हिंदी साहित्य के इतिहास में अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन पत्रिकाओं ने न केवल साहित्यिक धारा को दिशा दी बल्कि भाषा, समाज, राष्ट्र और संस्कृति के विकास में भी योगदान दिया। इन्हीं पत्रिकाओं में “सरस्वती” को सबसे प्रमुख और प्रभावशाली पत्रिका माना जाता है। इसे हिंदी साहित्य की अग्रणी और सर्वश्रेष्ठ पत्रिका कहा जा सकता है।
“सरस्वती” का प्रकाशन 1900 ई. में हुआ था और लगभग आठ दशकों तक यह पत्रिका हिंदी साहित्य के विकास की धुरी बनी रही। इसके माध्यम से न केवल साहित्यकारों को मंच मिला बल्कि हिंदी भाषा के मानकीकरण, राष्ट्रवाद के प्रचार, समाज-सुधार और साहित्यिक चेतना को भी नया रूप मिला। विशेष रूप से आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपादन में यह पत्रिका स्वर्णयुग का प्रतीक बन गई।
स्थापना और प्रारम्भिक प्रकाशन
सरस्वती पत्रिका की स्थापना 1900 ई. में चिंतामणि घोष ने की थी। वे इलाहाबाद (प्रयागराज) में इंडियन प्रेस के संस्थापक थे। उनका उद्देश्य हिंदी भाषा और साहित्य को आगे बढ़ाना तथा समाज में जागरूकता फैलाना था।
इस पत्रिका का पहला अंक जनवरी, 1900 में प्रकाशित हुआ। प्रारम्भ में पत्रिका का मूल्य मात्र चार आना था और इसमें कुल 32 पृष्ठ होते थे। शुरुआती दौर में इसका प्रकाशन झाँसी से हुआ, बाद में यह इलाहाबाद और फिर कानपुर से भी निकलने लगी।
1905 में “काशी नागरी प्रचारिणी सभा” का नाम पत्रिका के मुखपृष्ठ से हटा दिया गया। इसका कारण यह था कि अब पत्रिका स्वतंत्र रूप से साहित्यिक मंच बन चुकी थी और इसकी पहचान अपने संपादकों और लेखकों से बनने लगी थी।
सरस्वती पत्रिका के प्रमुख संपादक और उनका योगदान
1. जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ (प्रथम संपादक – 1900 ई.)
सरस्वती पत्रिका के प्रथम संपादक जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ थे।
- जन्म : 1866 ई., काशी
- मृत्यु : 22 जून 1932
रत्नाकर जी ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवियों में गिने जाते थे। वे प्राचीन संस्कृति, मध्यकालीन साहित्य, उर्दू-फारसी, अंग्रेज़ी, आयुर्वेद, संगीत, ज्योतिष और दर्शनशास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे। उनका संपादन काल अल्पकालिक रहा, किंतु उन्होंने पत्रिका को प्रारम्भिक गति प्रदान की।
2. श्यामसुन्दर दास (1899 – 1902)
डॉ॰ श्यामसुन्दर दास हिंदी साहित्य के विद्वान, आलोचक और शिक्षाविद थे।
- जन्म : 14 जुलाई 1875, काशी
- मृत्यु : 1945
वे काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में से एक थे। उनके संपादन में पत्रिका ने आलोचनात्मक और बौद्धिक दृष्टि प्राप्त की। श्यामसुन्दर दास हिंदी भाषा और साहित्य के संगठक कहे जा सकते हैं।
3. राधाकृष्णदास (1900 – 1902)
- जन्म : 1865, वाराणसी
- मृत्यु : 1902
वे भारतेन्दु हरिश्चंद्र के फुफेरे भाई थे और नाटककार के रूप में प्रसिद्ध हुए। सरस्वती के प्रारम्भिक वर्षों में उन्होंने संपादन में सहयोग किया।
4. कार्तिक प्रसाद खत्री (1900 – 1902)
हिंदी के प्रथम मौलिक जीवनी लेखक के रूप में खत्री जी जाने जाते हैं।
- वे ‘हिंदी दीप्तिप्रकाश’, ‘भारत जीवन’ और ‘सरस्वती’ के संपादन में सक्रिय रहे।
- उनकी बहुभाषी प्रतिभा ने पत्रिका को विविधता प्रदान की।
5. किशोरीलाल गोस्वामी (1900 – 1902)
वे हिंदी उपन्यास लेखन के पथप्रदर्शक माने जाते हैं।
- उन्होंने लगभग 60 उपन्यास लिखे।
- उनके प्रसिद्ध उपन्यास : तारा, चपला, लवंग लता आदि।
गोस्वामी जी ने सरस्वती पत्रिका को साहित्यिक और मनोरंजक दोनों रूपों में लोकप्रिय बनाया।
6. महावीर प्रसाद द्विवेदी (1903 – 1920)
यह काल सरस्वती पत्रिका का स्वर्णयुग कहा जाता है।
- जन्म : 15 मई 1864, रायबरेली (उ.प्र.)
- निधन : 21 दिसंबर 1938
द्विवेदी जी के संपादन में हिंदी भाषा का शुद्ध, व्याकरणसम्मत और मानक स्वरूप विकसित हुआ।
- उन्होंने हिंदी साहित्य को राष्ट्रीय चेतना से जोड़ा।
- उनकी भाषा नीति के कारण हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित होने लगी।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है –
“यदि द्विवेदी जी न उठ खड़े होते तो हिंदी भाषा अव्यवस्थित और व्याकरण-विरुद्ध ही बनी रहती।”
द्विवेदी जी ने सरस्वती पत्रिका को मंच बनाकर अनेक लेखकों को प्रेरित किया। प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी जैसे रचनाकार इसी पत्रिका से हिंदी जगत में आए।
7. कामता प्रसाद ‘गुरु’ (1920)
द्विवेदी जी के पश्चात थोड़े समय तक संपादन का दायित्व उन्होंने संभाला।
8. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी (1921 – 1928)
- जन्म : 27 मई 1894, खैरागढ़ (राजनांदगांव)
- निधन : 1971
वे हिंदी के प्रख्यात निबंधकार थे। उनके लेखन में सामाजिक चेतना और विचारोत्तेजना मिलती है। ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से उन्होंने हिंदी निबंध साहित्य को नया आयाम दिया।
9. देवीदत्त शुक्ल ठाकुर (1921 – 1946)
- जन्म : 1888, बक्सर (उ.प्र.)
शुक्ल जी ने 25 वर्षों तक पत्रिका का संपादन किया।
- उनकी आत्मकथा “सम्पादक के पच्चीस वर्ष” हिंदी पत्रकारिता का ऐतिहासिक दस्तावेज है।
- उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी पत्रिका की गरिमा बनाए रखी।
10. अन्य संपादक (1926 – 1955)
इस काल में कई संपादक और सहायक संपादक जुड़े, जैसे –
- हरिकेशव घोष
- उदयनारायण वाजपेयी
- गणेश शंकर विद्यार्थी
- हरिभाऊ उपाध्याय
- ठाकुर प्रसाद सिंह
- शंभु प्रसाद शुक्ल
इन संपादकों ने पत्रिका को विविध आयाम दिए।
11. श्रीनाथ सिंह (1934)
स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले श्रीनाथ सिंह भी कुछ समय तक संपादक रहे।
12. श्रीनारायण चतुर्वेदी (1955 – 1976)
- जन्म : 1895, इटावा (उ.प्र.)
वे हिंदी पत्रकारिता और भाषा प्रचार के पुरोधा थे।
- उनके संपादन में पत्रिका ने स्वतंत्र भारत में राष्ट्रीय चेतना और भाषा आंदोलन को दिशा दी।
- उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार और राष्ट्रभाषा आंदोलन को मजबूत बनाया।
13. निशीथ राय (1977 – 1980)
निशीथ राय को अंतिम संपादक कहा जा सकता है, किंतु उनके संपादन काल में पत्रिका का कोई अंक प्रकाशित नहीं हुआ।
सरस्वती पत्रिका का संपादन काल
- प्रारम्भ : जनवरी 1900, इलाहाबाद (इंडियन प्रेस)
- अंतिम अंक : 1976
- कुल संपादन काल : 1900 से 1980
इस बीच पत्रिका ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे, अनेक संपादक आए और गए, लेकिन इसका महत्व हिंदी साहित्य के इतिहास में कभी कम नहीं हुआ।
सरस्वती पत्रिका का महत्व और प्रभाव
- भाषा-शुद्धि और मानकीकरण –
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी भाषा को शुद्ध, सरल और व्याकरणसम्मत रूप देने का कार्य किया। - नए लेखकों को मंच –
प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद जैसे लेखकों ने यहीं से अपनी पहचान बनाई। - राष्ट्रीय चेतना का विकास –
पत्रिका ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में राष्ट्रीयता और समाज-सुधार के विचारों का प्रचार किया। - साहित्यिक आलोचना और विमर्श –
सरस्वती ने हिंदी साहित्य में आलोचना और बौद्धिक विमर्श की परंपरा को जन्म दिया। - दीर्घकालीन प्रभाव –
आठ दशकों तक पत्रिका ने हिंदी साहित्य को दिशा दी। इसे हिंदी पत्रकारिता का स्तंभ कहा जा सकता है।
Quick Revision Table : सरस्वती पत्रिका के संपादक और संपादन काल
क्रमांक | संपादक / सहायक संपादक | संपादन काल (ई०) | विशेष योगदान / टिप्पणी |
---|---|---|---|
1 | जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ | 1900 | प्रथम संपादक, ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि |
2 | श्यामसुन्दर दास | 1899 – 1902 | आलोचक, काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापक |
3 | राधाकृष्णदास | 1900 – 1902 | नाटककार, भारतेन्दु के फुफेरे भाई |
4 | कार्तिक प्रसाद खत्री | 1900 – 1902 | हिंदी के प्रथम जीवनी लेखक |
5 | किशोरीलाल गोस्वामी | 1900 – 1902 | हिंदी के प्रथम उपन्यासकार |
6 | महावीर प्रसाद द्विवेदी | 1903 – 1920 | स्वर्णयुग, भाषा-शुद्धि, राष्ट्रवादी चेतना |
7 | कामता प्रसाद ‘गुरु’ | 1920 | अल्पकालिक संपादन |
8 | पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी | 1921 – 1928 | निबंध साहित्य को नई दिशा |
9 | देवीदत्त शुक्ल ठाकुर | 1921 – 1946 | 25 वर्षों तक संपादन, आत्मकथा सम्पादक के पच्चीस वर्ष |
10 | हरिकेशव घोष (व्यवस्थापक, इंडियन प्रेस) | 1926 | पत्रिका संचालन में सहयोग |
11 | उदयनारायण वाजपेयी (सहायक) | 1928 – 1933 | संगठनात्मक कार्य |
12 | गणेश शंकर विद्यार्थी | 1928 – 1933 | स्वतंत्रता आंदोलन और पत्रकारिता से जुड़े |
13 | हरिभाऊ उपाध्याय | 1928 – 1933 | राष्ट्रवादी लेखन |
14 | देवी प्रसाद शुक्ल | 1928 – 1933 | सहायक संपादन |
15 | शंभु प्रसाद शुक्ल | 1928 – 1933 | सहायक संपादन |
16 | ठाकुर प्रसाद सिंह | 1928 – 1933 | सहायक संपादन |
17 | श्रीनाथ सिंह | 1934 | स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, हिंदी साहित्य सम्मेलन से जुड़े |
18 | देवीदयाल चतुर्वेदी ‘मस्त’ | 1935 – 1955 | स्वतंत्र भारत में सामाजिक चेतना |
19 | लल्ली प्रसाद पांडेय व उमेश चंद्र मिश्र (संयुक्त) | 1935 – 1945 | संयुक्त संपादन |
20 | श्रीनारायण चतुर्वेदी | 1955 – 1976 | राष्ट्रभाषा आंदोलन, साहित्यिक नेतृत्व |
21 | निशीथ राय | 1977 – 1980 | अंतिम संपादक, पर कोई अंक प्रकाशित नहीं हुआ |
निष्कर्ष
“सरस्वती पत्रिका” हिंदी साहित्य के इतिहास में केवल एक पत्रिका नहीं बल्कि एक आंदोलन थी। इसने हिंदी भाषा और साहित्य को नई पहचान दी। महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपादन में यह पत्रिका न केवल साहित्य का मंच बनी बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना का वाहक भी बनी।
1900 से 1980 तक का इसका सफर हिंदी साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण यात्रा कही जा सकती है। हिंदी भाषा के मानकीकरण, साहित्यिक धारा के विकास और राष्ट्रवाद की चेतना जगाने में सरस्वती पत्रिका का योगदान अविस्मरणीय है।
आज जब हम हिंदी पत्रकारिता और साहित्य के इतिहास को देखते हैं, तो “सरस्वती” का नाम सबसे ऊपर आता है। यह हिंदी साहित्य की जीवित परंपरा और अमर धरोहर है।
इन्हें भी देखें –
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