प्राइमरी स्केलेरोज़िंग कोलैंगाइटिस (PSC) के उपचार में ‘नेबोकिटग’ की भूमिका
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान निरंतर ऐसे जटिल और दुर्लभ रोगों के उपचार की दिशा में आगे बढ़ रहा है, जिनके लिए अब तक कोई प्रभावी या स्वीकृत दवा उपलब्ध नहीं थी। पिछले कुछ दशकों में जैव-प्रौद्योगिकी (Biotechnology) और प्रतिरक्षा विज्ञान (Immunology) के क्षेत्र में हुई तीव्र प्रगति ने रोग उपचार की अवधारणा को पूरी तरह बदल दिया है। इसी क्रम में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी एक ऐसी उन्नत चिकित्सा पद्धति के रूप में उभरी है, जिसने कैंसर, संक्रामक रोगों, स्व-प्रतिरक्षी रोगों और दुर्लभ आनुवंशिक विकारों के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं।
हाल ही में, एक दुर्लभ और गंभीर लिवर रोग प्राइमरी स्केलेरोज़िंग कोलैंगाइटिस (PSC) के उपचार के लिए विकसित एक नई मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी ‘नेबोकिटग’ (Nebokitug) ने चिकित्सा जगत में आशा की नई किरण जगाई है। PSC को अब तक एक लाइलाज रोग माना जाता रहा है, जिसमें अंतिम विकल्प के रूप में केवल लिवर ट्रांसप्लांट ही उपलब्ध था। ऐसे में नेबोकिटग के उत्साहजनक नैदानिक परिणाम इसे भविष्य की एक संभावित प्रभावी दवा के रूप में स्थापित करते हैं।
प्राइमरी स्केलेरोज़िंग कोलैंगाइटिस (PSC): एक परिचय
PSC क्या है?
प्राइमरी स्केलेरोज़िंग कोलैंगाइटिस (Primary Sclerosing Cholangitis) एक दुर्लभ, दीर्घकालिक और प्रगतिशील लिवर रोग है, जिसमें यकृत के अंदर और बाहर स्थित पित्त नलिकाओं (Bile Ducts) में धीरे-धीरे सूजन (Inflammation) और निशान या स्कार (Fibrosis) बनने लगते हैं। समय के साथ यह सूजन और फाइब्रोसिस पित्त नलिकाओं को संकुचित कर देती है, जिससे पित्त का प्रवाह बाधित हो जाता है।
PSC के दुष्परिणाम
पित्त के प्रवाह में अवरोध के कारण:
- लिवर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं
- यकृत कोशिकाओं को नुकसान पहुँचता है
- धीरे-धीरे लिवर सिरोसिस विकसित हो सकता है
- आगे चलकर लिवर फेलियर की स्थिति उत्पन्न हो सकती है
- पित्त नली कैंसर (Cholangiocarcinoma) और लिवर कैंसर का खतरा बढ़ जाता है
PSC के कारण और जोखिम कारक
PSC का सटीक कारण अभी तक ज्ञात नहीं है, किंतु वैज्ञानिक अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि:
- यह रोग स्व-प्रतिरक्षी (Autoimmune) प्रकृति का हो सकता है
- इसका गहरा संबंध इन्फ्लेमेटरी बॉवेल डिजीज (IBD), विशेषकर अल्सरेटिव कोलाइटिस से पाया गया है
- अधिकांश PSC रोगियों में किसी न किसी रूप में आंतों की सूजन संबंधी बीमारी पाई जाती है
वर्तमान उपचार की सीमाएँ
वर्तमान में PSC के लिए:
- कोई स्वीकृत औषधीय उपचार उपलब्ध नहीं है
- केवल लक्षणों को नियंत्रित किया जाता है
- रोग के अंतिम चरण में लिवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प रह जाता है
इसी चिकित्सा शून्य को भरने की दिशा में नेबोकिटग जैसी नई थेरेपी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
नेबोकिटग (Nebokitug): एक नवीन मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी
नेबोकिटग क्या है?
नेबोकिटग एक प्रयोगशाला में निर्मित मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAb) है, जिसे विशेष रूप से PSC रोग के जैविक कारणों को लक्षित करने के लिए विकसित किया गया है। यह थेरेपी शरीर में मौजूद एक विशिष्ट प्रोटीन CCL24 को अवरुद्ध (Block) करती है।
CCL24 प्रोटीन की भूमिका
वैज्ञानिक अध्ययनों से यह पाया गया है कि:
- PSC रोगियों में CCL24 प्रोटीन का स्तर सामान्य से कहीं अधिक होता है
- यह प्रोटीन पित्त नलिकाओं के आसपास
- सूजन को बढ़ावा देता है
- फाइब्रोसिस (स्कारिंग) की प्रक्रिया को तेज करता है
- परिणामस्वरूप पित्त नलिकाएँ क्षतिग्रस्त होती जाती हैं
नेबोकिटग का कार्य-तंत्र (Mechanism of Action)
नेबोकिटग:
- CCL24 प्रोटीन को लक्षित कर उसे निष्क्रिय करती है
- सूजनकारी संकेतों (Inflammatory Signals) को रोकती है
- पित्त नलिकाओं के आसपास बनने वाले स्कार को कम करती है
- लिवर को होने वाली प्रगतिशील क्षति को धीमा करती है
इस प्रकार, यह थेरेपी केवल लक्षणों का उपचार नहीं करती, बल्कि रोग की जड़ पर प्रहार करती है, जो इसे पारंपरिक उपचारों से अलग बनाती है।
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी क्या हैं?
परिभाषा
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (Monoclonal Antibodies – mAbs) वे विशेष प्रोटीन होते हैं, जिन्हें प्रयोगशाला में इस प्रकार तैयार किया जाता है कि वे शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा निर्मित एंटीबॉडी की नकल कर सकें।
“मोनोक्लोनल” का अर्थ
- “मोनो” का अर्थ है — एक
- “क्लोनल” का अर्थ है — एक ही मूल कोशिका से उत्पन्न
अर्थात्, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी:
- एक ही B-कोशिका (B-Cell) की क्लोनिंग से बनाई जाती हैं
- सभी एंटीबॉडी संरचना और कार्य में समान होती हैं
- किसी एक विशिष्ट एंटीजन को अत्यंत सटीकता से पहचानती हैं
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का ऐतिहासिक विकास
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी तकनीक का विकास:
- 1975 में जर्मनी के जॉर्ज जे. एफ. कोहलर
- और अर्जेंटीना के सीज़र मिल्सटेन द्वारा किया गया
उन्होंने हाइब्रिडोमा तकनीक विकसित की, जिसने पहली बार प्रयोगशाला में असीमित मात्रा में समान एंटीबॉडी बनाना संभव किया।
इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए:
- दोनों वैज्ञानिकों को 1984 में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया
मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ की निर्माण प्रक्रिया
1. प्रतिरक्षीकरण (Immunization)
- सबसे पहले किसी जानवर (अधिकतर चूहे) को
- लक्षित एंटीजन इंजेक्ट किया जाता है
- जानवर की प्रतिरक्षा प्रणाली उस एंटीजन के विरुद्ध एंटीबॉडी बनाती है
2. B-कोशिकाओं का संग्रह
- तिल्ली (Spleen) से
- एंटीबॉडी बनाने वाली B-कोशिकाओं को निकाला जाता है
3. हाइब्रिडोमा तकनीक
- B-कोशिकाओं को
- माइलोमा (कैंसर) कोशिकाओं से संलयित किया जाता है
- इससे बनी हाइब्रिडोमा कोशिकाएँ
- एंटीबॉडी भी बनाती हैं
- और अनंत विभाजन भी कर सकती हैं
4. क्लोनिंग और उत्पादन
- सर्वश्रेष्ठ हाइब्रिडोमा का चयन किया जाता है
- उन्हें क्लोन किया जाता है
- औद्योगिक स्तर पर एक ही प्रकार की एंटीबॉडी का उत्पादन होता है
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कैसे कार्य करती हैं?
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी:
- विशिष्ट एंटीजन से जुड़ जाती हैं
- वायरस, बैक्टीरिया या विषाक्त प्रोटीन को निष्क्रिय करती हैं
- कोशिकाओं को क्षति से बचाती हैं
उदाहरण के लिए:
- COVID-19 में mAbs ने
- वायरस के स्पाइक प्रोटीन को ब्लॉक किया
- उसे मानव कोशिकाओं में प्रवेश से रोका
मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ के प्रमुख अनुप्रयोग
1. कैंसर उपचार
- कोलोरेक्टल कैंसर
- स्तन कैंसर
- ल्यूकेमिया
- लिम्फोमा
mAbs कैंसर कोशिकाओं को लक्षित कर उन्हें नष्ट करने या उनकी वृद्धि रोकने में सहायक होती हैं।
2. संक्रामक रोग
- COVID-19
- निपाह वायरस
- इबोला
उच्च जोखिम वाले रोगियों में इनका प्रयोग विशेष रूप से प्रभावी रहा है।
3. स्व-प्रतिरक्षी रोग
- रुमेटीइड गठिया
- मल्टीपल स्केलेरोसिस
- सोरायसिस
यहाँ mAbs अत्यधिक सक्रिय प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित करती हैं।
4. निदान (Diagnostics)
- गर्भावस्था परीक्षण किट
- ELISA टेस्ट
- कैंसर मार्कर की पहचान
इन परीक्षणों में mAbs की उच्च विशिष्टता अत्यंत उपयोगी होती है।
PSC और नेबोकिटग: भविष्य की संभावनाएँ
नेबोकिटग जैसी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी:
- PSC को पहली बार लक्षित उपचार प्रदान करती है
- लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता को टाल सकती है
- रोगियों की जीवन-गुणवत्ता में सुधार ला सकती है
यदि आगे के नैदानिक परीक्षण सफल रहते हैं, तो यह थेरेपी:
- PSC के उपचार में गेम-चेंजर सिद्ध हो सकती है
- अन्य फाइब्रोसिस-आधारित रोगों के लिए भी मार्ग प्रशस्त कर सकती है
निष्कर्ष
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की एक अत्यंत प्रभावशाली और आशाजनक उपलब्धि है। प्राइमरी स्केलेरोज़िंग कोलैंगाइटिस जैसे दुर्लभ और अब तक लाइलाज माने जाने वाले रोग के उपचार में नेबोकिटग का उभरना यह दर्शाता है कि भविष्य की चिकित्सा लक्षणों के नहीं, बल्कि रोग के मूल कारणों के उपचार पर केंद्रित होगी।
आने वाले वर्षों में, जैसे-जैसे जैव-प्रौद्योगिकी और प्रतिरक्षा विज्ञान में और प्रगति होगी, मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ न केवल जीवन रक्षक सिद्ध होंगी, बल्कि चिकित्सा की पूरी परिभाषा को नया आयाम देंगी।
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