भारत सरकार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है जिसके तहत कपास आयात पर आयात शुल्क (Import Duty) से छूट को 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ा दिया गया है। यह फैसला ऐसे समय आया है जब अमेरिका ने भारतीय कपड़ा निर्यात पर 50% टैरिफ लागू कर दिया है, जिससे भारतीय टेक्सटाइल उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता पर असर पड़ने की आशंका थी। इस कदम का उद्देश्य न केवल अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को संतुलित करना है बल्कि घरेलू कपड़ा उद्योग को राहत प्रदान करना और वैश्विक बाजार में भारत की स्थिति को मजबूत बनाए रखना भी है।
भारत का टेक्सटाइल सेक्टर: एक परिचय
भारत का टेक्सटाइल उद्योग विश्व के सबसे पुराने और बड़े उद्योगों में से एक है। यह देश की अर्थव्यवस्था, रोजगार और निर्यात का प्रमुख स्तंभ है।
- भारत का टेक्सटाइल उद्योग लगभग 4.5 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार देता है।
- कृषि क्षेत्र के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता है।
- भारत का वैश्विक टेक्सटाइल निर्यात में योगदान लगभग 4-5% है।
- कपास इस उद्योग की रीढ़ है, क्योंकि अधिकांश उत्पादों की बुनियाद कच्चे कपास से ही होती है।
भारत में लगभग 60 लाख किसान कपास की खेती से जुड़े हुए हैं। ऐसे में कपास की उपलब्धता, कीमत और आयात–निर्यात नीति का सीधा असर किसानों, उद्योगों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर पड़ता है।
कपास का महत्व और भारत में स्थिति
(क) कपास की भूमिका
- कपास भारतीय वस्त्र उद्योग की सबसे महत्वपूर्ण कच्ची सामग्री है।
- टेक्सटाइल वैल्यू चेन – स्पिनिंग, वीविंग, गारमेंट्स, और एक्सपोर्ट – सब पर इसका प्रभाव पड़ता है।
- भारत दुनिया के सबसे बड़े कपास उत्पादकों में से एक है, लेकिन मांग–आपूर्ति में संतुलन अक्सर चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
(ख) उत्पादन बनाम आवश्यकता
- 2021 में भारत का उत्पादन अधिशेष था – 350 लाख बॉल्स उत्पादन बनाम 335 लाख बॉल्स आवश्यकता।
- इसी कारण सरकार ने 11% आयात शुल्क लगाया ताकि घरेलू किसानों को सस्ते आयात से नुकसान न हो।
- वर्तमान में स्थिति बदली है – उत्पादन घटकर 294 लाख बॉल्स रह गया है (15 वर्षों में सबसे कम), जबकि आवश्यकता लगभग 318 लाख बॉल्स है।
कपास आयात–निर्यात की वर्तमान स्थिति
(क) आयात
- वित्तीय वर्ष 2024 में भारत ने $579 मिलियन का कपास आयात किया था।
- वित्तीय वर्ष 2025 में यह बढ़कर $1.2 बिलियन (107% की वृद्धि) हो गया।
- 2024–25 सीज़न में अनुमानित आयात लगभग 40 लाख बॉल्स है।
- मुख्य आपूर्तिकर्ता देश: ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्राज़ील, मिस्र।
(ख) निर्यात
- 2024–25 में कपास आधारित टेक्सटाइल निर्यात भारत के कुल टेक्सटाइल और परिधान निर्यात का लगभग 33% है।
- रेडीमेड गारमेंट्स के बाद कपास दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है।
कपास आयात शुल्क छूट का विस्तार
भारत सरकार ने शून्य शुल्क (Zero Duty) नीति को 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ा दिया है।
नीति का उद्देश्य:
- अमेरिकी 50% टैरिफ के प्रभाव को कम करना।
- टेक्सटाइल वैल्यू चेन में इनपुट लागत घटाना।
- वैश्विक बाजार में भारतीय टेक्सटाइल की प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखना।
- MSMEs और निर्यातकों को राहत देना।
- घरेलू उत्पादन की कमी को संतुलित करना।
सरकार के निर्णय के प्रमुख कारण
(क) कपास की उपलब्धता और कीमतों में उतार–चढ़ाव
- वैश्विक बाजार में कपास की कीमतें लगातार बदलती रहती हैं।
- मौसम, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, और अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियाँ इसकी उपलब्धता को प्रभावित करती हैं।
- आयात शुल्क छूट से भारतीय निर्माताओं को सस्ती और गुणवत्ता वाली कपास मिल सकेगी।
(ख) उत्पादकों पर वित्तीय बोझ कम करना
- कपड़ा मिलें और निर्माता प्रतिस्पर्धी दरों पर कच्चा माल खरीद पाएंगे।
- घरेलू उत्पादन की कमी की भरपाई आयात से होगी।
- MSMEs को सबसे अधिक राहत मिलेगी क्योंकि उनके पास महंगे कच्चे माल को वहन करने की क्षमता सीमित होती है।
(ग) निर्यातकों का समर्थन
- समय पर डिलीवरी और अनुबंध पूरा करने के लिए लगातार कच्चे कपास की आपूर्ति आवश्यक है।
- यह नीति भारत की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में विश्वसनीयता बनाए रखेगी।
(घ) आत्मनिर्भर भारत और “आजादी का अमृत महोत्सव”
- यह कदम सरकार की सक्रिय नीति का प्रतीक है।
- उद्योग की वास्तविक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए लिया गया निर्णय आत्मनिर्भर भारत की दिशा में सहायक है।
- यह रोजगार सुरक्षित करने और निर्यात को बढ़ावा देने का साधन बनेगा।
कपड़ा उद्योग पर संभावित प्रभाव
प्रभाव का क्षेत्र | अपेक्षित परिणाम |
---|---|
लागत | आयातित कपास सस्ती होने से उत्पादन लागत घटेगी। |
MSMEs | छोटे–मझोले उद्योग प्रतिस्पर्धी रहेंगे। |
निर्यात | वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी। |
रोजगार | कपड़ा उद्योग में स्थिरता से रोजगार सुरक्षित रहेंगे। |
किसान | दीर्घकालीन नीति किसानों के हित में होनी चाहिए ताकि उन्हें नुकसान न हो। |
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
- किसानों पर असर – यदि लंबे समय तक आयात सस्ता रहा तो किसानों को उचित दाम नहीं मिल पाएंगे।
- वैश्विक निर्भरता – अधिक आयात भारत को अन्य देशों पर निर्भर बना सकता है।
- अमेरिकी टैरिफ का दबाव – केवल आयात शुल्क छूट से अमेरिकी टैरिफ के असर को पूरी तरह संतुलित नहीं किया जा सकता।
- लॉजिस्टिक चुनौतियाँ – आयात में वृद्धि से बंदरगाहों और सप्लाई चेन पर दबाव बढ़ेगा।
भविष्य की दिशा
- संतुलन की आवश्यकता – सरकार को आयात नीति और किसानों के हित में संतुलन बनाना होगा।
- उत्पादन बढ़ाना – अनुसंधान, बेहतर बीज, सिंचाई और तकनीक से घरेलू उत्पादन बढ़ाना जरूरी है।
- विविधीकरण – केवल कपास पर निर्भरता कम करने के लिए पॉलिएस्टर, जूट और अन्य विकल्पों को बढ़ावा देना चाहिए।
- वैश्विक समझौते – अमेरिका जैसे देशों से टैरिफ को लेकर कूटनीतिक समाधान निकालना जरूरी है।
निष्कर्ष
भारत सरकार का कपास आयात शुल्क छूट को 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ाने का फैसला एक दूरदर्शी कदम है। यह न केवल कपड़ा उद्योग को राहत देगा बल्कि वैश्विक बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति को बनाए रखने में भी मदद करेगा।
हालाँकि, यह नीति अल्पकालिक समाधान है। दीर्घकालिक दृष्टि से भारत को अपने कपास उत्पादन को बढ़ाने, किसानों की आय सुरक्षित करने और वैश्विक व्यापार समझौतों को संतुलित करने की आवश्यकता है। तभी भारत का टेक्सटाइल सेक्टर वास्तव में आत्मनिर्भर और टिकाऊ बन पाएगा।
यह निर्णय उद्योग, किसानों और निर्यातकों – तीनों के लिए महत्वपूर्ण है। सही नीतियों और संतुलन के साथ भारत न केवल अपनी घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करेगा बल्कि वैश्विक टेक्सटाइल आपूर्ति श्रृंखला में एक भरोसेमंद और अग्रणी साझेदार बना रहेगा।
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