(7वीं पुण्यतिथि, 16 अगस्त 2025 पर विशेष लेख)
भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में कुछ ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं जिनकी छाप केवल राजनीति तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने राष्ट्र की आत्मा को स्पर्श किया। अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे ही दुर्लभ नेताओं में से एक थे। एक राजनेता, एक कवि, एक वक्ता और एक संवेदनशील इंसान के रूप में उन्होंने भारतीय राजनीति को मानवीय स्पर्श प्रदान किया।
16 अगस्त 2025 को जब भारत उनकी सातवीं पुण्यतिथि मना रहा है, तब पूरा राष्ट्र उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उनकी उस विरासत को याद कर रहा है जो आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करती रहेगी।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ। वे एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार से थे। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी विद्यालय में अध्यापक थे और साहित्य प्रेमी भी थे। यही संस्कार अटल जी को भी मिले।
बचपन से ही वे अध्ययनशील और वाद-विवाद में कुशल थे। ग्वालियर से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति विज्ञान में परास्नातक की उपाधि ली।
छात्र जीवन में ही उनका झुकाव साहित्य, कविता और राष्ट्रीय आंदोलन की ओर हो गया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वे सक्रिय रहे और 23 दिनों तक जेल में भी रहे। यहीं से उन्होंने संकल्प लिया कि वे जीवन को राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित करेंगे।
साहित्यिक और काव्य जीवन
राजनीति में प्रवेश करने से पहले और उसके बाद भी अटल जी का कवि हृदय हमेशा जीवित रहा। उनकी कविताएँ केवल साहित्यिक कृतियाँ नहीं थीं, बल्कि वे उनके विचारों और राष्ट्र के प्रति समर्पण की अभिव्यक्ति थीं।
“हार नहीं मानूंगा”, “गीत नया गाता हूँ” जैसी कविताएँ आज भी युवाओं को प्रेरित करती हैं।
संसद के भीतर भी जब वे भाषण देते थे तो उनकी वाणी में कविता और तर्क का अद्भुत मिश्रण दिखाई देता था। इसी वजह से वे विरोधी दलों में भी सम्मान के पात्र रहे।
राजनीतिक सफर की शुरुआत
अटल जी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1950 के दशक में भारतीय जनसंघ (BJS) से की। उनकी ओजस्वी वक्तृत्व कला ने शीघ्र ही उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला दी।
इतना ही नहीं, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी उनकी प्रतिभा को पहचाना और भविष्यवाणी की थी कि एक दिन अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे।
आपातकाल और भारतीय जनता पार्टी का गठन
1975–77 के आपातकाल ने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी। अटल जी ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए जेल जाने से परहेज नहीं किया।
जनता पार्टी के विघटन के बाद 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और अन्य साथियों ने मिलकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना की। वे इसके पहले अध्यक्ष बने।
भाजपा को स्थापित करना आसान नहीं था, लेकिन उनकी नेतृत्व क्षमता और वक्तृत्व कला ने धीरे-धीरे पार्टी को जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया।
प्रधानमंत्री पद की ओर सफर
अटल जी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने:
- 1996 – 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री।
- 1998–1999 – 13 माह तक प्रधानमंत्री।
- 1999–2004 – पूर्ण कार्यकाल, जिसमें उन्होंने कई ऐतिहासिक निर्णय लिए।
उनका कार्यकाल भारत के बुनियादी ढांचे, शिक्षा, विदेश नीति और सुरक्षा मामलों में दूरगामी प्रभाव छोड़ गया।
प्रमुख उपलब्धियाँ
1. पोखरण-II परमाणु परीक्षण (1998)
13 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण कर भारत ने विश्व को चौंका दिया। अमेरिका सहित कई देशों के प्रतिबंधों के बावजूद वाजपेयी जी ने यह निर्णय लिया और भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की श्रेणी में स्थापित किया।
2. कारगिल युद्ध (1999)
कारगिल युद्ध भारत की संप्रभुता की रक्षा का कठिन समय था। वाजपेयी जी ने न केवल सेना को पूरा समर्थन दिया बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का पक्ष मजबूती से रखा। यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रमाण था।
3. स्वर्णिम चतुर्भुज और ग्रामीण विकास
उन्होंने देश के राजमार्ग नेटवर्क को आधुनिक बनाने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना शुरू की। साथ ही प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से गाँवों को जोड़ने का अभियान चलाया।
4. शिक्षा और सर्व शिक्षा अभियान
सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत कर उन्होंने प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने की दिशा में कदम उठाया।
5. विदेश नीति और शांति प्रयास
वाजपेयी जी ने पड़ोसी देशों से शांति संबंधों की पहल की। 1999 की लाहौर बस यात्रा इसका उदाहरण है। यद्यपि इसके बाद कारगिल युद्ध हुआ, पर उन्होंने वार्ता और संवाद की परंपरा जीवित रखी।
6. आर्थिक सुधार
उन्होंने निजीकरण को बढ़ावा दिया, विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र को गति दी, जिसके परिणामस्वरूप भारत नई सदी में आर्थिक रूप से सशक्त हुआ।
7. “जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान” : भारत के नए युग का मंत्र
लाल बहादुर शास्त्री के “जय जवान, जय किसान” के नारे को अटल बिहारी वाजपेयी ने आगे बढ़ाते हुए उसमें “जय विज्ञान” जोड़ दिया। यह उनका यह विश्वास दर्शाता था कि आधुनिक भारत की प्रगति केवल सैनिकों और किसानों की ताकत पर ही नहीं, बल्कि विज्ञान और तकनीक की शक्ति पर भी निर्भर करेगी।
1998 के पोखरण-II परमाणु परीक्षण के बाद जब उन्होंने यह नारा दिया, तो यह भारत के आत्मविश्वास और वैश्विक मंच पर वैज्ञानिक प्रगति की घोषणा बन गया।
यह नारा आज भी राष्ट्र की ऊर्जा, आत्मनिर्भरता और भविष्य की दिशा का मार्गदर्शक माना जाता है।
सामने आई चुनौतियाँ
उनके नेतृत्व काल में देश को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा:
- 1999 का कारगिल युद्ध
- 2001 संसद पर हमला
- 2002 गुजरात दंगे
इन परिस्थितियों में भी वाजपेयी का नेतृत्व संयमित और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति समर्पित रहा।
संसद का लंबा सफर
अटल बिहारी वाजपेयी 12 बार सांसद रहे, जिनमें 10 बार लोकसभा और 2 बार राज्यसभा शामिल है। उन्होंने चार राज्यों – उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और दिल्ली – की छह अलग-अलग लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा और जीता।
लगातार 47 वर्षों तक संसद में सक्रिय रहकर उन्होंने भारतीय लोकतंत्र को गहराई दी।
हिंदी को विश्व मंच पर पहुँचाया
वाजपेयी पहले भारतीय नेता बने जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया। इस कदम से उन्होंने न केवल भारत की विदेश नीति बल्कि मातृभाषा का गौरव भी बढ़ाया।
निजी जीवन और रिश्ते
अटल बिहारी वाजपेयी ने विवाह नहीं किया। लेकिन उनके जीवन में राजकुमारी कौल का नाम हमेशा जुड़ा रहा। दोनों का रिश्ता युवावस्था से था और राजनीति से परे यह भावनात्मक बंधन की मिसाल माना जाता है।
पुरस्कार और सम्मान
- भारत रत्न (2015) – भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
- पद्म विभूषण (1992)।
- कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान, जिनमें बांग्लादेश और मोरक्को के पुरस्कार भी शामिल हैं।
- उनके नाम पर अटल टनल, अटल सेतु और कई अन्य परियोजनाएँ।
निधन और विरासत
16 अगस्त 2018 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हुआ। वे 93 वर्ष के थे। उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई।
उनकी विरासत केवल योजनाओं और परियोजनाओं में नहीं, बल्कि उस मानवीय दृष्टिकोण में है जिसने राजनीति को जन-जन से जोड़ा।
उनका जन्मदिन 25 दिसंबर अब सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो पारदर्शिता, विकास और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
कवि हृदय प्रधानमंत्री
यदि राजनीति से परे अटल जी को समझना हो, तो उनकी कविताओं में झांकना पर्याप्त है। उनकी वाणी में भावनाओं की गहराई और राष्ट्र के प्रति अटूट समर्पण झलकता है। संसद हो या जनसभा, उनकी आवाज़ में कविता और राष्ट्रभक्ति का अद्भुत संगम रहता था। उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताओं के अंश इस प्रकार हैं—
1. हार नहीं मानूंगा
“हार नहीं मानूंगा,
रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं,
गीत नया गाता हूं।”
यह कविता उनके अदम्य आत्मविश्वास और संघर्षशील व्यक्तित्व की झलक देती है।
2. गीत नया गाता हूं
“टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते,
सत्य का संघर्ष सत्ता से,
न्याय लड़ता निरंकुशता से,
अंधकार से प्रकाश के लिए
मानवता का महान युद्ध!”
यह कविता उनके लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों की प्रतीक है।
3. एक और प्रयास
“क्या खोया, क्या पाया जग में,
मिलते और बिछुड़ते मग में,
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में।
एक और प्रयास करूं मैं,
किसी तरह जग में रहूं मैं।”
यह कविता उनके आशावाद और जीवन दर्शन को प्रकट करती है।
👉 अटल जी की इन कविताओं से स्पष्ट है कि अटल जी केवल राजनेता ही नहीं, बल्कि संवेदनशील कवि भी थे जिनके शब्द आज भी राष्ट्र की धड़कनों में गूंजते हैं।
निष्कर्ष
भारत की राजनीति में कुछ नाम ऐसे हैं जो समय के पार जाकर भी जीवित रहते हैं। वे केवल पद और सत्ता तक सीमित नहीं रहते, बल्कि जनता के दिलों में अमिट छाप छोड़ जाते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे ही नेता थे—एक राजनेता, एक कवि, एक वक्ता और सबसे बढ़कर एक संवेदनशील इंसान।
अटल बिहारी वाजपेयी केवल प्रधानमंत्री नहीं थे, वे एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने राजनीति को मानवीय संवेदना और काव्यात्मक गहराई दी।
उनकी दूरदर्शिता ने भारत को आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक रूप से नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया।
आज जब भारत उनकी सातवीं पुण्यतिथि मना रहा है, तो यह अवसर केवल श्रद्धांजलि का नहीं, बल्कि उनके विचारों और आदर्शों को आत्मसात करने का भी है।
आज उनकी सातवीं पुण्यतिथि पर पूरा राष्ट्र उन्हें नमन करता है और यह संदेश याद करता है—
“हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं।”
इन्हें भी देखें –
- वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण संधि वार्ता गतिरोध: एक अधूरा प्रयास और बढ़ता खतरा
- निर्यात संवर्धन मिशन योजनाएँ: अमेरिका के टैरिफ़ बढ़ोतरी के बीच भारत की रणनीति
- बिटकॉइन (Bitcoin): नई ऊँचाइयों पर पहुँचती डिजिटल क्रांति
- नरसंहार (Genocide): परिभाषा, इतिहास और गाज़ा संकट का विश्लेषण
- 79वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऐतिहासिक संबोधन: घोषणाएँ, उपलब्धियाँ और भविष्य की दिशा
- शब्द शक्ति: परिभाषा और प्रकार | अमिधा | लक्षणा | व्यंजना
- हिंदी गद्य साहित्य का उद्भव और विकास
- अव्यय | परिभाषा, प्रकार तथा 100 + उदाहरण
- हिंदी के विराम चिन्ह और उनका प्रयोग | 50 + उदाहरण