भारत के पश्चिमी घाट (Western Ghats) न केवल एक जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं, बल्कि यह जैविक रहस्यों का खजाना भी हैं। इस क्षेत्र की अद्वितीय पारिस्थितिकी, उष्णकटिबंधीय जलवायु और विविध भौगोलिक संरचना ने यहां अनेक दुर्लभ प्रजातियों के पनपने का मार्ग प्रशस्त किया है। इसी श्रृंखला में, हाल ही में पुणे स्थित MACS-अघारकर अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक नई लाइकेन प्रजाति की खोज की है—Allographa effusosoredica। यह न केवल भारत में पहली बार मोलिक्यूलर (आणविक) स्तर पर प्रमाणित Allographa प्रजाति है, बल्कि यह सहजीव जीवन के प्राचीनतम स्वरूपों को भी उजागर करती है।
लाइकेन क्या हैं? – जैविक दृष्टि से परिचय
लाइकेन (Lichen) ऐसे जीव हैं जो एक सहजीवी संबंध (Symbiotic Relationship) के अंतर्गत दो भिन्न जैविक इकाइयों से मिलकर बनते हैं—एक कवक (Fungus) और दूसरा प्रकाश संश्लेषण करने वाला जीव, जो सामान्यतः हरित शैवाल (Green Algae) या सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) होता है।
यह सहजीव संरचना एक अत्यंत संतुलित प्रणाली के रूप में कार्य करती है—
- कवक अपने भागीदार को सुरक्षा, नमी और खनिज प्रदान करता है।
- शैवाल/सायनोबैक्टीरिया कवक को ऊर्जा (ग्लूकोज) प्रदान करता है जो वह प्रकाश संश्लेषण द्वारा उत्पन्न करता है।
इस पारस्परिक संबंध की विशेषता यह है कि दोनों जीव अकेले उस वातावरण में जीवित नहीं रह सकते, जिसमें लाइकेन जीवित रह पाते हैं। यही कारण है कि लाइकेन चरम परिस्थितियों जैसे अत्यधिक ठंड, गर्मी, सूखे, और शुष्क चट्टानों पर भी पाए जाते हैं।
लाइकेन का पारिस्थितिकीय महत्त्व
लाइकेन जीव पारिस्थितिकी तंत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य करते हैं:
- मृदा निर्माण में सहायक: ये शैलों और चट्टानों को धीरे-धीरे विघटित कर मिट्टी बनाने में योगदान देते हैं।
- वायु प्रदूषण सूचक: ये प्रदूषण के प्रति अत्यंत संवेदनशील होते हैं, अतः इनके माध्यम से पर्यावरण की गुणवत्ता का आकलन किया जा सकता है।
- खाद्य श्रृंखला का हिस्सा: कुछ पशु जैसे कि बारहसिंगा और कैरिबू सर्दियों में लाइकेन का सेवन करते हैं।
- दवाइयों का स्रोत: इनमें पाए जाने वाले जैव-सक्रिय यौगिकों (Bioactive Compounds) का उपयोग औषधियों के निर्माण में होता है।
Allographa वंश और पश्चिमी घाट का महत्त्व
Allographa वंश (Genus Allographa) लाइकेन के Graphidaceae कुल (family) से संबंधित है, जो मुख्यतः उष्णकटिबंधीय (tropical) क्षेत्रों में पाया जाता है। इस कुल के जीव विशेष रूप से छाल, पत्तियों और चट्टानों की सतह पर पाए जाते हैं और ये पारिस्थितिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं।
पश्चिमी घाट, जो यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है, जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। यहां हजारों पौधों, पक्षियों, स्तनधारियों और सूक्ष्मजीवों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से अनेक स्थानिक (endemic) हैं—यानी केवल यहीं पाई जाती हैं।
Allographa effusosoredica की खोज: वैज्ञानिक सफलता की कहानी
MACS-अघारकर अनुसंधान संस्थान, पुणे के वैज्ञानिकों ने पश्चिमी घाट में Allographa वंश की एक नई लाइकेन प्रजाति की खोज की, जिसे Allographa effusosoredica नाम दिया गया। इस प्रजाति की खोज इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि:
- यह भारत की पहली Allographa प्रजाति है जिसकी पहचान डीएनए स्तर पर मोलिक्यूलर प्रमाणों से की गई है।
- यह खोज इंटीग्रेटिव टैक्सोनॉमी (Integrative Taxonomy) का उत्कृष्ट उदाहरण है—जिसमें पारंपरिक वर्णात्मक विधियों और आधुनिक डीएनए तकनीकों का संयोजन किया गया है।
इंटीग्रेटिव टैक्सोनॉमी: पारंपरिक और आधुनिक विज्ञान का संगम
पारंपरिक टैक्सोनॉमी में प्रजातियों की पहचान उनके आकारिकी (morphology) पर आधारित होती थी—जैसे रंग, बनावट, संरचना आदि। परंतु कई बार दिखने में एक जैसी प्रजातियाँ आनुवंशिक रूप से भिन्न होती हैं।
इंटीग्रेटिव टैक्सोनॉमी इस समस्या का समाधान करती है। यह तीन स्तंभों पर आधारित है:
- आकारिकी (Morphology)
- रासायनिक गुण (Chemotaxonomy)
- डीएनए अनुक्रमण (Molecular sequencing)
Allographa effusosoredica की पहचान इसी समन्वय पद्धति से की गई है, जिससे इस प्रजाति की विशिष्टता की पुष्टि की गई।
इस नई प्रजाति की प्रमुख विशेषताएँ
1. Effuse Soredia
इस लाइकेन में एक विशेष प्रकार की अलैंगिक जनन संरचना पाई गई जिसे effuse soredia कहते हैं। यह संरचना इसे अन्य Allographa प्रजातियों से अलग बनाती है।
2. Norstictic Acid की उपस्थिति
इस प्रजाति में नॉरस्टिक्टिक अम्ल (Norstictic Acid) पाया गया, जो एक दुर्लभ माध्यमिक यौगिक है और रासायनिक दृष्टि से इसकी अलग पहचान बनाता है।
3. Photobiont: Trentepohlia शैवाल
इस लाइकेन का प्रकाश संश्लेषक भागीदार है Trentepohlia वंश की शैवाल, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आम है। यह जानकारी सहजीवी शैवाल विविधता के अध्ययन को समृद्ध करती है।
4. अन्य प्रजातियों से संबंध
हालाँकि आकारिकी रूप से यह Graphis glaucescens से मिलती-जुलती है, लेकिन डीएनए विश्लेषण दर्शाता है कि इसका निकटतम आनुवंशिक संबंध Allographa xanthospora से है। यह तथ्य Graphidaceae कुल में क्रमिक विकास (evolutionary relationships) के नए प्रश्न खड़े करता है।
सांख्यिकीय योगदान और प्रभाव
- Allographa effusosoredica अब भारत से रिपोर्ट की गई 53वीं Allographa प्रजाति बन गई है।
- यह पश्चिमी घाट से खोजी गई 22वीं Allographa प्रजाति है।
- इससे भारत के लाइकेन डेटाबेस में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
यह खोज भारत के लिए जैव विविधता अनुसंधान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है और भारतीय वैज्ञानिक समुदाय की वैश्विक वैज्ञानिक योगदान में सक्रिय भागीदारी को रेखांकित करती है।
वैश्विक संदर्भ में महत्व
लाइकेन अनुसंधान न केवल पारिस्थितिक महत्व रखता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण नियंत्रण, औषधीय विकास, और जैव-संरक्षण में भी इसका महत्त्व बढ़ रहा है। Allographa effusosoredica की खोज इन सभी क्षेत्रों में नये शोधों के द्वार खोलती है।
राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (ANRF) द्वारा समर्थित इस परियोजना ने भारत को सहजीविता विज्ञान (Symbiosis Research) और संरक्षण जीवविज्ञान (Conservation Biology) में वैश्विक स्तर पर मजबूत किया है।
भविष्य की दिशाएँ और संभावनाएँ
- और अधिक मोलिक्यूलर टैक्सोनॉमिक अध्ययन – भारत में लाइकेन की हजारों प्रजातियाँ अब भी बिना खोज के छिपी हुई हैं।
- फार्मास्युटिकल अनुसंधान – Norstictic Acid जैसे यौगिक कैंसर, सूजन, और माइक्रोबियल संक्रमणों के उपचार में उपयोगी हो सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन अनुकूलता परीक्षण – लाइकेन से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
- जैव विविधता संरक्षण नीतियाँ – इस प्रकार की खोजें नीति-निर्माताओं को वैज्ञानिक डेटा पर आधारित निर्णय लेने में मदद करती हैं।
🔚 निष्कर्ष
Allographa effusosoredica की खोज केवल एक नई प्रजाति का दस्तावेजीकरण नहीं है, बल्कि यह सहजीवन, पारिस्थितिकी, आनुवंशिकी और जैव विविधता के गहन अंतर्संबंधों को समझने की दिशा में एक ठोस कदम है। यह खोज वैज्ञानिक जिज्ञासा, आधुनिक तकनीक और पारंपरिक ज्ञान के समन्वय से प्राप्त एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि पश्चिमी घाट के गहन वन आज भी जैविक रहस्यों के अज्ञात पन्ने समेटे हुए हैं—जिन्हें समझना और संरक्षित करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
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