रेबीज़ (Rabies): एक वैश्विक चुनौती और भारत में नियंत्रण की दिशा

हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया कि कुत्तों के काटने से बढ़ते रेबीज़ (Rabies) मौतों को देखते हुए आवारा कुत्तों को स्थायी रूप से पकड़कर बंद किया जाए। यह आदेश केवल एक कानूनी पहल नहीं है, बल्कि एक बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करता है। रेबीज़, जिसे हिंदी में “हाइड्रोफोबिया” भी कहा जाता है, विश्व के सबसे प्राचीन और घातक रोगों में से एक है। यह रोग ज़ूनोटिक (जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाला) है और एक बार इसके क्लिनिकल लक्षण प्रकट हो जाने पर लगभग 100% घातक माना जाता है। इस कारण इसकी रोकथाम और टीकाकरण ही इसका एकमात्र प्रभावी समाधान है।

रेबीज़ का परिचय और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

रेबीज़ का उल्लेख हजारों वर्ष पुरानी ग्रंथों और चिकित्सा इतिहास में मिलता है। ग्रीक चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स के समय से ही कुत्तों के काटने से होने वाली बीमारी का ज़िक्र किया गया है। “Rabies” शब्द लैटिन भाषा के शब्द “Rabere” से बना है, जिसका अर्थ है पागलपन या उन्माद

रेबीज़ वायरस (Rabies Virus – RABV) लिसावायरस जीनस और रेब्डोविरिडाए फैमिली का सदस्य है। इसकी संरचना बुलेट-शेप्ड (गोलियों जैसी) होती है। यह वायरस नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) पर हमला करता है और धीरे-धीरे मस्तिष्क को संक्रमित कर देता है। यही कारण है कि एक बार लक्षण आने के बाद यह रोग लगभग हमेशा मृत्यु का कारण बनता है।

कारण और संक्रमण का मार्ग

रेबीज़ वायरस मुख्यतः संक्रमित जानवरों की लार (saliva) के माध्यम से फैलता है।

  • मुख्य कारण:
    • कुत्तों के काटने या खरोंचने से (WHO के अनुसार 99% मानव रेबीज़ मामलों में यही कारण होता है)।
    • संक्रमित बिल्लियों, लोमड़ियों, रैकून, स्कंक, चमगादड़ों, गाय-भैंस जैसे पशुओं से भी फैल सकता है।
    • संक्रमित जानवर की लार यदि खुले घाव या श्लेष्मा झिल्ली (आंख, नाक, मुंह) के संपर्क में आ जाए तो संक्रमण संभव है।
  • संक्रमण की प्रक्रिया:
    1. वायरस घाव के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है।
    2. वहां से यह परिधीय नसों (Peripheral Nerves) के जरिए धीरे-धीरे स्पाइनल कॉर्ड और मस्तिष्क तक पहुंचता है।
    3. वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड (लक्षण प्रकट होने तक का समय) सामान्यतः 20–90 दिन होता है, लेकिन कभी-कभी यह कुछ सप्ताह से लेकर एक साल तक भी हो सकता है।
    4. जैसे ही वायरस मस्तिष्क में पहुंचता है, लक्षण तेज़ी से उभरने लगते हैं और रोगी कोमा या मृत्यु की ओर बढ़ने लगता है।

रेबीज़ के लक्षण

रेबीज़ का संक्रमण धीरे-धीरे गंभीर रूप लेता है। इसे तीन चरणों में बांटा जा सकता है—

  1. प्रारंभिक लक्षण (Prodromal Stage)
    • बुखार, थकान, सिरदर्द
    • काटे गए स्थान पर जलन या झुनझुनी
    • बेचैनी और चिड़चिड़ापन
  2. उत्तेजना चरण (Excitative Stage)
    • पानी पीते समय गले की मांसपेशियों में ऐंठन, जिसे हाइड्रोफोबिया कहते हैं
    • हवा या तेज़ रोशनी से डर (एयरोफोबिया, फोटोफोबिया)
    • अत्यधिक उत्तेजना, चिल्लाना, झटके
  3. अंतिम चरण (Paralytic Stage)
    • धीरे-धीरे पक्षाघात (Paralysis)
    • कोमा
    • मृत्यु (आमतौर पर लक्षण शुरू होने के 7–10 दिनों के भीतर)

भारत में रेबीज़ की स्थिति

भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहाँ रेबीज़ से सबसे अधिक मौतें होती हैं।

  • WHO के अनुसार:
    • विश्व में हर साल लगभग 59,000 लोग रेबीज़ से मरते हैं
    • इनमें से 36% मौतें अकेले भारत में होती हैं
    • भारत में हर साल लगभग 18,000–20,000 लोग रेबीज़ के शिकार होते हैं।
    • हर साल 1.5 करोड़ लोग कुत्तों के काटने का शिकार होते हैं।
  • कारण:
    • आवारा कुत्तों की अधिक संख्या
    • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पर्याप्त पशु-नियंत्रण नीति का अभाव
    • लोगों में जागरूकता की कमी
    • समय पर टीकाकरण न होना

रोकथाम और टीकाकरण

रेबीज़ के लक्षण प्रकट होने के बाद इसका कोई इलाज संभव नहीं है, इसलिए रोकथाम ही इसका सबसे प्रभावी उपाय है।

1. घाव की तत्काल सफाई

कुत्ते या किसी भी जानवर के काटने पर:

  • घाव को तुरंत 15 मिनट तक साबुन और पानी से धोना चाहिए
  • इसके बाद एंटीसेप्टिक (आयोडीन, अल्कोहल) का प्रयोग करना चाहिए।

2. टीकाकरण

रेबीज़ से बचाव के लिए WHO दो तरह के टीकाकरण की सिफारिश करता है—

  • प्रि–एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (PrEP):
    • उन लोगों के लिए जो उच्च जोखिम वाले पेशों में काम करते हैं (जैसे- पशु चिकित्सक, लैब वर्कर, वन्यजीव रक्षक)।
    • विदेश यात्रियों के लिए, खासकर उन देशों में जहाँ रेबीज़ अधिक है।
  • पोस्ट–एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (PEP):
    • संभावित संपर्क (काटने/खरोंचने) के बाद दिया जाने वाला टीका।
    • यह वायरस को तंत्रिका तंत्र में प्रवेश करने से रोकता है।
    • WHO कहता है कि PEP सही समय पर दिया जाए तो 100% रेबीज़ रोका जा सकता है।

3. भारत में उपलब्ध WHO-स्वीकृत टीके

  • RABIVAX-S (सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया)
  • VaxiRab N (ज़ाइडस लाइफसाइंसेज़)
  • VERORAB (सनोफी पाश्चर)

कानूनी और नीतिगत पहल

भारत में रेबीज़ नियंत्रण केवल स्वास्थ्य समस्या नहीं है, बल्कि नीतिगत और कानूनी चुनौती भी है।

  • सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप:
    दिल्ली और अन्य शहरों में लगातार कुत्तों के हमलों से मौतें बढ़ रही थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीर मानते हुए सरकार को आदेश दिया कि आवारा कुत्तों को स्थायी रूप से पकड़कर बंद किया जाए
    • यह आदेश पशु-प्रेम और मानव सुरक्षा के बीच संतुलन की आवश्यकता को दर्शाता है।
  • भारत सरकार की पहल:
    • राष्ट्रीय रेबीज़ नियंत्रण कार्यक्रम (NRCP) चलाया जा रहा है।
    • 2030 तक “Zero Rabies Deaths” का लक्ष्य रखा गया है (WHO-GARC Global Strategy)।
    • शहरी क्षेत्रों में Animal Birth Control (ABC) Programme लागू किया जा रहा है ताकि कुत्तों की संख्या नियंत्रित हो सके।

सामाजिक और नैतिक पहलू

रेबीज़ नियंत्रण के लिए केवल कानून और दवाइयाँ पर्याप्त नहीं हैं। इसके सामाजिक और नैतिक पहलुओं पर भी ध्यान देना आवश्यक है—

  • आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ने के पीछे कचरा प्रबंधन की असफलता भी एक कारण है।
  • पशु अधिकार कार्यकर्ता कुत्तों की हत्या या बंधन का विरोध करते हैं।
  • सरकार के सामने चुनौती है कि मानव जीवन की रक्षा और पशु कल्याण दोनों के बीच संतुलन बनाए।

निष्कर्ष

रेबीज़ केवल चिकित्सा समस्या नहीं बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय, और नीतिगत प्रबंधन का प्रश्न है। एक ओर यह रोग हर साल हजारों लोगों की जान ले रहा है, दूसरी ओर यह पशु अधिकारों और सरकारी जिम्मेदारियों पर भी प्रश्न उठाता है।

भारत को यदि 2030 तक रेबीज़-फ्री (Rabies Free India) बनाना है, तो इसके लिए ज़रूरी है—

  • व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम,
  • जन-जागरूकता अभियान,
  • आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रण,
  • और सबसे बढ़कर कानूनी प्रावधानों का प्रभावी क्रियान्वयन

रेबीज़ का अंतिम समाधान केवल चिकित्सा में नहीं, बल्कि एक समग्र दृष्टिकोण (Holistic Approach) में छिपा है, जिसमें सरकार, समाज, स्वास्थ्य सेवाएँ और न्यायपालिका—सबकी समान भागीदारी हो।


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