वर्तनी एक शब्द है जिसका अर्थ है एक भाषा में शब्दों को सही ढंग से उच्चारण और लिखना। हर भाषा में वर्तनी के नियम होते हैं जो शब्दों के उच्चारण और लिखने को सही बनाते हैं। अच्छी वर्तनी से एक व्यक्ति की भाषा और व्यवहार में सुधार होता है जो उसके संवाद को मजबूत बनाता है। इसे हिज्जी और अक्षर भी कहा जाता है।
संस्कृत भाषा के मूल श्लोकों को अदधृत करते समय संयुक्ताक्षर पुरानी शैली से भी लिखे जा सकेंगे। जैसे:संयुक्त, चिह्न, विद्या, चच्चल, विद्वान, वृद्ध, द्वितीय, बुद्धि आदि। किंतु यदि इन्हें भी उपर्युक्त नियमों के अनुसार ही लिखा जाए तो कोई आपत्ति नहीं होगी।
वर्तनी के उदाहरण
‘ख’ को लिखते समय यह ध्यान देना चाहिए कि इसे ‘रव’ ना लिखें अन्यथा शब्द का अर्थ भी बदल जाएगा; जैसे-
खाना – भोजन करना
रवाना – जाना
वर्तनी का महत्व
किसी भाषा की एकरूपता बनाए रखने के लिए तथा जनमानस के भाषा प्रयोग में होने वाली विकृतियों से बचने के लिए वर्तनी का प्रयोग अति आवश्यक है और इसका प्रयोग सभी के लिए अनिवार्य है ।
शुद्ध वर्तनी का क्या अर्थ है
शुद्ध वर्तनी का अर्थ है – शब्दों में मात्राओं का सही प्रयोग करके सही शब्द लिखना। जैसे अकाश – आकाश, इद – ईद, उष्मा- ऊष्मा आदि।
वर्तनी के नियम
‘ये‘ और ‘ए‘ का प्रयोग अव्यय, क्रिया तथा शब्दों के बहुवचन बनाने में किया जाता है। ये प्रयोग क्रियाओं के भूतकालिक रूपों में होते हैं। लोग इन्हें कई रूप में लिखते हैं-आई-आयी, आए-आये, गई-गयी, गए-गये, हुआ-हुवा, हुए-हुवे इत्यादि। एक क्रिया की दो अक्षरी प्रवृत्ति आज भी चल रही है। इस सम्बन्ध में कुछ नियम इस प्रकार हैं-
- जिस क्रिया के भूतकालिक पुल्लिंग एकवचन रूप में याअंत में आता है, उसके बहुवचन का रूप ये और तद्नुसार एकवचन स्त्रीलिंग में यी का प्रयोग होना चाहिए।
- जिस क्रिया के भूतकालिक पुल्लिंग एकवचन के रूप के अंत में आ जाता है, उसके पुल्लिंग बहुवचन में ‘ए’ का प्रयोग होगा और स्त्रीलिंग एकवचन में ‘ई’। हुआ का स्त्रीलिंग एकवचन हुई, बहुवचन ‘हुईं’ और पुल्लिंग बहुवचन हुए’ होगा और कुछ नहीं।
- दे, ले, पी, कर-इन चार धातुओं को ह्रस्व इकार कर फिर दीर्घ करने पर इए प्रत्यय लगाने पर उनकी विधि क्रियाएँ इस प्रकार बनती हैं-
- दे (दि) + ज् + इए = दीजिए
- ले (लि) + ज् + इए = लीजिए
- पी + ज् + इए = पीजिए
- कर (कि) + ज् + इए = कीजिए.
- अव्यय को प्रथक रखने के लिए ‘ए’ का प्रयोग होना चाहिए। जैसे-इसलिए, चाहिए। सम्प्रदान विभक्ति के लिए’ में भी ‘ए’ का प्रयोग होना चाहिए-श्याम के लिए कपड़े लाओ।
- विशेषण शब्द का अन्त जैसा हो, वैसा ही ‘ये’ तथा ‘ए’ का प्रयोग होना चाहिए। जैसे-‘नया’ शब्द का बहुवचन ‘नये’ तथा इसका स्त्रीलिंग शब्द ‘नयी’ होगा। इसी प्रकार ‘रोता हुआ’ आदि शब्द है तो बहुवचन में रोते हुए’ तथा स्त्रीलिंग में रोती हुई’ होगा।
इन नियमों से हमें यह पता चलता है कि भूतकालिक क्रियाओं में ‘ये’ तथा अव्ययों में ‘ए’ न का प्रयोग होता है। विशेषण का रूप अंतिम वर्ण के अनुसार ‘ये’ तथा ‘ए’ होना चाहिए।
- संस्कृत मूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी में सामान्य रूप में संस्कृत रूप का ही प्रयोग होना चाहिए। परन्तु जिन शब्दों के प्रयोग में हलंत् वाला चिह्न, प्रयोग से हट गया है, उसमें हलन्त् का प्रयोग न किया जाए। जैसे-सम्मान, विद्वान, भगत, भगवान आदि। संधि तथा छंद के प्रयोग को स्पष्ट करने के लिए इनके साथ ‘हलंत’ का प्रयोग अनिवार्य है। जैसे-जगत् + नाथ।
- वर्ग के अंतिम वर्ण के बाद उसी वर्ग के अन्य अक्षरों (शेष चार) में से किसी का प्रयोग हो तो ‘अनुस्वार’ का ही प्रयोग होना चाहिए-वंदना, दशरथ नंद नंदन, संत, गंगा, कंपन, चंपक, कंबल आदि।
- नहीं, मैं, हैं में इत्यादि के ऊपर लगी मात्राओं के अतिरिक्त शेष आवश्यक स्थानों पर ‘चन्द्र बिन्दु’ का ही प्रयोग करना चाहिए अन्यथा हंस और हँस तथा अँगना और अंगना का भेद स्पष्ट न हो सकेगा।
- अरबी-फारसी’ के शब्द जो हिन्दी के अंग बन चुके हैं तथा जिनकी ध्वनियों का हिन्दी में परिवर्तन हो चुका है, उन्हें हिन्दी-रूप में ही स्वीकार किया जाये। जैसे-जरूर, कागज आदि। किन्तु जहाँ उसका प्रयोग विदेशी रूप में ही होता है, वहाँ उनके हिन्दी रूपों में आवश्यक स्थानों पर नुक्ते लगाए जायें। जैसे-फाका, साज़िश, राज़।
- अंग्रेजी के जिन शब्दों में अर्द्ध ‘ओ’ की ध्वनि का प्रयोग हो वहाँ हिन्दी में उनके अभीष्ट रूप का प्रयोग करते समय ‘आ’ अर्द्धचन्द्र का प्रयोग किया जाये। जैसे-डॉक्टर, हॉबी, स्टॉल, कॉलेज, मॉल आदि।
- संस्कृत के जिन शब्दों में विसर्ग’ का प्रयोग होता है, शुद्ध रूप में उनके हिन्दी प्रयोग की दशा में विसर्ग का प्रयोग अवश्य किया जाये। जैसे-स्वांतः सुखाय, दुःख। किन्तु उस शब्द के ‘तद्भव’ रूप में विसर्ग का लोप होने की दशा में विसर्ग का प्रयोग आवश्यक नहीं।
- हिन्दी में ‘ऐ’ ओर औ’ का प्रयोग दो प्रकार की ध्वनियों को प्रयोग करने के लिए होता है। पहले वर्ग की ध्वनियाँ है’, ‘और’ ‘आदि’ में हैं तथा दूसरे प्रकार की ‘गवैया’, ‘कौआ’ आदि।
साधारण प्रचलित अशुद्ध वर्तनियाँ
हिन्दी में बहुत से शब्द हैं जिनकी वर्तनी साधारणतः त्रुटिपूर्ण लिखी जाती है। इन वर्तनियोँ के प्रिण्ट मीडिया में उपस्थित होने से साधारण व्यक्ति इन्हें ही शुद्ध मानने लगता है।
अशुद्ध | शुद्ध |
---|---|
अप्रसंगिक | अप्रासंगिक |
अनाधिकार | अनधिकार |
अनेकों | अनेक |
अन्तःराष्ट्रीय | अन्तर्राष्ट्रीय |
अन्तराष्ट्रीय | अन्तरराष्ट्रीय |
अन्तरजाल | अन्तर्जाल |
उज्जवल | उज्ज्वल |
चिन्ह | चिह्न |
अहिल्या | अहल्या |
पूज्यनीय | पूजनीय |
पूज्यास्पद | पूजास्पद |
पुरुस्कार | पुरस्कार |
सप्ताहिक | साप्ताहिक |
अतिश्योक्ति | अतिशयोक्ति |
आर्शीवाद | आशीर्वाद |
मैंनें | मैंने |
रूपया | रुपया |
रुप | रूप |
क्रपा | कृपा |
विरहणी | विरहिणी |
शुश्रुषा | शुश्रूषा |
सूर्पनखा | शूर्पनखा |
सम्राज्य | साम्राज्य |
सहस्त्र | सहस्र (हजार) |
शारिरिक | शारीरिक |
देहिक | दैहिक |
अध्यात्मिक | आध्यात्मिक |
वृष्टी | वृष्टि |
निरपराधी | निरपराध |
प्रमाणिक | प्रामाणिक |
माधुर्यता | माधुर्य, मधुरता |
राजनैतिक | राजनीतिक |
व्यवहरित | व्यवहृत |
वैधव्यता | वैधव्य |
षष्ठम | षष्ठ |
सौन्दर्यता | सुन्दरता |
केन्द्रिय | केन्द्रीय |
सौजन्यता | सौजन्य |
अन्तर्ध्यान | अन्तर्धान |
उपलक्ष | उपलक्ष्य |
घनिष्ट | घनिष्ठ |
अत्याधिक | अत्यधिक |
अगामी | आगामी |
आद्र | आर्द्र |
वाल्मीकी | वाल्मीकि |
बिमार | बीमार |
अध्यन | अध्ययन |
मैथली | मैथिली |
पुन्य | पुण्य |
संसारिक | सांसारिक |
अन्ताक्षरी | अन्त्याक्षरी |
परिक्षा | परीक्षा |
प्रोद्योगिकी | प्रोद्यौगिकी |
भगीरथी | भागीरथी |
राज्यमहल | राजमहल |
रावन | रावण |
पहूँचना | पहुँचना |
महत्वपूर्ण | महत्त्वपूर्ण |
हिन्दु | हिन्दू |
उपरोक्त | उपर्युक्त |
कालीदास | कालिदास |
पत्नि | पत्नी |
उन्नती | उन्नति |
परिस्थिती | परिस्थिति |
प्रसंशा | प्रशंसा |
ब्रम्ह | ब्रह्म |
भैय्या | भैया |
परिक्षा | परीक्षा |
प्रदर्शिनी | प्रदर्शनी |
भाष्कर | भास्कर |
सुर्य | सूर्य |
गोपिनी | गोपी |
भुजंगिनी | भुजंगी * |
अनाथिनी | अनाथा |
सुलोचनी | सुलोचना |
सुस्वागत | स्वागत |
निरपराधी | निरपराध |
विहंगिनी | विहंगी * |
शताब्दि | शताब्दी |
अक्षोहिणी | अक्षौहिणी |
निर्दोषी | निर्दोष |
निर्दयी | निर्दय |
निर्गुणी | निर्गुण |
आंख | आँख |
सन्यासी | संन्यासी |
श्रीमति | श्रीमती |
कृप्या | कृपया |
इंजनियरिंग, इंजिनीयरंग | इंजीनियरिंग (अभियान्त्रिकी) |
बढाकर | बढ़ाकर |
ब्लाग, ब्लोग | ब्लॉग |
बाक्स | बॉक्स |
पन्डित | पण्डित |
विन्डो | विण्डो |
विन्डोज़ | विण्डोज़ |
फॉन्ट, फोन्ट, फौन्ट | फॉण्ट |
कल्ब | क्लब |
दवाईयाँ | दवाइयाँ |
रोड़ | रोड |
मोबाईल | मोबाइल |
हस्पताल | अस्पताल |
आईना | आइना |
आईफोन | आइफोन |
आईपैड | आइपैड |
गल्ती | गलती |
ढ़ाबा | ढाबा |
कृप्या | कृपया |
श्रृंखला | शृंखला |
श्रृंगार | शृंगार |
ग्यान | ज्ञान |
स्त्रोत | स्रोत (Source) |
स्त्रोत | स्तोत्र (स्तुति) |
आफ | ऑफ |
कोलेज | कॉलेज |
लिनेक्स, लाइनेक्स | लिनक्स |
विदेशी ध्वनियाँ
उर्दू शब्द-
उर्दू से आए अरबी -फ़ारसी मूलक वे शब्द जो हिन्दी के अंग बन चुके हैं और जिनकी विदेशी ध्वनियों का हिन्दी ध्वनियों में रुपांतर हो चुका है, हिन्दी रूप में ही स्वीकार किए जा सकते हैं। जैसे:- कलम क़िला दाग़ आदि (क़लम, क़िला दाग़) नहीं)। पर जहाँ उनका शुद्ध विदेशी रूप में प्रयोग अभीष्ट हो अथवा उच्चारणगत भेद बताना आवश्यक हो, वहाँ उनके हिन्दी में प्रचलित रुपों में यथास्थान नुक्ते लगाए जाएँ। जैसे:-खाना: ख़ाना, राज: राज़ फन: फ़न आदि।
अंग्रेज़ी शब्द
अंग्रेज़ी के जिन शब्दों में अर्धविवृत ‘ओ’ ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके शुद्ध रूप का हिन्दी में प्रयोग अभीष्ट होने पर ‘आ’ की मात्रा के ऊपर अर्धचंद्र का प्रयोग किया जाए (ऑ) जहाँ तक अंग्रेज़ी और अन्य विदेशी भाषाओं से नए शब्द ग्रहण करने और उनके देवनागरी लिप्यंतरण का संबंध है, अगस्त-सितंबर, 1962 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा वैज्ञानिक शब्दावली पर आयोजित भाषाविदों की संगोष्ठी में अंतरराष्ट्रीय शब्दावली के देवनागरी लिप्यंतरण के संबंध में की गई सिफ़ारिश उल्लेखनीय है।
उसमें कहा गया है कि अंग्रेज़ी शब्दों का लिप्यंतरण इतना क्लिष्ट नहीं होना चाहिए कि उसके वर्तमान देवनागरी वर्णों में अनेक नए संकेत-चिह्न लगाने पड़ें। अंग्रेज़ी शब्दों का देवनागरी लिप्यंतरण मानक अंग्रेज़ी उच्चारण के अधिक-से अधिक निकट होना चाहिए।
द्विधा रूप वर्तनी
हिन्दी में कुछ प्रचलित शब्द ऐसे हैं जिनकी वर्तनी के दो-दो रूप बराबर चल रहे हैं। विद्वत्समाज में दोनों रुपों की एक सी मान्यता है। कुछ उदाहरण हैं:- गरदन/गर्दन, गरमी/गर्मी, बरफ़/बर्फ़, बिलकुल/बिल्कुल, वापस/वापिस, बीमारी/बिमारी, दुकान/दूकान, आखिरकार/आखीरकार, चिहन/चिन्ह आदि।
अन्य नियम
- शिरोरेखा का प्रयोग प्रचलित रहेगा।
- फुलस्टॉप (पूर्ण विराम) को छोड़कर शेष विराममादि चिह्न वही ग्रहण कर लिये गए हैं अंग्रेज़ी में प्रचलित हैं। यथा:- (हाइफ़न/योजक चिह्न), (डैश/निर्देशक चिह्न), (कोलन एंड डैश/विवरण चिह्न) (कोमा/अल्पविराम), (सेमीकोलन/अर्धविराम),: (कोलन/उपविराम), ? (क्वश्चन मार्क/प्रश्न चिह्न) ! (साइन ऑफ़ इंटेरोगेशन/विस्मयसूचक चिह्न), (अपोस्ट्राफ़ी/ऊर्ध्व अल्प विराम), ” ” (डबल इंवर्टेड कोमाज़/उद्धारणचिह्न), () [] (तीनों कोष्ठक),
(…लोप चिह्न), (संक्षेपसूचक चिह्न) (हंसपद)।
- विसर्ग के चिह्न को ही कोलन का चिह्न मान लिया गया है। पर दोनों में यह अंतर रखा गया है कि विसर्ग वर्ण से सटाकर और कोलन शब्द से कुछ दूरी पर रहे।
- पूर्ण विराम के लिए खड़ी पाई (।) का ही प्रयोग किया जाए। वाक्य के अंत में बिंदु (अंग्रेज़ी फुलस्टॉप) का नहीं।