फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी | 1664 ई. – 1790 ई.

फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1664 में हुई थी। यह एक व्यापारिक संस्था थी, जिसका उद्देश्य भारत में व्यापार करना और फ्रांस के लिए उपनिवेश स्थापित करना था। कंपनी ने सूरत, मछलीपट्टनम, चंद्रनगर, और पांडिचेरी में व्यापार केंद्र स्थापित किए। कंपनी का 18वीं शताब्दी में अंग्रेजों के साथ कर्नाटक में कई संघर्ष हुए, जिनको कर्नाटक युद्ध के नाम से जाना जाता है। इन संघर्षों में फ्रांसीसी कमजोर पड़ गए और अंततः अंग्रेजों के सामने झुकना पड़ा। 1790 तक कंपनी का प्रभाव कम हो गया और फ्रांसीसी उपनिवेशों पर अंग्रेजों का नियंत्रण स्थापित हो गया।

  • फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना – 1664 ई.।
  • भारत में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी का पहला व्यापारिक कारखाना – 1668 ई.।

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फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना

1664 में, फ्रांस के राजा लुई XIV (लुई चौदहवें) के वित्त मंत्री जीन-बैप्टिस्ट कोलबर्ट ने इस कंपनी की स्थापना की। कंपनी का मुख्यालय फ्रांस के लोरेन में स्थित था। प्रारंभ में, कंपनी ने सूरत और मसूलीपट्टनम में व्यापारिक केंद्र स्थापित किए। बाद में, 1674 में, कंपनी ने पांडिचेरी में अपनी प्रमुख व्यापारिक और सैन्य चौकी स्थापित की, जो दक्षिण भारत में एक महत्वपूर्ण बंदरगाह बन गया।

फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया का भारत में आगमन

मुग़ल साम्राज्य में सूरत एक प्रमुख बंदरगाह था, जहां से विश्वभर का व्यापार होता था। अंग्रेजों ने यहाँ अपनी प्रथम फैक्ट्री 1613 ईस्वी में स्थापित की थी। अंग्रेजों के बाद डचों ने 1618 में यहाँ अपनी फैक्ट्री स्थापित की। इसके अतिरक्त यूरोपियन व्यापारियों, ईसाई मिशनरियों, यात्रियों द्वारा फ्रांसीसियों को मुग़ल साम्राज्य के विषय में साथ ही प्रमुख व्यापारिक बंदरगाह (सूरत) के विषय में जानकारी प्राप्त होती रही। 

फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी

फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी अब भारत के साथ व्यापार करने का निश्चय किया। इसके लिए उसने अपने दो प्रतिनिधि भारत भेजे। फ्रांसीसी प्रतिनिधि मार्च 1666 ईस्वी  में सूरत पहुंचे (क्योंकि फ्रांसीसी भी सूरत में फैक्ट्री स्थापित करना चाहते थे)। सूरत के राज्यपाल (गवर्नर) ने उनका स्वागत किया, परन्तु भारत में पहले से ही अपनी जड़ें जमाये बैठे अंग्रेजों और डचों को अपने नए प्रतिद्वंदी (फ्रांसीसी) का आना पसंद नहीं आया। 

फ्रांसीसी प्रतिनिधियों ने आगरा पहुंचकर फ्रांस के सम्राट लुई चौदहवें के व्यक्तिगत पत्र को मुग़ल सम्राट औरंगजेब को सौंपा। औरंगजेब ने फ्रांसीसियों को सूरत में फैक्ट्री स्थापित करने की आज्ञा दे दी। फ्रेंच ईस्ट इंडिया कम्पनी ने केरोन को सूरत भेजा और 1668 ईस्वी में भारत में सूरत जो एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था, में अपनी प्रथम फ्रेंच फैक्ट्री स्थापित की। 

फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी का विस्तार और संघर्ष

18वीं सदी के प्रारंभ में, फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने व्यापार को विस्तारित करने के प्रयास किए। इसने बांगाल, आंध्र प्रदेश, और तमिलनाडु में विभिन्न व्यापारिक चौकियां स्थापित कीं। इसके साथ ही, कंपनी ने मच्छलीपट्टनम, चंद्रनगर (वर्तमान हुगली जिला), माहे, कराईकल और यानम जैसे स्थानों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

इस दौरान, फ्रांसीसी और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनियों के बीच व्यापारिक और राजनीतिक संघर्ष भी हुए। कर्नाटिक युद्धों (1744-1763) के दौरान, दोनों कंपनियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभुत्व के लिए लड़ाइयां लड़ीं। इन युद्धों में फ्रांसीसी कंपनी को कुछ प्रारंभिक सफलताएं मिलीं, लेकिन अंततः ब्रिटिश कंपनी ने प्रभुत्व स्थापित कर लिया।

फ्रांसिसियों का राजनीतिक मकसद और महत्वाकांक्षा

जैसे-जैसे समय बीतता गया, फ्रांसीसियों के उद्देश्यों में बदलाव आया और वे भारत को अपनी कॉलोनी मानने लगे। 1741 ईस्वी में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर के रूप में जोसेफ फ्रेंकोइस डुप्लेक्स की नियुक्ति इस दिशा में उनका पहला कदम था। डुप्लेक्स बेहद प्रतिभाशाली था। उसने स्थानीय शासकों के बीच प्रतिद्वंद्विता का फायदा उठाया और इसे भारत में फ्रांसीसी साम्राज्य स्थापित करने के लिए ईश्वर द्वारा भेजे गए अवसर के रूप में देखा।

वह उत्कृष्ट स्तर का कूटनीतिज्ञ था, जिसने उसे भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में सम्मानजनक स्थान दिलाया। लेकिन अंग्रेजों ने डुप्लेक्स और फ्रांसीसियों को चुनौती दी और बाद में दोनों शक्तियों का आमना-सामना हुआ। मार्क्विस डी बुसी-कास्टेलनौ के तहत डुप्लेक्स की सेना ने हैदराबाद और केप कोमोरिन के बीच के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। एक ब्रिटिश अधिकारी रॉबर्ट क्लिविया 1744 ईस्वी में भारत आया, और निर्णायक रूप से डुप्लेक्स को हराया। इस हार के बाद 1754 ई. में डुप्लेक्स को फ्रांस वापस बुला लिया गया था।

भारत में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों का आगमन
राजधानीपॉन्डिचेरी
भाषाएँफ़्रान्सीसी
बोली तमिल, तेलुगू, मलयालम
क्षेत्रफल508.03 किमी² (196 वर्ग मील)
जनसंख्या1929 est.
2,88,546

1948 est.
3,32,045 
मुद्राफ्रांसीसी भारतीय रुपया

फ़्रांसीसी कुछ क्षेत्रों तक सीमित

लैली-टोलेंडल, जिन्हें फ्रांसीसी सरकार द्वारा भारत से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए भेजा गया था, को कुछ प्रारंभिक सफलता मिली, खासकर तब जब उन्होंने 1758 ई. में अंग्रेजों से कडलोर के फोर्ट सेंट डेविड को छीन लिया। लेकिन अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच हुए 1760 के वांडीवाश के युद्ध ने फ्रांसीसियों की कमर तोड़ दी और उन्हें अपने हैदराबाद क्षेत्र को छोड़ना पड़ा। इसके बाद अंग्रेजों ने पांडिचेरी की घेराबंदी कर ली। 1761 ई. में अंग्रेजों ने पांडिचेरी को नष्ट कर दिया। इस प्रकार फ्रांसीसियों ने दक्षिण भारत में अपनी पकड़ खो दी। बाद में, 1763 ई. के ब्रिटेन के साथ की संधि के प्रावधानों के अनुसार, पांडिचेरी को 1765 ई. में फ्रांस को लौटा दिया गया था।

फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी और डच ईस्ट इंडीज कम्पनी के बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा

पूर्वी व्यापार में पहले से ही स्थापित ‘डच ईस्ट इंडीज’ कंपनी के साथ निरंतर प्रतिस्पर्धा के कारण, फ्रांसीसी कंपनी ने महंगे अभियान चलाए जिन्हें अक्सर डचों द्वारा परेशान किया जाता था और यहां तक ​​कि जब्त कर लिया जाता था। फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी 1670 से 1675 तक कुछ समय के लिए फली-फूली और अच्छा धन कमाया। परन्तु व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के कारण धीरे-धीरे उनके आय में निरंतर कमी होती गयी और 1680 तक फ़्रांसिसी अपनी आय के अत्यंत निचले स्टार पर पहुँच चुके थे। कम्पनी की बिगड़ी आर्थिक स्थिति के कारण कई जहाजों की मरम्मत भी नहीं हो पायी थी ।

डच ईस्ट इंडीज कम्पनी

1719 में कॉम्पैनी फ़्रैन्काइज़ डेस इंडेस ओरिएंटल को अल्पकालिक कॉम्पैनी डेस इंडेस द्वारा अवशोषित किया गया था। यह कंपनी वित्तीय प्रशासक जॉन लॉ की विनाशकारी वित्तीय योजनाओं में उलझ गई, और इसलिए 1720 की आगामी फ्रांसीसी आर्थिक दुर्घटना में इसे गंभीर रूप से नुकसान उठाना पड़ा। इस सबसे उभरने के लिए, कंपनी को कॉम्पैनी फ़्रैन्साइज़ डेस इंडेस नाम के तहत पुनर्गठित किया गया था।

पुनर्जीवित कंपनी ने 1721 में मॉरीशस (आइल डी फ्रांस) और 1724 में मालाबार (भारत) में माहे की कॉलोनियों को प्राप्त किया। 1740 तक भारत के साथ इसके व्यापार का मूल्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का आधा था। 

भारत में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों में झगड़े 

भारत में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियां

प्रारम्भ में डच और पुर्तगाली एकदूसरे के साथ भिड़े। पुर्तगालियों ने डचों से निपटने  के लिए अंग्रेजों से मित्रता कर ली। अंग्रेजों को पुर्तगालियों ने मित्रता करके मालाबा-तट पर मसालों के व्यापार में सुविधा होने लगी। साझा हितों को मजबूत करने के लिए अंग्रेजों और पुर्तगालियों में 1635 में संधि हो गयी। 1661 ईस्वी में पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन ब्रेंगाजा का विवाह इंग्लैंड के सम्राट चार्ल्स-द्वितीय के साथ हुआ जिसमें अंग्रेजों को बम्बई का द्वीप दहेज़ में मिला। चार्ल्स द्वितीय ने 10 पौंड वार्षिक के किराये पर बम्बई द्वीप ईस्ट इंडिया कम्पनी को दे दिया। 

अब अंग्रेजों के सामने डच थे। 1652, 1665-66 और 1672-74 में दोनों के मध्य घमासान युद्ध हुए। प्रारम्भ में डचों ने अंग्रेजों को हराया लेकिन 1688 में इंग्लैंड की गौरवमयी क्रांति के बाद विलियम इंग्लैंड का शासक बना और दोनों देशों के संबंध मधुर हो गए। 

 भारत में व्यापार कर रही यूरोपीय कंपनियों में घोर व्यापारिक प्रतिस्पर्धा थी। सभी कंपनियां -पुर्तगाली, अंग्रेज, फ्रेंच और डच सभी अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहते थे। फलस्वरूप इन कंपनियों के बीच झगडे शुरू हो गए।

कर्नाटक में एंग्लो-फ्रेंच प्रतिस्पर्धा

फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने  सबसे सक्षम नेता, जोसेफ-फ्रांस्वा डुप्लेक्स (डूप्ले) को 1742 में भारत में फ्रांसीसी कम्पनी का गवर्नर-जनरल नियुक्त किया। 1746 में उन्होंने मद्रास पर कब्जा कर लिया लेकिन सेंट डेविड के पड़ोसी ब्रिटिश किले को लेने में विफल रहे।

डुप्लेक्स ने खुद को स्थानीय भारतीय शक्तियों के साथ संबद्ध कर लिया, लेकिन अंग्रेजों ने प्रतिद्वंद्वी भारतीय समूहों का समर्थन किया, और 1751 में दोनों कंपनियों के बीच एक निजी युद्ध छिड़ गया। 1754 में पेरिस वापस बुलाए जाने के बाद, डुप्लेक्स ने कंपनी पर उस पैसे के लिए मुकदमा दायर किया जो उसने खर्च किया था। 


फ्रांस और इंग्लैंड के बीच सात साल के युद्ध (1756-63) के दौरान, फ्रांसीसी हार गए थे, और 1761 में फ्रांसीसी भारत की राजधानी पांडिचेरी पर कब्जा कर लिया गया था। क्योंकि फ्रांसीसी अर्थव्यवस्था ने वेस्ट इंडीज में व्यापार से अधिक लाभ देखा। फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी को सरकारी समर्थन की कमी थी। भारत के साथ फ्रांसीसी व्यापार पर इसका एकाधिकार 1769 में समाप्त हो गया था, और उसके बाद कंपनी 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के दौरान गायब होने तक समाप्त हो गई।

फ्रांसीसी व अंग्रेजों के बीच संघर्ष

फ्रांसीसी कम्पनी के आने से पहले ब्रिटिश भारत में आ चुके थे इसलिए दोनों कम्पनियों में अपने प्रभुत्व को लेकर संघर्ष आरम्भ हो गया। इन संघर्षों को निम्न प्रमुख बिन्दुओं में देखा जा सकता है –

मॉरिशियस पर अधिकार

1721 ई. में फ्रांसिसियों ने मॉरिशियस पर अधिकार कर लिया और 1725 ई. में मालावाड तट पर स्थित माही पर भी अधिकार कर लिया। तंजौर के नबाब ने कोरो मण्डल तट पर स्थित कलीकट फ्रांसिसियों को 1639 ई. में उपहार स्वरूप दे दिया।

गवर्नर डूप्ले

1742 ई. में डूप्ले गवर्नर बन कर आया तो उसके काल में फ्रांसिसियों की महत्वकांशाए और बढ गयी। डूप्ले ने भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहा परिणाम स्वरूप फ्रांसिसी और अंग्रेजों के मध्य संघर्ष शुरु हो गया।

कर्नाटक क्षेत्र में आंग्ल फ्रांसिसी संघर्ष

इन दोनों कम्पनियों के बीच दक्षिण भारत के कर्नाटक क्षेत्र में कुल तीन संघर्ष हुए जिसे आंग्ल फ्रांसिसी संघर्ष कहा गया।

फ़्रांसिसी ईस्ट इंडिया कंपनी का पतन और अंत

ब्रिटिश और फ्रांसीसी स्थानीय राजनीति में दखल न देने की एक संधि के बावजूद, एक दूसरे के प्रति षड़यंत्र जारी थी। उदाहरण के लिए, इस अवधि में फ्रांसीसी ने बंगाल के नवाब के राज-दरबार में अपने प्रभाव का विस्तार किया और बंगाल में अपने व्यापार की मात्रा का विस्तार किया। 1756 में, फ्रेंच कलकत्ता में ब्रिटिश फोर्ट विलियम हमला करने के लिए नवाब को प्रोत्साहित किया। 1757 में प्लासी की लड़ाई में, ब्रिटिश, नवाब और उनकी फ्रांसीसी सहयोगी दलों को हराया और बंगाल के पूरे प्रांत में ब्रिटिश सत्ता बढ़ाया।

इसके बाद फ्रांस, फ्रांसीसी नुकसान पुनः प्राप्त करने और भारत से अंग्रेजो को बाहर करने के लिये लल्ली-तोल्लेन्दल को भेजा। लल्ली 1758 में पॉन्डिचेरी में पहुंचे, उन्होंने कुछ प्रारंभिक सफलता मिली और 1758 में कडलूर जिले में फोर्ट सेंट डेविड को ध्वस्त कर दिया, लेकिन लल्ली द्वारा किए गए रणनीतिक गलतियां 1760 में पॉन्डिचेरी की घेराबंदी का कारण बनी। 1761 में पॉन्डिचेरी, को अंग्रेजों द्वारा बदला लेने के उद्देश्य से नष्ट कर दिया गया, जो चार साल तक खंडहर बना रहा। धीरे-धीरे फ्रांसीसी दक्षिण भारत पर अपनी पकड़ खो दिए।

इन तीन संघर्षों में प्रथम तथा अंतिम युद्ध का कारण अंतरराष्ट्रीय रहा। इस तरह वॉन्डिबॉश के निर्णायक परिणाम स्वरूप फ्रांसिसियों का वर्चस्व भारत से समाप्त हो गया और इंग्लिश कम्पनी को भारत में चुनौती देने वाला और कोई नहीं बचा।

1763 में पेरिस की संधि के बाद, फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में अपने अधिकांश क्षेत्र ब्रिटिशों को सौंपने पड़े। इसके बावजूद, कंपनी ने अपने बचे हुए क्षेत्रों में व्यापार जारी रखा, लेकिन इसकी शक्ति और प्रभाव में निरंतर कमी आई। 18वीं सदी के अंत तक, कंपनी आर्थिक रूप से कमजोर हो गई और 1790 में इसे आधिकारिक रूप से भंग कर दिया गया।

फ़्रांसिसी ईस्ट इंडिया कंपनी के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य

  • फ़्रांसिसी पहली फैक्ट्री सन 1668 ई. में सूरत में स्थापित किये।
  • सन 1671 ई. फ़्रांसिसी में पाण्डिचेरी नामक नगर की स्थापना की जो आज केंद्र शासित प्रदेश है।
  • इनका अंग्रेजों से तीन युद्ध होता है:-
    • पहला कर्नाटक का युद्ध 1746 -1748 ई. के बीच चला जिसमे फ़्रांसिसी जीते ।
    • दूसरा कर्नाटक का युद्ध 1749 -1754 ई. के बीच चला जिसमे अंग्रेज जीते।
    • तीसरा कर्नाटक का युद्ध 1746 -1769 ई. के बीच चला जिसमे अंग्रेज जीते।
  • तीसरे युद्ध के बीच सन 1760 ई. में एक युद्ध बैटल ऑफ़ वन्डिवाश होता है जिसमे फ़्रांसिसी हारकर वापस चले जाते हैं।
  • “अप्रैल फूल डे” की शुरुआत फ्रांस से ही हुई थी, 16 वीं शताब्दी में जब फ्रांस ने केलेंडर बदला और नये साल की शुरुआत जनवरी से की, उसके बाद भी कुछ लोगों ने मार्च के अंत में अपना नया साल मनाया तो उन लोगों को मूर्ख माना गया और तभी से ये परम्परा चल पडी।
  • फ्रांस को “सुरा और सुंदरीयों ” का देश कहा जाता है, और ये एक ऐसा देश है जहॉं 1000 से भी अधिक प्रकार की चीज़ (cheese) बनायी जाती है।
  • आज भी फ्रांस का न्यायिक प्रक्रिया नेपोलियन बोनपार्टा के सिविल कोड (1800 ई.) पर ही आधारित है।
  • आज तक सबसे अधिक साहित्य के नोबल पुरस्कार फ्रांस के खाते में ही गये हैं, वहॉं अब तक 16 लोग साहित्य का नोबल पुरस्कार जीत चुके हैं।

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