भारत की ऊर्जा सोर्सिंग रणनीति और रूस से बढ़ता तेल आयात: अगस्त 2025 का परिदृश्य

भारत की ऊर्जा सुरक्षा नीति हमेशा से वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियों, आपूर्ति के उतार-चढ़ाव और घरेलू आर्थिक प्राथमिकताओं पर आधारित रही है। अगस्त 2025 में यह नीति और अधिक स्पष्ट रूप से रूस की ओर झुकी हुई दिखती है। आंकड़ों के अनुसार, भारत ने अगस्त के पहले पखवाड़े में प्रतिदिन लगभग 20 लाख बैरल कच्चा तेल (bpd) रूस से आयात किया। यह मात्रा जुलाई 2025 के 16 लाख बैरल प्रतिदिन से कहीं अधिक है।

वैश्विक एनालिटिक्स फर्म Kpler के अनुसार, अगस्त के पहले पखवाड़े में भारत के कुल कच्चे तेल आयात का 38% हिस्सा रूस से आया। यह न केवल ऊर्जा व्यापार का रुझान है, बल्कि यह भारत की आर्थिक प्राथमिकताओं और भू-राजनीतिक संतुलन की नीति का भी द्योतक है।

अगस्त 2025 में भारत का तेल आयात मिश्रण

भारत का कुल कच्चा तेल आयात (अगस्त का पहला पखवाड़ा): 52 लाख बैरल प्रतिदिन। इसमें प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं का योगदान इस प्रकार रहा —

  • रूस: 20 लाख बैरल प्रतिदिन (38%)
  • इराक: 7.3 लाख बैरल प्रतिदिन (जुलाई में 9.07 लाख bpd से कमी)
  • सऊदी अरब: 5.26 लाख बैरल प्रतिदिन (जुलाई में 7 लाख bpd से कमी)

इस बदलाव से स्पष्ट है कि भारतीय रिफाइनर डिस्काउंटेड रूसी क्रूड का अधिक लाभ उठा रहे हैं और पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता धीरे-धीरे घटा रहे हैं।

भारत रूस से अधिक तेल क्यों खरीद रहा है?

1. आर्थिक कारण

  • सस्ती आपूर्ति: रूसी कच्चा तेल मध्य-पूर्वी आपूर्ति की तुलना में काफी सस्ता उपलब्ध हो रहा है।
  • मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: ऊर्जा लागत घटने से घरेलू ईंधन कीमतों पर नियंत्रण रहता है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें महंगाई का बड़ा कारण होती हैं।
  • विकास दर को सहारा: कम ऊर्जा लागत से उद्योगों को लाभ होता है, जिससे विकास दर को स्थिर बनाए रखने में मदद मिलती है।

2. रणनीतिक विविधीकरण

  • भारत की ऊर्जा सुरक्षा नीति हमेशा से “सप्लाई का विविधीकरण” पर जोर देती रही है।
  • रूस से आयात बढ़ाकर भारत इराक और सऊदी अरब जैसे परंपरागत आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता घटा रहा है।
  • वैश्विक आपूर्ति बाधाओं (जैसे युद्ध, ओपेक का उत्पादन घटाना या वैश्विक संकट) की स्थिति में रूस भारत के लिए एक भरोसेमंद विकल्प बन रहा है।

3. भू-राजनीतिक संदर्भ

  • अमेरिका और यूरोपीय संघ लगातार भारत पर दबाव डालते रहे हैं कि वह रूस से तेल आयात घटाए।
  • भारत ने हमेशा स्पष्ट किया है कि उसकी खरीद राष्ट्रीय हित और ऊर्जा सुरक्षा पर आधारित है। यही कारण है कि भारत ने अपने रुख को “बिज़नेस ऐज़ यूज़ुअल” की तरह पेश किया है।
  • इस नीति से भारत पूर्व (रूस) और पश्चिम (अमेरिका-यूरोप) के बीच संतुलन साधने में सफल दिखता है।

भारत की ऊर्जा टोकरी में रूस की भूमिका

  • वर्ष 2022 से रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है।
  • इसका कारण है लॉन्ग-टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स और प्रेफरेंशियल प्राइसिंग
  • भारत के कई रिफाइनरी अब रूसी ग्रेड क्रूड को प्रोसेस करने में सक्षम हो चुकी हैं।
  • 2025 तक आते-आते यह साझेदारी केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि रणनीतिक स्तर पर भी मजबूत हो चुकी है।

वैश्विक ऊर्जा बाज़ार पर असर

रूस के लिए

  • पश्चिमी प्रतिबंधों और यूरोपीय बाजार खोने की स्थिति में भारत उसके लिए एक बड़ा और स्थायी बाजार है।
  • इससे रूस को अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने में मदद मिल रही है।

ओपेक के लिए

  • भारत जैसे बड़े उपभोक्ता से कम होती खरीद, ओपेक की प्रतिस्पर्धा को बढ़ा रही है।
  • इससे ओपेक को अपनी मूल्य निर्धारण नीति और उत्पादन स्तर पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है।

भारत के लिए

  • ऊर्जा लागत घटने से मुद्रास्फीति नियंत्रित रहती है।
  • हालांकि, रूस पर अत्यधिक निर्भरता से भविष्य में कूटनीतिक जोखिम भी उत्पन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि रूस पर और कठोर प्रतिबंध लगाए जाते हैं, तो भारत की ऊर्जा आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।

परंपरागत आपूर्तिकर्ताओं पर असर

  • इराक और सऊदी अरब लंबे समय तक भारत के प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहे हैं।
  • लेकिन अगस्त 2025 के आंकड़े बताते हैं कि उनकी हिस्सेदारी लगातार घट रही है।
  • यह बदलाव इस ओर संकेत करता है कि भारत अपनी नीति में आर्थिक लाभ और लचीलापन को प्राथमिकता दे रहा है।

भारत की ऊर्जा सुरक्षा रणनीति

भारत की ऊर्जा रणनीति चार प्रमुख स्तंभों पर आधारित है:

  1. लागत नियंत्रण – सस्ता तेल आयात कर घरेलू कीमतों को नियंत्रित रखना।
  2. सप्लाई विविधीकरण – किसी एक क्षेत्र या देश पर पूरी तरह निर्भर न रहना।
  3. भू-राजनीतिक संतुलन – अमेरिका, यूरोप और रूस के बीच संबंधों को संतुलित रखना।
  4. भविष्य की तैयारी – नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रीन एनर्जी की दिशा में निवेश बढ़ाना।

संभावित चुनौतियाँ

  • अत्यधिक निर्भरता का जोखिम: रूस पर बढ़ती निर्भरता भविष्य में जोखिम पैदा कर सकती है।
  • भू-राजनीतिक दबाव: अमेरिका और यूरोप भारत की इस नीति से असंतुष्ट रह सकते हैं।
  • आपूर्ति व्यवधान: यदि रूस-यूक्रेन संघर्ष और गहराता है या समुद्री मार्ग बाधित होता है, तो आयात पर असर पड़ेगा।
  • ऊर्जा संक्रमण की चुनौती: जीवाश्म ईंधन पर लंबी अवधि की निर्भरता, भारत के “नेट ज़ीरो 2070” लक्ष्य को प्रभावित कर सकती है।

निष्कर्ष

अगस्त 2025 में भारत का रूस से तेल आयात 20 लाख बैरल प्रतिदिन तक पहुँच जाना इस बात का प्रमाण है कि भारत अपनी ऊर्जा नीति में आर्थिक लाभ और रणनीतिक विविधीकरण को प्राथमिकता दे रहा है। यह कदम न केवल भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था को सहारा देता है, बल्कि उसे वैश्विक ऊर्जा राजनीति में भी एक संतुलित खिलाड़ी के रूप में प्रस्तुत करता है।

हालांकि, भविष्य में भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि रूस पर अत्यधिक निर्भरता से उसकी ऊर्जा सुरक्षा और कूटनीतिक स्वतंत्रता प्रभावित न हो। इसके साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर तेज़ी से बढ़ना भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा रणनीति के लिए अनिवार्य होगा।


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