हिन्दी के यात्रा-वृत्त और यात्रा-वृत्तान्तकार – लेखक और रचनाएँ

मानव स्वभावतः जिज्ञासु है। अज्ञात को जानने, देखने और अनुभव करने की उसकी इच्छा उसे स्थान-स्थान की यात्राओं के लिए प्रेरित करती है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना ही यात्रा कहलाता है, और जब यात्री अपने अनुभवों, दृश्यावलियों, लोगों, संस्कृति, भूगोल, रीति-रिवाज और भावनाओं का विवरण लिखित रूप में प्रस्तुत करता है, तो उसे यात्रा-वृत्त या यात्रा-वृत्तान्त कहा जाता है।
यात्रा-वृत्त न केवल भौगोलिक और सांस्कृतिक जानकारी का साधन है, बल्कि यह लेखक की दृष्टि, संवेदना और समय-परिस्थिति का भी दर्पण होता है।

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यात्रा-वृत्त और यात्रा-वृत्तान्त की परिभाषा

  • यात्रा – एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की क्रिया।
  • वृत्त / वृत्तान्त – घटनाओं का विवरण।
    इस प्रकार, यात्रा-वृत्त का अर्थ हुआ — यात्रा के क्रम, दृश्य, अनुभव और घटनाओं का क्रमबद्ध वर्णन।
    यात्रा-वृत्तान्तकार वह व्यक्ति है जो इस प्रकार के यात्रा-वृत्त लिखता है।

हिन्दी साहित्य में यात्रा-वृत्त की शुरुआत

हिन्दी का पहला यात्रा-वृत्त “सरयू पार की यात्रा” माना जाता है, जिसका रचनाकाल 1871 ई. है और इसके लेखक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हैं। भारतेन्दुजी ने अपनी यात्राओं का वर्णन अत्यंत सरल, जीवंत और रोचक शैली में किया, जिसमें न केवल स्थलों का वर्णन है, बल्कि उस समय की सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक झलक भी है।

भारतेन्दु काल से ही यात्रा-वृत्त हिन्दी गद्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गया। बाद में अनेक लेखकों ने इस विधा में योगदान दिया और यह क्षेत्र विदेश यात्राओं, तीर्थ यात्राओं, पर्वतीय भ्रमण और सांस्कृतिक अभियानों तक विस्तारित हो गया।

हिन्दी में यात्रा-वृत्त का विकास-क्रम

यात्रा-वृत्तों का विकास मोटे तौर पर तीन चरणों में देखा जा सकता है —

  1. प्रारंभिक काल (1871–1900) – इस दौर में अधिकतर यात्रा-वृत्त तीर्थ यात्राओं या देश के महत्वपूर्ण नगरों की यात्राओं पर आधारित थे। भाषा सरल और विवरणात्मक होती थी।
  2. मध्यकाल (1901–1947) – इस समय देश-विदेश के भ्रमण, राजनीतिक यात्राएँ, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और समाज सुधार के उद्देश्यों से यात्राएँ हुईं।
  3. आधुनिक काल (1947 के बाद) – स्वतंत्रता के बाद यात्रा-वृत्त का दायरा अत्यंत विस्तृत हुआ। अब इसमें व्यक्तिगत संवेदनाएँ, सांस्कृतिक तुलना, राजनीतिक दृष्टिकोण, सामाजिक आलोचना और रोमांचक साहसिक यात्राएँ भी सम्मिलित हैं।

हिन्दी के प्रमुख यात्रा-वृत्त और उनके लेखक

नीचे दी गई तालिका में हिन्दी यात्रा-वृत्तों का एक समृद्ध संकलन प्रस्तुत है। इसमें लेखक, रचनाओं के नाम और प्रकाशन वर्ष को क्रमवार दर्शाया गया है —

क्रमयात्रा-वृत्त (प्रकाशन वर्ष)यात्रा-वृत्तान्तकार
1सरयू पार की यात्रा, मेंहदावल की यात्रा, लखनऊ की यात्रा, हरिद्वार की यात्रा (1871–1879)भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
2लंदन यात्रा (1883)श्रीमती हरदेवी
3लंदन का यात्री (1884)भगवान दास वर्मा
4मेरी पूर्व दिग्यात्रा (1885), मेरी दक्षिण दिग्यात्रा (1886)दामोदर शास्त्री
5ब्रजविनोद (1888)तोताराम वर्मा
6रामेश्वरम यात्रा (1893), बद्रिकाश्रम यात्रा (1902)देवी प्रसाद खत्री
7गया यात्रा (1894)बाल कृष्ण भट्ट
8विलायत यात्रा (1897)प्रताप नारायण मिश्र
9चीन में तेरह मास (1902)ठाकुर गदाधर सिंह
10अमरीका दिग्दर्शन (1911), मेरी कैलाश यात्रा (1915), अमरीका भ्रमण (1916), मेरी जर्मन यात्रा (1926), यूरोप की सुखद स्मृतियां (1937), अमरीका प्रवास की मेरी अद्भुत कहानी (1937), मेरी पाँचवी जर्मनी यात्रास्वामी सत्यदेव परिव्राजक
11पृथ्वी प्रदक्षिणा (1914)शिव प्रसाद गुप्त
12लंका यात्रा (1916)गोपालराम गहमरी
13मेरी लद्दाख यात्रा (1916), लंका यात्रावलि (1927-28), मेरी यूरोप यात्रा (1932), मेरी तिब्बत यात्रा (1934), यात्रा के पन्ने (1934-36), मेरी यूरोप यात्रा (1935), जापान (1935), ईरान (1935-37), तिब्बत में सवा वर्ष (1939), किन्नर देश में (1940), रूस में पच्चीस मास (1944-47), घुमक्कड़ शास्त्र (1949), एशिया के दुर्गम खंडों में (1956), चीन में कम्यून (1959)राहुल सांकृत्यायन
14रूस की सैर (1929), आँखों देखा रूस (1953)जवाहरलाल नेहरू
15मेरी ईरान यात्रा (1930)मौलवी महेश प्रसाद
16हमारी जापान यात्रा (1931), मेरी ईराक यात्रा (1940)कन्हैयालाल मिश्र ‘आर्योपदेशक’
17यूरोप यात्रा में छः मास (1932)राम नारायण मिश्र
18मेरी यूरोप यात्रा (1932)गणेश नारायण सोमानी
19उत्तराखण्ड के पथ पर (1936)प्रो. मनोरंजन
20हमारा प्रधान उपनिवेश (1938), सुदूर दक्षिण पूर्व (1951), पृथ्वी परिक्रमा (1954)सेठ गोविन्द दास
21स्वदेश-विदेश यात्रा (1940)संता राम
22सागर प्रवास (1940)सूर्य नारायण व्यास
23आवारे की यूरोप यात्रा (1940), युद्ध यात्रा (1940)सत्य नारायण
24पैरों में पंख बाँधकर (1952), उड़ते चलो, उड़ते चलो (1954)राम वृक्ष बेनीपुरी
25लोहे की दीवार के दोनों ओर (1953), जय अमरनाथ (1955), राह बीती (1956), उत्तराखंड के पथ पर (1958), स्वर्गाद्यान बिना साँप (1975)यशपाल
26अरे यायावर, रहेगा याद? (1953), एक बूंद सहसा उछली (1960)अज्ञेय
27आखिरी चट्टान तक (1953)मोहन राकेश
28कलकत्ता से पीकिंग (1954), सागर की लहरों पर (1959)भगवत शरण उपाध्याय
29आज का जापानभदंत आनंद कौसल्यायन
30हालैण्ड में पच्चीस दिन (1954), बदलते रूस में (1958)आर. आर. खाडिलकर
31मेरी अफ्रीका यात्रा (1955)स्वामी सत्यभक्त
32सुबह के रंगअमृत राय
33नंदन से लंदन (1957)ब्रज किशोर नारायण
34देश-विदेश यात्रा (1957), मेरी यात्राएँ (1970)दिनकर
35आँखों देखा यूरोप (1958)भुवनेश्वर प्रसाद ‘भुवन’
36पार उतरि कहँ जइहों (1958), धूप में सोई नदी (1976)प्रभाकर द्विवेदी
37अरबों के देश में (1960)गोपाल प्रसाद व्यास
38हरी घाटी (1961)रघुवंश
39गोरी नजरों में हम (1964)प्रभाकर माचवे
40चीड़ों पर चाँदनी (1964)निर्मल वर्मा
41रूसी सफरनामा (1971)बलराज साहनी
42अप्रवासी की यात्राएँ (1972)डॉ. नगेन्द्र
43गाँधी के देश से लेनिन के देश में (1973)शंकर दयाल सिंह
44अपोलो का रथ (1975)श्रीकांत वर्मा
45खण्डित यात्राएँ (1975), कश्मीर : रात के बाद (1997), आँखों देखा पाकिस्तान (2006)कमलेश्वर
46धुंध भरी सुर्खी (1979), दरख्तों के पार शाम (1980), झूलती जड़े (1990), परतों के बीच (1997)गोविन्द मिश्र
47धरती लाल गुलाबी चेहरे (1982)कन्हैया लाल नंदन
48ज्योति पुंज हिमालय (1982), हमसफर मिलते रहे (1996)विष्णु प्रभाकर
49सफरी झोले में (1958), यहाँ से कहीं भी (1997)अजित कुमार
50हवा में तैरते हुए (1986)राजेन्द्र अवस्थी
51तना हुआ इन्द्रधनुष (1990), भोर का सपना (1993), पड़ोस की खुशबू (1999)राम दरश मिश्र
52यात्रा चक्र (1995)धर्मवीर भारती
53सब्जा पत्र कथा कहै (1996)शिव प्रसाद सिंह
54लिबर्टी के देश में (1997)सीतेश आलोक
55आधी रात का सफर (1998)वल्लभ डोभाल
56यातना शिविर में (1998)हिमांशु जोशी
57जापान में कुछ दिन (2003)कृष्णदत्त पालीवाल
58कितना अकेला आकाश (2003)नरेश मेहता
59जहाँ फव्वारे लहू रोते हैं (2003)नासिरा शर्मा
60क्या हाल हैं चीन के (2006), पश्चिमी जर्मनी पर उड़ती नजर (2006)मनोहर श्याम जोशी

यात्रा-वृत्तान्तकार और उनकी उल्लेखनीय रचनाएँ

हिंदी साहित्य में यात्रा-वृत्तान्त वह विधा है जिसमें लेखक किसी स्थान-विशेष की यात्रा के अनुभव, दृश्य, सामाजिक-सांस्कृतिक स्थितियों और वहाँ के प्राकृतिक परिवेश का सजीव चित्रण करता है। यह केवल स्थान-परिवर्तन का विवरण नहीं, बल्कि लेखक की दृष्टि से संसार को देखने का माध्यम भी है।

हिंदी में यात्रा-वृत्तान्त लेखन की परंपरा का आरंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। उनके यात्रा-वर्णन कविवचन सुधा में प्रकाशित हुए। आधुनिक हिंदी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन, अज्ञेय और नागार्जुन को “घुमक्कड़ बृहतत्रयी” कहा जाता है। समय के साथ यह विधा और अधिक समृद्ध हुई और अनगिनत रचनाकारों ने इसमें योगदान दिया।

नीचे प्रमुख हिंदी यात्रा-वृत्तान्तकारों और उनकी उल्लेखनीय रचनाओं की क्रमबद्ध सूची प्रस्तुत है—

भारतेन्दु हरिश्चंद्र

  • सरयू पार की यात्रा
  • मेंहदावल की यात्रा
  • लखनऊ की यात्रा

प्रताप नारायण मिश्र

  • विलायत यात्रा

राहुल सांकृत्यायन

  • मेरी तिब्बत यात्रा
  • मेरी लद्दाख यात्रा
  • किन्नर देश में
  • रूस में पच्चीस मास
  • घुमक्कड़ शास्त्र
  • यात्रा के पन्ने
  • एशिया के दुर्गम भूखंड
  • चीन में कम्यून
  • चीन में क्या देखा
  • राहुल यात्रावली

रामबृक्ष बेनीपुरी

  • पैरों में पंख बाँधकर
  • उड़ते चलो-उड़ते चलो

यशपाल

  • लोहे की दीवार के दोनों ओर
  • राह बीती

काका कलेलकर

  • हिमालय की यात्रा
  • सूर्योदय का देश

अज्ञेय

  • अरे यायावर, रहेगा याद? (स्वदेश यात्रा)
  • एक बूँद सहसा उछली (विदेश यात्रा)
  • बहता निर्मल पानी

भगवतशरण उपाध्याय

  • कलकत्ता से पोलिंग
  • सागर की लहरों पर

रामधारी सिंह ‘दिनकर’

  • देश-विदेश
  • मेरी यात्राएँ

प्रभाकर माचवे

  • गोरी नज़रों में हम

मोहन राकेश

  • आखिरी चट्टान तक

रघुवंश

  • हरी घाटी

निर्मल वर्मा

  • चीड़ों पर चाँदनी
  • हँसती घाटी दहकते निर्जन

धर्मवीर भारती

  • यादें यूरोप की
  • यात्रा चक्र
  • ठेले पर हिमालय

विष्णु प्रभाकर

  • हँसते निर्झर: दहकती भट्टी
  • ज्योति पुंज हिमालय
  • हमसफर मिलते रहे

अमृता प्रीतम

  • इक्कीस पत्तियों का गुलाब

डॉ. नगेन्द्र

  • तंत्रलोक से यंत्रलोक तक
  • अप्रवासी की यात्राएँ

श्रीकान्त वर्मा

  • अपोलो का रथ

गोविन्द मिश्र

  • धुंध भरी सुर्खी

कमलेश्वर

  • खण्डित यात्राएँ
  • कश्मीर: रात के बाद
  • आँखों देखा पाकिस्तान

बलराज साहनी

  • रूसी सफरनामा

कर्ण सिंह चौहान

  • यूरोप में अंतर्यात्राएँ

रामदरश मिश्र

  • तना हुआ इन्द्रधनुष
  • मोर का सपना
  • पड़ोस की खुशबू

मंगलेश डबराल

  • एक बार आयोवा

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

  • आत्मा की धरती
  • अंतहीन आकाश
  • एक नाव के यात्री

रमेश चन्द्र शाह

  • एक लंबी छाँह

कृष्णदत्त पालीवाल

  • जापान में कुछ दिन

नरेश मेहता

  • कितना अकेला आकाश

नासिरा शर्मा

  • जहाँ फव्वारे लहू रोते हैं

मनोहर श्याम जोशी

  • क्या हाल है चीन के
  • पश्चिमी जर्मनी पर उड़ती नज़र

निर्मला जैन

  • दिल्ली: शहर-दर-शहर

असगर वजाहत

  • चलते तो अच्छा था
  • रास्ते की तलाश में
  • पाकिस्तान का मतलब क्या

कृष्णा सोबती

  • बुद्ध का कमण्डल: लद्दाख

ज्ञानरंजन

  • कबाड़खाना

पंकज विस्ट

  • खरामा-खरामा

रमणिका गुप्ता

  • लहरों की लय

पुरुषोत्तम अग्रवाल

  • हिंदी सराय: अस्त्राखान वाया येरेवान

उर्मिलेश

  • क्रिस्टेनिया मेरी जान

विनोद तिवारी

  • नाज़िम हिकमत के देश में

पदमा सचदेव

  • मैं कहती हूँ आँखिन देखी

हरिराम मीणा

  • जंगल-जंगल जलियांवाला
  • साइबर सिटी से नंगे आदिवासियों तक
  • आदिवासी लोक की यात्राएँ

सांवरमल सांगानेरिया

  • अपना क्षितिज, अपना सूरज

देवेन्द्र मेवाड़ी

  • दिल्ली से तुंगनाथ वाया नागनाथ

अमृतलाल वेगड़

  • तीरे-तीरे नर्मदा

आलोक रंजन

  • सियाहत

फूलचन्द मानव

  • मोहाली से मेलबर्न

अनुराधा बेनीवाल

  • आज़ादी मेरा ब्रांड

निष्कर्ष

हिन्दी यात्रा-वृत्त केवल स्थानों का भौगोलिक विवरण नहीं देते, बल्कि यह लेखक के अंतर्मन, सामाजिक दृष्टिकोण, राजनीतिक चेतना और सांस्कृतिक समझ को भी उजागर करते हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर मनोहर श्याम जोशी तक, इन रचनाकारों ने यात्रा-वृत्तान्त को साहित्य की एक सशक्त विधा के रूप में स्थापित किया।
आज के समय में भी यात्रा-वृत्त न केवल पाठकों को नए अनुभव कराते हैं, बल्कि वे जीवन के विविध रंगों, संस्कृतियों और मानवीय संवेदनाओं से भी परिचित कराते हैं।


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