विश्व राजनीति और अर्थव्यवस्था में हाल के वर्षों में बहुध्रुवीयता (Multipolarity) की प्रवृत्ति तेज़ी से उभर रही है। एशिया, यूरोप और अफ्रीका के देशों के बीच नए गठबंधन, क्षेत्रीय संगठन और आर्थिक साझेदारियाँ बन रही हैं। इन्हीं प्रवृत्तियों के बीच भारत और यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU) के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को लेकर वार्ता प्रारंभ करना एक महत्वपूर्ण कदम है। हाल ही में दोनों पक्षों ने Terms of Reference (ToR) पर हस्ताक्षर कर औपचारिक वार्ता की शुरुआत की है। यह न केवल व्यापारिक अवसरों को बढ़ाएगा बल्कि भू-राजनीतिक संतुलन को भी प्रभावित करेगा।
यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU) का परिचय
स्वरूप: यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसका उद्देश्य पूर्व सोवियत संघ के कुछ देशों के बीच क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना है। इसका मुख्यालय मॉस्को (रूस) में स्थित है। यह संगठन यूरोपीय संघ (EU) की तर्ज़ पर गठित किया गया है, हालांकि इसके राजनीतिक आयाम अपेक्षाकृत सीमित हैं और इसका प्रमुख ध्यान व्यापार, निवेश, उद्योग और श्रम के मुक्त प्रवाह पर है।
स्थापना: EAEU की स्थापना यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन संधि (Treaty on the Eurasian Economic Union) के तहत हुई। यह संधि 29 मई 2014 को हस्ताक्षरित की गई और 1 जनवरी 2015 से यह संगठन औपचारिक रूप से अस्तित्व में आया।
सदस्य देश: वर्तमान में EAEU के 5 सदस्य देश हैं:
- रूस
- बेलारूस
- कज़ाख़स्तान
- किर्गिस्तान
- आर्मेनिया
ये सभी देश पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रहे हैं और इनकी आर्थिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक विरासत में गहरा साम्य है। रूस इसमें प्रमुख शक्ति के रूप में कार्य करता है।
EAEU का उद्देश्य और कार्यक्षेत्र
EAEU का गठन अपने सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश को सुगम बनाने तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए किया गया है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और श्रम के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित करना।
- एकीकृत बाजार की स्थापना करना ताकि बाहरी निवेश आकर्षित किया जा सके।
- सदस्य देशों की औद्योगिक और कृषि नीति में सहयोग बढ़ाना।
- वैश्विक स्तर पर एक संयुक्त आर्थिक शक्ति के रूप में उभरना।
- पड़ोसी देशों और अन्य आर्थिक संगठनों (जैसे यूरोपीय संघ, ASEAN, BRICS आदि) के साथ आर्थिक सहयोग स्थापित करना।
भारत और EAEU के बीच व्यापारिक संबंध
भारत और EAEU के बीच आर्थिक संबंधों का एक लंबा इतिहास है, जो सोवियत संघ के दौर से ही चला आ रहा है। आज के समय में यह संबंध नए रूप और नए अवसर प्राप्त कर रहे हैं।
व्यापार परिदृश्य:
- वर्ष 2024 में भारत और EAEU के बीच कुल व्यापार 69 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचा।
- यह आंकड़ा वर्ष 2023 की तुलना में लगभग 7% अधिक है।
- भारत मुख्यतः फार्मास्यूटिकल्स, कृषि उत्पाद, चाय, कॉफी, वस्त्र और मशीनरी का निर्यात करता है।
- वहीं EAEU से भारत को तेल, गैस, खनिज, धातु, और रक्षा उपकरण का आयात होता है।
संयुक्त GDP: भारत और EAEU देशों की कुल जीडीपी लगभग 6.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो इनकी सामूहिक आर्थिक क्षमता को दर्शाती है।
भारत–EAEU FTA वार्ता का महत्व
भारत और EAEU के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर वार्ता शुरू करना दोनों पक्षों के लिए ऐतिहासिक कदम है। इसके महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- व्यापार विस्तार: FTA से शुल्क (Tariff) और गैर-शुल्क बाधाएँ (Non-tariff Barriers) कम होंगी। इससे भारत के लिए EAEU देशों के बाजारों में प्रवेश आसान होगा।
- ऊर्जा सुरक्षा: रूस और कज़ाख़स्तान जैसे देश तेल और प्राकृतिक गैस के बड़े स्रोत हैं। FTA से भारत को ऊर्जा संसाधन सस्ते दामों पर और स्थिर रूप से उपलब्ध हो सकते हैं।
- नए बाजारों तक पहुँच: भारत की औषधि, आईटी सेवाएँ, वस्त्र और कृषि उत्पादों को इन देशों में बड़े पैमाने पर बाजार मिल सकता है।
- रणनीतिक संतुलन: चीन पहले से ही EAEU देशों के साथ गहरे आर्थिक संबंध रखता है। भारत का बढ़ता सहयोग क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन में नई संभावनाएँ उत्पन्न करेगा।
- भू-राजनीतिक लाभ: पश्चिमी देशों और रूस के बीच बढ़ते तनाव के दौर में भारत, EAEU देशों के लिए एक विश्वसनीय साझेदार बन सकता है।
भारत–EAEU सहयोग के प्रमुख क्षेत्र
भारत और EAEU के बीच सहयोग कई क्षेत्रों में बढ़ सकता है, जैसे:
- ऊर्जा क्षेत्र:
- रूस और कज़ाख़स्तान की तेल और गैस संपदा भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो सकती है।
- परमाणु ऊर्जा सहयोग में भी संभावनाएँ हैं।
- रक्षा और तकनीकी सहयोग:
- रूस पहले से भारत का प्रमुख रक्षा सहयोगी है।
- EAEU देशों के साथ संयुक्त रक्षा उत्पादन और तकनीकी हस्तांतरण भारत की ‘मेक इन इंडिया’ नीति को गति दे सकते हैं।
- कृषि और खाद्य प्रसंस्करण:
- भारत के चावल, मसाले, चाय और कृषि-प्रसंस्कृत उत्पादों की इन देशों में बड़ी मांग है।
- वहीं EAEU देश भारत को अनाज और डेयरी उत्पाद उपलब्ध करा सकते हैं।
- फार्मास्यूटिकल्स और स्वास्थ्य क्षेत्र:
- भारतीय जेनेरिक दवाइयाँ EAEU देशों में लोकप्रिय हैं।
- संयुक्त शोध और चिकित्सा सेवाओं में सहयोग संभावित है।
- आईटी और डिजिटल अर्थव्यवस्था:
- भारत की आईटी कंपनियाँ EAEU देशों में डिजिटल सेवाओं, साइबर सुरक्षा और ई-गवर्नेंस परियोजनाओं में योगदान दे सकती हैं।
- पर्यटन और शिक्षा:
- भारत के चिकित्सा और शैक्षणिक संस्थानों में EAEU देशों के छात्रों की संख्या बढ़ सकती है।
- वहीं भारतीयों के लिए रूस और अन्य देशों में पर्यटन के नए अवसर खुल सकते हैं।
चुनौतियाँ
हालाँकि यह सहयोग बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी सामने आ सकती हैं:
- भौगोलिक दूरी: भारत और EAEU देशों के बीच लंबी दूरी और परिवहन नेटवर्क की कमी एक बड़ी चुनौती है।
- पश्चिमी प्रतिबंध: रूस पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध भारत–EAEU व्यापार को प्रभावित कर सकते हैं।
- चीन की मौजूदगी: चीन पहले से ही बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से इस क्षेत्र में गहरी पैठ बना चुका है। भारत को संतुलन बनाने की आवश्यकता होगी।
- नियम-कानूनों में अंतर: सदस्य देशों के बीच विभिन्न कर प्रणाली और व्यापारिक नियम भारत के लिए प्रारंभिक कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं।
भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
भारत–EAEU सहयोग को केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह भू-राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।
- यह सहयोग एशिया और यूरोप के बीच एक संपर्क–सेतु (Bridge) के रूप में कार्य कर सकता है।
- भारत अपनी कनेक्टिविटी परियोजनाओं (जैसे अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर – INSTC) को EAEU सहयोग से और मज़बूत बना सकता है।
- रूस और चीन की करीबी को देखते हुए भारत EAEU के माध्यम से क्षेत्रीय संतुलन बना सकता है।
निष्कर्ष
भारत और यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU) के बीच FTA वार्ता की शुरुआत वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में बदलते समीकरणों का परिचायक है। यह केवल व्यापारिक साझेदारी नहीं, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा सहयोग, भू-राजनीतिक संतुलन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी प्रतीक है।
यदि दोनों पक्ष अपनी चुनौतियों को दूर कर पाते हैं, तो आने वाले वर्षों में भारत–EAEU संबंध न केवल द्विपक्षीय व्यापार को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाएँगे, बल्कि वैश्विक स्तर पर नए शक्ति–समीकरण भी गढ़ेंगे। यह साझेदारी भारत के ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया’ नीतियों को और मज़बूती देगी तथा वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका को सुदृढ़ बनाएगी।
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