खंडकाव्य और उसके रचनाकार : युगानुसार कृतियाँ, विशेषताएँ और योगदान

हिन्दी साहित्य में काव्य की परंपरा अत्यंत समृद्ध और विविध रही है। काव्य के अनेक रूप विकसित हुए, जिनमें ‘खंड काव्य’ एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह प्रबंध काव्य का वह रूप है जिसमें किसी विशेष घटना या जीवन के एक विशिष्ट प्रसंग का विस्तारपूर्वक वर्णन किया जाता है। महाकाव्य की भाँति इसमें संपूर्ण जीवन का चित्रण नहीं होता, बल्कि जीवन के किसी एक अंश या घटना को केंद्र में रखकर कथा का विकास किया जाता है। खंड काव्य अपने स्वरूप में लघु होते हुए भी भाव, कथा, चरित्र और उद्देश्य की दृष्टि से परिपूर्ण होते हैं। खंड काव्य का स्वरूप महाकाव्य से भिन्न होते हुए भी उसकी कथा-प्रधानता का अनुसरण करता है और कविता की सौंदर्यात्मकता तथा भावप्रधानता को साथ लेकर चलता है।

खंडकाव्य की विषयवस्तु

खंड काव्य की विषयवस्तु जीवन की किसी प्रमुख घटना, चरित्र की कोई विशेषता, युद्ध, प्रेम, त्याग, वीरता, नैतिक संघर्ष, धार्मिक घटनाएँ आदि हो सकते हैं। नायक का जीवन सम्पूर्ण रूप से न होकर उसके जीवन के किसी सर्वोत्कृष्ट प्रसंग पर केंद्रित चित्रण इसे विशिष्ट बनाता है। कवि उस घटना से प्रभावित होकर भाव, विचार और परिस्थितियों का विस्तार करता है।

खंडकाव्य का उद्देश्य

खंड काव्य का उद्देश्य किसी घटना के माध्यम से जीवन के किसी विशेष पक्ष को उद्घाटित करना है। इसमें चरित्र की श्रेष्ठता, भावों की गहराई, संघर्ष का चित्रण तथा किसी आदर्श का प्रस्तुतीकरण मुख्य रूप से होता है। नायक के जीवन के छोटे प्रसंग से बड़े आदर्शों, मानवीय भावनाओं और सांस्कृतिक विचारों का चित्रण प्रस्तुत किया जाता है।

खंड काव्य की परिभाषा, स्वरूप और प्रेरणा के विषय में विस्तार पूर्वक चर्चा ‘खंडकाव्य : परिभाषा, स्वरूप, प्रेरणा, तत्व, गुण, विशेषताएँ, उदाहरण और महाकाव्य से भिन्नता’ शीर्षक लेख में की जा चुकी है। यहाँ हम उसी आधार पर आगे बढ़ते हुए खंड काव्य के प्रमुख लेखकों (रचनाकारों), उनके युगों और कृतियों का विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं।

खंडकाव्य की परिभाषा और स्वरूप (संक्षिप्त परिचय)

खंड काव्य की परिभाषा और स्वरूप पहले प्रस्तुत लेख में विस्तारपूर्वक चर्चा किए जा चुके हैं। यहाँ उसका संक्षिप्त स्मरण आवश्यक है—

  • खंड काव्य वह काव्य है जो किसी भाषा या उपभाषा में सर्गबद्ध रूप से रचा जाता है। इसमें एक ही कथा या प्रसंग का वर्णन होता है, जो किसी विशेष घटना या जीवन खंड पर केंद्रित होता है।
  • इसमें संधियों का पूर्ण विकास आवश्यक नहीं होता और कथा का उद्देश्य स्पष्ट होता है।
  • आकार में यह महाकाव्य की तुलना में लघु होता है तथा सामान्यतः आठ से कम सर्गों में पूरा हो जाता है।
  • इसमें सर्गों का होना आवश्यक है, पर छंद परिवर्तन अनिवार्य नहीं है।
  • यह जीवन के किसी एक अंश का चित्रण करता है और कथा में एकता व उद्देश्य की स्पष्टता रहती है।

यह संक्षिप्त परिचय आगे आने वाले विश्लेषण को समझने में सहायक होगा। अब हम खंड काव्य की परंपरा में रचित विभिन्न युगों के प्रमुख लेखकों और उनकी कृतियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

खंडकाव्य और अन्य काव्य रूपों में अंतर

हिंदी साहित्य में काव्य को तीन मुख्य रूपों में विभाजित किया गया है:

  1. महाकाव्य – जिसमें नायक का सम्पूर्ण जीवन, समाज, राजनीति, धर्म और संस्कृति का विस्तारपूर्ण चित्रण होता है। इसमें विविध घटनाएँ और अनेक पात्र होते हैं।
  2. खंड काव्य – इसमें नायक या जीवन की किसी एक घटना का चित्रण होता है। कथा की एकता और एक उद्देश्य इसकी विशेषता है। इसमें विविधता अपेक्षाकृत कम होती है।
  3. मुक्तक काव्य – इसमें कोई कथा या चरित्र अनिवार्य नहीं है। यह किसी विशेष भावना या विषय पर आधारित स्वतंत्र रचना होती है।

मुख्य अंतर

  • महाकाव्य का विस्तार व्यापक होता है, जबकि खंड काव्य जीवन के किसी एक अंश का चित्रण करता है।
  • खंड काव्य में कथा की एकता और उद्देश्य होता है, जबकि मुक्तक काव्य में स्वतंत्र भावनाएँ केंद्र में रहती हैं।
  • महाकाव्य में अनेक संधियों का प्रयोग होता है, जबकि खंड काव्य में संधियों का पूर्ण विकास आवश्यक नहीं है।

खंड काव्य और मुक्तक काव्य में यह अंतर स्पष्ट है कि खंड काव्य में कथा की एकता और घटनाक्रम होता है जबकि मुक्तक काव्य में भाव-प्रधान रचनाएँ होती हैं। वहीं महाकाव्य और खंड काव्य में मुख्य अंतर यह है कि महाकाव्य का विस्तार व्यापक होता है जबकि खंड काव्य लघु होकर जीवन के किसी एक खंड का चित्रण करता है।

खंड काव्य की विशेषताएँ / लक्षण

‘काव्य-शास्त्र’ में खंड काव्य के कुछ प्रमुख लक्षण बताए गए हैं, जो निम्नलिखित हैं:

  1. एकात्मक अन्विति – खंड काव्य में कथा का आरंभ, विकास, चरम सीमा और निष्कर्ष क्रमबद्ध रूप से होते हैं। कथा में एकता का भाव रहता है।
  2. एकांगिता – कथा का विस्तार सीमित होता है। इसमें नायक के जीवन का एक विशिष्ट खंड ही केंद्र में होता है।
  3. लघु आकार – खंड काव्य महाकाव्य की अपेक्षा आकार में छोटा होता है। प्रायः आठ से कम सर्गों में कथा पूर्ण मानी जाती है।
  4. सर्गों का होना – इसमें सर्गों का होना आवश्यक है। प्रत्येक सर्ग में छंदबद्ध रचना होती है, परंतु छंद परिवर्तन अनिवार्य नहीं है।
  5. देशानुसारिता – यह किसी एक भाग या अंश पर आधारित होता है, इसलिए इसे ‘देशानुसारी’ कहा गया है।
  6. संधि-वर्जन – इसमें कथा का पूर्ण विकास नहीं होता। सभी संधियों से युक्त महाकाव्य जैसा विस्तार नहीं मिलता।
  7. कथानक का उद्देश्य – कथा किसी एक उद्देश्य की पूर्ति हेतु होती है और उसका निष्कर्ष स्पष्ट होता है।
  8. प्रकृति वर्णन – इसमें प्रकृति का वर्णन हो सकता है परंतु यह आवश्यक नहीं है। कथा मुख्य होती है।

खंडकाव्य के लेखक (रचनाकार) और उनकी कृतियाँ

खंडकाव्य की परंपरा हिंदी साहित्य में विभिन्न कालों में विकसित हुई। प्रत्येक युग में इसे अलग-अलग स्वरूप और उद्देश्य के साथ प्रस्तुत किया गया। इन युगों में जीवन की घटनाओं, धार्मिक कथाओं, वीरता, प्रेम, संघर्ष, समाज और राष्ट्र से जुड़े विषयों पर विशिष्ट रचनाएँ सामने आईं। नीचे प्रत्येक युग के अनुसार प्रमुख रचनाकारों और उनके काव्यों का परिचय प्रस्तुत है।

1. आदिकाल में रचित खंडकाव्य

आदिकाल में वीरगाथा परंपरा के अंतर्गत कई खंड काव्य रचे गए। ये अधिकतर वीर रस से परिपूर्ण होते थे और किसी नायक की युद्ध-वीरता या धार्मिक घटनाओं का वर्णन करते थे। प्रमुख काव्य हैं:

काव्य का नामरचनाकार
संदेशरासकअब्दुर्रहमान
बीसलदेव रासोनरपतिनाल्ह
थूलिभद्दफागजिनधर्मसुरि

ये काव्य मुख्यतः वीरता, नीति, और समाज की घटनाओं का चित्रण करते हैं। भाषा सरल, घटना-केंद्रित और वीर रस प्रधान होती है।

2. भक्तिकाल में रचित खंडकाव्य

भक्तिकाल में धर्म, भक्ति, प्रेम और त्याग पर आधारित अनेक खंड काव्य रचे गए। इन काव्यों में नायक का चरित्र भक्ति, प्रेम या सेवा के आदर्शों से प्रेरित होता है। प्रमुख काव्य हैं:

काव्य का नामरचनाकार
सुदामाचरितनरोत्तमदास
भँवरगीतनंददास
रुक्मिणी मंगलनंददास
पार्वती मंगलतुलसीदास
जानकी मंगलतुलसीदास

इन काव्यों में धार्मिक कथाओं का सरल भाषा में वर्णन किया गया है। चरित्र की भावनाएँ, सेवा और त्याग के प्रसंग प्रमुख हैं।

3. रीतिकाल में रचित खंडकाव्य

रीतिकाल में काव्य शैली अधिक अलंकारिक और सौंदर्य प्रधान हो गई। इसमें प्रेम, श्रृंगार, शौर्य और दरबारी वातावरण की झलक मिलती है। प्रमुख काव्य हैं:

काव्य का नामरचनाकार
हिम्मत बहादुर विरुदावलीपद्माकर

रीतिकाल में शैली की चमत्कारिता, अलंकार, छंदों की विविधता और नायक की वीरता या श्रृंगार का सुंदर चित्रण मिलता है।

4. आधुनिक काल (भारतेंदु युग) में रचित खंडकाव्य

भारतेंदु युग में साहित्य सामाजिक जागरण, राष्ट्रीय भावना और नैतिकता से प्रेरित हुआ। यहाँ खंड काव्य में जीवन की घटनाओं का अधिक यथार्थवादी चित्रण मिलता है।

काव्य का नामरचनाकार
एकांतवासी योगीश्रीधर पाठक
हरिश्चंद्रजगन्नाथदास ‘रत्नाकर’

इन काव्यों में त्याग, सत्य, धर्म और नैतिक संघर्ष की घटनाएँ चित्रित की गई हैं।

5. द्विवेदी युग में रचित खंडकाव्य

द्विवेदी युग में राष्ट्रीयता, समाज सुधार और मानवीय आदर्शों को लेकर कई खंड काव्य लिखे गए। इनमें इतिहास और पौराणिक प्रसंगों का आधुनिक दृष्टि से चित्रण हुआ।

काव्य का नामरचनाकार
रंग में भंगमैथिलीशरण गुप्त
जयद्रथ वधमैथिलीशरण गुप्त
नलदमयंतीमैथिलीशरण गुप्त
शकुंतलामैथिलीशरण गुप्त
किसानमैथिलीशरण गुप्त
अनाथमैथिलीशरण गुप्त
मौर्य विजयसियारामशरण गुप्त
मिलनरामनरेश त्रिपाठी
पथिकरामनरेश त्रिपाठी
आत्मार्पणद्वारिका प्रसाद गुप्त

इन काव्यों में सामाजिक चेतना, आदर्श चरित्रों का चित्रण और राष्ट्रीय भावना का समावेश है।

6. छायावाद युग में रचित खंडकाव्य

छायावाद युग में कविता में आत्मानुभूति, प्रकृति प्रेम और प्रतीकात्मकता का समावेश हुआ। खंड काव्य में भावप्रधान कथाएँ, चरित्र की मनोभूमि और मानसिक संघर्ष का चित्रण मिलता है।

काव्य का नामरचनाकार
ग्रंथिसुमित्रानंदन पंत
स्वप्नरामनरेश त्रिपाठी
पंचवटीमैथिलीशरण गुप्त
अनधमैथिलीशरण गुप्त
वनवैभवमैथिलीशरण गुप्त
वक-संहारमैथिलीशरण गुप्त
सुनालअनूप शर्मा
आत्मोत्सर्गसियारामशरण गुप्त
तुलसीदाससूर्यकांत त्रिपाठी निराला
कीचक वधशिवदास गुप्त
कंसवधश्यामलाल पाठक
अभिमन्यु वधरामचंद्र शुक्ल “सरस”
प्रणवीर प्रतापगोकुल चंद्र शर्मा
गर्भरण्डा रहस्यनाथूराम शंकर शर्मा
वायस विजयनाथूराम शंकर शर्मा

यह युग भावप्रधानता और प्रतीकात्मकता का उत्कृष्ट उदाहरण है। नायक का मनोवैज्ञानिक चित्रण मिलता है।

7. छायावादोत्तर युग में रचित खंडकाव्य

छायावादोत्तर युग में खंड काव्य ने सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक मुद्दों को अधिक प्रमुखता दी। राष्ट्र, युद्ध, संघर्ष और मानवता के विषयों पर रचनाएँ हुईं।

काव्य का नामरचनाकार
नहुषमैथिलीशरण गुप्त
कर्बलामैथिलीशरण गुप्त
नकुलमैथिलीशरण गुप्त
हिडिम्बामैथिलीशरण गुप्त
प्राणार्पणबालकृष्ण शर्मा “नवीन”
कुणालसोहनलाल द्विवेदी
कुरुक्षेत्ररामधारी सिंह दिनकर
जय हनुमानश्याम नारायण पांडे
कौन्तेय-कथाउदयशंकर भट्ट
चंदेरी का जौहरआनंद मिश्र
प्रयाणगिरिजादत्त शुक्ल “गिरीश”
क़दम-क़दम बढ़ाए जागोपालप्रसाद व्यास
भोजराजडॉ. रुसाल
संशय की एक रातनरेश मेहता

इस युग में खंड काव्य ने राष्ट्रप्रेम, बलिदान, युद्ध, संघर्ष, समाज सेवा और मानवीय मूल्यों की अभिव्यक्ति का रूप लिया।

खंडकाव्य की शैलीगत विशेषताएँ

खंड काव्य की शैली में सरलता, कथात्मकता और भावपूर्णता का संतुलन देखा जाता है। इसमें—

  • भाषा सहज और संवादात्मक होती है।
  • कथानक घटनाओं के क्रम में चलता है।
  • पात्रों की मानसिक स्थिति का चित्रण किया जाता है।
  • भावों की गहराई के साथ नायक की विशेषताओं को उभारा जाता है।
  • छंदों का प्रयोग स्वतंत्र होता है, परंतु शास्त्रीय छंदों का भी पालन किया जा सकता है।
  • उद्देश्य की स्पष्टता रहती है, जिससे कथा का सार सरलता से समझ में आता है।

खंड काव्य की प्रासंगिकता

आज भी खंड काव्य की प्रासंगिकता बनी हुई है क्योंकि:

  1. यह किसी एक घटना या प्रसंग का विस्तार कर उसे प्रभावशाली बनाता है।
  2. इसमें जीवन के छोटे-छोटे पहलुओं का गहरा चित्रण संभव होता है।
  3. यह कथा और कविता का सुंदर संगम प्रस्तुत करता है।
  4. सामाजिक, धार्मिक और ऐतिहासिक घटनाओं को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है।
  5. यह साहित्य के अध्ययन में महाकाव्य और मुक्तक काव्य के बीच पुल का कार्य करता है।

निष्कर्ष

खंड काव्य हिंदी साहित्य की एक विशिष्ट विधा है जिसने महाकाव्य की भव्यता और मुक्तक की भावप्रधानता के बीच संतुलित स्थान बनाया है। इसमें नायक के जीवन का कोई एक महत्वपूर्ण खंड प्रस्तुत कर उसके माध्यम से व्यापक मानवीय, सांस्कृतिक और सामाजिक विचारों को सामने लाया जाता है। इसकी लघुता इसकी कमजोरी नहीं, बल्कि इसकी शक्ति है क्योंकि सीमित आकार में भी यह प्रभावशाली कथा प्रस्तुत करता है। आदिकाल से लेकर छायावादोत्तर युग तक इसकी परंपरा निरंतर विकसित होती रही है और प्रत्येक युग में इसे अपने समय की आवश्यकताओं, विचारधाराओं और समाज की मानसिकता के अनुरूप रूप मिलता रहा है।

आज भी खंड काव्य साहित्य में अध्ययन, शोध और रचनात्मकता के लिए एक समृद्ध स्रोत है। इसकी कथा-प्रधान शैली, भाव की गहराई, उद्देश्य की स्पष्टता और भाषा की सहजता इसे हर युग के पाठकों के लिए प्रासंगिक बनाती है।


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