फिरोज शाह तुगलक (शासन अवधि 1351-88 ई.) मुहम्मद तुगलक का चचेरा भाई था। उसका जन्म 1309 ई. में हुआ था। उसका पिता ‘रजब’ मुहम्मद तुगलक का सिपहसालार था और माता बीबी जैला अबूहर के राजपूत सरदार रणमल की पुत्री थी। फिरोज शाह तुगलक 1351 ई. में दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर तुगलक वंश के शासक के रूप में बैठा और 1388 ई. में इसकी मृत्यु हो गई।
फिरोजशाह तुगलक का संक्षिप्त परिचय
- मूल नाम-कमालुद्दीन फिरो।
- उपाधि/पदवी- सैयद उस सलातीन खलीफा का नाइब ( फिरोज ने स्वयं अपने को पुकारा)।
- पिता का नाम-रज्जब (गयासुद्दीन तुगलक का छोटा बेटा )।
- माता का नाम-बीबी नैला भाटी।
- जन्म-1309 ई. (हिंदू माता के गर्भ से )।
- फिरोजशाह तुगलक की माता- दीपालपुर के भाटी राजपूत शासक राणा मल की पुत्री ‘बीबी नैला भाटी’ थी।
- पिता की मृत्यु-फिरोज तुगलक के 7 वर्ष की आयु में।
- फिरोजशाह तुगलक का लालन पालन किया-गयासुद्दीन तुगलक ने।
- फिरोज तुगलक का राज्याभिषेक– दो बार हुआ।
- प्रथम राज्याभिषेक – 22 मार्च 1351 को थट्टा सिंध में।
- दूसरा राज्याभिषेक- अगस्त 1951 में दिल्ली में (दिल्ली में 21 दिन उत्सव मनाया) ।
- वंश – तुगलक वंश
फिरोजशाह तुगलक के राज्य अभिषेक के दौरान राज्य विस्तार के स्थान पर उसने जनकल्याण को अपना आदर्श बनाया। इनका आदर्श वाक्य था “खजाना बड़ा होने से अच्छा है लोगों का कल्याण, दुखी हृदय से अच्छा है खाली खजाना।” इनकी शासन की स्थिरता में सबसे बड़ा योगदान- सियासत (मृत्युदंड) पर निषेध था। इन के लाभदायक राजस्व सुधारों के परिणामों का उल्लेख-तारीख ए फिरोजशाही में मिलता है।
फिरोजशाह तुगलक के राजस्व में सुधार के दो उद्देश्य-
- पहला- राज्य की आय में वृद्धि करना।
- दूसरा- करदाताओं के बोझ को कम करना।
इस्लाम द्वारा स्वीकृत चार प्रकार का कर
पहले के सुल्तानों द्वारा लगाये गए कर फिरोजशाह तुगलक के शासन काल में भी लागू थे जो निम्न है –
- जजिया
- जकात
- खिराज और
- खुम्स
जजिया कर ब्राह्मणों पर लागू नहीं होता था। परन्तु फिरोजशाह तुगलक ने जजिया कर को ब्राह्मणों पर भी लागू कर दिया। ब्राह्मणों पर जजिया कर एवं सिंचाई कर लागू करने वाला फिरोजशाह तुगलक दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था। पहला सल्तनत कालीन शासक फिरोज शाह तुगलक था, जिसने राज्य की आमदनी का ब्यौरा तैयार किया।
फिरोजशाह तुगलक के चलाए गए सिक्के– अद्धा और बिख नामक सिक्के
अशोक के 2 स्तंभों को दिल्ली में स्थापित किया–
- एक- खिज्राबाद से और
- दूसरा- मेरठ से
फिरोजशाह तुगलक के बारे में कुछ विचार
- इलियड और एलफिस्टन- इन्होने फिरोज तुगलक को सल्तनत युग का अकबर कहा।
- वूल्जले हेग ने-राज्य का अपहरणकर्ता कहा।
- जियाउद्दीन बरनी के अनुसार- फिरोज तुगलक दिल्ली का आदर्श सुल्तान था। उसने फिरोज तुगलक को पहला सच्चा मुसलमान शासक कहा है।
- एलफिंस्टन ने आंशिक पागल कहा – मोहम्मद तुगलक के द्वारा किए गए नए – नए प्रयोगों तथा उनकी असफलताओं के मूल्यांकन के पश्चात एलफिंस्टन ने इसे पागल सुल्तान की संज्ञा दीI
थट्टा सिंध अभियान के दौरान प्रसिद्ध उक्ति
थट्टा सिंध सैन्य अभियान, जो की सल्तनत काल का सर्वाधिक अवस्थित अभियान था, इस अभियान के दौरान यह उक्ति प्रसिद्ध हुई–
“देखो शेख प्रथा सूफी इब्राहिम शाह आलम का कमाल, एक तुगलक मोहम्मद बिन तुगलक जो मर गया दूसरे को जरा संभाल।”
फिरोजशाह तुगलक का प्रारंभिक जीवन
फिरोजशाह तुगलक मोहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई था और शांति प्रिय व्यक्ति था। फिरोजशाह तुगलक सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के छोटे भाई रज्जब का पुत्र था। इसका जन्म 1309 ई. में एक हिंदू माता बीबी जैला के गर्भ से हुआ था। जो अबूहर के भट्टी राजपूत रणमल की पुत्री थी। दिल्ली सल्तनत के अन्य सुल्तान जिनकी माता हिंदू थी वे थे नासिरुद्दीन खुसरो, गयासुद्दीन तुगलक, सिकंदर लोदी।
जिस समय फिरोजशाह तुगलक केवल 7 वर्ष का था उसके पिता मलिक रज्जब की मृत्यु हो गई। उसका पालन-पोषण गयासुद्दीन तुगलक ने किया। रज्जब की अन्य स्त्रियों से उत्पन्न दो पुत्र कुतुबुद्दीन और इब्राहिम थे, लेकिन फिरोजशाह तुगलक को विशेष स्थान प्राप्त था।
जब मोहम्मद बिन तुगलक गद्दी पर बैठा तो उसे अमीर-ए- हाजिब के पद पर नियुक्त किया। इस पद पर रहते हुए उसने मोहम्मद बिन तुगलक की सेवा कर विश्वास प्राप्त कर लिया था जिस समय मोहम्मद बिन तुगलक दक्षिण के विद्रोह को दबाने में व्यस्त था उस समय मोहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली के प्रशासन का भार एक संरक्षक परिषद को सौंपा, जिसका प्रधान फिरोजशाह शाह तुगलक था। परिषद के अन्य सदस्य कबीर खां और ख्वाजा जहां थे।
फिरोज शाह तुगलक के कमजोर व्यक्तित्व के कारण दिल्ली सल्तनत का पतन तेजी से हुआ। उसने पृथक हुए क्षेत्रों को जीतने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए सिर्फ बंगाल और सिंध में असफल सैनिक अभ्यास किए। फिरोजशाह तुगलक धार्मिक कट्टरवादी था। उसने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगाया।
फिरोजशाह तुगलक का राज्यारोहण
फिरोजशाह तुगलक का दो बार राज्याभिषेक हुआ—
- पहला राज्यभिषेक– 22 मार्च (23) 1351 को थट्टा सिंध में।
- दूसरा राज्याभिषेक – अगस्त 1351 को नई दिल्ली में हुआ था। यहाँ फिरोजशाह तुगलक ने शांतिपूर्वक राजगद्दी प्राप्त की थी।
20 मार्च 1351 को मोहम्मद बिन तुगलक की थट्टा (सिंध) में मृत्यु हो गई थी उसकी अचानक मृत्यु से विद्रोहियों ने सिंध मे उपद्रव प्रारंभ कर दिया इस समय गद्दी के दो दावेदार थे फिरोजशाह तुगलक और अमृत सुल्तान का भांजा दावर मलिक। इस संकट की स्थिति को दूर करने के लिए अमीर और उलेमा वर्ग दावर मलिक को अस्वीकार करते हुए फिरोजशाह तुगलक को सुल्तान घोषित कर दिया। और इस प्रकार 22 मार्च 1351 को थट्टा (सिंध) में ही फिरोजशाह तुगलक का पहला राज्यभिषेक संपन्न हुआ।
उसके पश्चात सुलतान ने शाही सेना के साथ दिपालपुर के रास्ते दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। उधर मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के पश्चात दिल्ली में मोहम्मद बिन तुगलक का वजीर ख्वाजा जहां नई दिल्ली में एक बालक को स्वर्गीय सुल्तान का कथित पुत्र बताते हुए उसे गद्दी पर बैठा दिया। फिरोजशाह तुगलक ने उसे दंडित करने का निश्चय किया, लेकिन उलेमा वर्ग ने फिरोज शाह का पक्ष लिया। फलस्वरुप ख्वाजा ए जहां ने आत्मसमर्पण कर दिया।
फिरोजशाह तुगलक ने ख्वाजा जहां को समाना में आश्रय लेने की आज्ञा दी। लेकिन वहां पहुंचने से पूर्व ही समाना के सरदार शेख खां के किसी सहयोगी ने उसकी हत्या कर दी। फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली में प्रवेश किया। अगस्त 1351 को दिल्ली में पुनः उस का राज्यभिषेक हुआ इस अवसर पर दिल्ली में 21 दिन तक उत्सव मनाया गया।
फिरोजशाह तुगलक के प्रशासनिक सुधार
- जिस समय फिरोजशाह तुगलक गद्दी पर बैठा उस समय शासन व्यवस्था अस्त-व्यस्त थी और नागरिकों में तीव्र असंतोष था।
- मोहम्मद तुगलक की धार्मिक नीतियों के कारण उलेमा और अमीर वर्ग असंतुष्ट थे।
- फिरोज शाह तुगलक के समक्ष सबसे बड़ी समस्या आर्थिक संकट की थी ऐसी स्थिति में उसने अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए आवश्यक सुधार किए।
- जो राज्य दिल्ली सल्तनत की अधीनता से मुक्त हो गए थे, उन्हें पुनः अधीनता में लाने का प्रयास नहीं किया। राज्य विस्तार के स्थान पर फिरोजशाह तुगलक ने जनकल्याण को अपना आदर्श बनाया और उसके लिए शासन में मुख्य सुधार किए।
ऋण पंजिकाओ की समाप्ति
- मोहम्मद बिन तुगलक के काल में दो करोड़ टंके सरकारी कृषि ऋण (सोंधर) के रूप में दिया गया। ऋण लेने वाले का नाम एक ऋण पंजिका में अंकित था।
- फिरोजशाह तुगलक ने कवामूलमुल्क (मलिक मकबूल) के परामर्श से सभी ऋण माफ कर दिए। और ऋण पंजिका नष्ट कर दी गई।
वजीर पद की नियुक्ति
- तुगलक वंश का शासन काल वजारत का चरमोत्कर्ष काल था। फिरोजशाह तुगलक की सफलता का श्रेय उसके शासनाधिकारियों का था जिसमें प्रमुख नाम उसके वजीर मलिक ए मकबूल खान ए जहां को प्राप्त है।
- राज्य के महत्वपूर्ण पदों पर योग्य मंत्रियों को नियुक्त किया गया। वजीर का पद मलिक मकबूल खान ए जहां को, नायब वजीर का पद मलिक राजी को और गाजी शाहना को सार्वजनिक विभाग सौंपा गया।
- मलिक मकबूल खान ए जहां तेलंगाना का एक ब्राह्मण था। जिसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। इस्लाम धर्म ग्रहण करने से पूर्व उसका नाम कुकनू (फूल) था। वह तेलंगाना के शासक राय का दरबारी था।
- मोहम्मद बिन तुगलक के तेलंगाना विजय के बाद वह उसकी शरण में आया था। उसे कावामुल मुल्क की उपाधि दी गई थी। फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल में आर्थिक प्रगति और आय में वृद्धि का श्रेय मलिक मकबूल को ही प्राप्त है।
रक्त पात और यातनाओं पर निषेध
- फिरोज शाह तुगलक ने राजद्रोह के लिए गंभीर दंड की व्यवस्था का अंत कर दिया, जो शरीयत में उल्लेखित नहीं था। इस प्रकार दंड विधान की कठोरता को समाप्त कर दी गई।
- जियाउद्दीन बरनी ने लिखा है कि – सबसे बड़ा कारण जिसने फिरोज शाह के शासन की स्थिरता में योगदान दिया था वह सियासत मृत्युदंड पर निषेध था।
राजस्व व्यवस्था और आर्थिक सुधार
एक शासक के रूप में फिरोज तुगलक की मुख्य सफलता उसकी राजस्व व्यवस्था थी।
शम्से सिराज अफीफ अपनी पुस्तक तारीख ए फिरोजशाही में फिरोजशाह तुगलक के लाभदायक राजस्व सुधारों के परिणामों का उल्लेख करते हुए लिखता है कि–
“इनके (जनता के) घर अन्न,संपत्ति, घोड़ों और फर्नीचर से भरे पड़े थे प्रति व्यक्ति के पास प्रचुर मात्रा में सोना चांदी था कृषक वर्ग की कोई भी महिला बिना आभूषण कि नहीं देखी जा सकती थी कोई घर ऐसा नहीं था जिसमें अच्छे पलंग ना हो धन खुब रहता था और सभी लोग आराम से रहते थे।”
इस युग में राज्य को आर्थिक दिवालिएपन का सामना नहीं करना पड़ा। इसके शासन काल में दो आब से 80 लाख टंका की आय होती थी। और दिल्ली का राजस्व 6 करोड़ 25 लाख टंका तक पहुंच गया था।
फिरोज तुगलक के राजस्व में सुधार के दो उद्देश्य थे–
- पहला– राज्य की आय में वृद्धि करना।
- दूसरा–करदाताओं के बोझ को कम करना।
फिरोज तुगलक ने मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में दिए गए तकावी ऋण को माफ कर दिया। फिरोज शाह तुगलक ने 24 कष्टदायक करों को समाप्त कर दिया। और इस्लामिक कानून द्वारा स्वीकृत केवल चार प्रकार के कर लगाए—जजिया,जकात,खैरात और खुम्स कर।
- खिराज कर–भूमि कर कर था जो भूमि की उपज के 1/3 भाग के बराबर था।
- जकात कर–मुसलमानों की संपत्ति पर लिया जाने वाला कर था जो 2.5% था।
- जजिया कर– गैर मुस्लिमों से लिया जाने वाला कर था।
- खुम्स कर– युद्ध में प्राप्त लूट का भाग था।
ब्राह्मण, स्त्री, बच्चे, विक्षिप्त और अपाहिज प्राय: इस कर से मुक्त होते थे, लेकिन फिरोजशाह तुगलक दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था जिसने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लागू किया।
फिरोजशाह तुगलक ने शरीयत के अनुसार युद्ध में प्राप्त लूट के माल का मात्र 1/5 भाग लिया शेष 4/5 भाग सैनिकों के लिए छोड़ दिया। जबकि अलाउद्दीन खिलजी और मोहम्मद बिन तुगलक ने ठीक इसके विपरीत किया था।
इन करों के अतिरिक्त फिरोजशाह तुगलक ने सरकारी नहरों द्वारा सिंचाई किए जाने वाले क्षेत्र में सिंचाई कर (हब- ए-शर्ब) भी प्राप्त किया। सिंचाई कर लेने वाला फिरोजशाह तुगलक दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था। यह कृषि उपज का 10% था।
फिरोजशाह तुगलक द्वारा दिल्ली की गद्दी पर राज्य रोहन के उपरांत समाप्त किए गए कृषि उपकर को अबवाब कहते थे, इसमें घरी कर और चरी कर शामिल थे। फिरोजशाह तुगलक के समय यह कर पैदावार का 1/5 से 1/3 भाग था।
भू-राजस्व के मूल्यांकन के लिए स्थानीय परंपराओं और प्रथाओं पर आधारित कई छोटे-छोटे उपाय अपनाए गए। भू मापन और वास्तविक उत्पादन पर राज्य की कर वसूली के निर्धारण की पद्धति को पुर्णतया त्याग दिया गया।
फिरोज शाह तुगलक पहला सल्तनत कालीन शासक था जिसने राज्य की आमदनी का ब्यौरा तैयार करवाया। ख्वाजा हिसामुद्दीन को राजस्व अनुमान का विवरण बनाने का दायित्व सौंपा गया। जिसमें विभिन्न सुबो का दौरा करके 6 वर्ष के परिश्रम के बाद खालसा भूमि (केंद्रीय सरकार की भूमि ) से 6 करोड़ 25 लाख टंका का लगान निश्चित किया। इसी के आधार पर व्यय मदे निर्धारित की गई।
ख्वाजा हिसामुद्दीन ने यह निर्धारण– निरीक्षण के नियम (बर हुक्मे मुशाहिदा) के आधार पर निश्चित किया। फिरोजशाह तुगलक के राजस्व संबंधी सुधार लाभदायक सिद्ध हुआ, जिसके फलस्वरुप राज्य और प्रजा दोनों संपन्न हुए। उसके समय में अकाल नहीं पड़ा, और वस्तुओं के मूल्य भी कम रहे।
जागीरदारी प्रथा
- फिरोजशाह तुगलक ने जागीरदारी प्रथा को पुन: प्रारंभ किया। उसने सैनिकों, सेनापतियों और असैनिक पदाधिकारियों को जागीर के रूप में वेतन देने की प्रथा शुरू की।
- सैनिकों के पदों को वंशानुगत बना दिया, एवं उनकी योग्यता की जांच करने की प्रथा को समाप्त कर दिया।
- जियाउद्दीन बरनी की पुस्तक तारीख-ए-फिरोजशाही मे सुल्तान फिरोजशाह तुगलक का यह कथन वर्णित है जो उसने अपने सैनिकों के विषय में कहा है-
- “सर्वशक्तिमान अल्लाह जब अपने सेवकों की आजीविका वृद्धावस्था के कारण वापस नहीं लेता, खुदा का बंदा होने के नाते भला मैं अपने वृद्ध सैनिकों को कैसे पदच्युत कर सकता हूं।”
- फिरोजशाह तुगलक ने सैनिक पद और जागीर वंशानुगत कर दी गई। वृद्ध और अक्षम सैनिक अपने पुत्र दामाद या एजेंट को भी अपने स्थान पर सेना में भेज सकता था।
इतलाक प्रथा
- इस प्रथा का प्रारंभ ही फिरोजशाह तुगलक ने किया था इतलाकनामा एक प्रकार की हुंडी थी, जिसकी सहायता से सैनिक राजस्व अधिकारियों से वेतन प्राप्त करते थे।
- इतलाक ( नियुक्ति पत्र )लेकर जब कोई सैनिक लगान वसूल कर रहे अधिकारियों के पास जाता था तो उसे केवल 50% लगान मिलता था शेष 50% सरकारी खर्चे के लिए छोड़ दिया जाता था।
- बाद में सैनिक इसका दुरुपयोग करने लगे और दलालों को 20% या 30% इतलाकनामा को बेच दिया करते थे इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि सैनिकों के लड़के सैनिक न रहकर लगान वसूलने वाले पेंशन याफ्ता बन गए।
- इस प्रकार जागीरदारी प्रथा से भ्रष्टाचार फैल गया फिरोजशाह तुगलक ने प्रशासन में घूसखोरी को स्वयं प्रोत्साहित किया।
- उसके काल में फैले भ्रष्टाचार के विषय मे शम्से सिराज अफीफ ने लिखा है कि–
- “सुल्तान ने एक घुड़सवार को अपने खजाने से 1 टंका दिया ताकि वह रिश्वत देकर दीवान ए अर्ज से अपने घोड़े को पास करवा सके।
- फिरोजशाह तुगलक का शासनकाल मध्यकालीन भारत में सबसे भ्रष्ट शासन काल कहा जाता है। उसके युद्ध मंत्री ( दीवान ए आरिज) इमादुलमुल्क बशीर के पास 13 करोड़ की संपत्ति थी जो राज्य की 2 वर्ष की आय के बराबर थी।
- इस प्रकार फिरोज शाह तुगलक द्वारा प्रारंभ जागीर प्रथा तुगलक साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण बना।
खुत्बे की प्रथा में परिवर्तन
- फिरोजशाह तुगलक से पूर्व शुक्रवार की खुत्बे में केवल शासक सुल्तान के नाम का उल्लेख किया जाता था। लेकिन फिरोज शाह तुगलक ने इस प्रथा में परिवर्तन किया। उसने यह आदेश दिया कि खुत्बे (धार्मिक प्रवचन ) में दिल्ली के पूर्व सुल्तानों का नाम का भी उल्लेख किया जाए।
- उसने खुत्बे में निम्न सुल्तानों के नामों का उल्लेख किया जाने का आदेश दिया –
- शहाबुद्दीन बिन साम (मोहम्मद गौरी), इल्तुतमिश, नासिरुद्दीन महमूद, गयासुद्दीन तुगलक, जलालुद्दीन फिरोज, अलाउद्दीन खिलजी, कुतुबुद्दीन ऐबक, गयासुद्दीन तुगलक शाह और मोहम्मद बिन तुगलक बाद में इस सूची में फिरोजशाह तुगलक के दो उत्तराधिकारियों नासिरुद्दीन मुहम्मद बिन फिरोज शाह और अलाउद्दीन सिकंदर शाह के नाम शामिल किए गए।
- फिरोजशाह तुगलक ने इस– खुत्बें में कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी का नाम शामिल नहीं किया था, क्योंकि कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी ने स्वयं को खलीफा घोषित किया था इसलिए उसका नाम अंकित नहीं करवाया।
लोक कल्याण कार्य
दयालु प्रवृत्ति होने के कारण फिरोजशाह तुगलक ने जन कल्याण के लिए अनेक कार्य किए। उसका आदर्श वाक्य था– “खजाना बड़ा होने से अच्छा है लोगों का कल्याण,दुखी ह्रदय से अच्छा है खाली खजाना।”
अपनी इस आदत को चरित्रार्थ करने के लिए उसने निम्नलिखित कार्य किए–
दास विभाग की स्थापना
फिरोजशाह तुगलक दासों का शौकीन था। उसका शासनकाल गुलामों की असामान्य भर्ती के लिए उल्लेखनीय है।
- दासों के लिए उसने दीवान ए बंदगान नामक एक नये विभाग की स्थापना की। और अलग से अधिकारियों की नियुक्ति किया।
- अर्ज ए बंदगान- गुलाम दासों की भर्ती और निरीक्षण करने वाला अधिकारी था।
- चाऊशगोरी- दासों का दीवान था। और नायब चाऊशगैरिये- ( होदी वाला के अनुसार ) गोरे गुलामों का अधिकारी था।
- फिरोजशाह तुगलक के समय में दासों की संख्या 180000 थी। इन दासों को शिक्षा और विभिन्न कला में प्रशिक्षण का प्रबंध किया गया था।
- उसने दासों को व्यवहारिक शिक्षा दी ताकि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके।
- सैनिकों की भांति दासों को भी भूमि निर्धारण या नगद वेतन द्वारा भुगतान किया जाता था। इनका वेतन 10 से 100 टंका तक था।
- फिरोजशाह तुगलक ने दासों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
रोजगार दफ्तर
बेरोजगार व्यक्तियों को काम देने के लिए फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली में एक रोजगार दफ्तर खुलवाया। सभी बेरोजगारों को इस दफ्तर में पंजीकृत किया गया, और आवश्यकता अनुसार उन्हें रोजगार उपलब्ध कराया गया।
दीवान ए खैरात (दान विभाग )
दीवान ए खैरात विभाग की स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने की थी।
- इस विभाग द्वारा अनाथों विधवाओं और गरीबों के भरण पोषण और उनकी देखभाल का कार्य किया जाता था।
- दीवान ए खैरात के अंतर्गत ही विवाह विभाग भी बनाया गया, जिसके द्वारा गरीब मुस्लिम कन्याओं के विवाह हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की जाती थी। विवाह विभाग केवल मुस्लिमों के लिए था।
दीवान- ए- एइस्तिहाक (पेंशन विभाग)
यह पेंशन विभाग था। सुल्तान ने इस विभाग की स्थापना निर्धनों और वृद्धों की सामाजिक सुरक्षा हेतु किया था।
दारुल शफा या शिफा खाना
रोगियों की चिकित्सा के लिए फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली में दारुलशफा अथवा खैराती दवाखाना की स्थापना की। यहां रोगियों को निशुल्क चिकित्सा और भोजन की उत्तम व्यवस्था की गई थी।
सांस्कृतिक उपलब्धि
- फिरोजशाह तुगलक ने कला और सांस्कृतिक जीवन के क्षेत्र में हुई उन्नति में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उसने स्थापत्य कला के क्षेत्र में अनेक सराहनीय कार्य किए।
- तुगलक काल में स्थापत्य कला का सर्वाधिक विकास फिरोजशाह तुगलक के काल में हुआ था। वह एक महान भवन निर्माता था। अपने निर्माण कार्य के लिए उसने लोक निर्माण विभाग की स्थापना की थी। मलिक गाजी शाहना और अब्दुल हक को इस विभाग के प्रमुख बनाया गया था।
- विभिन्न प्रकार के कारीगरों को एकत्रित कर उनके प्रत्येक समूह को एक शाहना अधिकारी के अधीन रखा गया था।
- नहरों, सड़को और पुलों के निर्माण के अतिरिक्त फिरोज शाह तुगलक ने नए नगरों की स्थापना की और पुराने किलो का जीर्णोद्वार किया। फिरोजशाह तुगलक के कार्यकाल में राज्य का मुख्य वास्तुकार मलिक गाजी शहाना था। अब्दुल हक उसका सहायक था।
- प्रत्येक भवन की योजना को मलिक गाजी शाहना के अनुमान के साथ दीवान ए विजारत के समक्ष रखा जाता था। तभी उस पर धन स्वीकार किया जाता था।
नए भवनों और नगरों का निर्माण
फिरोजशाह तुगलक ने 300 नए नगरों की स्थापना की थी।
- उसके द्वारा स्थापित नवीन नगरों में फतेहाबाद, हिसार, फिरोजपुर ,जौनपुर और फिरोजाबाद प्रमुख था।
- यमुना नदी के तट पर दिल्ली के लाल किले के निकट स्थित फिरोजपुर ( फिरोज शाह कोटला) फिरोज तुगलक का प्रिय नगर था। वह अधिकांशतया वहीं रहता था। फिरोजपुर को अखिरीनपुर (अंतिम नगर) भी कहा जाता है
- अपने बंगाल अभियान के दौरान उसने इकदला का नाम अजादपुर और पांडुओ का नाम फिरोजबाद रखा।
- शिक्षा के प्रसार के लिए फिरोजशाह ने अनेक मदरसा और मकतब बनाए। उसने अपने नाम से 1352 ई. में दिल्ली में मदरसा ए फिरोजशाही का निर्माण करवाया था, और मौलाना जलालुद्दीन रूमी को उसका प्रधानाध्यक्ष नियुक्त किया था। यह दो मंजिली इमारत हौज ए अलाई के किनारे स्थित थी।
- उसने खानकाह (सूफियों के निवास स्थान) का भी निर्माण करवाया और मौलाना सैयद नजमुद्दीन समरकंदी को इसका प्रमुख बनाया।
- फिरोजशाह तुगलक के काल में बनी प्रमुख मस्जिदों में काली मस्जिद, खिड़की मस्जिद, बेगम पूरी मस्जिद और कला मस्जिद प्रमुख है।
- फरिश्ता ने लिखा है कि– फिरोजशाह तुगलक ने 40 मस्जिदें, 30 विद्यालय, 20 महल, 100 सराय, 200 नगर, 100 असपताल, 5 मकबरे, 100 सार्वजनिक गृह, 10 स्तंभ, 150 पुल और अनेक बाग (लगभग 1200) का निर्माण करवाया था।
- फिरोजशाह तुगलक ने मकबरों का भी निर्माण करवाया था। उसके शासनकाल के अंत में बनाए गए कबीरुद्दीन औलिया के मकबरे में सजावट पर विशेष बल दिया गया था उसे लाल गुंबद भी कहते हैं।
- वूल्जले हेग के अनुसार– निर्माण कार्य की दृष्टि से फिरोजशाह तुगलक रोमन सम्राट आगस्टस के समान था।
पुराने भवनों की मरम्मत
नए भवनों के निर्माण के साथ-साथ फिरोजशाह तुगलक ने पुराने भवनों का भी निर्माण करवाया।
फुतुहाते फिरोजशाही में सुल्तान स्वयं उन भवनों का उल्लेख करता है, जिसकी उसने मरम्मत करवाई थी। इनमें प्रमुख थे दिल्ली का कुतुब मीनार, पुरानी दिल्ली की जामा मस्जिद, शमशी तालाब ,अलाई दरवाजा, इल्तुतमिश का मदरसा और जहांपनाह।
नहरों का निर्माण
कृषि और सिंचाई के विकास के लिए फिरोजशाह तुगलक ने कई महत्वपूर्ण कार्य किए-
- किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें आर्थिक सहायता दी गई।
- अफीफ के अनुसार– कृषि योग्य भूमि तैयार करने के लिए किसानों को 100 लाख टंके की रकम दी गई। सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए फिरोजशाह तुगलक ने पांच नहरों का निर्माण करवाया।
- फिरोजशाह तुगलक की नहर प्रणाली का विस्तृत वर्णन याहिया बिन अहमद सर हिंदी की पुस्तक ”तारीख ए मुबारक शाही” में वर्णित है।
- उसके द्वारा बनवाई गई नहरों में सबसे महत्वपूर्ण “उलुगखानी” और “रजवाह़ी” नहरें थी।
- उलुगखानी नहर–यमुना नदी से हिसार तक 150 मील लंबी थी। जबकि रजवाह़ी नगर सतलज से घग्घर तक 96 मीटर लंबी थी। बाद में यह नहरें बंद हो गई थी, जिसकी अकबर ने मरम्मत करवाई।
- शाहजहां के काल में इसका विस्तार दिल्ली तक किया गया।
फिरोजशाह तुगलक द्वारा की गई पांच प्रमुख नहरे निम्नलिखित है—
- पहली नहर– यमुना नदी से हिसार तक 150 मील लंबी उलूगखानी नहर।
- दूसरी नहर- सतलज से घग्गर तक 96 मील लंबी रजवाही नहर।
- तीसरी नहर– सिरमौर की पहाड़ी से हांसी तक।
- चौथी नहर- घग्गर से फिरोजाबाद तक।
- पांचवी नहर-यमुना से फिरोजाबाद तक।
- इनमें से अधिकांश नहरे वर्तमान हरियाणा क्षेत्र में थी इस कारण यह क्षेत्र अत्यधिक लाभान्वित था।
- राज्य की मुख्य नहरों का निर्माण केंद्र सरकार द्वारा और छोटी नहरों का निर्माण प्रांतीय सरकारों द्वारा होता था।
- नहरों के अतिरिक्त फिरोजशाह तुगलक ने कुआं और तालाबों का भी निर्माण करवाया था जिससे अन्य क्षेत्रों में सिंचाई के लिए जल की आपूर्ति होती थी।
- नहरों से फिरोज तुगलक की व्यक्तिगत आय लगभग 200000 टंका वार्षिक थी।
फ़िरोज़ शाह तुगलक की मृत्यु
फिरोज के अंतिम दिन दुख भरे बीते। 1374 में उसके उत्तराधिकारी पुत्र फतेह खां की मौत हो गई। उसके कुछ वर्ष अंतराल के बाद 1387 में दूसरा पुत्र खन जहा भी मर गया। जिसका सुल्तान को गहरा आघात पहुंचा। आयु बढने के साथ ही 80 वर्ष की आयु में सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ की मृत्यु सितम्बर 1388 ई में हुई थी। हौज़खास परिसर, दिल्ली में उसे दफ़न कर दिया गया। इसका शासन काल 1388-1389 तक रहा।
फ़िरोज़ शाह तुगलक के महत्वपूर्ण तथ्य
- इत्तलाक प्रथा- फिरोज तुगलक द्वारा चलाई गई। यह एक प्रकार की हुंडी थी, जिसकी सहायता से राजकीय सिपाही राज्य के अधिकारियों से अपना वेतन प्राप्त करते थे।
- ताश घड़ियाल और जल घड़ी – फिरोज तुगलक ने इसका अविष्कार किया।
- दार उल शफा – फिरोज तुगलक द्वारा रोगों की चिकित्सा सुविधा के लिए इस खैराती दवा खाने की स्थापना की गई।
- फिरोज शाह तुगलक द्वारा भूमि अनुदान के रूप में सैनिकों को वेतन दिए जाने की प्रथा को पुनर्जीवित करना, सिंचाई की सुविधा देना। फिरोज तुगलक के शासनकाल में पहली बार इतिहास में राज्य की ओर से सिंचाई की सुविधा देना कर्तव्य माना गया।
- अष्टभुजाकार मकबरे बने- फिरोज तुगलक के समय अष्टभुजाकार मकबरे बनाये गए।
- सबसे पहले उलेमा को अधिक प्रधानता देने वाला- फिरोजशाह तुगलक उलेमा को प्रधानतादेने वाला पहला सुल्तान था, जिसने राज्य को शरीयत के अनुसार चलने का प्रयास किया।
- सर्वप्रथम लोक निर्माण विभाग की स्थापना- फिरोजशाह तुगलक द्वारा सर्वप्रथम लोक निर्माण विभाग की स्थापना की गई।
- सेना में वंशानुगत नियुक्ति का नियम प्रचलित करने वाला- फिरोजशाह तुगलक सेना में वंशानुगत नियुक्ति का नियम प्रचलित करने वाला प्रथम मध्यकालीन सुल्तान था।
- फिरोज तुगलक के काल में विद्रोह हुआ- महदवियों का विद्रोह फिरोज तुगलक के काल में हुआ था।
- फिरोज तुगलक ने दो बार दर्शन किए- बहराइच स्थित योद्धा संत सालार मसूद गाजी के मकबरे का फिरोज तुगलक ने दो बार दर्शन किए।
- फिरोजशाह तुगलक अनुयाई था – फिरोजशाह तुगलक उदारवादी सूफी संत अजोधन के फरीदुद्दीन गंज शकर का अनुयाई था।
- फिरोज तुगलक ने मुस्लिम स्त्रियों पर प्रतिबंध लगाया – दिल्ली के सुल्तानों में फिरोज तुगलक ने सर्वप्रथम मुस्लिम स्त्रियों को दिल्ली के बाहर स्थित मजारों पर जाने पर प्रतिबंध लगाया।
- फिरोजशाह तुगलक ने हिंदुओं को संज्ञा दी- फिरोजशाह तुगलक ने हिंदुओं को जिम्मी की संज्ञा दी।
- दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक स्वयं को खलीफा का नायब ( प्रतिनिधि ) घोषित करने वाला – फिरोज तुगलक दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था जिसने स्वयं को खलीफा का नायब ( प्रतिनिधि ) घोषित किया ।
- फिरोज तुगलक का सबसे लंबा अंतिम सैन्य अभियान- थट्टा सिंध सैन्य अभियान फिरोज तुगलक का सबसे लंबा अंतिम सैन्य अभियान था।
- डॉ ईश्वरी प्रसाद के अनुसार- सिंध का अभियान फिरोज तुगलक की मूर्खता और कूटनीतिक अदूरदर्शिता का अपूर्व उदाहरण है।
- राज्यपाल का एकमात्र विद्रोह-शमशुद्दीन दमगानी का विद्रोह फिरोजशाह तुगलक के समय का राज्यपाल का एकमात्र विद्रोह था।
- फिरोज तुगलक ने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया- फिरोज तुगलक ने फतेह खान के पुत्र तुगलक शाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
- फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु हुई- फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु 21 सितंबर 1388 को हुई।
इन्हें भी देखें –
- भारत में परिवहन | Transport System in India
- पाषाण काल STONE AGE | 2,500,000 ई.पू.- 1,000 ईसा पूर्व
- Magadha Empire मगध साम्राज्य (1700-322 BC)
- जनपद एवं महाजनपद Janpadas and Mahajanapadas (600-325 ईसा पूर्व)
- Mahaveer Swami महावीर स्वामी (540-468 BC)
- पाषाण काल STONE AGE | 2,500,000 ई.पू.- 1,000 ईसा पूर्व
- जलालुद्दीन फिरोज खिलजी | JALALUDDIN FIROJ KHILJI |1290-1296 ई.
- कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी : QUTB-UD-DIN MUBARAK SHAH KHILJI (1316-1320)
- Bimbisara बिम्बिसार (546 – 494 ईसा पूर्व)
- कोपेन के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश | वर्गीकरण
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