लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी का 12वाँ भाषण: एक ऐतिहासिक समां और सामरिक दृष्टिकोण

15 अगस्त 2025 का दिन भारतीय लोकतंत्र और इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से दर्ज हो गया। इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित किया और यह उनका लगातार 12वां भाषण था। इस प्रकार उन्होंने न केवल एक नया रिकॉर्ड बनाया, बल्कि यह भी साबित किया कि लोकतांत्रिक नेतृत्व का असली अर्थ जनता से निरंतर संवाद बनाए रखना है। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से मोदी हर वर्ष लाल किले से देशवासियों को संबोधित करते आ रहे हैं। उनकी इस निरंतरता ने उन्हें उस खास सूची में पहुँचा दिया है, जिसमें अब तक केवल पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ही शामिल थे।

प्रधानमंत्री मोदी के इस बार के भाषण की खासियत सिर्फ उनकी 12वीं उपस्थिति नहीं थी, बल्कि इसकी अवधि और गहनता भी रही। उन्होंने लगभग 103 मिनट तक राष्ट्र को संबोधित किया, जो स्वतंत्रता दिवस के इतिहास में किसी भी प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया सबसे लंबा भाषण है। इससे पहले यह रिकॉर्ड भी उन्हीं के नाम था, जब 2024 में उन्होंने 98 मिनट तक बोला था।

इस बार के संबोधन में प्रधानमंत्री ने सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, किसानों, जल नीति और आत्मनिर्भर भारत जैसे विषयों पर विस्तार से बात की। खासकर ‘ऑपरेशन सिंदूर’, पाकिस्तान की स्थिति, सिंधु जल संधि और परमाणु ब्लैकमेल जैसे मुद्दों पर उनका स्पष्ट और दृढ़ रुख सामने आया। साथ ही उन्होंने जनता को आने वाले समय के लिए आशा और विश्वास का संदेश देते हुए यह संकेत भी दिया कि इस बार की दिवाली भारतीयों के लिए खास होगी।

भाषण की अवधि और रिकॉर्ड

यह उल्लेखनीय है कि इस वर्ष प्रधानमंत्री मोदी ने कुल 103 मिनट लंबा भाषण दिया – जो कि स्वतंत्रता दिवस के सभी भाषणों में अब तक का सबसे लंबा है। इससे पहले उनका सबसे लंबा भाषण वर्ष 2024 में था, जिसकी अवधि 98 मिनट थी। यह नया समय-रेखा का रिकार्ड दर्शाता है कि प्रत्येक वर्ष प्रधानमंत्री के संवेदनात्मक विस्तार और विस्तार-पूर्ण दृष्टिकोण में बढ़ोतरी हो रही है।

लाल किले की प्राचीर से 12वीं बार देश को संबोधित

प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से 12वीं बार देश को संबोधित किया। इससे वे उस विशिष्ट सूची में शामिल हो गए हैं जहाँ किसी प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को सबसे अधिक बार संबोधित किया है। इस सूची में सबसे पहले हैं पंडित जवाहरलाल नेहरू, जिन्होंने 17 बार यह गौरव प्राप्त किया। दूसरे नंबर पर अब नरेंद्र मोदी आ गए हैं, जब कि तीसरे नंबर पर है पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जिनके नाम यह संख्या 16 है।

इस उपलब्धि को विशेष रूप से देखना चाहिए कि मोदी ने इंदिरा गांधी का रिकॉर्ड—जो उन्होंने 16 भाषणों तक पहुंचा रखा था और उनमें से 11 लगातार—अब तोड़ दिया है। मोदी ने लगातार 12 वर्षों तक लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित किया, जो अपने आप में ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ा संकेत है।

प्रमुख संदेश और सामरिक संकेत

इस वर्ष के संबोधन में प्रधानमंत्री ने कई अहम विषयों को संबोधित किया। आइए उन्हें विस्तार से देखना शुरु करते हैं:

1. ऑपरेशन सिंदूर और वीर जवानों को सलामी

प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से ऑपरेशन सिंदूर के जवानों को सलामी देने का अवसर पाया। यह ऑपरेशन एक विशेष सैन्य अभियान रहा है, जिसमें भारतीय सेना ने दुश्मनों को उनकी कल्पना से परे सजा दी। पीएम ने यह गर्वपूर्वक कहा कि:

“आज 15 अगस्त का एक विशेष महत्व भी मैं देख रहा हूँ। आज मुझे लाल किले की प्राचीर से ऑपरेशन सिंदूर के वीर जवानों को सल्यूट करने का अवसर मिला है। हमारे वीर, जांबाज सैनिकों ने दुश्मनों को उनकी कल्पना से परे सजा दी है।”

इस कथन में केवल सैनिकों की वीरता की प्रशंसा नहीं है, बल्कि यह स्पष्ट संदेश भी है कि यदि दुश्मन आगे कोई कोशिश जारी रखते हैं, तो भारत की सेना “सेना की शर्तों पर, सेना द्वारा निर्धारित समय पर, सेना द्वारा तय लक्ष्य” के अनुसार जवाब देने में सक्षम है।

2. पाकिस्तान में तबाही और संदेश

प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान में हुई तबाही का उल्लेख करते हुए कहा:

“पाकिस्तान की नींद अभी भी उड़ी हुई है। पाकिस्तान में हुई तबाही इतनी बड़ी है कि रोज नए-नए खुलासे हो रहे हैं, नई-नई जानकारियां आ रही हैं।”

इस बयान के माध्यम से भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान के अंदरूनी हालात भारत की नजर से पीछे नहीं — बल्कि बाख़ूबी देखे जा रहे हैं, और भारत तत्कालीन परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए अपने रुख को तय करेगा।

3. परमाणु ब्लैकमेल की गम्भीर चेतावनी

एक और महत्वपूर्ण संदेश था:

“भारत परमाणु ब्लैकमेल बर्दाश्त नहीं करेगा।”

यह कथन स्पष्ट तौर पर संकेत करता है कि भारत परमाणु मुद्दों पर किसी भी प्रकार के दबाव या नौटंकी को स्वीकार नहीं करेगा—चाहे वह अंतर्राष्ट्रीय मंच हो या क्षेत्रीय तनाव। भारत एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में अपनी शर्तों पर संवाद और रणनीति तय करने का पक्षधर है।

4. ‘खून और पानी साथ-साथ नहीं बहेंगे’ — सिंधु जल संधि का परिप्रेक्ष्य

उन्होंने एक ओराटकीय, लेकिन सरगर्भित विमर्श चलाया:

“भारत ने तय किया है कि खून और पानी साथ-साथ नहीं बहेंगे। भारतीय नदियों का पानी दुश्मनों के खेत को सींच रहा है। हिंदुस्तान को उसके हक़ का पानी मिलेगा।”

यह कथन भारतीय पीढ़ियों के लिए भी गहन प्रासंगिकता रखता है। पीएम मोदी ने स्पष्ट किया कि:

  • सिंधु नदी जल समझौता एकतरफ़ा और अन्यायपूर्ण था
  • किसानों का हक़ (विशेषकर सिंचाई हेतु पानी) सबसे महत्वपूर्ण है।
  • इस संधि से असहमति—विशेषकर जब यह किसानों और राष्ट्रीय हितों के विपरीत हो—आडंबरपूर्ण।
  • अंततः, यह स्पष्ट संवाद था कि भारत अब ‘पानी पर अपना अधिकार’ अवधारणा पर कायम रहेगा।

5. आने वाली दिवाली में बड़ा तोहफ़ा — संकेत और आश्वासन

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में निहित रूप से एक आशा और उत्सव का संदेश भी दिया:

“इस बार की दिवाली में भारतीयों को बड़ा तोहफ़ा मिलने जा रहा है।”

हालाँकि उन्होंने इस संदर्भ में विशेषताओं का खुलासा नहीं किया, लेकिन यह संकेत भारतीय जनता के लिए उत्साहवर्धक माना जा सकता है—एक आशा की तेज कि कुछ महत्वपूर्ण घोषणा, उपलब्धि या खबर आने वाली है।

सामूहिक विश्लेषण और रणनीतिक संकेत

इस पूरे भाषण में कई गहरे सामरिक पहलू और लक्ष्य सहज ही उभरकर आए:

  1. सैन्य ताक़त का विश्वास — “ऑपरेशन सिंदूर” का ज़िक्र और “सेना की शर्तों पर” जैसे वक्तव्य यह दिखाते हैं कि भारत अपनी संप्रभुता की रक्षा में पूरी तरह से सक्षम और दृढ़ है।
  2. क्षेत्रीय खुशी और जल-राजनीति — “खून और पानी साथ-साथ नहीं बहेंगे” जैसी आश्चर्यजनक पंक्तियाँ पाकिस्तान और सिंधु जल संधि की चर्चा के माध्यम से स्पष्ट रूप से यह संदेश देती हैं कि भारत अब जल नीति के मुद्दों पर अग्रसर और स्वतंत्र भाव से निर्णय लेने की स्थिति में है। इस किस्म की कूटनीतिक भाषा बताती है कि भारत अब पूर्व की अपेक्षाकृत कम स्वतंत्र संधियों से अलग राह अपनाना चाहता है, विशेषकर जब वे अपने किसानों और राष्ट्रीय हितों के विपरीत हों।
  3. अंतर्राष्ट्रीय दृढ़ता — परमाणु ब्लैकमेल बर्दाश्त नहीं की चेतावनी यह स्पष्ट करती है कि भारत अपनी सुरक्षा और रणनीतिक अधिकारों को कोई समझौता नहीं करेगा। इस प्रकार का स्पष्ट-स्पष्ट बयान अक्सर अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक भाषा में पत्थर जैसा ज़ोरदार संदेश देता है।
  4. जन विश्वास का पोषण — “बड़ा तोहफ़ा” सुझाव, आंकड़ों-रुको, एक व्यावहारिक राजनीतिक रणनीति भी कहलाता है। जनता में उत्सुकता और सकारात्मक प्रतीक्षा का माहौल बनाना—यानी आशा की फसल बोना—लोक-तंत्र में विश्वास बढ़ाने का एक कारगर तरीका है।
  5. ऐतिहासिक सामाजिक संरचना — 12 भाषणों का रिकॉर्ड तोड़कर मोदी ने न केवल व्यक्तिगत उपलब्धि दर्ज़ की, बल्कि लोकतांत्रिक नेतृत्व के निरंतर संवाद-धीरे-धीरे विकास की दिशा में एक प्रेरणादायक इबारत भी कायम की।

निष्कर्ष और समापन विचार

यह वर्ष का लाल किले का संबोधन मात्र एक भाषण नहीं रहा, बल्कि यह कई संदेशों का समागम, उद्देश्य-पूर्ण रणनीतिक विमर्श, जनता-केंद्रित आशा का बीज और राष्ट्रीय अभियान का उद्घोष था।

  • द्विवार्षिक अवधि, जिसमें भाषण की अवधि बढ़ी और संदेश अधिक स्पष्ट हुए—यह संकेत है कि प्रधानमंत्री संवाद माध्यमों में निरंतर सुधार ला रहे हैं।
  • लाल किले की प्राचीर से 12वां संबोधन, जिससे उन्हें दूसरी सबसे अधिक भाषण देने वाले प्रधानमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
  • ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण, जो सैन्य और क्षेत्रीय सुरक्षा की तरफ़ प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।
  • जल नीति और सिंधु जल संधि के संदर्भ में किसान-केन्द्रित दृष्टिकोण और अधिकारों की पुष्टि।
  • भविष्य की दिवाली पर उम्मीद और बड़ा तोहफ़ा—जिन्होंने देश में उत्सुकता और सकारात्मक संदेश का आवाहन किया।

इस भाषण ने जिस स्पष्टता, सामरिक दृढ़ता, किसान-केन्द्रित दृष्टिकोण और जन-विश्वास का संदेश दिया है, वह बताता है कि यह केवल आज का भाषण नहीं, बल्कि आने वाले समय के लिए एक दिशा-निर्देश भी रहा।


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