प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मालदीव की स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ पर आयोजित भव्य समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। यह यात्रा केवल एक औपचारिक उपस्थिति नहीं थी, बल्कि द्विपक्षीय संबंधों में बढ़ती सामरिक भागीदारी, कूटनीतिक संतुलन और आपसी विश्वास की पुनर्स्थापना की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल साबित हुई है। बीते कुछ वर्षों में भारत और मालदीव के संबंधों में आई उतार-चढ़ाव की पृष्ठभूमि को देखते हुए यह यात्रा अत्यधिक प्रतीकात्मक और रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
भारत-मालदीव संबंधों की पृष्ठभूमि: ऐतिहासिक मित्रता और हालिया तनाव
भारत और मालदीव के बीच सदियों पुराना सांस्कृतिक, व्यापारिक और समुद्री सहयोग का संबंध रहा है। भारत, मालदीव को उसकी स्वतंत्रता (26 जुलाई 1965) के बाद सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में शामिल था। इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा और सामाजिक क्षेत्रों में मजबूत सहयोग स्थापित हुआ। विशेष रूप से आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और बुनियादी ढांचे में भारत ने कई परियोजनाओं के माध्यम से मालदीव का सहयोग किया है।
हालांकि, सितंबर 2023 में जब मोहम्मद मुज्जू राष्ट्रपति बने, तब उन्होंने ‘India Out’ नामक एक अभियान के समर्थन में चुनाव लड़ा था, जिसका उद्देश्य था भारतीय सैन्य उपस्थिति को मालदीव से हटाना। यह नीति मालदीव के घरेलू राजनीति में राष्ट्रवाद और प्रभुत्व की भावना को दर्शाने वाली थी, लेकिन इसने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों में असहजता उत्पन्न की।
इसके बाद फरवरी 2024 में भारत में ‘Boycott Maldives’ अभियान ने जोर पकड़ा, जब मालदीव के कुछ नेताओं ने भारत विरोधी टिप्पणी की और सोशल मीडिया पर भारत विरोधी पोस्ट्स साझा किए गए। इन घटनाओं ने भारत और मालदीव के पारंपरिक मैत्रीपूर्ण संबंधों में तनाव उत्पन्न कर दिया और मालदीव के पर्यटन उद्योग को विशेष रूप से नुकसान हुआ, जो कि भारतीय पर्यटकों पर काफी निर्भर है।
पीएम मोदी की यात्रा का प्रतीकात्मक महत्व
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति मुज्जू के सत्ता में आने के बाद मालदीव का दौरा करने वाले पहले विदेशी राष्ट्राध्यक्ष हैं। इस यात्रा को मालदीव द्वारा भारत के साथ संबंध सुधारने की पहल के रूप में देखा जा रहा है। यह कदम यह भी दर्शाता है कि राष्ट्रपति मुज्जू, ‘India Out’ अभियान से आगे बढ़कर द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की दिशा में इच्छुक हैं।
यह दौरा केवल औपचारिकता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें कई व्यावहारिक पहलुओं पर भी ध्यान केंद्रित किया गया, जैसे:
- साझा घोषणापत्र और संवाद: दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय बातचीत की और भविष्य की रणनीति पर चर्चा की।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान: समारोह के दौरान भारतीय सांस्कृतिक दलों ने प्रस्तुति दी, जिससे दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती मिली।
- नरेंद्र मोदी की पहल ‘एक पेड़ मां के नाम’: पीएम मोदी ने मालदीव के बच्चों को एक विशेष पौधा भेंट किया, जो पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक भावनाओं का प्रतीक है।
राजनयिक महत्व: विश्वास बहाली और रणनीतिक संतुलन
भारत और मालदीव के संबंध क्षेत्रीय सुरक्षा, इंडो-पैसिफिक रणनीति और समुद्री सहयोग की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील हैं। ऐसे में मोदी की यात्रा निम्नलिखित राजनयिक संकेत देती है:
- विश्वास की बहाली: हालिया तनाव के बाद यह यात्रा विश्वास की बहाली की दिशा में पहला ठोस कदम है।
- रणनीतिक साझेदारी को फिर से परिभाषित करना: भारत, मालदीव को चीन के प्रभाव से बाहर रखने की रणनीति के तहत अपने संबंधों को मजबूत करना चाहता है।
- हिंद महासागर में भारत की भूमिका: मालदीव, हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत की प्रमुख समुद्री नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।
प्रमुख समझौते और सहयोग क्षेत्र
प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा के दौरान कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिनमें मुख्यतः निम्नलिखित क्षेत्र शामिल रहे:
1. नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy):
भारत ने मालदीव को सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए तकनीकी एवं वित्तीय सहायता देने की प्रतिबद्धता जताई। इससे न केवल मालदीव की ऊर्जा आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि वह जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी सक्षम होगा।
2. मत्स्य पालन (Fisheries):
मालदीव की अर्थव्यवस्था में मत्स्य पालन एक प्रमुख भूमिका निभाता है। भारत ने मत्स्य पालन के आधुनिकीकरण, मूल्यवर्धन, और निर्यात बढ़ाने के लिए नई तकनीकों की पेशकश की।
3. डिजिटल अवसंरचना (Digital Infrastructure):
भारत, मालदीव में डिजिटल कनेक्टिविटी, ई-गवर्नेंस और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहायता करेगा। इससे मालदीव की युवा पीढ़ी को डिजिटल शिक्षा और उद्यमिता में अवसर मिलेंगे।
4. मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement – FTA):
भारत और मालदीव ने मुक्त व्यापार समझौते के ‘Terms of Reference’ को अंतिम रूप दिया। यह दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को गहरा करने और टैरिफ बाधाओं को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
भारत का सहायता कार्यक्रम: सामुदायिक विकास से लेकर रक्षा सहयोग तक
भारत ने पिछले एक दशक में मालदीव में कई विकास परियोजनाओं को समर्थन दिया है, जिनमें शामिल हैं:
- Greater Malé Connectivity Project: यह मालदीव की सबसे बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजना है, जिसमें भारत $500 मिलियन का योगदान दे रहा है।
- Community Development Projects: स्वास्थ्य, शिक्षा, जल और स्वच्छता के क्षेत्र में सैकड़ों परियोजनाएं भारत के सहयोग से चल रही हैं।
- डिफेंस कोऑपरेशन: भारत ने मालदीव को तटरक्षक जहाज़, राडार स्टेशन, हेलीकॉप्टर और ट्रेनिंग सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं।
भारत की ₹4,850 करोड़ की ऋण सहायता: रणनीतिक कूटनीति और आर्थिक भरोसे का प्रतीक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा के दौरान भारत ने द्विपक्षीय सहयोग को नई ऊर्जा प्रदान करते हुए मालदीव को ₹4,850 करोड़ की ऋण सहायता प्रदान की है। यह ऋण सहायता एक नए समझौता ज्ञापन (MoU) के तहत दी गई है, जिसका उद्देश्य मालदीव में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को समर्थन देना, आर्थिक पुनर्बहाली को गति देना और सतत विकास के लक्ष्य को साकार करना है।
“MAHASAGAR” दृष्टिकोण और FTA वार्ता की शुरुआत
इस यात्रा के दौरान भारत और मालदीव के बीच मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement – FTA) तथा द्विपक्षीय निवेश संधि (Bilateral Investment Treaty – BIT) पर औपचारिक वार्ता की शुरुआत हुई। यह पहल भारत की “पड़ोसी पहले” और “महासागर (MAHASAGAR)” नीति के अंतर्गत की गई है, जो हिंद महासागर क्षेत्र में आर्थिक एकीकरण, समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित करने का एक महत्त्वपूर्ण आयाम है।
भारत-मालदीव संबंध: पृष्ठभूमि और हालिया तनाव
भारत और मालदीव के रिश्ते ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ रहे हैं। ये संबंध साझा सांस्कृतिक विरासत, समुद्री सुरक्षा, और रणनीतिक सहयोग पर आधारित हैं। परंतु नवंबर 2023 में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ु के सत्ता में आने के बाद इन संबंधों में कुछ कटुता आ गई थी।
राष्ट्रपति मुइज़्ज़ु ने अपने चुनावी अभियान में “इंडिया आउट” नीति को प्राथमिकता दी और भारतीय सैन्य कर्मियों की मालदीव से वापसी की मांग की, जिन्हें भारत ने मानवीय सहायता और आपातकालीन बचाव अभियानों के लिए हेलीकॉप्टर और विमानों के माध्यम से तैनात किया था। इसके उत्तर में भारत ने 2024 में सैन्य कर्मियों की जगह नागरिक तकनीकी कर्मचारियों की तैनाती की, जिससे तनाव को कम करने का प्रयास किया गया।
ऋण सहायता की शर्तें और मालदीव को राहत
भारत द्वारा प्रदान की गई ऋण सहायता में एक पूर्ववर्ती डॉलर-आधारित समझौते को भी संशोधित किया गया है, जिससे मालदीव की वार्षिक ऋण चुकौती 40% घटाकर $51 मिलियन से $29 मिलियन कर दी गई है। यह संशोधन मालदीव की वित्तीय स्थिरता को मजबूत करता है और उसे भविष्य की आर्थिक योजनाओं को लागू करने में सहायक सिद्ध होता है।
यह कदम यह भी सिद्ध करता है कि भारत न केवल कूटनीतिक साझेदार है, बल्कि एक विकास भागीदार के रूप में भी उभर रहा है, जो अपने पड़ोसियों की आवश्यकताओं को समझते हुए सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी के माध्यम से रणनीतिक स्थिरता स्थापित करना चाहता है।
इस ऋण सहायता के मुख्य उद्देश्य
भारत की इस ऋण सहायता और द्विपक्षीय पहल का उद्देश्य केवल वित्तीय नहीं, बल्कि बहुआयामी है:
- आर्थिक सहयोग को सुदृढ़ करना – भारत-मालदीव के बीच अवसंरचना सहयोग और निवेश की सुरक्षा को बढ़ावा देना।
- FTA के माध्यम से व्यापारिक एकीकरण को बढ़ाना – द्विपक्षीय व्यापार में शुल्क बाधाओं को हटाना।
- राजनीतिक विश्वास की पुनर्बहाली – हालिया भू-राजनीतिक तनावों के बीच आपसी भरोसे को पुनर्स्थापित करना।
- समुद्री सुरक्षा को सशक्त करना – SAGAR और MAHASAGAR नीति के अंतर्गत हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करना।
- ऋण बोझ को कम करना – मौजूदा कर्जों के पुनर्गठन द्वारा मालदीव को आर्थिक राहत देना।
समझौतों और यात्रा की प्रमुख विशेषताएँ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा के दौरान कई गौरवपूर्ण और सौहार्दपूर्ण संकेत देखने को मिले, जो द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक परिवर्तन का द्योतक हैं:
- द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) पर चर्चा की औपचारिक शुरुआत।
- मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की वार्ता प्रारंभ, जिससे व्यापारिक बाधाएं कम होंगी।
- राष्ट्रपति मुइज़्ज़ु द्वारा एयरपोर्ट पर स्वागत, जो व्यक्तिगत और कूटनीतिक सम्मान का प्रतीक है।
- प्रधानमंत्री मोदी को स्वतंत्रता दिवस का मुख्य अतिथि बनाना – यह भारत की केंद्रीय भूमिका को दर्शाता है।
- रिपब्लिक स्क्वायर पर गार्ड ऑफ ऑनर – द्विपक्षीय संबंधों की गरिमा का परिचायक।
कूटनीतिक प्रभाव और रणनीतिक संदेश
भारत द्वारा दिए गए ऋण सहायता और कूटनीतिक व्यवहार का बहुआयामी प्रभाव मालदीव और पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में देखा जा सकता है:
- यह पहल मालदीव में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की दिशा में भारत की रणनीति को दर्शाता है।
- भारत की रणनीतिक धैर्य नीति तथा विकास आधारित सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी की पुष्टि होती है।
- भारत की छवि सुरक्षा प्रदाता और विश्वसनीय विकास भागीदार के रूप में और अधिक सुदृढ़ होती है।
- यह कदम मालदीव की राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
- पूरे क्षेत्र में समुद्री सहयोग, अवसंरचना विस्तार, और संप्रभुता का सम्मान जैसी अवधारणाओं को बढ़ावा मिलेगा।
ऋण सहायता से भरोसे की बहाली
₹4,850 करोड़ की ऋण सहायता केवल आर्थिक योगदान नहीं है, बल्कि यह भारत की उस प्रतिबद्धता का प्रमाण है जिसमें वह अपने पड़ोसियों को सहयोगी, सहभागी और सम्मानजनक संबंधों के माध्यम से जोड़ना चाहता है। यह यात्रा और ऋण सहायता दोनों मिलकर इस बात का संकेत देती हैं कि भारत कूटनीति, विकास और सुरक्षा के त्रिकोणीय मॉडल पर चलते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में स्थायित्व और संतुलन सुनिश्चित करना चाहता है।
पर्यटन पर असर और ‘Boycott Maldives’ की पृष्ठभूमि
मालदीव का पर्यटन उद्योग, खासकर उसके हाई-एंड रिसॉर्ट्स, भारतीय पर्यटकों पर काफी हद तक निर्भर करते हैं। भारत से हर साल लाखों पर्यटक मालदीव जाते हैं। लेकिन फरवरी 2024 में मालदीव के कुछ मंत्रियों द्वारा भारत विरोधी टिप्पणियों के बाद सोशल मीडिया पर ‘Boycott Maldives’ ट्रेंड करने लगा, जिसका व्यापक असर देखने को मिला:
- भारत से मालदीव जाने वाले पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आई।
- भारतीय ट्रैवल कंपनियों ने मालदीव पैकेज कम कर दिए या बंद कर दिए।
- इससे मालदीव की अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगा क्योंकि उसका लगभग 30% जीडीपी पर्यटन पर आधारित है।
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा इन टूटे रिश्तों को फिर से जोड़ने और पर्यटन बहाली के संकेत देने के रूप में भी देखी जा रही है।
चीन का प्रभाव और भारत की रणनीति
मालदीव में चीन की मौजूदगी भारत के लिए हमेशा से चिंता का विषय रही है। चीन द्वारा विकसित की जा रही कई इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं मालदीव को कर्ज के जाल में फंसा सकती हैं। भारत इस खतरे को समझते हुए:
- विकास परियोजनाओं के लिए अनुदान आधारित सहायता दे रहा है, न कि ऋण।
- People-centric Development मॉडल पर ध्यान दे रहा है।
- Capacity Building और Skill Development पर जोर दे रहा है।
इस यात्रा के जरिए भारत ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वह मालदीव के लिए एक स्थायी, भरोसेमंद और सहयोगी साझेदार है।
निष्कर्ष: संबंधों की नई शुरुआत की ओर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा को केवल एक कूटनीतिक पहल कहना उसकी महत्ता को कम करना होगा। यह एक व्यापक रणनीतिक योजना का हिस्सा है, जिसमें भारत-मालदीव संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करने और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने की दूरदृष्टि निहित है।
यह यात्रा तीन प्रमुख संदेश देती है:
- राजनयिक सामंजस्य की बहाली
- रणनीतिक साझेदारी की पुनर्स्थापना
- भविष्य के सहयोग की व्यापक संभावनाएं
भारत और मालदीव दोनों देशों को चाहिए कि वे इस सकारात्मक माहौल का लाभ उठाते हुए दीर्घकालिक सहयोग के रास्ते तलाशें और पारस्परिक सम्मान व विश्वास की भावना को केंद्र में रखते हुए आगे बढ़ें। यही भारत-मालदीव संबंधों की स्थायी और उज्ज्वल दिशा होगी।
इन्हें भी देखें –
- भारत-मालदीव आर्थिक सहयोग | $50 मिलियन ट्रेज़री बिल सहायता और क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान
- कैटरीना कैफ बनीं मालदीव की वैश्विक पर्यटन राजदूत
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