21वीं सदी में ऊर्जा की मांग और जलवायु परिवर्तन की चुनौती साथ-साथ बढ़ रही है। जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता ने न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँचाया है, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा को भी खतरे में डाला है। ऐसे समय में सौर ऊर्जा सबसे स्वच्छ, टिकाऊ और सुलभ विकल्प बनकर उभरी है। इसी पृष्ठभूमि में भारत और फ्रांस ने 2015 में इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) की स्थापना की। इसका लक्ष्य वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा को मुख्यधारा में लाना और गरीब एवं विकासशील देशों तक इसकी पहुँच सुनिश्चित करना है।
हाल ही में ISA ने घोषणा की है कि 2025 के अंत तक भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर स्थापित किया जाएगा, साथ ही दुनिया भर में 17 Centres of Excellence बनाए जाएंगे। इनका उद्देश्य भारत को “सोलर का सिलिकॉन वैली” बनाना है। इन केंद्रों में प्रशिक्षण, परीक्षण, अनुसंधान और स्टार्टअप्स को बढ़ावा मिलेगा। भविष्य में इनकी संख्या 50 तक पहुँचाने की भी योजना है। यह पहल न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए ऊर्जा क्षेत्र में ऐतिहासिक कदम साबित हो सकती है।
इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA): परिचय
- स्थापना: ISA की घोषणा भारत और फ्रांस ने 2015 में COP21 (पेरिस समझौता) के दौरान की थी।
- मुख्यालय: गुरुग्राम, हरियाणा (भारत)।
- सदस्य देश: वर्तमान में 123 देश सदस्य या हस्ताक्षरकर्ता हैं।
- उद्देश्य:
- सौर ऊर्जा को वैश्विक स्तर पर अपनाने को प्रोत्साहित करना।
- सौर तकनीक और वित्तीय लागत को कम करना।
- कृषि, स्वास्थ्य, परिवहन, शिक्षा और उद्योग जैसे क्षेत्रों में सौर ऊर्जा का प्रयोग बढ़ाना।
- नीति निर्माण, मानकीकरण और निवेश को प्रोत्साहन देना।
- प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के माध्यम से विशेषज्ञ तैयार करना।
भारत की सौर उपलब्धियाँ
भारत ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है।
- जुलाई 2025 तक भारत ने 119 गीगावाट (GW) सौर क्षमता स्थापित की है।
- विश्व स्तर पर भारत सौर ऊर्जा के शीर्ष 5 उत्पादक देशों में शामिल है।
- राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश भारत के प्रमुख सौर ऊर्जा उत्पादक राज्य हैं।
- भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 GW नवीकरणीय ऊर्जा हासिल करना है, जिसमें सौर ऊर्जा की सबसे बड़ी हिस्सेदारी होगी।
ISA के प्रमुख उद्देश्य और महत्व
1. विकासशील देशों में ऊर्जा सुरक्षा
ISA विशेष रूप से कम विकसित देशों (LDCs) और छोटे द्वीप विकासशील देशों (SIDS) में सौर ऊर्जा की पहुँच सुनिश्चित करने पर जोर देता है। इन देशों में ऊर्जा की भारी कमी है और जीवाश्म ईंधन पर अत्यधिक निर्भरता उनकी अर्थव्यवस्था को कमजोर बनाती है।
2. लागत में कमी
सौर ऊर्जा अपनाने में सबसे बड़ी चुनौती रही है – उच्च लागत। ISA का प्रयास है कि सामूहिक खरीद और तकनीकी सहयोग से सौर उपकरणों (पैनल, बैटरी, इनवर्टर) की लागत को कम किया जाए।
3. रोजगार और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन
ISA के अंतर्गत बनने वाले उत्कृष्टता केंद्रों (Centres of Excellence) का उद्देश्य है –
- प्रशिक्षण के माध्यम से कुशल मानव संसाधन तैयार करना।
- स्टार्टअप्स को वित्तीय और तकनीकी सहयोग प्रदान करना।
- अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना।
4. सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति
संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (SDGs) में सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा (SDG-7) प्रमुख है। ISA इस लक्ष्य की प्राप्ति में अहम भूमिका निभा रहा है। इसके माध्यम से गरीब देशों में स्वच्छ ऊर्जा तक पहुँच बढ़ेगी, प्रदूषण घटेगा और जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण मिलेगा।
ISA की प्रमुख पहलें
- ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (2025):
- भारत में स्थापित होगा।
- इसका उद्देश्य होगा – अनुसंधान, परीक्षण, प्रशिक्षण और नीतिगत समर्थन।
- यह भारत को सौर ऊर्जा का वैश्विक हब बनाएगा।
- 17 Centres of Excellence:
- दुनिया के विभिन्न हिस्सों में स्थापित होंगे।
- इनमें तकनीकी प्रशिक्षण, मानकीकरण और स्टार्टअप्स को सहयोग मिलेगा।
- भविष्य में इनकी संख्या 50 तक बढ़ाई जाएगी।
- Solar Technology Application Resource Centres (STAR-C):
- अफ्रीकी और एशियाई देशों में स्थापित।
- यहाँ स्थानीय स्तर पर सौर उपकरणों का परीक्षण और प्रशिक्षण होता है।
- ISA Solar Finance Facility:
- सौर परियोजनाओं में निवेश को आसान बनाने के लिए वित्तीय सहायता मंच।
- सौर पंप और कृषि:
- ISA का विशेष फोकस है किसानों को सौर ऊर्जा आधारित पंप उपलब्ध कराना।
- इससे डीजल पर निर्भरता घटेगी और कृषि टिकाऊ बनेगी।
भारत और ISA: एक नेतृत्वकारी भूमिका
भारत ISA का मुख्य आधार है।
- मुख्यालय भारत में होने से यह देश वैश्विक नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है।
- भारत ने वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG) की अवधारणा दी है, जिसका लक्ष्य है – सौर ऊर्जा को सीमा-पार साझा करना।
- ISA भारत की ऊर्जा सुरक्षा को भी मजबूत करता है।
भारत की पहल से कई अफ्रीकी देशों में सौर ऊर्जा परियोजनाएँ शुरू हुई हैं। इससे भारत का वैश्विक प्रभाव बढ़ा है और इसे “सौर राजनय (Solar Diplomacy)” भी कहा जाता है।
चुनौतियाँ
हालाँकि ISA के सामने कई चुनौतियाँ भी हैं –
- वित्तीय संसाधन:
- विकासशील देशों में निवेश की कमी बड़ी बाधा है।
- सौर परियोजनाओं की प्रारंभिक लागत अभी भी अधिक है।
- तकनीकी चुनौतियाँ:
- ऊर्जा भंडारण (Storage) अभी महंगा और सीमित है।
- सौर ऊर्जा की अनियमितता (Intermittency) समस्या बनी हुई है।
- नीतिगत अंतर:
- सदस्य देशों की ऊर्जा नीतियों और मानकों में काफी अंतर है।
- एक समान वैश्विक नीति बनाना कठिन है।
- भू-राजनीतिक कारक:
- ऊर्जा क्षेत्र में चीन, अमेरिका और यूरोप जैसे देशों के वर्चस्व को देखते हुए ISA की स्वतंत्र भूमिका चुनौतीपूर्ण है।
संभावनाएँ और भविष्य
ISA के प्रयासों से दुनिया में सौर ऊर्जा की स्थिति बदल सकती है।
- भारत को “सोलर की सिलिकॉन वैली” बनाने की दिशा में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर ऐतिहासिक कदम होगा।
- उत्कृष्टता केंद्रों से रोजगार, स्टार्टअप्स और अनुसंधान को नई ऊँचाइयाँ मिलेंगी।
- यदि ISA अपने लक्ष्यों में सफल होता है, तो 2030 तक दुनिया की ऊर्जा खपत का बड़ा हिस्सा सौर ऊर्जा से पूरा किया जा सकेगा।
निष्कर्ष
इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) केवल एक संगठन नहीं, बल्कि ऊर्जा के भविष्य की वैश्विक क्रांति है। यह पहल भारत को नवीकरणीय ऊर्जा में वैश्विक नेतृत्व प्रदान करती है और गरीब देशों को ऊर्जा सुरक्षा देती है। 2025 तक भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर और दुनिया भर में 17 उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना ISA के विज़न को और मजबूत बनाएगी।
आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन से जूझ रही है, ISA आशा की एक नई किरण है। यदि यह संगठन अपने उद्देश्यों को पूरा करने में सफल होता है, तो भारत न केवल ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी “सोलर का सिलिकॉन वैली” कहलाएगा।
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