मलेरिया (Malaria) एक घातक संक्रामक रोग है, जो हर साल विश्वभर में लाखों लोगों की जान लेता है। हालांकि पिछले कुछ दशकों में वैश्विक स्तर पर मलेरिया उन्मूलन के प्रयासों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, फिर भी यह बीमारी अभी भी एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है। वर्ष 2023 में मलेरिया के कारण लगभग 6 लाख मौतें दर्ज की गईं। भारत ने भी मलेरिया नियंत्रण में सराहनीय उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन आदिवासी बहुल क्षेत्रों में यह बीमारी अब भी विकराल रूप में मौजूद है। भारत ने 2030 तक मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य तय किया है, जिसे नई पीढ़ी के टीकों, स्वदेशी अनुसंधान और बहुआयामी रणनीतियों के माध्यम से प्राप्त करने की योजना बनाई गई है।
वैश्विक स्तर पर मलेरिया की वर्तमान स्थिति
- वैश्विक बोझ (Global Burden):
वर्ष 2023 में दुनियाभर में मलेरिया के कारण लगभग 294 मिलियन (29.4 करोड़) लोग संक्रमित हुए। इनमें से लगभग 6 लाख लोगों की मौत हुई, जिनमें अधिकांश अफ्रीकी और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के निवासी थे। मलेरिया बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष रूप से घातक है। - प्रगति में रुकावट (Stagnation in Progress):
मलेरिया उन्मूलन की वैश्विक गति पिछले कुछ वर्षों में धीमी हो गई है। इसका मुख्य कारण मलेरिया परजीवियों का दवाओं के प्रति प्रतिरोध (Drug Resistance) विकसित करना और मच्छरों का कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधी (Insecticide Resistance) होना है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण और स्वास्थ्य सेवाओं की असमान उपलब्धता भी मलेरिया उन्मूलन के प्रयासों में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।
भारत में मलेरिया की स्थिति : उपलब्धियां और चुनौतियाँ
- उल्लेखनीय कमी (India’s Reduction):
भारत ने 2015 से 2023 के बीच मलेरिया मामलों में 80% से अधिक की कमी दर्ज की है। स्वास्थ्य मंत्रालय और विभिन्न राज्यों के संयुक्त प्रयासों, मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रमों, जागरूकता अभियानों और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के कारण यह सफलता मिली है। - संवेदनशील क्षेत्र (Persistent Pockets):
हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर मलेरिया मामलों में गिरावट आई है, फिर भी कुछ आदिवासी बहुल ज़िले अब भी उच्च संक्रमण दर से जूझ रहे हैं। मिज़ोरम का लॉन्गतलाई ज़िला प्रति 1,000 में 56 केस दर्ज कर रहा है, जबकि छत्तीसगढ़ का नारायणपुर ज़िला प्रति 1,000 में 22 केस की उच्च संक्रमण दर झेल रहा है। इन इलाकों में कठिन भूगोल, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और सामाजिक-आर्थिक कारक मलेरिया नियंत्रण में बाधक बने हुए हैं। - परजीवी की चुनौती (Species Challenge):
भारत में मलेरिया संक्रमण मुख्यतः दो प्रकार के परजीवियों से होता है:
Plasmodium falciparum : यह अधिक जानलेवा होता है और गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है।
Plasmodium vivax : यह बार-बार लौटने वाला मलेरिया है, जो रोगियों को बार-बार संक्रमित करता है।
- लक्षणहीन वाहक (Asymptomatic Carriers):
मलेरिया नियंत्रण में एक बड़ी चुनौती लक्षणहीन वाहक (Asymptomatic Carriers) हैं। झारखंड जैसे राज्यों में मलेरिया के लगभग 20% मामलों में संक्रमित व्यक्ति में कोई लक्षण नहीं दिखते, लेकिन वे मलेरिया के परजीवी को अन्य लोगों में फैला सकते हैं। यह स्थिति मलेरिया उन्मूलन प्रयासों के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
मलेरिया वैक्सीन विकास की स्थिति
पहली पीढ़ी की वैक्सीन्स (First Generation Vaccines):
- RTS,S वैक्सीन (2021):
RTS,S मलेरिया वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वर्ष 2021 में मंजूरी दी। यह वैक्सीन Plasmodium falciparum परजीवी के जीवनचक्र के एक विशेष चरण को निशाना बनाती है। इसकी प्रारंभिक प्रभावशीलता लगभग 55% रही, लेकिन 18 महीनों के भीतर इसका प्रभाव कम हो जाता है, जिससे चौथी बूस्टर खुराक की आवश्यकता पड़ती है। - R21/Matrix-M वैक्सीन (2023):
R21 वैक्सीन को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने मिलकर विकसित किया है। इसे 2023 में WHO की मंजूरी मिली। इसकी प्रभावशीलता लगभग 77% तक दर्ज की गई है। यह वैक्सीन कम खुराकों में भी असरदार है और भारत में सस्ती कीमत पर इसका उत्पादन किया जा रहा है।
सीमितताएँ (Limitations):
इन दोनों वैक्सीन्स की सबसे बड़ी सीमा यह है कि वे केवल परजीवी के एक जीवनचक्र चरण (Pre-erythrocytic Stage) को ही निशाना बनाती हैं। इससे दोबारा संक्रमण और संक्रमण का प्रसार संभव बना रहता है। इस कारण वैज्ञानिक नए और बहुआयामी टीकों के विकास की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
नवीन और उन्नत वैक्सीन्स (Next-Generation Vaccines)
- PfSPZ वैक्सीन:
PfSPZ वैक्सीन में किरणों से कमजोर किए गए Plasmodium falciparum परजीवी का उपयोग किया जाता है। इसे शिरा (Intravenous-IV) के माध्यम से दिया जाता है। तीसरी खुराक के बाद इस वैक्सीन ने लगभग 79% सुरक्षा प्रदान की है। यह वैक्सीन परजीवी के पूरे जीवनचक्र को लक्षित करने की क्षमता रखती है। - PfSPZ-LARC2:
यह PfSPZ वैक्सीन का संशोधित संस्करण है, जिसे एक खुराक में ही दिया जा सकता है। इसका उद्देश्य दूरदराज़ क्षेत्रों और आपातकालीन प्रकोप (Outbreak) वाले इलाकों में तेज़ असर दिखाना है। यह वैक्सीन जनजातीय और दुर्गम क्षेत्रों में मलेरिया उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। - PfRH5 वैक्सीन:
PfRH5 वैक्सीन Plasmodium falciparum परजीवी के रक्त-चरण (Blood Stage) के RH5 प्रोटीन को निशाना बनाती है। इसकी विशेषता यह है कि यह सभी स्ट्रेनों (Strains) पर असरदार है। इस वैक्सीन का परीक्षण यूके, गांबिया और बुर्किना फासो में किया गया है, जहाँ सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं।
भारत की रणनीति : मलेरिया मुक्त भारत की ओर
भारत ने 2030 तक मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए सरकार और स्वास्थ्य एजेंसियों ने बहुआयामी रणनीतियाँ अपनाई हैं:
- अगली पीढ़ी की वैक्सीन्स पर निवेश:
भारत में स्वदेशी अनुसंधान संस्थानों और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के सहयोग से प्रभावशाली और सस्ती वैक्सीन विकसित करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। R21 वैक्सीन इसका प्रमुख उदाहरण है। - संवेदनशील क्षेत्रों में लक्षित हस्तक्षेप:
जनजातीय और उच्च संक्रमण दर वाले क्षेत्रों में लक्षित हस्तक्षेप (Targeted Interventions) किए जा रहे हैं। मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयों, सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और मलेरिया निगरानी तंत्र को सशक्त किया जा रहा है। - लक्षणहीन वाहकों की पहचान और उपचार:
लक्षणहीन वाहकों की पहचान के लिए उन्नत परीक्षण विधियों (Advanced Diagnostic Tools) का उपयोग किया जा रहा है। साथ ही, संक्रमण के हर संदिग्ध मामले का उपचार सुनिश्चित किया जा रहा है। - मच्छरों के प्रजनन स्थलों का नियंत्रण:
स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों को मच्छरों के प्रजनन स्थलों की निगरानी और नियंत्रण में शामिल किया गया है। साथ ही, पर्यावरणीय प्रबंधन (Environmental Management) के माध्यम से मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। - जनजागरण और समुदाय की भागीदारी:
मलेरिया उन्मूलन के लिए जनजागरण अभियान चलाए जा रहे हैं। स्कूलों, पंचायतों और स्थानीय समुदायों को मलेरिया रोकथाम गतिविधियों में भागीदार बनाया जा रहा है।
निष्कर्ष
मलेरिया उन्मूलन की दिशा में भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन अंतिम लड़ाई अभी बाकी है। नई पीढ़ी के टीकों, स्वदेशी अनुसंधान, तकनीकी नवाचार और समुदाय की सक्रिय भागीदारी से भारत मलेरिया मुक्त भविष्य की ओर अग्रसर हो रहा है। यदि इन प्रयासों को सशक्त और निरंतर बनाए रखा गया, तो भारत 2030 तक मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य अवश्य प्राप्त कर सकेगा। मलेरिया के विरुद्ध यह जंग सिर्फ सरकारी प्रयासों से नहीं जीती जा सकती, बल्कि इसके लिए समाज के प्रत्येक वर्ग की सहभागिता अनिवार्य है।
इन्हें भी देखें –
- प्रधानमंत्री विकसित भारत रोजगार योजना (PM-VBRY)
- दिल्ली-मुंबई मार्ग के मथुरा-कोटा खंड पर कवच 4.0 का संचालन
- हिंदी नाटक और नाटककार – लेखक और रचनाएँ
- हिन्दी नाटक: इतिहास, स्वरुप, तत्व, विकास, नाटककार, प्रतिनिधि कृतियाँ और विशेषताएँ
- हिन्दी की प्रमुख कहानियाँ और उनके रचनाकार
- निसार सैटेलाइट लॉन्च 2025: पृथ्वी की निगरानी में भारत-अमेरिका की ऐतिहासिक साझेदारी
- आयुष्मान भारत 2025: 70+ वरिष्ठ नागरिकों को ₹5 लाख मुफ्त स्वास्थ्य कवरेज
- पृथ्वी पर मंगल ग्रह का सबसे बड़ा टुकड़ा 53 लाख डॉलर में बिका
- ट्रेकोमा (Trachoma) : वैश्विक स्वास्थ्य संकट से मुक्ति की ओर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि