कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी | 1316-1320 ई.

दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का शासक कुतुबुद्दीन मुुुबारक खिलजी ने सन 1316 ई. से 1320 ई. तक दिल्ली में शासन किया। कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी के विश्वास-पात्र वजीर और समलैंगिक साथी खुसरो खां ने 9 जुलाई,1320 ई. को सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी की हत्या करके सिंहासन पर अपना अधिकार कर लिया।

कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी का संक्षिप्त परिचय

दिल्ली सल्तनत का 15 वा सुल्तान – कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी
शासनावधि19 अप्रैल 1316 ई. – 9 जुलाई 1320 ई.
राज्याभिषेक19 अप्रैल 1316 ई.
पूर्ववर्तीशहाबुद्दीन उमर
उत्तरवर्तीखुसरो खान
पूरा नामक़ुतुबुद्दीन मुबारक़ शाह ख़िलजी
निधन9 जुलाई 1320 ई. हजार सुतुन महल, दिल्ली
राजवंशख़िलजी वंश
पिताअलाउद्दीन खिलजी
धर्मइस्लाम

कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी का जीवन एवं शासन व्यवस्था

कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी 19 अप्रैल 1316 ई. को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा और 1316 ई. से 1320 ई. तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। गद्दी पर बैठने के बाद कुतुबुद्दीन मुबारक ने देवगिरि के राजा हरपाल देव पर आक्रमण कर उनको युद्ध में पराजित कर दिया। तथा अपनी क्रूरता का परिचय देते हुए उसने हरपाल देव को बंदी बनाकर उनकी खाल उधड़वा दी। इसके पश्चात 1318 ई. में देवगिरी को जीत लिया उसके बाद वारंगल अभियान के तहत वहां के शासक प्रताप रूद्र देव को पराजित कर वारंगल को भी जीत लिया।

इस क्रूूर शासक ने अपने शासन काल में गुजरात के विद्रोह का भी दमन किया था। अपने अंतिम अभियान के तहत उसने पाण्डेय वंश पर चढ़ाई कर दी और उसके वजीर खुशरो खां ने पाण्डेय वंश के शहरों और नगरों को लूट लिया। कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी का विजयों के अतिरिक्त अन्य किसी भी विजय का वर्णन नहीं मिलता है। क्योंकि उसका वजीर और समलैंगिक साथी खुसरो खां ने उसका दिमाग भोग विलास की तरफ मोड़ दिया, जिससे अपना समय सुरा तथा सुन्दरियों में बिताने लगा। उसका वजीर खुसरो खान हिन्दू धर्म का परिवर्तित मुसलमान था।

क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी को नग्न स्त्री-पुरुषों की संगत पसन्द थी। अपनी इसी संगत के कारण कभी-कभी वह राज्य दरबार में स्त्री का वस्त्र पहन कर भी आता था। ‘बरनी’ के अनुसार मुबारक खिलजी कभी-कभी नग्न होकर दरबारियों के बीच दौड़ा करता था।

उसकी क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी ने अपने सैनिकों को छः माह का अग्रिम वेतन दिया था। विद्धानों एवं महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की छीनी गयी जागीरें उन्हें वापस कर दीं। अलाउद्दीन ख़िलजी की कठोर दण्ड व्यवस्था एवं बाज़ार नियंत्रण आदि व्यवस्था को उसने समाप्त कर दिया था। उसने ‘अल इमाम’, ‘उल इमाम’ एवं ‘ख़िलाफ़़त-उल्लाह’ की उपाधियाँ धारण की थीं। उसने ख़िलाफ़़त के प्रति भक्ति को हटाकर अपने को ‘इस्लाम धर्म का सर्वोच्च प्रधान’ और ‘स्वर्ण तथा पृथ्वी के अधिपति का ‘ख़लीफ़ा घोषित किया था। साथ ही उसने ‘अलवसिक विल्लाह’ की धर्म की प्रधान उपाधि भी धारण की थी।

कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी का वजीर खुशरो खां अलाउद्दीन खिलजी द्वारा मालवा को जीत लेने के बाद उसके सैनिकों द्वारा पकड़ कर लाये जाने वाले गुलामों में से एक गुलाम था। खुशरो खां प्रारंभ में बरादु नामक हिन्दू परिवार से था। परन्तु उसको अन्य हिन्दू गुलामों की तरह ही जबरजस्ती इस्लाम धर्म कुबूल कराया गया और उसका नाम हसन रखा गया। इस्लाम धर्म कुबूल करने वालों में उसका भाई भी था जिसका नाम हुसामुद्दीन रखा गया।

इन दोनों भाइयों हसन और हुसामुद्दीन के साथ सुल्तान मुबारक खिलजी समलैंगिक सम्बन्ध बनाता था। सुल्तान मुबारक खिलजी ने समलैंगिक साथी के रूप में हसन को प्राथमिकता दिया और उसके अनुपस्थित में उसके भाई के साथ सम्बन्ध बनाता था। सुल्तान मुबारक खिलजी का हसन के साथ बहुत ही गहरा रिश्ता बन गया था। इतिहासकार बरनी इस बारे में लिखते हैं कि, सुल्तान मुबारक खिलजी हसन पर इतना मोहित हो गया था, कि वह एक पल के लिए भी उससे अलग नहीं होना चाहता था। सुल्तान मुबारक खिलजी के समलैंगिक रिश्ते के बारे में सभी को पता था। सुल्तान मुबारक खिलजी और हसन सार्वजनिक रूप से दरबार में सबके सामने गले मिलते थे और चुंबन का आदान-प्रदान भी करते थे।

मुबारक खिलजी ने हसन को मलिक काफूर की पूर्व जागीर सौंप दिया तथा इसके साथ खुसरो खां की उपाधि दिया। इसके एक वर्ष के अन्दर ही उसने खुसरो खाँ को पदोन्नत कर वजीर बना दिया। धीरे-धीरे वजीर खुशरो खां (हसन) सुल्तान मुबारक खिलजी का भरोसा जीतता गया और शासन की सभी जिम्मेदारियां अपने हाथ में लेता गया। सुल्तान मुबारक खिलजी भी अपने वजीर खुशरो खां पर पूरी तरह निर्भर हो गया। फिर एक दिन वजीर खुशरो खां ने षड्यंत्र के तहत 9 जुलाई 1320 ई. को सुल्तान मुबारक शाह की हत्या कर दिया।

इसके पश्चात उसने अलाउद्दीन खिलजी के बचे हुए पुत्रों को भी ढूढ़-ढूढ़ कर मौत के घाट उतार दिया। उसने खिलजी वंश के किसी भी वारिस को जिन्दा नहीं छोड़ा। इस प्रकार उसने दिल्ली सल्तनत की गद्दी को खाली कर दिया। तत्पश्चात उसने दबाव पूर्वक सभी का समर्थन जुटा कर खुद को दिल्ली सल्तनत का सुल्तान घोषित कर दिया। हालाँकि वह सिर्फ दो महीने (10 जुलाई 1320 ई. से 5 सितंबर 1320 ई. तक) ही शासन कर पाया। खुशरो खां दिल्ली सल्तनत पर शासन खिलजी वंश के अंतर्गत ही किया परन्तु वह खिलजी वंश का नहीं था बल्कि अलाउद्दीन खिलजी द्वारा मालवा विजय के दौरान जीत कर लाया गया गुलाम था।

खिलजी वंश का अंतिम शासक कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी था, जिसकी हत्या खुशरो खां कर देता है। तथा उसके वंश के सभी उत्तराधिकारियों (अलाउद्दीन खिलजी के सभी पुत्रों) का भी क़त्ल कर देता है। खुशरो खां के शासक बनने के दो महीने बाद ही उसकी सेना के एक कबिले में विद्रोह हो जाता है। 5 सितंबर 1320 ई. को कुलीन मलिक तुगलक के नेतृत्व वाले विद्रोहियों के एक समूह ने सुल्तान खुशरो खां को सिंहासन से हटा दिया।

इस विद्रोह का एक नेता जो पहले सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी का सेनापति था, ने 8 सितंबर 1320 ई. को सुल्तान खुशरो खां की हत्या कर दिया और सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले लिया। इसके पश्चात वह एक दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत एक नए राजवंश तुगलक वंश की स्थापना करता है और गयासुद्दीन तुगलक के नाम से दिल्ली सल्तनत पर शासन करने लगता है।

कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • अलाउद्दीन के मृत्यु के बाद मालिक काफूर ने अलाउद्दीन के नवजात शिशु शहाबुद्दीन उमर को शासक बना दिया और स्वयं सत्ता का उपभोग करने लगा।
  • लेकिन, मालिक काफूर की हत्या कर दी गई और मुबारक शाह खिलजी को शासक बनाया गया।
  • कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी 1316 ई. को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसे नग्न स्त्री, पुरुष की संगत पसंद थी।
  • मुबारक शाह खिलजी कभी-कभी राजदरबार में स्त्रियों का वस्त्र पहनकर आ जाता था।
  • मुबारक शाह खिलजी कभी-कभी नग्न होकर दरबारियों के बीच आ जाता था।
  • मुबारक शाह खिलजी ने खलीफा की उपाधि धारण की थी।
  • मुबारक शाह खिलजी के वजीर  खुशरों खां ने 9 जुलाई, 1320 ई. को मुबारक शाह खिलजी की हत्या कर दी और स्वयं दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।
  • खुशरों खां ने पैगम्बर के सेनापति की उपाधि धारण की।
  • मुबारक शाह खिलजी का सेनापति गयासुद्दीन तुगलक बाद में खुशरो खां की हत्या कर देता है और गद्दी पर बैठ जाता है और एक नए वंश तुगलक वंश की स्थापना करता है और इस प्रकार खिलजी वंश का अंत हो जाता है

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