भारतीय कृषि क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था, खाद्य सुरक्षा और रोजगार का आधार स्तंभ है। लगभग 55% जनसंख्या कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों पर निर्भर करती है। बावजूद इसके, यह क्षेत्र बिखरी हुई योजनाओं, असंगठित क्रियान्वयन और कम उत्पादकता जैसी समस्याओं से जूझता रहा है। किसानों की आय को दोगुना करने और कृषि को अधिक टिकाऊ तथा लाभकारी बनाने के लिए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना (PMDDKY) की शुरुआत की है। यह योजना भारतीय कृषि के इतिहास में एक समग्र और परिवर्तनकारी पहल मानी जा रही है, जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार की 36 योजनाओं को एकीकृत कर एक समन्वित रूप प्रदान किया गया है।
प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना (PMDDKY) की पृष्ठभूमि
भारत में कृषि विकास के लिए दशकों से विभिन्न मंत्रालयों द्वारा अनेक योजनाएं चलाई जाती रही हैं। हालाँकि, इनमें समन्वय की कमी, दोहराव और असंगठित क्रियान्वयन के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सके। बिखरी हुई इन योजनाओं से किसानों को जमीनी स्तर पर संपूर्ण लाभ नहीं मिल पाया। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन, बंटे हुए भूखंड, संसाधनों की कमी और तकनीकी ज्ञान के अभाव ने कृषि क्षेत्र की उत्पादकता को प्रभावित किया। इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए PMDDKY को आकांक्षी जिलों कार्यक्रम की तर्ज पर तैयार किया गया है, जिसमें विकेंद्रीकृत, डेटा-संचालित और स्थानीय जरूरतों के अनुकूल समाधान प्रस्तुत करने पर बल दिया गया है।
PMDDKY के अंतर्गत समाहित की गई 36 योजनाएं
इस योजना का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि केंद्र सरकार ने कृषि और संबद्ध क्षेत्रों से संबंधित 11 मंत्रालयों की 36 केंद्रीय योजनाओं को एकीकृत कर दिया है। इन योजनाओं के एकीकरण से प्रशासनिक बोझ कम होगा, दोहराव समाप्त होगा, और संसाधनों का समुचित उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा। इसमें कृषि, पशुपालन, डेयरी, जल संसाधन, ग्रामीण विकास, खाद्य प्रसंस्करण, सहकारिता, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, पर्यावरण एवं वन, और उद्यानिकी मंत्रालयों की योजनाएं शामिल हैं।
PMDDKY का बजटीय प्रावधान और लक्ष्य
प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना के अंतर्गत सरकार ने ₹24,000 करोड़ प्रति वर्ष का प्रावधान किया है, जो कि 2025–26 से शुरू होकर अगले छह वर्षों तक जारी रहेगा। कुल मिलाकर, इस योजना पर लगभग ₹1.44 लाख करोड़ खर्च करने की योजना है। इससे अनुमानतः 1.7 करोड़ किसान परिवारों को प्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलने की संभावना है।
योजना के कार्यान्वयन का ढांचा
- जिला चयन: योजना के तहत 100 पिछड़े जिलों का चयन किया गया है, जहां कृषि उत्पादकता, फसल विविधता और कृषि ऋण की पहुंच अन्य जिलों की तुलना में कम है। प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश से कम से कम एक जिला इस योजना में शामिल किया गया है।
- स्थानीय योजना निर्माण: प्रत्येक चयनित जिले में जिला धन-धान्य समिति (District Dhan-Dhanya Committee) का गठन किया जाएगा। इस समिति की जिम्मेदारी जिला कृषि और संबद्ध गतिविधि योजना (DAAAP) तैयार करने की होगी। योजना निर्माण में प्रगतिशील किसानों की भी भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी, जिससे योजनाएं जमीनी स्तर की आवश्यकताओं के अनुरूप बन सकें।
- मॉनिटरिंग और निगरानी: योजना की निगरानी के लिए मासिक समीक्षा बैठकें, केंद्रीय टीमों द्वारा फील्ड विजिट और रियल-टाइम डेटा मॉनिटरिंग तंत्र स्थापित किए जाएंगे। इससे योजना के लक्ष्यों को समयबद्ध तरीके से प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): योजना के तहत नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को भी बढ़ावा दिया जाएगा। इससे आधुनिक तकनीक, निवेश और मूल्य श्रृंखला विकास को बल मिलेगा।
योजना के प्रमुख फोकस क्षेत्र
प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना का फोकस केवल उत्पादन बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने हेतु मूल्य श्रृंखला के हर स्तर पर हस्तक्षेप किया जाएगा। इसके मुख्य फोकस क्षेत्र निम्नलिखित हैं:
- कटाई के बाद की बुनियादी ढांचा (Post-Harvest Infrastructure): भंडारण, शीतगृह, मूल्यवर्धन और प्रोसेसिंग सुविधाओं का विकास।
- सिंचाई दक्षता: माइक्रो इरिगेशन, ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक को बढ़ावा देना।
- जैविक खेती और प्राकृतिक कृषि: रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा देना ताकि किसानों को प्रीमियम बाजार मिल सके।
- फसल विविधीकरण: पारंपरिक फसलों से हटकर अधिक लाभकारी फसलों की ओर किसानों को प्रोत्साहित करना।
- कृषि ऋण तक आसान पहुंच: किसानों को सस्ती और सुगम ऋण सुविधाएं उपलब्ध कराना।
- डिजिटल नवाचार: कृषि-डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिए बाजार की जानकारी, मौसम पूर्वानुमान और प्रशिक्षण प्रदान करना।
PMDDKY का महत्व: एक विश्लेषण
प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना केवल एक नई योजना नहीं है, बल्कि नव दृष्टिकोण और कार्यान्वयन में सुधार का प्रयास है। इसका महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में निहित है:
- एकीकृत दृष्टिकोण: 36 योजनाओं का समावेश कर प्रशासनिक बोझ कम करना और संसाधनों का समुचित उपयोग सुनिश्चित करना।
- मूल्य श्रृंखला आधारित सहायता: यह योजना पारंपरिक सब्सिडी-आधारित मॉडल से हटकर पूरी मूल्य श्रृंखला को सहायता प्रदान करने पर बल देती है, जिससे किसानों की आय में वास्तविक वृद्धि हो सके।
- जलवायु-संवेदनशील कृषि: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को देखते हुए टिकाऊ, पर्यावरण अनुकूल और जलवायु-लचीला कृषि मॉडल विकसित करना।
- स्थानीय सशक्तिकरण: विकेंद्रीकृत योजना निर्माण के माध्यम से जिलास्तरीय संस्थाओं और स्थानीय किसानों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
- आत्मनिर्भर भारत अभियान को समर्थन: कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण और किसानों की आय बढ़ाकर आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करना।
सम्भावित चुनौतियाँ और समाधान
यद्यपि प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना को लेकर सरकार की मंशा स्पष्ट और सकारात्मक है, परंतु इसके सफल क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं:
- स्थानीय संस्थाओं की दक्षता: जिला समितियों की क्षमता निर्माण आवश्यक है ताकि वे प्रभावी योजना निर्माण और क्रियान्वयन कर सकें।
- नीतिगत एकरूपता: राज्य सरकारों का सहयोग और एकरूपता बनाए रखना आवश्यक होगा, क्योंकि कृषि राज्यों का विषय है।
- डेटा की गुणवत्ता: डेटा-संचालित निर्णय प्रणाली को सफल बनाने के लिए सटीक और अद्यतन आंकड़ों का संग्रहण और विश्लेषण सुनिश्चित करना होगा।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी: सार्वजनिक-निजी भागीदारी के लिए उचित नीतिगत परिवेश बनाना होगा ताकि निजी निवेशकों का भरोसा जीता जा सके।
अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में भारत की पहल
विश्व में कृषि सुधार के उदाहरणों को देखें तो अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ में भी समेकित कृषि कार्यक्रम लागू किए जा चुके हैं, जिनका उद्देश्य उत्पादन, निर्यात और किसानों की आय में वृद्धि करना है। PMDDKY के माध्यम से भारत भी वैश्विक स्तर पर अपने कृषि क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने की दिशा में अग्रसर हो सकता है।
भविष्य की दिशा
प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना को लागू करते समय ध्यान देना होगा कि यह योजना कागजी दस्तावेज बनकर न रह जाए। लगातार निगरानी, समीक्षा और सुधार के माध्यम से इस योजना को जमीनी हकीकत में बदलना आवश्यक है। कृषि में तकनीक, अनुसंधान, नवाचार और निवेश को प्रोत्साहित करते हुए एक दीर्घकालिक दृष्टि के साथ इसे लागू करना होगा।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना (PMDDKY) भारतीय कृषि क्षेत्र में एक ऐतिहासिक सुधारात्मक कदम है। इसके माध्यम से भारत कृषि उत्पादन में वृद्धि ही नहीं, बल्कि कृषि को एक लाभकारी, टिकाऊ और आधुनिक व्यवसाय बनाने की ओर बढ़ रहा है। यदि इसे योजनाबद्ध और प्रतिबद्धता के साथ लागू किया गया तो यह न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करेगा, बल्कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता के मार्ग को भी सशक्त बनाएगा।
आगामी वर्षों में यह योजना भारत की कृषि नीति का केंद्रीय स्तंभ बन सकती है, बशर्ते इसके क्रियान्वयन में राज्यों, स्थानीय निकायों, निजी क्षेत्र और किसानों के बीच मजबूत समन्वय स्थापित किया जाए। इसके सफल कार्यान्वयन से देश की कृषि अर्थव्यवस्था में व्यापक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं।
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