जीवनी – परिभाषा, स्वरूप, भेद, साहित्यिक महत्व और उदाहरण

साहित्य में मनुष्य के जीवन और उसकी घटनाओं का वर्णन एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। मानव इतिहास में अनेक महापुरुषों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, योद्धाओं, समाजसेवकों और कलाकारों ने समाज को प्रेरित किया है। उनके जीवन के संघर्ष, उपलब्धियाँ, विचार और आदर्श नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनते हैं। इन्हीं जीवन प्रसंगों का कलात्मक, तथ्यपरक और सजीव चित्रण जब साहित्य में प्रस्तुत किया जाता है, तो वह जीवनी कहलाती है।

जीवनी मात्र घटनाओं का क्रमवार विवरण नहीं होती, बल्कि इसमें लेखक व्यक्ति-विशेष के जीवन को इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि पाठक उसके व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों को समझ सके और उससे प्रेरणा ले सके।

जीवनी की परिभाषा

जीवनी किसी व्यक्ति विशेष के सम्पूर्ण जीवन-वृत्त का तथ्यपरक, कलात्मक और सुंदर शैली में प्रस्तुत वर्णन है। अंग्रेज़ी में इसे Biography कहा जाता है। इसमें लेखक उस व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु (या वर्तमान) तक की महत्वपूर्ण घटनाओं, उपलब्धियों, संघर्षों और व्यक्तित्व का वर्णन करता है।

विशेषताएँ –

  1. इसमें घटनाओं की प्रस्तुति तथ्यपूर्ण और प्रमाणिक होती है।
  2. जीवन-चरित्र के साथ-साथ उस व्यक्ति के युग, समाज और परिस्थितियों का चित्रण भी होता है।
  3. भाषा आमतौर पर सजीव, रोचक और वर्णनात्मक होती है।
  4. लेखक का दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठ होना चाहिए।

डॉ. रामप्रकाश (दिल्ली विश्वविद्यालय) के अनुसार

“आधुनिक काल में गद्य की बहुलता और विविध विधाओं की रचना पद्धति के कारण पुराने चरित-काव्यों के स्थान पर गद्यबद्ध चरित्र अथवा जीवनवृत्त लिखने की परंपरा विकसित हुई, जिसका संक्षिप्त एवं सर्वमान्य नाम ‘जीवनी’ है।”

हिंदी की पहली जीवनी – नाभा दास कृत ‘भक्तमाल’

हिंदी साहित्य में जीवनी लेखन की परंपरा का प्रारंभ नाभा दास द्वारा रचित भक्तमाल (1585 ई.) से माना जाता है। इसे हिंदी की प्रथम जीवनी का गौरव प्राप्त है। यद्यपि प्राचीन और मध्यकालीन हिंदी साहित्य में संतों, कवियों और राजाओं के जीवन का वर्णन विभिन्न ग्रंथों और काव्यों में बिखरे रूप में मिलता है, किंतु भक्तमाल पहला ऐसा ग्रंथ है, जिसमें संगठित रूप से विभिन्न भक्त व्यक्तियों के जीवन-वृत्त का प्रस्तुतीकरण किया गया।

भक्तमाल अवधी भाषा में रचित है और इसमें लगभग 200 से अधिक संतों और भक्तों के जीवन का वर्णन संक्षिप्त किंतु अत्यंत प्रभावशाली शैली में किया गया है। नाभा दास स्वयं एक वैष्णव संत थे और उन्होंने इस ग्रंथ में भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों, साधकों और कवियों के जीवन प्रसंगों को श्रद्धा और सत्यनिष्ठा के साथ प्रस्तुत किया। इसमें व्यक्तियों के जीवन की घटनाएँ, उनके गुण, आचरण और भक्ति-भाव का वर्णन बड़ी सजीवता से किया गया है।

जीवनी की परिभाषा के अनुसार – किसी व्यक्ति विशेष के सम्पूर्ण जीवन-वृत्त का तथ्यपरक और कलात्मक चित्रण जीवनी कहलाता है। अंग्रेज़ी में इसे Biography कहते हैं। जीवनी को साहित्य में इतिहास, साहित्य और नायक की त्रिवेणी माना जाता है, क्योंकि इसमें व्यक्ति के जीवन के साथ-साथ उसके समय और सामाजिक संदर्भ का भी चित्रण होता है।

नाभा दास की भक्तमाल इस दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है कि इसमें न केवल व्यक्तियों के जीवन का संक्षिप्त विवरण है, बल्कि उनके युगीन योगदान और समाज में उनकी भूमिका का भी संकेत मिलता है। इसमें वर्णित संतों और भक्तों का चयन भी इस बात का प्रमाण है कि लेखक ने नायक के सम्पूर्ण जीवन और उपलब्धियों को प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।

इस प्रकार, भक्तमाल हिंदी साहित्य में जीवनी विधा का प्रथम संगठित उदाहरण है, जिसने आगे चलकर जीवनी लेखन की परंपरा को प्रेरित किया और साहित्य में इस विधा को एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।

हिंदी की पहली व्यक्तिगत जीवनी – ‘दयानंद दिग्विजय’

हालाँकि भक्तमाल (1585 ई.) को हिंदी साहित्य की पहली जीवनी माना जाता है, लेकिन यह एक सामूहिक जीवनी है, जिसमें अनेक संतों और भक्तों के संक्षिप्त जीवन-वृत्त शामिल हैं।
यदि केवल व्यक्तिगत जीवनी (जिसमें किसी एक व्यक्ति का जीवन-वृत्त विस्तार से लिखा गया हो) की बात करें, तो इसका श्रेय गोपाल शर्मा शास्त्री द्वारा रचित दयानंद दिग्विजय (1881 ई.) को जाता है। यह कृति आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन पर आधारित है और इसमें उनके जन्म से लेकर समाज-सुधार कार्यों तथा निधन तक की घटनाओं का वर्णन तथ्यपरक और प्रेरणादायक शैली में किया गया है।

इस प्रकार,

  • भक्तमाल – हिंदी की पहली सामूहिक जीवनी
  • दयानंद दिग्विजय – हिंदी की पहली प्रमुख व्यक्तिगत जीवनी

जीवनी का साहित्यिक महत्व

जीवनी इतिहास, साहित्य और नायक के जीवन की त्रिवेणी है। यह केवल सूखी ऐतिहासिक जानकारी नहीं देती, बल्कि व्यक्ति के जीवन को उस युग के संदर्भ में प्रस्तुत करती है। जीवनी के माध्यम से पाठक नायक की सफलताओं और असफलताओं, दोनों से सीख ले सकता है।

हिंदी साहित्य में जीवनियों के माध्यम से न केवल महापुरुषों के विचार संरक्षित हुए हैं, बल्कि उन्होंने राष्ट्रभक्ति, सामाजिक सुधार और सांस्कृतिक जागरूकता को भी बल दिया है।

जीवनी के प्रमुख भेद

जीवनी कई प्रकार की हो सकती है, जिनमें से प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं –

  1. आत्मीय जीवनी
    इसमें लेखक और जीवनी के नायक के बीच व्यक्तिगत संबंध होता है। लेखक नायक को निकट से जानता है, जिसके कारण वर्णन में आत्मीयता और सजीवता आ जाती है।
  2. लोकप्रिय जीवनी
    इनमें व्यापक जनसमुदाय के प्रिय और प्रसिद्ध व्यक्तित्व का वर्णन किया जाता है।
  3. ऐतिहासिक जीवनी
    इसमें ऐतिहासिक महत्त्व रखने वाले व्यक्ति के जीवन का वर्णन होता है। घटनाएँ पूरी तरह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित होती हैं।
  4. मनोवैज्ञानिक जीवनी
    इसमें व्यक्ति के मानसिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं का गहराई से विश्लेषण किया जाता है।
  5. व्यक्तिगत जीवनी
    इसमें व्यक्ति-विशेष के निजी जीवन, आदतों, रुचियों और स्वभाव का विस्तृत वर्णन होता है।
  6. कलात्मक जीवनी
    इसमें तथ्यों के साथ-साथ साहित्यिक सौंदर्य और कलात्मकता का भी समावेश होता है, जिससे पाठन रोचक बन जाता है।

आत्मकथा, जीवनी और डायरी – आपसी संबंध

इन तीनों विधाओं में व्यक्ति के जीवन का वर्णन होता है, लेकिन उनके स्वरूप और दृष्टिकोण में अंतर है –

  • आत्मकथा – व्यक्ति स्वयं अपने जीवन का वर्णन करता है। इसमें वर्णन आत्मनिष्ठ (subjective) और पूरी तरह सत्य आधारित होता है।
  • जीवनी – किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखी जाती है, इसलिए इसमें वस्तुनिष्ठ (objective) दृष्टिकोण अपनाया जाता है, लेकिन कुछ बातें अनुमान आधारित भी हो सकती हैं।
  • डायरी – इसमें लेखक रोज़ाना के अनुभव और घटनाएँ तत्काल लिखता है। यह समयक्रम में होती है और अधिकतर व्यक्तिगत भावनाओं से जुड़ी रहती है।

आत्मकथा और जीवनी में अंतर

पहलूजीवनीआत्मकथा
लेखककोई अन्य व्यक्तिस्वयं व्यक्ति
दृष्टिकोणवस्तुनिष्ठआत्मनिष्ठ
प्रमाणिकताअपेक्षाकृत कम (कुछ बातें अनुमानित)अधिक, क्योंकि लेखक स्वयं घटनाओं का साक्षी है
शैलीवर्णात्मकआत्मकथात्मक, भावनात्मक और व्यक्तिगत

आत्मकथा और डायरी में अंतर

पहलूआत्मकथाडायरी
समय क्रमकालक्रम आवश्यक नहींकालक्रम अनिवार्य
लेखन समयजीवन के किसी भी पड़ाव परघटना घटने के तुरंत बाद
सामग्रीजीवन का बड़ा हिस्सा, स्मृति आधारित भीताज़ा अनुभव और घटनाएँ
उद्देश्यसंपूर्ण जीवन का चित्रणदैनिक घटनाओं और भावनाओं का संकलन

हिंदी साहित्य में आत्मकथा और डायरी के उदाहरण

  • प्रमुख आत्मकथाएँ
    • अर्धकथानक (1941, बनारसी दास जैन) – हिंदी की पहली पद्यबद्ध आत्मकथा।
    • प्रवासी की आत्मकथा (भवानी दयाल संन्यासी) – गद्य में पहली महत्वपूर्ण आत्मकथा।
    • अन्य प्रमुख लेखक – महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, श्यामसुंदर दास (मेरी आत्मकहानी), वियोगी हरि, बच्चन, पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, देवेन्द्र सत्यार्थी।
  • प्रमुख डायरी लेखक
    • महात्मा गांधी, जमनालाल बजाज, बच्चन, मोहन राकेश, धीरेन्द्र वर्मा, मुक्तिबोध (एक साहित्यिक की डायरी), दिनकर, जयप्रकाश नारायण।

हिंदी में प्रसिद्ध जीवनीकार और उनकी कृतियाँ

  • रामविलास शर्मानिराला की साहित्य साधना (भाग 1 एवं 2)
  • अमृत रायकलम का सिपाही
  • मदन गोपालकलम का जादूगर
  • विष्णु प्रभाकरआवारा मसीहा

जीवनी के ऐतिहासिक उदाहरण

क्रमजीवनीजीवनीकार (लेखक)
1भक्तमाल (1585 ई.)नाभा दास
2चौरासी वैष्णवन की वार्ता, दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता (17वीं सदी)गोसाई गोकुलनाथ
3दयानंद दिग्विजय (1881 ई.)गोपाल शर्मा शास्त्री
4नेपोलियन बोनापार्ट का जीवन चरित्र (1883 ई.)रमाशंकर व्यास
5महाराजा मान सिंह का जीवन चरित्र (1883), राजा मालदेव (1889), उदय सिंह महाराजा (1893), जसवंत सिंह (1896), प्रताप सिंह महाराणा (1903), संग्राम सिंह राणा (1904)देवी प्रसाद मुंसिफ
6अहिल्याबाई का जीवन चरित्र (1887), छत्रपति शिवाजी का जीवन चरित्र (1890), मीराबाई का जीवन चरित्र (1893)कार्तिक प्रसाद खत्री
7श्री नागरीदास जी का जीवन चरित्र (1894), कविवर बिहारी लाल (1895), सूरदास (1900), भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (1904)राधाकृष्ण दास
8स्वामी दयानंद महाराज का जीवन चरित्र (1896)बलभद्र मिश्र
9कर्नल जेम्स टॉड (1902)गौरीशंकर हीराचंद ओझा
10हरिश्चन्द्र (1905)शिवनंदन सहाय

जीवनी लेखन की आवश्यकताएँ

  1. तथ्यों की प्रमाणिकता – बिना पुष्ट प्रमाण के कोई घटना नहीं लिखनी चाहिए।
  2. संतुलित दृष्टिकोण – प्रशंसा और आलोचना दोनों निष्पक्ष हों।
  3. सजीव वर्णन – व्यक्ति के स्वभाव, आदतों और जीवन-शैली का चित्रण जीवंत हो।
  4. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – व्यक्ति के समय, समाज और परिस्थिति का विवरण अवश्य दिया जाए।
  5. प्रेरणात्मकता – जीवनी से पाठक को सकारात्मक प्रेरणा मिलनी चाहिए।

निष्कर्ष

जीवनी साहित्य का वह विधागत रूप है, जिसमें किसी व्यक्ति के जीवन के उतार-चढ़ाव, संघर्ष और उपलब्धियों का जीवंत और तथ्यपूर्ण चित्रण किया जाता है। यह न केवल एक व्यक्ति के जीवन की कहानी है, बल्कि उसके युग, समाज और सांस्कृतिक परिस्थितियों का भी साक्ष्य होती है। हिंदी साहित्य में प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक अनेक महत्वपूर्ण जीवनियाँ लिखी गई हैं, जिन्होंने समाज को दिशा और प्रेरणा दी है।

जीवनी लेखन का उद्देश्य मात्र घटनाओं का संकलन करना नहीं, बल्कि व्यक्तित्व को इस तरह उभारना है कि पाठक उसके जीवन से जुड़ाव महसूस करे और उससे सीख ले सके। इस दृष्टि से जीवनी साहित्यिक और ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टि से अमूल्य धरोहर है।


इन्हें भी देखें –

Leave a Comment

Contents
सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.