वैश्विक महत्त्वपूर्ण कृषि धरोहर प्रणाली (GIAHS)

मानव सभ्यता का सबसे बड़ा आधार कृषि रही है। यद्यपि आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों और औद्योगिक कृषि पद्धतियों ने उत्पादन में वृद्धि की है, फिर भी दुनिया के अनेक हिस्सों में अब भी पारंपरिक कृषि प्रणालियाँ जीवित हैं। ये न केवल भोजन उत्पादन का साधन हैं, बल्कि इनमें जैव विविधता, स्थानीय संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान और सामाजिक ताने-बाने का अनूठा संगम दिखाई देता है।

इन्हीं कारणों से संयुक्त राष्ट्र की फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (FAO) ने ऐसी विशिष्ट और सामुदायिक रूप से प्रबंधित कृषि प्रणालियों को “वैश्विक महत्त्वपूर्ण कृषि धरोहर प्रणाली (Globally Important Agricultural Heritage Systems – GIAHS)” के रूप में मान्यता दी है।

भारत, जो कि प्राचीन कृषि परंपराओं का धनी देश है, इस सूची में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वर्तमान में भारत की तीन कृषि प्रणालियाँ GIAHS के अंतर्गत मान्यता प्राप्त कर चुकी हैं।

GIAHS की परिभाषा और विशेषताएँ

वैश्विक महत्त्वपूर्ण कृषि धरोहर प्रणाली (GIAHS) वे पारंपरिक कृषि प्रणालियाँ हैं, जो स्थानीय समुदायों द्वारा समय के साथ विकसित की गई हैं। इनकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. कृषि-जैव विविधता का संरक्षण – यहाँ एक ही क्षेत्र में अनेक प्रकार की फसलें, पशुधन और पारिस्थितिक तंत्र संरक्षित रहते हैं।
  2. पारंपरिक ज्ञान का उपयोग – स्थानीय समुदाय पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचित अनुभव और ज्ञान का उपयोग करते हैं।
  3. सांस्कृतिक विरासत से जुड़ाव – यह केवल कृषि उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि इनसे जुड़ी धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराएँ भी होती हैं।
  4. खाद्य और आजीविका सुरक्षा – इन प्रणालियों के माध्यम से समुदाय अपनी जीविका चलाने के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
  5. पर्यावरणीय स्थिरता – आधुनिक कृषि से अलग, ये प्रणालियाँ भूमि, जल और वनों का सतत उपयोग सुनिश्चित करती हैं।

FAO द्वारा मान्यता और वैश्विक परिप्रेक्ष्य

FAO ने वर्ष 2002 में “GIAHS Initiative” की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य उन कृषि प्रणालियों की पहचान करना था, जिनमें जैव विविधता, पारंपरिक तकनीक, सामाजिक संस्कृति और पर्यावरणीय संतुलन का अद्वितीय मेल हो।

  • अब तक 29 देशों में 99 कृषि प्रणालियों को GIAHS की मान्यता मिल चुकी है।
  • इनमें एशिया, अफ्रीका, यूरोप और लैटिन अमेरिका की विविध कृषि प्रणालियाँ शामिल हैं।
  • FAO समय-समय पर नए देशों से आवेदन आमंत्रित करता है और विशेषज्ञ समिति इन प्रणालियों का मूल्यांकन कर मान्यता प्रदान करती है।

हाल में शामिल कुछ नई प्रणालियाँ

  1. ताजिकिस्तान – पहाड़ी कृषि-पशुपालन प्रणाली।
  2. दक्षिण कोरिया – पाइन ट्री एग्रोफॉरेस्ट्री और पारंपरिक बांस-मछली प्रणाली।
  3. पुर्तगाल – कृषि-वनीकरण-पशुपालन प्रणाली।

ये उदाहरण दर्शाते हैं कि विश्व स्तर पर कृषि प्रणालियों का महत्व केवल उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि वे प्रकृति और समाज के संतुलन का आधार भी हैं।

भारत की GIAHS प्रणालियाँ

भारत में कृषि केवल जीविका का साधन नहीं रही है, बल्कि यह संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली का भी अभिन्न हिस्सा रही है। भारत की विविध भौगोलिक परिस्थितियों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत ने यहाँ की कृषि प्रणालियों को अद्वितीय बनाया है। FAO ने भारत की तीन प्रणालियों को GIAHS के रूप में मान्यता दी है –

1. कोरापुट क्षेत्र, ओडिशा

परिचय

ओडिशा का कोरापुट क्षेत्र आदिवासी बहुल इलाका है, जो अपनी पर्वतीय धान की खेती और स्वदेशी चावल किस्मों की विविधता के लिए प्रसिद्ध है।

मुख्य विशेषताएँ

  • इस क्षेत्र में धान की 1700 से अधिक स्थानीय किस्में पाई जाती हैं।
  • यहाँ की खेती वर्षा पर आधारित है और पहाड़ी ढलानों पर की जाती है।
  • आदिवासी समुदाय पारंपरिक कृषि उपकरणों और स्थानीय बीजों का उपयोग करते हैं।
  • क्षेत्र में औषधीय पौधों की विविधता और उनसे जुड़ा पारंपरिक ज्ञान संरक्षित है।

महत्व

  • कोरापुट को “धान का जीन केंद्र (Gene Centre of Rice)” कहा जाता है।
  • यहाँ की खेती वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा और बीज विविधता के लिए महत्वपूर्ण है।
  • यह क्षेत्र आदिवासी संस्कृति, उत्सवों और धार्मिक परंपराओं से भी जुड़ा हुआ है।

2. कुट्टनाड प्रणाली, केरल

परिचय

कुट्टनाड को “भारत की वेनिस” कहा जाता है। यह दुनिया के उन गिने-चुने क्षेत्रों में है, जहाँ खेती समुद्र-स्तर से नीचे की जाती है।

मुख्य विशेषताएँ

  • यहाँ धान की खेती विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए पोल्डर (polders) क्षेत्रों में होती है।
  • धान के साथ-साथ नारियल की खेती, मत्स्य पालन और शंख संग्रहण भी यहाँ की आजीविका का हिस्सा है।
  • खेती की यह प्रणाली लगभग 2000 वर्ष पुरानी मानी जाती है।

महत्व

  • यह सतत कृषि का अनूठा उदाहरण है, जहाँ जल संसाधनों का कुशल प्रबंधन किया जाता है।
  • खेती, मत्स्य पालन और वानिकी का सम्मिलित मॉडल यहाँ दिखाई देता है।
  • यहाँ की प्रणाली जलवायु परिवर्तन और समुद्र-स्तर बढ़ने जैसी चुनौतियों से निपटने में प्रेरणा देती है।

3. कश्मीर की केसर धरोहर

परिचय

कश्मीर घाटी के पंपोर क्षेत्र को दुनिया की सबसे बेहतरीन केसर (Saffron) के लिए जाना जाता है।

मुख्य विशेषताएँ

  • यहाँ की केसर खेती लगभग 2500 मीटर ऊँचाई पर की जाती है।
  • खेती में जैविक और पारंपरिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
  • किसान अंतरफसली खेती (intercropping) अपनाते हैं, जिससे भूमि की उर्वरता बनी रहती है।

महत्व

  • कश्मीर की केसर को Geographical Indication (GI) Tag प्राप्त है।
  • यह स्थानीय अर्थव्यवस्था, संस्कृति और धार्मिक परंपराओं से गहराई से जुड़ी हुई है।
  • यहाँ की मिट्टी और जलवायु के कारण कश्मीर की केसर विश्व में अद्वितीय गुणवत्ता की मानी जाती है।

भारत की कृषि धरोहर का महत्व

भारत की इन प्रणालियों का महत्व केवल ऐतिहासिक या सांस्कृतिक दृष्टि से ही नहीं है, बल्कि इनका आधुनिक संदर्भ में भी बड़ा महत्व है –

  1. खाद्य सुरक्षा – स्थानीय बीजों और पारंपरिक प्रणालियों से विविधता बनी रहती है।
  2. पर्यावरण संरक्षण – ये प्रणालियाँ भूमि, जल और वन संसाधनों का सतत उपयोग करती हैं।
  3. सांस्कृतिक पहचान – प्रत्येक प्रणाली स्थानीय लोककथाओं, उत्सवों और परंपराओं से जुड़ी होती है।
  4. वैज्ञानिक प्रेरणा – आधुनिक कृषि वैज्ञानिक इन प्रणालियों से जल प्रबंधन, जैव विविधता और जलवायु अनुकूलन जैसे विषयों पर प्रेरणा लेते हैं।

चुनौतियाँ

यद्यपि GIAHS प्रणालियाँ महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे अनेक चुनौतियों से जूझ रही हैं –

  • आधुनिक कृषि का दबाव – रासायनिक उर्वरकों और हाई-यील्डिंग किस्मों का दबाव।
  • भूमि का क्षरण – शहरीकरण और अतिक्रमण से भूमि का नुकसान।
  • जलवायु परिवर्तन – अनिश्चित वर्षा और बढ़ते तापमान का खतरा।
  • युवाओं का पलायन – नई पीढ़ी कृषि से विमुख होकर अन्य व्यवसायों की ओर आकर्षित हो रही है।

संरक्षण और भविष्य की संभावनाएँ

इन प्रणालियों के संरक्षण के लिए कुछ कदम आवश्यक हैं –

  1. नीतिगत समर्थन – सरकार को विशेष योजनाओं के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहित करना होगा।
  2. पर्यटन और ब्रांडिंग – GIAHS स्थलों को एग्रो-टूरिज्म और जीआई टैग से जोड़ा जा सकता है।
  3. शिक्षा और अनुसंधान – विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों को इन प्रणालियों पर अध्ययन करना चाहिए।
  4. स्थानीय समुदाय की भागीदारी – इन प्रणालियों का अस्तित्व तभी सुरक्षित रहेगा, जब स्थानीय समुदाय इसमें सक्रिय भूमिका निभाएंगे।

निष्कर्ष

वैश्विक महत्त्वपूर्ण कृषि धरोहर प्रणाली (GIAHS) केवल खेती की पद्धतियाँ नहीं हैं, बल्कि ये मानव और प्रकृति के सहअस्तित्व का जीवंत उदाहरण हैं। भारत की कोरापुट, कुट्टनाड और कश्मीर की केसर धरोहर यह बताती हैं कि पारंपरिक कृषि प्रणालियाँ आज भी प्रासंगिक हैं और भविष्य की चुनौतियों से निपटने में सहायक हो सकती हैं।

आज आवश्यकता इस बात की है कि हम इन प्रणालियों को केवल “अतीत की विरासत” मानकर न छोड़ें, बल्कि इन्हें आधुनिक कृषि नीतियों और सतत विकास की रणनीतियों में सम्मिलित करें। तभी हम जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रख पाएंगे।


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