डायरी – परिभाषा, महत्व, लेखन विधि, अंतर और साहित्यिक उदाहरण

मानव सभ्यता के इतिहास में अपनी भावनाओं, विचारों, अनुभवों और घटनाओं को सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति प्राचीन काल से ही रही है। कभी यह शिलालेखों में अंकित हुई, कभी पत्रों में, तो कभी निजी पुस्तिकाओं में। इन निजी लेखनों में “डायरी” का विशेष स्थान है। डायरी केवल दैनिक घटनाओं का लेखा-जोखा नहीं, बल्कि लेखक के आत्मसंवाद, मनोभाव और जीवन-दृष्टि का प्रतिबिंब होती है। यह व्यक्ति के अंतरंग संसार की झलक देती है, जिसमें उसकी खुशियाँ, दुख, संघर्ष, सपने, संदेह और अनुभव सब समाहित रहते हैं।

डायरी क्या है?

‘डायरी’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है — “जो प्रतिदिन लिखी जाए”
अर्थात, प्रतिदिन की विशेष घटनाएँ — प्रिय अथवा अप्रिय — जिन्हें लेखक ने अनुभव किया हो और जिनका मन पर कोई प्रभाव पड़ा हो, उन्हें क्रमवार लिखित रूप में दर्ज करना ही डायरी कहलाता है।

डायरी, गद्य साहित्य की एक प्रमुख विधा है। इसमें लेखक प्रायः आत्म-साक्षात्कार करता है। वह अपने आप से संवाद करता है, अपने मन की गहराइयों में उतरकर अपनी सोच, भावनाएँ और अनुभवों को शब्द देता है।

मुख्य विशेषताएँ:

  • गद्य साहित्य की प्रमुख विधा
  • आत्म-साक्षात्कार और आत्मसंवाद का माध्यम
  • घटनाओं का समयानुक्रमिक लेखा-जोखा
  • निजी भावनाओं और अनुभवों की अभिव्यक्ति

डायरी शब्द की उत्पत्ति (Etymology)

“डायरी” शब्द की जड़ें प्राचीन लैटिन भाषा में निहित हैं। लैटिन में “diarium” का अर्थ है “दैनिक भत्ता” (daily allowance), जो स्वयं “dies” शब्द से बना है, जिसका अर्थ है “दिन”
इसी मूल शब्द से अंग्रेज़ी का “journal” शब्द भी निकला है, जो लैटिन “diurnus” (of the day, अर्थात दिन का) से होकर पुरानी फ्रेंच के “jurnal” में रूपांतरित हुआ। आधुनिक फ़्रेंच में दिन के लिए “jour” शब्द प्रयुक्त होता है।

ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेज़ी में “diary” शब्द का सबसे प्रारंभिक संदर्भ 1605 ई. में मिलता है, जब ब्रिटिश नाटककार Ben Jonson ने अपनी प्रसिद्ध हास्य-रचना “Volpone” में इसका प्रयोग किया। उस समय “diary” का आशय एक ऐसे पुस्तक से था, जिसमें दैनिक घटनाओं का क्रमबद्ध लेखा-जोखा रखा जाता था।

इस प्रकार, शब्द की उत्पत्ति से स्पष्ट है कि “डायरी” मूल रूप से दिन-प्रतिदिन के लेखन की अवधारणा से जुड़ी है — चाहे वह व्यक्तिगत अनुभव हों, घटनाएँ हों या विचार।

डायरी का महत्व

  1. आत्म-अभिव्यक्ति का माध्यम – डायरी व्यक्ति को अपनी भावनाओं, विचारों और अनुभवों को अभिव्यक्त करने का सुरक्षित व स्वतंत्र मंच देती है।
  2. व्यक्तिगत इतिहास का दस्तावेज – यह लेखक के जीवन का समयानुक्रमिक दस्तावेज बन जाती है।
  3. मन का बोझ हल्का करना – जो बातें व्यक्ति किसी से साझा नहीं कर पाता, उन्हें डायरी में लिखकर मानसिक राहत पाता है।
  4. आत्मविश्लेषण – बीते हुए दिनों की डायरी पढ़कर व्यक्ति अपने विचारों, गलतियों और प्रगति का विश्लेषण कर सकता है।
  5. भविष्य के लिए प्रेरणा – महान व्यक्तियों की डायरी उनके निधन के बाद भी समाज को प्रेरित करती है।

हिंदी साहित्य की प्रथम डायरी

हिंदी साहित्य में डायरी लेखन का स्वरूप अपेक्षाकृत आधुनिक है। यद्यपि व्यक्तिगत अनुभवों, घटनाओं और विचारों को तिथिवार दर्ज करने की परंपरा प्राचीन काल से रही है, किंतु इसे साहित्यिक रूप में प्रकाशित करने की प्रवृत्ति 20वीं शताब्दी के मध्य में आकार ग्रहण करती है। इससे पहले डायरी लेखन मुख्यतः निजी प्रयोजन तक सीमित था और बहुत कम रचनाएँ प्रकाशन के रूप में सामने आ पाती थीं।

हिंदी में प्रकाशित पहली डायरी श्रीराम शर्मा की “सेवाग्राम की डायरी” (1946) मानी जाती है। यह कृति केवल लेखक के व्यक्तिगत अनुभवों का संकलन नहीं है, बल्कि उस समय के भारत के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का भी जीवंत चित्र प्रस्तुत करती है। इसमें स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम चरण की हलचल, ग्रामीण जीवन की झलक, तथा लेखक की आत्ममंथन-प्रधान दृष्टि स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

“सेवाग्राम की डायरी” का प्रकाशन हिंदी साहित्य के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध हुआ। इसने डायरी को केवल निजी भावनाओं और स्मृतियों का संग्रह न मानकर उसे एक साहित्यिक दस्तावेज़ के रूप में प्रतिष्ठित किया। इसके बाद अनेक साहित्यकारों ने अपनी डायरियाँ प्रकाशित कीं, जिनमें व्यक्तिगत जीवन के साथ-साथ समकालीन समाज का भी सशक्त चित्रण सामने आया।

इस प्रकार, श्रीराम शर्मा की यह कृति हिंदी साहित्य में डायरी विधा के विकास की आधारशिला मानी जाती है, जिसने आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया और इस विधा को गद्य-साहित्य की एक स्वतंत्र व सम्मानित पहचान प्रदान की।

डायरी बनाम आत्मकथा और जीवनी

डायरी, आत्मकथा और जीवनी — तीनों में व्यक्ति के जीवन की झलक मिलती है, लेकिन इनकी प्रकृति, संरचना और उद्देश्य अलग-अलग होते हैं।

विशेषताआत्मकथाजीवनीडायरी
लेखकस्वयं व्यक्तिकोई अन्य व्यक्तिस्वयं व्यक्ति
सामग्रीजीवन का सम्पूर्ण विवरणजीवन का सम्पूर्ण विवरणदैनिक घटनाएँ
कालक्रमप्रायः कालक्रम का पालन नहींप्रायः कालक्रम का पालनसदैव कालक्रमानुसार
सत्यताआत्मनिष्ठअनुमान भी सम्मिलितआत्मनिष्ठ
वस्तुनिष्ठतानहींहाँनहीं
अनुभव का स्वरूपस्मृति-जन्य भीसूचना और अनुसंधान आधारिततत्कालीन और ताजे अनुभव

आत्मकथा और जीवनी में अंतर

  1. लेखन का दृष्टिकोण – आत्मकथा आत्मनिष्ठ होती है, जीवनी वस्तुनिष्ठ।
  2. लेखक का स्थान – आत्मकथा लेखक स्वयं लिखता है, जीवनी कोई अन्य व्यक्ति।
  3. सत्यता – आत्मकथा अधिक प्रमाणिक मानी जाती है, जबकि जीवनी में कई बातें अनुमान आधारित हो सकती हैं।

आत्मकथा और डायरी में अंतर

  1. डायरी सदैव कालानुक्रमिक होती है, आत्मकथा में यह आवश्यक नहीं।
  2. डायरी में ताजे अनुभव दर्ज होते हैं, आत्मकथा में अतीत के अनुभव।
  3. डायरी तुरंत लिखी जाती है, आत्मकथा स्मृति के आधार पर।

आत्मकथा और जीवनी के साहित्यिक उदाहरण

हिंदी की पहली आत्मकथा

  • पद्य में – बनारसी दास जैन की “अर्धकथानक” (1641 ई.)
  • गद्य में – भवानी दयाल संन्यासी की “प्रवासी की आत्मकथा”

अन्य प्रसिद्ध आत्मकथाएँ

  • महात्मा गांधी – “सत्य के प्रयोग”
  • जवाहरलाल नेहरू – “मेरी कहानी”
  • हरिवंश राय बच्चन – “क्या भूलूँ क्या याद करूँ”, “नीड़ का निर्माण फिर”, “बस इतनी सी बात”, “दशद्वार से सॉपान तक”
  • श्याम सुंदर दास – “मेरी आत्मकहानी”
  • पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, विनोद शंकर व्यास, देवेन्द्र सत्यार्थी आदि।

हिंदी की प्रमुख जीवनियाँ

  • “निराला की साहित्य साधना” (भाग 1 और 2) – रामविलास शर्मा
  • कलम का सिपाही – अमृत राय (प्रेमचंद की जीवनी)
  • “कलम का जादूगर” – मदन गोपाल
  • “आवारा मसीहा” – विष्णु प्रभाकर (शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की जीवनी)

हिंदी साहित्य में डायरी लेखन

हिंदी साहित्य में डायरी लेखन ने एक सशक्त विधा के रूप में स्थान प्राप्त किया है। कई प्रसिद्ध साहित्यकारों और नेताओं ने अपनी डायरी लिखी, जो बाद में साहित्य और इतिहास के महत्वपूर्ण दस्तावेज बन गए।

प्रमुख डायरी लेखक और उनकी कृतियाँ

  • महात्मा गांधी – उनकी डायरियों से उनके निजी विचार, आध्यात्मिक दृष्टिकोण और राजनीतिक रणनीतियाँ समझी जा सकती हैं।
  • जमनालाल बजाज – सामाजिक और स्वदेशी आंदोलन के अनुभवों का अमूल्य भंडार।
  • हरिवंश राय बच्चन – अपनी आत्मकथात्मक कृतियों के साथ-साथ उन्होंने डायरी लेखन में भी योगदान दिया।
  • मोहन राकेश – उनके लेखन में साहित्यिक संवेदनशीलता और आत्मविश्लेषण प्रमुखता से मिलता है।
  • धीरेंद्र वर्मा – साहित्य और भाषा पर गहन दृष्टिकोण वाली डायरी।
  • मुक्तिबोध“एक साहित्यिक की डायरी” उनकी साहित्यिक दृष्टि और रचनात्मक संघर्ष का जीवंत चित्रण है।
  • रामधारी सिंह दिनकर – उनके राजनीतिक और साहित्यिक जीवन के अनुभव डायरी में स्पष्ट झलकते हैं।
  • जय प्रकाश नारायण – उनके संघर्षमय जीवन का प्रामाणिक दस्तावेज।

डायरी कैसे लिखें?

डायरी लिखने का कोई एक निश्चित, कठोर नियम नहीं होता। यह पूरी तरह व्यक्ति की स्वाभाविक प्रवृत्ति और आवश्यकता पर निर्भर करता है। फिर भी, कुछ आधारभूत बातें हैं जो डायरी लेखन को प्रभावी बना सकती हैं —

  1. समय का चुनाव – प्रायः डायरी सोने से पहले लिखी जाती है, ताकि पूरे दिन की घटनाओं का स्पष्ट चित्रण हो सके।
  2. तिथि, दिन और समय का उल्लेख – डायरी के प्रत्येक पृष्ठ के शीर्ष पर यह लिखना आवश्यक है, ताकि घटनाएँ समयानुक्रम में व्यवस्थित रहें।
  3. स्थान का उल्लेख – घटनाओं का सही संदर्भ देने के लिए स्थान का नाम भी जोड़ना उचित है।
  4. स्पष्टता और सरलता – भाषा सरल, स्पष्ट और संक्षिप्त होनी चाहिए।
  5. आत्मीयता – डायरी व्यक्तिगत दस्तावेज है, इसलिए इसमें ईमानदारी और आत्मीयता का भाव होना चाहिए।
  6. हस्ताक्षर – पृष्ठ के अंत में अपने हस्ताक्षर करने से यह निजी स्वामित्व का प्रमाण बन जाती है।
  7. अनुभव का विश्लेषण – केवल घटनाओं का विवरण ही नहीं, बल्कि उनका आप पर और समाज पर क्या प्रभाव पड़ा, यह भी लिखें।
  8. संक्षिप्तता – अनावश्यक विस्तार से बचें, ताकि लेखन बोझिल न हो।
  9. प्रेरणादायक शुरुआत – यदि लिखने का मन न हो, तो कोई प्रेरणादायक उद्धरण या पंक्ति से शुरुआत की जा सकती है।

डायरी लेखन का एक काल्पनिक उदाहरण

तिथि – 12 अगस्त 2025
दिन – मंगलवार
समय – रात 10:45 बजे
स्थान – नई दिल्ली

आज का दिन कई मायनों में खास रहा। सुबह-सुबह बारिश की हल्की फुहारों ने पूरे शहर को तरोताज़ा कर दिया। बरसात की महक जैसे बचपन की यादें ताज़ा कर रही थी — वह भीगते हुए स्कूल जाना, गीली किताबों की खुशबू, और माँ का गरम-गरम पराठा बनाना।

दफ्तर में आज मीटिंग थोड़ी तनावपूर्ण थी, लेकिन मुझे खुशी है कि मैंने शांत रहकर अपना पक्ष स्पष्ट किया। लगता है, धीरे-धीरे आत्मविश्वास बढ़ रहा है। सहकर्मी अनु ने भी बाद में कहा, “आज आपने बहुत अच्छा बोला।” यह सुनकर मन हल्का और प्रसन्न हो गया।

शाम को घर लौटते समय रास्ते में एक छोटा-सा दृश्य दिल को छू गया — एक छोटा लड़का फुटपाथ पर अपनी बहन को पढ़ा रहा था। शायद उसके पास किताबें ज़्यादा नहीं थीं, लेकिन उसकी आँखों में सीखने की चमक साफ दिख रही थी। लगा, जीवन में संसाधनों से ज़्यादा ज़रूरी है सीखने की ललक।

रात को बारिश फिर शुरू हो गई। खिड़की के पास बैठकर चाय पीते हुए मैंने सोचा — हम रोज़मर्रा की भागदौड़ में कितनी सुंदर चीज़ों को अनदेखा कर देते हैं। शायद डायरी लिखने का यही तो फायदा है — हम इन पलों को पकड़कर हमेशा के लिए सहेज सकते हैं।

निष्कर्ष: आज का दिन मुझे यह याद दिला गया कि हर दिन में एक छोटी-सी प्रेरणा छुपी होती है, बस हमें उसे देखना आता होना चाहिए।

हस्ताक्षर:
— अ

निष्कर्ष

डायरी केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन का जीवंत चित्रण है। यह आत्मसंवाद का सबसे ईमानदार माध्यम है, जिसमें लेखक अपने हृदय की गहराइयों को बिना किसी दिखावे के उकेरता है। डायरी लेखन की परंपरा ने न केवल व्यक्तिगत जीवन को संजोया है, बल्कि साहित्य और इतिहास को भी समृद्ध किया है।

महान व्यक्तियों की डायरी हमें यह सिखाती है कि जीवन के छोटे-छोटे अनुभव भी भविष्य में अमूल्य हो सकते हैं। चाहे वह गांधी जी के सत्य और अहिंसा के विचार हों, मुक्तिबोध का साहित्यिक संघर्ष हो, या बच्चन की संवेदनशील अभिव्यक्ति — डायरी ने उन्हें अमर बना दिया।

इसलिए, यदि आप अपनी स्मृतियों, अनुभवों और विचारों को संजोना चाहते हैं, तो डायरी लिखना शुरू कीजिए। यह न केवल आपके वर्तमान को संरक्षित करेगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनेगी।


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