन: मैक्रो स्ट्रेस टेस्ट

भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों पर कई संभावित तनाव परिदृश्यों का परीक्षण किया, जिसमें भूराजनीतिक टकराव, वैश्विक मंदी और पूंजी बहिर्गमन शामिल हैं।

परिणाम:

  • सबसे गंभीर स्थिति में भी बैंकिंग प्रणाली का CRAR 14.2% बना रहता है।
  • कोई भी बैंक CET1 की न्यूनतम सीमा से नीचे नहीं गिरता।

इससे यह स्पष्ट है कि भारत की बैंकिंग प्रणाली संकट के समय में भी स्थिर बनी रह सकती है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ और अन्य संस्थाएं

NBFCs

  • मार्च 2025 तक NBFCs का CRAR 25.8% रहा — जो इस क्षेत्र की मजबूत पूंजी स्थिति को दर्शाता है।
  • उपभोक्ता ऋण पर RBI की सख्ती के बावजूद यह क्षेत्र स्थिर बना हुआ है।

शहरी सहकारी बैंक

  • मार्च 2025 में इन बैंकों का CRAR 18% रहा — जो उनकी स्थिरता और नियामकीय अनुपालन को दर्शाता है।

बीमा कंपनियाँ

  • जीवन बीमा कंपनियों का सॉल्वेंसी अनुपात: 204%
  • गैर-जीवन बीमा कंपनियों का सॉल्वेंसी अनुपात: 166%

यह दोनों ही आंकड़े नियामकीय न्यूनतम सीमा 150% से काफी ऊपर हैं।

बाह्य क्षेत्र की मजबूती और विदेशी मुद्रा सुरक्षा कवच

विदेशी मुद्रा भंडार

  • जून 2025 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर $697.9 अरब हो गया है।
  • यह भंडार 11 महीने के आयात को कवर करने में सक्षम है।

चालू खाता घाटा (CAD)

  • 2024–25 में CAD केवल 0.6% GDP रहा।
  • वर्ष की अंतिम तिमाही में CAD के स्थान पर अधिशेष (Surplus) दर्ज किया गया।

इससे भारत की बाहरी स्थिति की मजबूती और आत्मनिर्भरता स्पष्ट होती है।

RBI की प्रमुख नियामकीय पहलें

RBI ने वित्तीय प्रणाली को भविष्य के लिए सशक्त, लचीला और पारदर्शी बनाने हेतु कई कदम उठाए:

1. उपभोक्ता ऋण पर जोखिम वज़न में वृद्धि

  • गैर-सुरक्षित ऋण की तेज़ वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए जोखिम वज़न बढ़ाए गए।
  • इससे ऋण बाजार में संतुलन बना रहेगा।

2. साइबर सुरक्षा और प्रौद्योगिकी ढांचा

  • UPI और डिजिटल बैंकिंग की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए साइबर जोखिमों से निपटने हेतु कड़े नियम लागू किए गए हैं।

3. NBFC विनियमन

  • बड़े NBFCs के लिए बैंक समान नियम लागू किए गए हैं, जिससे पारदर्शिता और पूंजी पर्याप्तता सुनिश्चित हो सके।

4. विशेष रुपया वोस्ट्रो खाता (SRVA)

  • इससे भारत रुपये में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा दे रहा है, जिससे डॉलर पर निर्भरता कम होगी।

5. लिक्विडिटी कवरेज अनुपात (LCR) में संशोधन

  • बैंकों को तरलता बनाए रखने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, जिससे डिजिटल लेनदेन के दौर में संभावित जोखिमों से सुरक्षा मिल सके।

6. डिजिटल लेंडिंग दिशानिर्देश

  • उपभोक्ताओं की सुरक्षा और पारदर्शिता के लिए सख्त नियम लागू किए गए हैं।

प्रणालीगत जोखिम और विशेषज्ञ दृष्टिकोण

जोखिमों की पहचान

मई 2025 में RBI द्वारा किए गए Systemic Risk Survey (SRS) में विशेषज्ञों ने निम्नलिखित प्रमुख जोखिमों की पहचान की:

  • भूराजनीतिक संघर्ष
  • पूंजी का बहिर्गमन
  • व्यापार युद्ध और शुल्क
  • साइबर जोखिम
  • जलवायु परिवर्तन

घरेलू विश्वास

रिपोर्ट में यह उल्लेखनीय है कि इन जोखिमों के बावजूद भारत की घरेलू स्थिति पर विशेषज्ञों का भरोसा बना हुआ है:

  • 92% उत्तरदाताओं ने भारत की वित्तीय प्रणाली पर “उच्च” या “उसी स्तर” का भरोसा जताया।
  • 80% विशेषज्ञों को विश्वास है कि आने वाले वर्ष में भारत का बैंकिंग क्षेत्र या तो बेहतर होगा या वर्तमान स्तर पर बना रहेगा।

निष्कर्ष: भारत का सतर्क, सशक्त और संतुलित भविष्य

भारतीय रिज़र्व बैंक की जून 2025 की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट यह दर्शाती है कि वैश्विक अस्थिरताओं के बावजूद भारत ने अपने आर्थिक ढांचे, बैंकिंग प्रणाली, विदेशी मुद्रा भंडार और नियामकीय उपायों के माध्यम से वित्तीय स्थिरता को मजबूती से साधा है।

भारत आज केवल विकास का प्रतीक नहीं है, बल्कि वित्तीय अनुशासन, सतर्क नीति-निर्धारण और संरचनात्मक मजबूती के कारण वह वैश्विक वित्तीय परिदृश्य में एक प्रेरणास्पद उदाहरण बन चुका है।

यदि वर्तमान रुझान जारी रहते हैं, तो भारत न केवल अगले दशक में एक मजबूत आर्थिक महाशक्ति बनेगा, बल्कि विश्व के लिए स्थिरता और संतुलन का स्तंभ भी बन सकता है।

Economics – KnowledgeSthali
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