पश्चिमी घाट में दुर्लभ ड्रैगनफ़्लाई की पुनः खोज | जैव-विविधता और संरक्षण का नया संकेत

भारत का पश्चिमी घाट (Western Ghats) न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह विश्व के सबसे महत्वपूर्ण जैव-विविधता हॉटस्पॉट्स में भी गिना जाता है। हाल ही में यहां हुई एक महत्वपूर्ण खोज ने वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का ध्यान एक बार फिर इस क्षेत्र की ओर आकर्षित किया है। ओडोनैटोलॉजिस्ट्स (Odonatologists) यानी व्याधपतंग या ड्रैगनफ़्लाई विशेषज्ञों ने पश्चिमी घाट के दक्षिणी हिस्से में क्रोकोथेमिस एरिथ्रैया (Crocothemis erythraea) नामक दुर्लभ प्रजाति की उपस्थिति की पुष्टि की है।

पहले इस प्रजाति को क्रोकोथेमिस सर्विलिया (Crocothemis servilia) समझा जाता था क्योंकि दोनों का स्वरूप काफी मिलता-जुलता है। लेकिन हाल के अध्ययनों ने साबित किया कि यह एक अलग और विशिष्ट प्रजाति है, जिसका मूल निवास यूरोप, मध्य एशिया और हिमालय जैसे ठंडे क्षेत्रों में है। इसकी पुनः खोज न केवल पश्चिमी घाट के पारिस्थितिक महत्व को दर्शाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि अतीत की जलवायु घटनाओं ने आज की जैव-विविधता को गहराई से प्रभावित किया है।

ड्रैगनफ़्लाई: जैव-विविधता की सूक्ष्म प्रहरी

ड्रैगनफ़्लाई, जिन्हें हिंदी में व्याधपतंग भी कहा जाता है, प्रकृति के सबसे प्राचीन कीट समूहों में से हैं। ये लगभग 30 करोड़ वर्ष से पृथ्वी पर मौजूद हैं और अपने पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ड्रैगनफ़्लाई पर्यावरणीय स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण संकेतक हैं। उनकी मौजूदगी हमें बताती है कि किसी क्षेत्र का जल और पारिस्थितिक तंत्र कितना संतुलित और स्वस्थ है।

  • पर्यावरण संकेतक (Bio-indicators):
    ड्रैगनफ़्लाई की मौजूदगी किसी क्षेत्र के जल और वायु की गुणवत्ता का महत्वपूर्ण संकेतक है। क्योंकि ये कीट अपने जीवन चक्र के शुरुआती चरण में जलाशयों पर निर्भर रहते हैं और प्रदूषण से संवेदनशील होते हैं।
  • पारिस्थितिक संतुलन में भूमिका:
    ड्रैगनफ़्लाई मच्छरों और अन्य छोटे कीटों का शिकार करते हैं, जिससे रोग फैलाने वाले कीटों की संख्या नियंत्रित रहती है।
  • सांस्कृतिक महत्व:
    कई देशों में इन्हें शुभ प्रतीक माना जाता है। जापान में तो ड्रैगनफ़्लाई को साहस और शक्ति का प्रतीक समझा जाता है।

इस दृष्टि से, क्रोकोथेमिस एरिथ्रैया जैसी प्रजातियों की मौजूदगी पारिस्थितिकी के स्वास्थ्य और उसके ऐतिहासिक विकास दोनों का संकेत देती है।

क्रोकोथेमिस एरिथ्रैया: एक दुर्लभ प्रजाति का परिचय

क्रोकोथेमिस एरिथ्रैया का सामान्य वितरण यूरोप, मध्य एशिया और हिमालयी क्षेत्रों में है। भारत में इसे अब तक केवल उच्च पर्वतीय क्षेत्रों से ही पहचाना गया है।

  • पहचान और स्वरूप:
    यह प्रजाति दिखने में क्रोकोथेमिस सर्विलिया जैसी लगती है, जिसे आमतौर पर भारत के निचले इलाकों में पाया जाता है। इसी कारण लंबे समय तक इसे गलत पहचाना गया।
  • हाल की पुष्टि:
    इसकी पुष्टि हाल ही में केरल और तमिलनाडु के 550 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में हुई है।
  • आवास:
    यह प्रजाति विशेष रूप से शोला वनों (Shola Forests) और पर्वतीय घासभूमियों (Montane Grasslands) में जीवित पाई गई है।

ऐतिहासिक उत्पत्ति और हिम युग का प्रभाव

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह प्रजाति हिम युग (Ice Age) के दौरान दक्षिण भारत में पहुँची होगी और समय के साथ उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में शरण लेकर जीवित रही। उस समय वैश्विक तापमान काफी कम था और ठंडे क्षेत्रों की कई प्रजातियाँ दक्षिण की ओर प्रवास कर गई थीं।

  • हिम युग में प्रवास:
    जब बर्फ़ीला युग अपने चरम पर था, तो यूरोप और एशिया की कई शीतोष्ण प्रजातियाँ दक्षिण की ओर खिसक गईं।
  • तापमान वृद्धि के बाद शरण:
    जब जलवायु गर्म होने लगी, तब कई प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं, लेकिन क्रोकोथेमिस एरिथ्रैया जैसी प्रजातियों ने उच्च पर्वतीय इलाकों की शरण लेकर जीवित रहने का रास्ता खोजा।
  • प्राचीन अवशेष (Relic Species):
    इस प्रजाति का जीवित रहना इस बात का प्रमाण है कि पश्चिमी घाट जैसे क्षेत्र प्राचीन जैव-विविधता के अवशेषों को सुरक्षित रखने वाले शरण स्थल हैं।

पश्चिमी घाट: विश्व धरोहर और जैव-विविधता हॉटस्पॉट

पश्चिमी घाट, जो महाराष्ट्र से लेकर तमिलनाडु और केरल तक फैला है, 2012 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। यह क्षेत्र न केवल जैव-विविधता का खजाना है बल्कि लाखों लोगों की जीवनरेखा भी है।

  • जैव-विविधता हॉटस्पॉट:
    यह विश्व के आठ प्रमुख जैव-विविधता हॉटस्पॉट्स में शामिल है। यहां 7,400 से अधिक फूलों के पौधे, 600 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ, 179 उभयचर प्रजातियाँ और सैकड़ों स्थानिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • शोला वन और घासभूमि:
    उच्च पर्वतीय शोला वन और घासभूमि विशेष रूप से अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जहाँ कई स्थानिक और दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • पारिस्थितिक महत्व:
    यह क्षेत्र न केवल जैव-विविधता का खजाना है बल्कि दक्षिण भारत के लाखों लोगों के लिए जलवायु और जल संसाधनों का मुख्य स्रोत भी है।

संरक्षण की आवश्यकता और चुनौतियाँ

क्रोकोथेमिस एरिथ्रैया की पुनः खोज हमें इस तथ्य की याद दिलाती है कि पश्चिमी घाट के पारिस्थितिकी तंत्र अत्यंत नाज़ुक हैं।

  • मुख्य खतरे:
    1. पर्यटन का दबाव – अनियंत्रित पर्यटन गतिविधियाँ प्राकृतिक आवासों को नुकसान पहुँचा रही हैं।
    2. बागान विस्तार – चाय, कॉफी और अन्य फसलों के लिए जंगलों की कटाई।
    3. जलवायु परिवर्तन – तापमान और वर्षा के पैटर्न में बदलाव इन संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों को प्रभावित कर रहे हैं।
  • संरक्षण की ज़रूरत:
    1. शोला वनों और पर्वतीय घासभूमियों का संरक्षण।
    2. स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों से जोड़ना।
    3. वैज्ञानिक अध्ययन और दस्तावेजीकरण को बढ़ावा देना।
    4. “रिलिक स्पीशीज़” की खोज और सुरक्षा के लिए विशेष अभियान चलाना।

वैज्ञानिक और वैश्विक महत्व

  • जैव-विविधता के पैटर्न की समझ:
    यह खोज हमें बताती है कि अतीत की जलवायु घटनाओं ने प्रजातियों के वितरण और संरचना को कैसे प्रभावित किया।
  • वैश्विक तुलना:
    दुनिया के अन्य पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्रों जैसे एंडीज़, आल्प्स और पूर्वी अफ्रीका के पहाड़ों में भी इस तरह की प्राचीन अवशेष प्रजातियाँ मिलती हैं।
  • शोध और शिक्षा:
    यह अध्ययन विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु है।

पश्चिमी घाट का महत्व

पहलूविवरण
स्थानमहाराष्ट्र से केरल और तमिलनाडु तक फैली पर्वतीय श्रृंखला
यूनेस्को दर्जा2012 से विश्व धरोहर स्थल
जैव-विविधता हॉटस्पॉटविश्व के 8 प्रमुख हॉटस्पॉट्स में शामिल
स्थानिक प्रजातियाँहजारों पौधे, पक्षी, उभयचर और कीट प्रजातियाँ
पारिस्थितिक योगदानदक्षिण भारत के प्रमुख नदियों और जलवायु संतुलन का स्रोत

पश्चिमी घाट के पारिस्थितिक तंत्र पर खतरे और समाधान

खतरेविवरणसंभावित समाधान
पर्यटन का दबावअनियंत्रित पर्यटन से प्राकृतिक आवासों का नुकसानइको-टूरिज़्म और नियंत्रित प्रवेश प्रणाली
बागान विस्तारचाय, कॉफी और अन्य फसलों के लिए वनों की कटाईपारंपरिक कृषि को बढ़ावा और संरक्षण क्षेत्र तय करना
जलवायु परिवर्तनतापमान वृद्धि और वर्षा पैटर्न का बदलावपुनर्वनीकरण, कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण
शहरीकरणसड़क और इमारत निर्माण से आवास खंडितसतत विकास और पर्यावरणीय मंजूरी में कठोरता

क्रोकोथेमिस एरिथ्रैया: दुर्लभ और अनोखी प्रजाति

तुलना तालिका: क्रोकोथेमिस एरिथ्रैया बनाम क्रोकोथेमिस सर्विलिया

विशेषताक्रोकोथेमिस एरिथ्रैयाक्रोकोथेमिस सर्विलिया
आवासयूरोप, मध्य एशिया, हिमालय, पश्चिमी घाट (उच्च पर्वतीय क्षेत्र)पूरे भारत में सामान्य, निचले क्षेत्र
पहचानदुर्लभ, अक्सर गलत पहचानी जाती थीसामान्य और आसानी से पहचानी जाती
पाया जाने वाला क्षेत्र550 मीटर से ऊपर की ऊँचाई, शोला वन और घासभूमितालाब, झीलें, निचले जंगल
स्थितिRelic Species (अवशेष प्रजाति)सामान्य प्रजाति

समयरेखा: क्रोकोथेमिस एरिथ्रैया की खोज और पुनः पुष्टि

वर्ष/कालखंडघटनाविवरण
19वीं सदीप्रारंभिक वैज्ञानिक विवरणयूरोप और मध्य एशिया में इस प्रजाति का पहली बार वैज्ञानिक रूप से वर्णन किया गया।
20वीं सदी (शुरुआत)भारत में उपस्थितिहिमालयी क्षेत्रों में इस प्रजाति की मौजूदगी दर्ज की गई।
20वीं सदी (मध्य काल)गलत पहचानदक्षिण भारत में देखे जाने पर इसे आम प्रजाति क्रोकोथेमिस सर्विलिया समझा गया।
21वीं सदी (हाल के वर्ष)पुनः खोज और पुष्टिओडोनैटोलॉजिस्ट्स ने केरल और तमिलनाडु के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों (550 मीटर से ऊपर) में इसकी सटीक पहचान की।
वर्तमान (2020s)वैश्विक महत्व की पुष्टियह पुनः खोज दर्शाती है कि पश्चिमी घाट में “Relic Species” अब भी छिपी हुई हैं, जिनका दस्तावेजीकरण किया जाना बाकी है।

निष्कर्ष

पश्चिमी घाट में क्रोकोथेमिस एरिथ्रैया की पुनः खोज केवल एक दुर्लभ प्रजाति की मौजूदगी का संकेत नहीं है, बल्कि यह हमें इस बात का गहरा संदेश देती है कि हमारी धरती की जैव-विविधता हजारों वर्षों की जलवायु और पारिस्थितिक घटनाओं का परिणाम है।

क्रोकोथेमिस एरिथ्रैया की पुनः खोज इस बात का प्रमाण है कि पश्चिमी घाट केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की साझा धरोहर है। यह खोज हमें यह भी सिखाती है कि जलवायु परिवर्तन, पर्यटन और मानवीय दबाव के बीच इन नाज़ुक पारिस्थितिक तंत्रों को बचाना कितना ज़रूरी है।

आज जब जलवायु परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप इन संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों को संकट में डाल रहे हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम इन आवासों की सुरक्षा को प्राथमिकता दें। शोला वन और पर्वतीय घासभूमियाँ केवल ड्रैगनफ़्लाई ही नहीं, बल्कि कई स्थानिक और दुर्लभ प्रजातियों के लिए जीवन का आधार हैं।

यदि हम समय रहते इन पारिस्थितिक तंत्रों को संरक्षित कर पाते हैं, तो यह न केवल पश्चिमी घाट बल्कि पूरी मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर सिद्ध होगी।


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2 thoughts on “पश्चिमी घाट में दुर्लभ ड्रैगनफ़्लाई की पुनः खोज | जैव-विविधता और संरक्षण का नया संकेत”

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