अफ़्रीका लोकप्रिय विश्व मानचित्र को क्यों बदलना चाहता है?

मानचित्र केवल भौगोलिक सीमाओं और स्थानों को दिखाने का साधन नहीं हैं, बल्कि वे राजनीतिक, सांस्कृतिक और मानसिक दृष्टिकोणों को भी आकार देते हैं। जिस तरह से दुनिया को नक्शे पर दर्शाया जाता है, उसका असर यह तय करने में पड़ता है कि हम किन क्षेत्रों को बड़ा, शक्तिशाली और प्रभावशाली मानते हैं और किन्हें छोटा और महत्वहीन। इसी संदर्भ में अफ़्रीकी संघ (African Union) और कई अफ्रीकी संगठनों ने हाल ही में “Correct The Map” अभियान का समर्थन किया है। इस अभियान का उद्देश्य 16वीं शताब्दी के प्रचलित Mercator Projection नक्शे को छोड़कर Equal Earth Projection जैसे अधिक सटीक और न्यायपूर्ण नक्शों को अपनाना है।

मर्केटर प्रोजेक्शन: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

मर्केटर प्रोजेक्शन (Mercator Projection) का विकास 1569 में बेल्जियम के मानचित्रकार जेरार्डस मर्केटर (Gerardus Mercator) ने किया था। उस समय समुद्री यात्राओं और व्यापारिक मार्गों के लिए यह नक्शा बेहद उपयोगी साबित हुआ, क्योंकि इसमें समुद्री नेविगेशन के लिए सीधी रेखाओं (Straight Lines) का अनुसरण करना संभव था।

लेकिन समय बीतने के साथ जब यह नक्शा वैश्विक स्तर पर शिक्षा, राजनीति और भूगोल की पहचान का आधार बन गया, तो इसकी सीमाएँ और खामियाँ उजागर होने लगीं। मर्केटर नक्शा गोल पृथ्वी को एक सपाट सतह पर प्रक्षेपित करता है और ध्रुवों के पास स्थित क्षेत्रों को वास्तविक आकार से कहीं बड़ा दिखाता है, जबकि भूमध्यरेखा के नजदीकी देशों को छोटा कर देता है।

अफ्रीका की दिक्कतें: झूठा आकार और गलत धारणाएँ

मर्केटर प्रोजेक्शन का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि यह अफ्रीका जैसे महाद्वीपों के वास्तविक आकार को छोटा करके दिखाता है। उदाहरण के तौर पर:

  • रूस बनाम अफ्रीका: मर्केटर नक्शे में रूस, अफ्रीका से कहीं बड़ा प्रतीत होता है। जबकि वास्तविकता यह है कि अफ्रीका का क्षेत्रफल रूस से लगभग दोगुना है। रूस का क्षेत्रफल लगभग 17.09 मिलियन वर्ग किमी है, जबकि अफ्रीका का क्षेत्रफल 30.37 मिलियन वर्ग किमी है।
  • ग्रीनलैंड बनाम अफ्रीका: नक्शे में ग्रीनलैंड अफ्रीका जितना बड़ा दिखाई देता है, लेकिन वास्तविकता में अफ्रीका उससे 14 गुना बड़ा है।

इस तरह के गलत प्रतिनिधित्व ने दशकों तक यह धारणा बनाई कि अफ्रीका अपेक्षाकृत छोटा, महत्वहीन और पिछड़ा हुआ महाद्वीप है, जबकि सच इसके ठीक विपरीत है।

साम्राज्यवादी मानसिकता और नक्शे की राजनीति

मर्केटर नक्शे की सबसे बड़ी आलोचना यह है कि यह औपनिवेशिक और साम्राज्यवादी मानसिकता को मज़बूत करता है। इसमें यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों को उनके वास्तविक आकार से बड़ा और प्रभावशाली दिखाया गया। इसके विपरीत, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों को छोटा और कमजोर दिखाया गया।

इस असंतुलन ने वैश्विक राजनीति और मानसिकता पर गहरा असर डाला। पश्चिमी देशों को शक्ति और प्रभुत्व का प्रतीक माना गया, जबकि अफ्रीका जैसे महाद्वीपों को गरीबी, पिछड़ेपन और निर्भरता के रूप में प्रस्तुत किया गया।

विशेषज्ञों का मानना है कि मर्केटर प्रोजेक्शन केवल एक भौगोलिक त्रुटि नहीं, बल्कि यह एक “सांस्कृतिक-राजनीतिक औजार” है जिसने उपनिवेशवाद और नस्लीय भेदभाव को वैचारिक आधार प्रदान किया।

“Correct The Map” अभियान

अफ्रीका नो फ़िल्टर (Africa No Filter) और स्पीक अप अफ्रीका (Speak Up Africa) जैसे संगठनों ने मिलकर “Correct The Map” नामक वैश्विक अभियान शुरू किया है। इसका मक़सद अंतरराष्ट्रीय संगठनों, सरकारों और शैक्षणिक संस्थानों से यह अपील करना है कि वे पुराने और भ्रामक मर्केटर प्रोजेक्शन को छोड़कर Equal Earth Projection जैसे अधिक वैज्ञानिक और न्यायपूर्ण नक्शों को अपनाएँ।

यह अभियान सिर्फ़ भौगोलिक सटीकता का सवाल नहीं है, बल्कि यह पहचान, न्याय और आत्म-सम्मान का भी मुद्दा है। अफ्रीका चाहता है कि दुनिया उसे उसी वास्तविक आकार और महत्व के साथ देखे, जो वह वास्तव में रखता है।

Equal Earth Projection: एक न्यायपूर्ण विकल्प

2018 में विकसित Equal Earth Projection, पारंपरिक मर्केटर नक्शे का एक आधुनिक और सटीक विकल्प है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं:

  1. सही अनुपात: यह नक्शा देशों और महाद्वीपों के वास्तविक आकार को सही अनुपात में दर्शाता है।
  2. अफ्रीका की वास्तविकता: इसमें अफ्रीका को उसी विशालता और भव्यता के साथ दिखाया जाता है, जैसा वह वास्तव में है।
  3. समानता और न्याय: यह नक्शा वैश्विक स्तर पर अधिक न्यायपूर्ण है क्योंकि इसमें किसी क्षेत्र को छोटा या बड़ा करके नहीं दिखाया जाता।
  4. शिक्षा और मानसिकता पर असर: Equal Earth Projection को अपनाने से विद्यार्थियों और आम जनता की विश्व दृष्टि अधिक यथार्थवादी और संतुलित होगी।

मानचित्र और मानसिक उपनिवेशवाद

नक्शों की राजनीति को केवल तकनीकी या भौगोलिक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। यह मानसिक उपनिवेशवाद (Mental Colonialism) का भी हिस्सा है। जब दशकों तक किसी महाद्वीप को नक्शे पर छोटा दिखाया जाता है, तो अनजाने में ही लोगों के मन में उसकी छवि भी छोटी और महत्वहीन बन जाती है। यही कारण है कि अफ्रीका लगातार इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि नक्शों को ठीक किया जाए।

अफ्रीकी संघ की भूमिका

अफ्रीकी संघ (AU) ने “Correct The Map” अभियान को आधिकारिक समर्थन देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि यह केवल एक अकादमिक बहस नहीं है, बल्कि अफ्रीका की गरिमा और आत्मसम्मान का सवाल है। AU का मानना है कि अगर दुनिया अफ्रीका को उसके वास्तविक आकार और संसाधनों के आधार पर देखेगी, तो महाद्वीप की वैश्विक छवि और कूटनीतिक स्थिति मज़बूत होगी।

विश्व राजनीति और आर्थिक प्रभाव

यदि Equal Earth Projection को अपनाया जाता है, तो इसका असर केवल नक्शों तक सीमित नहीं रहेगा। इसके कई व्यापक परिणाम हो सकते हैं:

  1. वैश्विक शिक्षा प्रणाली: स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले भूगोल के नक्शे बदलेंगे, जिससे विद्यार्थियों की मानसिकता में संतुलन आएगा।
  2. राजनीतिक धारणा: अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों के महत्व को वैश्विक राजनीति में अधिक मान्यता मिलेगी।
  3. आर्थिक दृष्टिकोण: अफ्रीका के विशाल क्षेत्रफल और प्राकृतिक संसाधनों को देखकर अंतरराष्ट्रीय निवेश और सहयोग की मानसिकता बदल सकती है।
  4. मानसिक बदलाव: यह कदम “मानसिक उपनिवेशवाद” को तोड़ने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि होगी।

निष्कर्ष

नक्शे केवल भौगोलिक उपकरण नहीं होते, वे हमारी सोच, हमारी राजनीति और हमारी पहचान को आकार देते हैं। मर्केटर प्रोजेक्शन ने सदियों तक अफ्रीका और अन्य क्षेत्रों की छवि को छोटा करके दिखाया और पश्चिमी देशों को बड़ा और प्रभावशाली बना दिया। लेकिन अब समय बदल रहा है।

“Correct The Map” अभियान और Equal Earth Projection का अपनाया जाना इस बात का संकेत है कि अफ्रीका अब अपनी वास्तविकता और महत्व को दुनिया के सामने सही रूप में प्रस्तुत करना चाहता है। यह केवल नक्शे की तकनीकी सुधार की बात नहीं, बल्कि न्याय, समानता और आत्मसम्मान की लड़ाई है।

यदि आने वाले वर्षों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बदलाव को स्वीकार करता है, तो यह न केवल भूगोल बल्कि वैश्विक राजनीति, शिक्षा और मानसिकता में भी एक ऐतिहासिक सुधार होगा।


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