भारत दुनिया के सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ताओं में से एक है। बढ़ती जनसंख्या, तीव्र औद्योगिकीकरण और तेजी से बढ़ते परिवहन क्षेत्र के कारण देश की पेट्रोलियम ईंधन पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है। इस निर्भरता के चलते न केवल आयात बिल भारी होता है बल्कि पर्यावरणीय संकट भी गहराता है। ऐसे समय में वैकल्पिक ईंधनों (Alternative Fuels) की खोज और उपयोग भारत के ऊर्जा सुरक्षा मिशन का अहम हिस्सा बन चुका है।
हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने घोषणा की कि ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) डीजल में 10% आइसोब्यूटेनॉल (Isobutanol) मिश्रण की संभावनाओं का परीक्षण कर रही है। यह कदम भारत की ऊर्जा नीति और पर्यावरणीय लक्ष्यों की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है।
जैव ईंधनों की पृष्ठभूमि
जैव ईंधन (Biofuels) वे ऊर्जा स्रोत हैं जो पौधों, फसलों, अपशिष्ट पदार्थों या अन्य बायोमास से बनाए जाते हैं। दुनिया भर में दो प्रमुख प्रकार के बायोफ्यूल्स सबसे अधिक उपयोग किए जाते हैं – एथेनॉल (Ethanol) और बायोडीजल (Biodiesel)।
भारत में जैव ईंधन के उपयोग की शुरुआत मुख्यतः एथेनॉल मिश्रण (Ethanol Blending) से हुई, जिसे पेट्रोल के साथ मिलाया गया। लेकिन डीजल में एथेनॉल मिलाने के प्रयोग विफल रहे। इसका कारण एथेनॉल और डीजल का आपस में ठीक से मिश्रित न होना (Phase Separation) और तकनीकी दिक्कतें थीं।
भारत में एथेनॉल मिश्रण (Ethanol Blending)
परिभाषा
एथेनॉल मिश्रण का अर्थ है – पेट्रोल में एक निश्चित अनुपात में एथेनॉल मिलाकर ऐसा ईंधन तैयार करना जिसे सामान्य इंजन में बिना बड़े बदलाव के इस्तेमाल किया जा सके।
स्रोत (Feedstocks)
भारत में एथेनॉल उत्पादन के लिए निम्नलिखित कच्चे माल का उपयोग किया जाता है:
- मीठे पदार्थ (Sugary Feedstocks): गन्ना, शीरा (Molasses), शुगर बीट, स्वीट ज्वार।
- स्टार्च वाले पदार्थ (Starchy Feedstocks): टूटा चावल, मक्का, कसावा।
नीति और लक्ष्य
- 2018 की राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति: इसमें 2030 तक 20% एथेनॉल मिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
- लक्ष्य की प्रगति: 2014 के बाद उत्पादन और मिश्रण की गति इतनी तेज हुई कि यह लक्ष्य 2025-26 तक आगे बढ़ा दिया गया।
- वर्तमान स्थिति (2025): भारत ने पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिलाने का लक्ष्य पहले ही हासिल कर लिया है।
- भविष्य की दिशा: एथेनॉल का उपयोग करके सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF) विकसित करना।
डीजल और एथेनॉल मिश्रण की विफलता
डीजल में 10% एथेनॉल मिलाने के ट्रायल भारत में किए गए, लेकिन ये प्रयोग सफल नहीं रहे। मुख्य कारण थे:
- एथेनॉल और डीजल के रासायनिक गुणों में असमानता।
- ईंधन की स्थिरता और भंडारण में कठिनाइयाँ।
- इंजनों की कार्यक्षमता और परफॉर्मेंस में गिरावट।
- अत्यधिक नमी और जंग लगने की समस्या।
इन चुनौतियों को देखते हुए विशेषज्ञों ने एथेनॉल की बजाय आइसोब्यूटेनॉल को बेहतर विकल्प माना।
आइसोब्यूटेनॉल: परिचय और गुणधर्म
रासायनिक संरचना
आइसोब्यूटेनॉल एक प्रकार का अल्कोहल यौगिक है, जिसका रासायनिक सूत्र C₄H₉OH है। यह ब्यूटेनॉल (Butanol) के समावयवों (isomers) में से एक है।
प्रमुख गुणधर्म
- ज्वलनशील (Flammable): आसानी से जलने वाला।
- विलेयता: डीजल और पेट्रोल दोनों के साथ बेहतर मिश्रण क्षमता।
- ऊर्जा घनत्व: एथेनॉल की तुलना में अधिक।
- भंडारण क्षमता: पानी के साथ कम मिलावट (Low Hygroscopic Nature), जिससे लंबे समय तक सुरक्षित।
उपयोग
- पेंट और कोटिंग उद्योग में सॉल्वेंट।
- प्लास्टिक और रेजिन निर्माण।
- अब एक संभावित वैकल्पिक ईंधन।
डीजल-आइसोब्यूटेनॉल मिश्रण के प्रयोग
ARAI वर्तमान में डीजल में 10% आइसोब्यूटेनॉल मिलाने पर ट्रायल कर रही है। शुरुआती परिणाम सकारात्मक रहे हैं और उम्मीद है कि आने वाले महीनों में इसका स्तर बढ़ाकर 20% या उससे अधिक किया जा सकेगा।
संभावित लाभ
- ऊर्जा सुरक्षा: आयातित तेल पर निर्भरता घटेगी।
- पर्यावरण संरक्षण: प्रदूषण कम होगा, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन घटेगा।
- कृषि को लाभ: गन्ना, मक्का और अन्य फसलों से जैव ईंधन बनने से किसानों की आय बढ़ेगी।
- इंजन पर असर: आइसोब्यूटेनॉल का मिश्रण इंजन की कार्यक्षमता को ज्यादा प्रभावित नहीं करता।
चुनौतियाँ
- बड़े पैमाने पर उत्पादन की लागत।
- लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन की तैयारी।
- नीति और नियमों का अद्यतन।
एथेनॉल बनाम आइसोब्यूटेनॉल: तुलनात्मक अध्ययन
मापदंड | एथेनॉल | आइसोब्यूटेनॉल |
---|---|---|
मिश्रण क्षमता | डीजल में खराब | डीजल में अच्छी |
ऊर्जा घनत्व | कम | अधिक |
भंडारण स्थिरता | पानी सोख लेता है (Hygroscopic) | कम hygroscopic |
इंजन प्रदर्शन | परफॉर्मेंस घटाता है | अपेक्षाकृत बेहतर |
उत्पादन लागत | कम | अपेक्षाकृत अधिक |
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
दुनिया के कई देश पहले से ही जैव ईंधनों के प्रयोग पर काम कर रहे हैं। अमेरिका और ब्राजील एथेनॉल मिश्रण में अग्रणी हैं, जबकि यूरोप बायोडीजल और वैकल्पिक ईंधनों की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। भारत यदि डीजल-आइसोब्यूटेनॉल मिश्रण को सफल बना लेता है तो यह उसे जैव ईंधन नवाचार के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व दिला सकता है।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण
भारत पेरिस जलवायु समझौते के तहत 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य लेकर चल रहा है। पारंपरिक जीवाश्म ईंधन से कार्बन उत्सर्जन में भारी वृद्धि होती है। ऐसे में आइसोब्यूटेनॉल मिश्रण वाला डीजल:
- CO₂ उत्सर्जन कम करेगा।
- पार्टिकुलेट मैटर और सल्फर ऑक्साइड घटाएगा।
- वायु गुणवत्ता में सुधार लाएगा।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
- किसानों की भूमिका: बायोफ्यूल उत्पादन के लिए गन्ना, मक्का और अन्य फसलों की मांग बढ़ेगी, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी।
- ग्रामीण उद्योग: जैव ईंधन उत्पादन से ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योग और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
- आयात बिल में कमी: भारत हर साल लाखों करोड़ रुपये का पेट्रोलियम आयात करता है। आइसोब्यूटेनॉल मिश्रण से इस बोझ को कम किया जा सकेगा।
भविष्य की संभावनाएँ
- डीजल में आइसोब्यूटेनॉल मिश्रण की सफल शुरुआत के बाद भारत बड़े पैमाने पर इसका उपयोग कर सकता है।
- पेट्रोल में एथेनॉल, डीजल में आइसोब्यूटेनॉल और विमानन ईंधन में SAF – ये तीनों मिलकर भारत की ऊर्जा सुरक्षा का आधार बनेंगे।
- यदि उत्पादन लागत कम की गई और नीति का समर्थन मिला तो भारत इस क्षेत्र में निर्यातक भी बन सकता है।
Quick Revision Table (सारांश तालिका)
विषय | मुख्य बिंदु |
---|---|
एथेनॉल ब्लेंडिंग | पेट्रोल में एथेनॉल मिलाना (Feedstocks: गन्ना, शीरा, टूटा चावल, मक्का)। |
नीति लक्ष्य | 2018: 2030 तक 20% मिश्रण का लक्ष्य → संशोधित होकर 2025-26 तक। |
वर्तमान स्थिति (2025) | पेट्रोल में पहले ही 20% एथेनॉल मिश्रण हासिल। |
डीजल + एथेनॉल ट्रायल | असफल (फेज़ सेपरेशन, परफॉर्मेंस समस्या, भंडारण कठिनाई)। |
आइसोब्यूटेनॉल | रासायनिक सूत्र: C₄H₉OH; अल्कोहल यौगिक; ज्वलनशील; एथेनॉल से अधिक ऊर्जा घनत्व। |
उपयोग | पेंट, कोटिंग, सॉल्वेंट, अब वैकल्पिक ईंधन। |
डीजल + आइसोब्यूटेनॉल ट्रायल | ARAI द्वारा 10% मिश्रण का परीक्षण; शुरुआती परिणाम सकारात्मक। |
लाभ | ऊर्जा सुरक्षा, प्रदूषण में कमी, किसानों की आय, इंजन पर कम नकारात्मक प्रभाव। |
चुनौतियाँ | उत्पादन लागत, सप्लाई चेन, नीति व नियम अद्यतन की आवश्यकता। |
एथेनॉल बनाम आइसोब्यूटेनॉल | एथेनॉल: डीजल में खराब मिश्रण, कम ऊर्जा घनत्व। आइसोब्यूटेनॉल: बेहतर मिश्रण, उच्च ऊर्जा घनत्व, स्थिर। |
पर्यावरणीय लाभ | CO₂ व प्रदूषक गैसों में कमी, वायु गुणवत्ता में सुधार। |
भविष्य की दिशा | डीजल में आइसोब्यूटेनॉल, पेट्रोल में एथेनॉल, विमानन ईंधन में SAF → भारत की हरित ऊर्जा क्रांति। |
निष्कर्ष
भारत में जैव ईंधनों की यात्रा एथेनॉल मिश्रण से शुरू हुई थी, लेकिन अब यह आइसोब्यूटेनॉल की ओर बढ़ रही है। डीजल में आइसोब्यूटेनॉल का मिश्रण न केवल तकनीकी रूप से सफल है बल्कि यह पर्यावरणीय और आर्थिक दृष्टि से भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
यदि भारत इस दिशा में रणनीतिक रूप से आगे बढ़ता है तो न केवल ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी बल्कि किसानों की आय में वृद्धि, रोजगार सृजन और प्रदूषण नियंत्रण जैसे अनेक सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे। यह पहल भारत को “हरित ऊर्जा क्रांति” (Green Energy Revolution) की दिशा में अग्रणी बना सकती है।
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