भारत में उद्योग, अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहां विभिन्न क्षेत्रों में विकसित उद्योग योजनाएं और उत्पादों के निर्माण में सक्रिय हैं, जो रोजगार, निर्माण, और नवाचार को प्रोत्साहित करती हैं। विभिन्न उद्योगों जैसे कि खाद्य प्रसंस्करण, विनिर्माण, तकनीकी उत्पाद, और सेवाएं यहां प्रमुख हैं, जो देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने में योगदान करते हैं। उद्योग क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती और स्थिरता के साथ पुनर्निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मानवीय क्रियाओं का विशेष क्षेत्र जिसमें सामान का विशाल मात्रा में निर्माण या उत्पादन होता है या फिर बड़े पैमाने में सेवाएं प्रदान की जाती हैं, उसे उद्योग कहा जाता है। इन उद्योगों के कारण, उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होता है और वे सस्ते दामों पर उपलब्ध होते हैं, जिससे लोगों का जीवन सुविधाजनक बनता है।
उद्योगों के विकास के क्रम में यूरोप और उत्तरी अमेरिका में औद्योगिक क्रांति हुई, जिससे नए-नए उद्योग और व्यापार उत्पन्न हुए। इस युग में, नई तकनीकों और ऊर्जा साधनों के प्रवेश ने उद्योगों को विकसित किया।
उद्योगों के प्रमुख लाभों में यह शामिल है कि वे लोगों को सामाजिक सुरक्षा और सुविधाएं प्रदान करने के लिए सक्षम होते हैं, जिससे उनका जीवन स्तर सुधरता है। इससे नौकरी के अवसरों में वृद्धि होती है और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है। यद्यपि उद्योगों का विकास अनिवार्य है, परन्तु हमें इसके पर्यावरणीय प्रभावों का ध्यान रखना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उद्योगों के दो मुख्य पक्ष हैं –
- भारी मात्रा में उत्पादन (मॉस प्रोडक्सन) – इस पक्ष में, उद्योगों में मानक डिजाइन के उत्पाद भारी मात्रा में उत्पन्न किए जाते हैं। इसलिए, स्वतंत्र-संचालित मशीनरी और एसेम्बली लाइन आदि का प्रयोग किया जाता है। यह तकनीकी उन्नति और स्वच्छता में सुधार करने में मदद करती है, जिससे उत्पादों का निर्माण तेजी से होता है और उनका विपणि में अधिक मुकाबला किया जा सकता है।
- कार्य का विभाजन (डिविजन ऑफ़ लेबर) – इस पक्ष में, उद्योगों में कार्यों का विभाजन होता है, जिसे “डिविजन ऑफ़ लेबर” कहा जाता है। डिजाइन, उत्पादन, मार्केटिंग, प्रबंधन, आदि, ये सभी कार्य अलग-अलग व्यक्तियों या समूहों द्वारा किए जाते हैं। इससे सभी कामकाजी विभाजन होता है और पेशेवर गतिविधियों में वृद्धि होती है। इसके अलावा, एक ही प्रकार के काम को विभिन्न विभागों में बांटा जाता है, जिससे प्रत्येक क्षेत्र में विशेषज्ञता और सुधार हो सकता है।
देश का औद्योगिक विकास | प्राचीन से आधुनिक काल तक
प्राचीन काल से ही विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों की सम्पन्नता के कारण भारत की गणना विश्व के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों में की जाती थी। परन्तु उस समय की उत्कृष्ट वस्तुओं का निर्माण भी कुटीर उद्योगों के स्तर पर ही किया जाता था। सूती एवं रेशमी वस्त्र, लौह इस्पात उद्योग एवं अन्य धातुओं से निर्मित वस्तुएं विदेशों में भी प्रसिद्धि प्राप्त कर रही थीं।
देश में औद्योगिक विकास की शुरुआत अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् ही हुआ और स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इसमें अभूतपूर्व प्रगति हुई। आज देश औद्योगिक विकास के मार्ग पर अग्रसर है। देश के प्रमुख निर्माण उद्योगों एवं उनकी अवस्थिति पर कच्चे मालों, भौतिक एवं मानवीय दशाओं आदि का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है और देश में ही अधिकांश उत्पादों का बाज़ार भी उपलब्ध है। संचार एवं परिवहन के साधन भी देश की औद्योगिक प्रगति में पर्याप्त सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
औद्योगिक आर्थिक क्रियाकलापों का वर्गीकरण
औद्योगिक आर्थिक क्रियाकलापों को मुख्यतः चार वर्गों में बांटा जा सकता है:
1. प्राथमिक क्षेत्र (प्राइमरी सेक्टर)
- परिभाषा: इसमें मुख्यतः कच्चे माल के निष्कर्षण से सम्बन्धित क्रिया कलाप आते हैं।
- उदाहरण: खनन (माइनिंग), कृषि आदि।
2. द्वितियक क्षेत्र (सेकेन्डरी सेक्टर)
- परिभाषा: इसमें तेल-शोधक कारखाने, निर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) से जुड़े उद्योग आते हैं।
- उदाहरण: उद्योग, निर्माण, उपकरणों का निर्माण आदि।
3. तृतियक क्षेत्र (टर्शियरी सेक्टर)
- परिभाषा: इसमें सेवाएं जैसे कानून, बैंक, स्वास्थ्य एवं उत्पादों के वितरण से सम्बन्धित उद्योग आते हैं।
- उदाहरण: वित्तीय सेवाएं, स्वास्थ्य सेवाएं, वितरण आदि।
4. चतुर्थक क्षेत्र
- परिभाषा: यह अपेक्षाकृत नवीन क्षेत्र है और इसमें ज्ञान आधारित उद्योग आते हैं।
- उदाहरण: अनुसंधान, डिजाइअन एवं विकास (R&D); कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग, जैवरसायन आदि।
ये चारों क्षेत्र औद्योगिक क्रियाकलापों को विभिन्न दृष्टिकोण से विभाजित करते हैं और इस प्रकार आर्थिक गतिविधियों को समझने में सहायक होते हैं। इनके अतिरिक्त एक पांचवा क्षेत्र का अस्तित्व भी माना जाता है जो बिना लाभ के कार्य करने का क्षेत्र है।
अतिरिक्त क्षेत्र
- परिभाषा: इसे बिना लाभ के कार्य करने का क्षेत्र माना जाता है।
- उदाहरण: अनुपयोगी सामग्री का पुनः प्रयोग, सामाजिक सेवाएं आदि।
उद्योगों के प्रकार
उद्योंगों को निम्न मुख्य प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है –
- कुटीर उद्योग
- परिभाषा: ये उद्योग छोटे स्तर पर स्थापित होते हैं और सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए काम करते हैं। इनमें विभिन्न विभागों में कामकाज की जाती है, जैसे की हाथकरघा, कला, और सौंदर्य निर्माण।
- उदाहरण: हस्तशिल्प, कला और शिल्प, ग्रामीण उद्योग
- सरकारी क्षेत्र के उद्योग
- परिभाषा: इन उद्योगों का स्वामित्व और प्रबंधन सरकार के पास होता है। इन्हें सामाजिक और आर्थिक कल्याण के लिए स्थापित किया जाता है।
- उदाहरण: रेलवे, डाकघर, स्वास्थ्य सेवाएं
- फुटलूज उद्योग
- परिभाषा: इन उद्योगों में खुदरा विपणी, होटल और रेस्तरां आदि आते है।
- उदाहरण: खुदरा विपणी, होटल और रेस्तरां
- पर्यटन उद्योग
- परिभाषा: इसमें यात्रा, आवास, भोजन, और समृद्धि के लिए सेवाएं शामिल होती हैं। इसमें पर्यटकों के आकर्षण के लिए भी काम किया जाता है।
- उदाहरण: होटल, पर्यटन गाइड सेवाएं
- फिल्म उद्योग
- परिभाषा: इसमें सिनेमा, टेलीविजन, और मीडिया उत्पन्न करने वाले उद्योग शामिल होते हैं।
- उदाहरण: बॉलीवुड, हॉलीवुड, टेलीविजन उत्पादन
- लघु उद्योग
- परिभाषा: ये उद्योग छोटे पैम्बर में स्थापित होते हैं और सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए काम करते हैं।
- उदाहरण: छोटे दुकान, हस्तशिल्प, कृषि-संबंधित उद्योग
ये उद्योगों के प्रकार भिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले विभिन्न प्रकार के उद्यमियों और व्यापारिक कार्यक्षेत्रों को समाहित करते हैं।
उद्योगों के आधार
उद्योगों के प्रकार, विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले विभिन्न उद्यमियों और व्यापारिक क्षेत्र मुख्यतः निम्न विषयों पर आधारित होते हैं।
- खेती पर आधारित उद्योग
- परिभाषा: इसमें खेतों में विभिन्न प्रकार के फसलों की उत्पादन और उनका प्रबंधन शामिल होता है।
- उदाहरण: अनाज उत्पादन, फल-सब्जी की खेती
- पशुओं पर आधारित उद्योग
- परिभाषा: इसमें पशुओं की पालना और उनसे मिलने वाले उत्पादों का विनिर्माण शामिल है।
- उदाहरण: गाय-बकरी पालन, डेयरी उत्पादन
- वन्यजन पर आधारित उद्योग
- परिभाषा: इसमें जंगली जीवों और वन्यजन संरक्षण, विकास और प्रबंधन के क्षेत्र में काम होता है।
- उदाहरण: वन्यजन उत्पाद, वन्यजन संरक्षण
- तकनीक पर आधारित उद्योग
- परिभाषा: इसमें तकनीकी उन्नति के आधार पर उत्पादन और सेवाओं का निर्माण और प्रबंधन होता है।
- उदाहरण: इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग, सॉफ़्टवेयर डेवेलपमेंट, टेक्नोलॉजी कम्पनीज़
उद्योगों का वर्गीकरण
उद्योगों को कच्चे माल, आकार एवं स्वामित्व के आधार पर निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-
कच्चे माल के आधार पर
उद्योगों को उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले कच्चे माल के प्रकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। जैसे – कृषि आधारित उद्योग अपने कच्चे माल के रूप में पौधे और पशु आधारित उत्पादों का उपयोग करते हैं। इसी प्रकार समुद्री आधारित उद्योग कच्चे माल आदि के रूप में समुद्र और महासागरों से प्राप्त उत्पादों का उपयोग करते हैं।
आकार के आधार पर
उद्योगों को निवेशित पूंजी की मात्रा, नियोजित लोगों की संख्या और उत्पादन की मात्रा के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। आकार के आधार पर उद्योगों को लघु एवं बड़े उद्योगों में वर्गीकृत किया जा सकता है। जैसे – ऑटोमोबाइल और भारी मशीनरी का उत्पादन बड़े पैमाने के उद्योग हैं। वे बड़ी मात्रा में उत्पादों का उत्पादन करते हैं, पूंजी का निवेश अधिक होता है और उपयोग की जाने वाली तकनीक बेहतर होती है जबकि कुटीर और घरेलू उद्योग छोटे पैमाने के उद्योग होते हैं जहां उत्पाद हाथ से निर्मित होते हैं और कम मात्रा में पूंजी और प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं।
स्वामित्व के आधार पर
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है –
- निजी क्षेत्र की कम्पनियाँ – निजी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली कम्पनियाँ व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूह द्वारा स्वामित्व और संचालित होती है।
- सार्वजनिक क्षेत्र या राज्य के स्वामित्व वाली कम्पनियाँ – सार्वजनिक क्षेत्र अथवा राज्य के स्वामित्व वाली कम्पनियाँ सरकार द्वारा स्वामित्व और संचालित होती हैं। जैसे – हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAIL) ।
- संयुक्त क्षेत्र की कम्पनियाँ- संयुक्त क्षेत्र की कम्पनियाँ का स्वामित्व और संचालन संयुक्त रूप से राज्य के द्वारा और व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूह द्वारा किया जाता है, जैसे- मारुति उद्योग लिमिटेड।
- सहकारी क्षेत्र की कम्पनियाँ – सहकारी क्षेत्र की कम्पनियाँ कच्चे माल के उत्पादकों या आपूर्तिकर्ताओं, श्रमिकों या दोनों के स्वामित्व वाली होती है और इनके द्वारा संचालित होती हैं। जैसे – अमूल इंडिया और इफको भारतीय किसान उर्वरक सहकारी समितियाँ।
भारतीय उद्योग
भारत में विभिन्न क्षेत्रों में कई प्रमुख उद्योगिक क्षेत्र हैं जो देश की औद्योगिक ऊर्जा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। प्रमुख भारतीय उद्योगों का नाम एवं उनका विवरण नीचे दिया गया है –
- लौह इस्पात उद्योग
- एल्युमिनियम उद्योग
- सूती वस्त्र उद्योग
- जूट उद्योग
- चीनी उद्योग
- काग़ज़ उद्योग
- सीमेंट उद्योग
- उर्वरक उद्योग
- कांच उद्योग
- चर्म उद्योग
- मोटरगाड़ी उद्योग
- रेल उपकरण उद्योग
- जलयान निर्माण उद्योग
- वायुयान निर्माण उद्योग
- अन्य उद्योग
- दवा निर्माण उद्योग
- अभियांत्रिकी उद्योग
- बिजली के सामान बनाने के उद्योग
- टेलीफोन उद्योग
- ऊनी वस्त्र उद्योग
भारतीय उद्योग का संक्षिप्त विवरण
भारतीय उद्योग का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है –
लौह इस्पात उद्योग
लौह इस्पात उद्योग देश के लिए एक महत्वपूर्ण आधारभूत उद्योग है। इसका शुरुआती इतिहास भारत में 1874 ई. में हुआ, जब बंगाल आयरन वर्क्स (BIW) को बराकर नदी के किनारे, कुल्टी (आसनसोल, पश्चिम बंगाल) में स्थापित किया गया था। इस कारख़ाने को बंगाल सरकार ने बंद होने पर अधिग्रहण किया और उसका नाम बराकर आयरन वर्क्स रखा गया।
1907 ई. में, स्वर्णरेखा नदी की घाटी में जमशेद जी टाटा द्वारा साकची (जमशेदपुर) में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (TISCO) की स्थापना की गई, जो आज भी एक महत्वपूर्ण इस्पात उद्योग कंपनी है।
24 जनवरी 1973 ई. को, 2,000 करोड़ की पूँजी के साथ, SAIL (Steel Authority of India) को दुर्गापुर, भिलाई, राउरकेला, बोकारो, बर्नपुर, सलेम एवं विश्ववेश्वरैया लौह इस्पात कारख़ाना को एक साथ मिलाकर संचालन की ज़िम्मेदारी दी गई। SAIL भारत की महारत्न कंपनी मानी जाती है, जो उद्यमिता और उत्पादकता में अपने अद्वितीय योगदान के लिए प्रसिद्ध है।
कोयला और लौह क्षेत्र के मध्य में स्थित जमशेदपुर भारत का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जहां उद्योग ने विकास की राह में अहम भूमिका निभाई है। इसके अलावा, भारत का पहला तटवर्ती इस्पात कारख़ाना विशाखापत्तनम (आंध्रप्रदेश) में स्थापित किया गया था, जो उत्तर में इस क्षेत्र की महत्वपूर्णता को बढ़ाता है।
भारत में लौह-इस्पात उद्योगों का विवरण
कंपनी | स्थान | लौह अयस्क प्राप्ति स्थान |
---|---|---|
TISCO | जमशेदपुर (झारखंड) | झारखंड के नोआमुंडी के खान, ओड़ीशा के गुरुमहिसानी एवं बादाम पहाड़ (मयूरभंज) |
भिलाई लौह व इस्पात संयंत्र (रूस के सहयोग से स्थापित) | छत्तीसगढ़ | डल्ली-राजहरा |
भारतीय लौह व इस्पात संयंत्र | बर्नपुर (पश्चिम बंगाल) | सिंहभौम (झारखंड) |
विश्वेश्वरैया लौह इस्पात संयंत्र | भद्रावाटी (कर्नाटक) | बाबाबुदान पहाड़ी (केम्मनगुंडी, कर्नाटक) |
दुर्गापुर (ब्रिटन के सहयाग से स्थापित) | पश्चिम बंगाल | नोआमुंडी |
राउरकेला (जर्मनी के सहयोग से स्थापित) | ओड़ीशा | क्योंझर |
सलेम इस्पात संयंत्र | तमिलनाडु | बाबाबुदान पहाड़ी |
पारादीप इस्पात संयंत्र | ओड़ीशा | क्योंझर |
लौह इस्पात उद्योग से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- सर्वप्रथम TISCO का उद्घाटन किया गया, जो 1907 ई. में मध्यप्रदेश के जमशेदपुर में जमशेद जी टाटा द्वारा किया गया था।
- 1973 ई. में SAIL (स्टील) की स्थापना हुई।
- सभी कंपनियों पर भारत सरकार का नियंत्रण था।
- तटीय क्षेत्र में लौह इस्पात केंद्र विशाखापट्टनम में स्थित है।
- कोयला व लौह क्षेत्र के मध्य स्थित केंद्र जमशेदपुर (M.P.) में स्थित है।
- विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील प्लांट (VISL) सार्वजानिक क्षेत्र का पहला कारखाना है, जिसे 1923 ई. में स्थापित किया गया।
एल्युमिनियम उद्योग
इस उद्योग के स्थानीयकरण में बॉक्साइट और विद्युत की उपलब्धता अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन उत्पादों की उपलब्धता प्रदेश की उद्योगिकरण क्षमता को सीधे प्रभावित करती है। इसलिए, उद्योग की स्थापना विशेष रूप से उन स्थानों पर हुई है जहां बॉक्साइट और विद्युत सस्ती में उपलब्ध होते हैं और कच्चा माल आसानी से पहुंचाया जा सकता है।
भारत में एल्यूमिनियम के पहले कारख़ाना की स्थापना 1937 ई. में जे. के. नगर, पश्चिम बंगाल में की गई थी, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उद्योग की आरंभिक स्थापना उपयुक्त सामग्रियों के प्राप्ति के आधार पर की गई थी।
नेशनल एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (NALCO) देश के सबसे बड़े समन्वित एल्यूमिनियम संयंत्र परिसर का गठन 7 जनवरी, 1981 ई. को हुआ था। इसका पंजीकृत कार्यालय भुवनेश्वर, ओड़ीशा में स्थित है, जो उच्च गुणवत्ता वाले एल्यूमिनियम उत्पादों की निर्माण में एक महत्वपूर्ण योगदान करता है।
भारत की प्रमुख एल्युमिनियम कंपनी
कंपनी | सहायक देश | प्रमुख केंद्र |
---|---|---|
BALCO | सोवियत संघ | कोरबा (छत्तीसगढ़) |
NALCO | फ्रांस | दामनजोड़ी, अंगुल (ओड़ीसा) |
HINDALCO | USA | रेणुकूट (UP), रायगढ़ (ओड़ीशा), मूरी (राँची) |
MALCO | इटली | चेन्नई, मेट्टूर, सलेम (तमिलनाडु) |
VEDANTA | जर्मनी | झारसुगुडा (ओड़ीशा) |
INDALCO | कनाडा | मूरी (झारखंड), अलवाय (केरल), JK नगर (पं. बंगाल) |
सूती वस्त्र उद्योग
सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे प्राचीन उद्योग है और यह देश का कृषि के बाद रोजगार प्रदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है। इसके बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं-
- भारत में आधुनिक ढंग से सूती वस्त्र उद्योग के पहले कारखाने की स्थापना सन 1818 में फोर्टग्लास्टर (कोलकाता) में हुई, पर यह असफल रहा।
- पहला सफल आधुनिक कारख़ाना 1854 ई. में मुंबई में कावसजी डाबर द्वारा खोला गया, जिसमें 1856 ई. से उत्पादन प्रारंभ हुआ।
- सूती वस्त्र उद्योग का सर्वाधिक केन्द्रीकरण महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में है। इसके अलावा अन्य प्रमुख राज्यों में इसका केंद्रीकरण है – पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, केरल, उत्तर प्रदेश।
- मुंबई को भारत के सूती वस्त्रों की राजधानी के उपनाम से जाना जाता है, जबकि कोयंबटूर को दक्षिण भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है और अहमदाबाद को ‘भारत का मैनचेस्टर’ कहा जाता है।
- कानपुर उत्तर भारत में सूती वस्त्र उद्योग का बड़ा केंद्र है, जिसे उत्तर भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है।
- भारत की सर्वाधिक सूती वस्त्र मिलें तमिलनाडु राज्य में स्थित हैं।
जूट उद्योग
जूट उद्योग के लिए जिन रेशों का प्रयोग किया जाता है उसे सोने का रेशा, अथवा “Golden Fiber” कहा जाता है। जूट के रेशों का उत्पादन करने में भारत को विश्व में प्रथम स्थान प्राप्त है। इसका उपयोग विभिन्न उद्योगों में किया जाता है, और यह एक महत्वपूर्ण कृषि और उद्योगिक समान है। 1855 ई. में, भारत में जूट उद्योग (Golden Fiber) का प्रथम कारख़ाना हुगली नदी के किनारे, रिशरा नामक स्थान पर लागाया गया था।
भारत में कुल जूट का सर्वाधिक उत्पादन पश्चिम बंगाल द्वारा किया जाता है, और इसके अलावा ओड़ीशा, असम, बिहार, मेघालय, त्रिपुरा, और आंध्र प्रदेश में भी जूट का उत्पादन होता है। भारत विश्व के 35% जूट के समानों का निर्माण करता है और दूसरा बड़ा निर्यातक राष्ट्र है।
1971 ई. में जूट निगम (Jute Corporation of India) की स्थापना हुई और 2009 में राष्ट्रीय जूट बोर्ड की स्थापना हुई, जो जूट उत्पादन, आंतरिक व्यापार, आयात और निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किए गए थे। ये कदम जूट उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
जूट उद्योग से संबधित प्रमुख स्थान
जूट उद्योग से संबधित राज्य | सम्बंधित राज्य में स्थित जूट उद्योग का स्थान |
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पश्चिम बंगाल | रिसरा, नौहाटी, टीटागढ़, बैरकपुर, हावड़ा, कोलकाता, मणिकपूर, बाँसबेरिया, वजबज |
आंध्र प्रदेश | गुंटूट, विशाखापत्तनम |
उत्तर प्रदेश | कानपुर, सहजनवा (गोरखपुर) |
बिहार | पूर्णिया, कटिहार, दरभंगा, समस्तीपुर |
जूट उद्योग से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- अन्तरराष्ट्रीय जुट संगठन की स्थापना 1984 ई. में हुई थी। इसका मुख्यालय ढाका (बांग्लादेश) में है।
- जूट उद्योग की पहली फैक्ट्री 1855 ई. में हुगली नदी के किनारे रिसरा नमक स्थान पर स्थित है।
- भारत विश्व में जूट का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
- भारत में जूट का उत्पादन सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल में होता है।
- जूट उत्पादन में पहले स्थान पर पश्चिम बंगाल, दूसरे स्थान पर ओडिशा तथा तीसरे स्थान पर आसाम है।
चीनी उद्योग
चीनी उत्पादन में भारत ब्राज़ील के बाद दूसरे स्थान पर है। भारत में आधुनिक चीनी उद्योग की शुरुआत 1903 ई. में बिहार में पहेली चीनी मिल की स्थापना के साथ हुई। हाल के दिनों में भारत में चीनी उद्योगों का दक्षिणी राज्यों तथा महाराष्ट्र में तेजी से विकास हुआ है, जिसके पीछे कई कारण हैं:
- अनुकूल जलवायु के कारण गन्ने के रस में सुक्रोज़ की अधिक मात्रा – भारत में उपयुक्त जलवायु गन्ने के उत्पादन के लिए है और यहां गन्ने के रस में सुक्रोज़ की अधिक मात्रा होती है, जो चीनी उत्पादन को बढ़ावा देता है।
- गन्ने की पेराई के लिये अपेक्षाकृत लंबी समायावधि – भारत में गन्ने की पेराई के लिए उपयुक्त और लंबी समायावधि होती है जो चीनी उत्पादन को बढ़ावा देती है।
- सहकारी समितियों की बेहतर कार्यप्रणाली – भारत में कई स्थानों पर सहकारी समितियों की बेहतर कार्यप्रणाली ने गन्ने के उत्पादन को बढ़ावा दिया है, जिससे उत्पादकों को और उचित मूल्य मिलता है।
चीनी उद्योग के राज्य | सम्बंधित राज्य में स्थित चीनी उद्योग का स्थान |
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उत्तर प्रदेश | देवरिया, भटनी, पड़रौना, गोरखपुर, गौरी बाजार, सिसवां बाजार, बस्ती, बलरामपुर, गोंडा, बाराबंकी, सीतापुर, हरदोई, विजनौर, मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, बुलंदशहर, कानपुर, फैजाबाड़ एवं मुजफ्फरनगर |
बिहार | मोतीहारी, सुगौली, मझौलिया, चनपटिया, नरकटीयागंज, मढौरा, सासामूसा, मोतीपुर, गोपालगंज, डालमियानगर, सारण, समस्तीपुर, दरभंगा, चंपारण, हसनपुर |
महाराष्ट्र | मनसद, नासिक, अहमदनगर, पुना, शोलापुर, कोल्हापुर |
पश्चिम बंगाल | तेलडांगा, पलासी, हावड़ा, मुर्शियाबाद |
पंजाब | हमीरा, फगवाड़ा, अमृतसर |
हरियाणा | जगधारी, रोहतक |
तमिलनाडु | अरकाट, मदुरै, कोयम्बूटूर, तिरुचिरापल्ली |
आंध्रप्रदेश | सीतापुरम, पीठापुरम, बेजवाड़ा, हास्पेट, सभाल कोट |
राजस्थान | गंगानगर, भूपाल सागर |
चीनी उद्योग से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- देश में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है, किन्तु चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य महाराष्ट्र है।
- चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश का स्थान महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर आता है।
- विश्व में ब्राज़ील में गन्ना और चीनी का उत्पादन सर्वाधिक होता है।
- विश्व में गन्ना और चीनी के उत्पादन में ब्राज़ील के बाद दूसरे स्थान पर भारत आता है।
- शकरकंद एवं चुकंदर से भी चीनी बनाई जाती है।
काग़ज़ उद्योग
इस उद्योग में कच्चे माल के रूप में सेलूलोस, मुलायम लकड़ी, बाँस, घास, गन्ने की खोई, और रद्दी कागज का प्रयोग होता है। इससे पेपर उत्पन्न होता है, जिसमें बहुत सारी अनुष्ठानिक और अर्थतंत्रिक उपयोगिता होती है। भारत में कागज निर्माण में सबसे अधिक बाँस का प्रयोग होता है, जो इस उद्योग के लिए महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक है।
1832 में, पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर में, पहले आधुनिक पेपर मिल की स्थापना हुई थी। हालांकि, इस मिल में लगाई गई मशीन सिर्फ मुलायम लकड़ी का उपयोग करती थी, जो भारत में उपलब्धता में कमी के कारण इसे बाहर से आयातित मुलायम लकड़ी से पेपर बनाने के लिए उपयोग करती थी।
कुछ वर्षों के बाद, तकनीकी विकास ने कठौर लकड़ी जैसे बाँस के उपयोग को संभव बनाया और इससे भारत में उपलब्ध बाँस की प्रचुरता के कारण आयात पर निर्भरता में कमी हुई। 1914 तक, पेपर बनाने में बाँस का उपयोग प्रचलित हुआ और पेपर उद्योग के विकास में बहुत तेजी आई।
महाराष्ट्र के बल्लारपुर में देश की सबसे बड़ी कागज़ मिल स्थित है और मध्यप्रदेश के नेपानगर में अखबारी कागज़ तथा होशंगाबाद में नोट छापने के कागज़ बनाने का सरकारी कारख़ाना है।
कागज उद्योग से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- कागज के उत्पादन में सबसे अधिक बांस का प्रयोग होता है।
- 1832 ई. में सर्वप्रथम आधुनिक पेपर मिल की स्थापना पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर में हुई।
- मध्यप्रदेश में नेपानगर अखबारी कागज के लिए प्रसिद्ध है।
- होशंगाबाद में नोटों (मुद्रा) का कागज बनता है।
- भारत की सबसे बड़ी कागज की मिल महाराष्ट्र के बल्लारपुर में है।
सीमेंट उद्योग
विश्व में सबसे पहले आधुनिक रूप से सिमेन्ट का निर्माण 1824 ई. में ब्रिटन के पोर्ट नामक स्थान पर किया गया था। भारत में आधुनिक ढंग से सिमेन्ट बनाने का पहला कारखाना 1904 ई. में मद्रास (चेन्नई) में लगाया गया था, जो असफल रहा। इसके बाद, 1912-13 की अवधि में इंडियन सिमेंट कंपनी लिमिटेड द्वारा गुजरात के पोरबंदर में कारखाने की स्थापना की गई, जिसमें 1914 ई. में उत्पादन प्रारंभ हुआ।
एसोसिएट सिमेंट कंपनी लिमिटेड (A.C.C) की स्थापना 1936 ई. में हुई थी। चीन के बाद, भारत सिमेंट का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में आंध्रप्रदेश सबसे बड़ा सिमेंट उत्पादक राज्य है।
सीमेंट उद्योग के प्रमुख केंद्र
सीमेंट उद्योग के राज्य | सम्बंधित राज्य में स्थित सीमेंट उद्योग |
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मध्य प्रदेश | सतना, कटनी, मैहर, जबलपुर, रतलाम,नीमच |
छत्तीसगढ | दुर्ग, मम्धार, जामुल |
आंध्र प्रदेश | कृष्णा, गुंटूर, विजयवाड़ा, कुर्नुल, विशाखापत्तनम |
उत्तर प्रदेश | चुर्क, डल्ला, चुनार |
ओड़ीशा | राजगंगपुर, हीराकुंड |
बिहार | बंजारी, डालमियानगर, कल्याणपुर |
तमिलनाडु | तुलुकापपट्टी, थलैयुथु, डालमियापुरम |
कर्नाटक | भद्रावती, शाहबाद, गुलबर्गा, बगलकोट |
झारखंड | सिंदरी, खेलारी, जपला, चाईबासा |
असोम | बोकाजन |
राजस्थान | लखेरी, चुरू, चित्तौड़गढ़, उदयपुर |
गुजरात | पोरबंदर, जामनगर, वेरावल, सिक्का |
जम्मू कश्मीर | बुयान, बुसोली |
उर्वरक उद्योग
रासायनिक उर्वरक में कच्चे माल के रूप में नेफ़्था, कोक, सल्फ्यूरिक अम्ल, अमोनियम सल्फेट, प्राकृतिक गैस, रॉक फॉस्फेट आदि का उपयोग होता है। इस उद्योग के माध्यम से उर्वरक उत्पादन किया जाता है, जो खेती में उपयोग होने वाले पोषक तत्वों को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
नीचे दिए गए बिन्दुओं में उर्वरक उद्योग से सम्बंधित और जानकारी दी गई है –
- देश में सुपर फॉस्फेट उर्वरक का पहला कारख़ाना 1906 ई. में तमिलनाडु के रानीपेट नामक स्थान पर स्थापित किया गया था। यह सुपर फॉस्फेट या SSP (Single Super Phosphate) उत्पन्न करने का कारख़ाना था, जो खाद्य फसलों को पोषण प्रदान करने के लिए उपयोग होता है।
- 1947 ई. में अमोनियम सल्फेट का पहला कारख़ाना केरल के अल्वाय नामक स्थान पर खोला गया था। अमोनियम सल्फेट एक और प्रमुख उर्वरक है जो नाइट्रोजन और सल्फर का स्रोत प्रदान करता है।
- भारतीय उर्वरक निगम की स्थापना 1951 ई. में की गई, जिसके तहत एशिया का सबसे बड़ा उर्वरक संयंत्र सिन्दरी में स्थापित किया गया।
- भारत में प्रति हेक्टर उर्वरक खपत में पंजाब पहला स्थान प्राप्त करता है और दूसरा एवं तीसरा स्थान क्रमश: आंध्रप्रदेश और हरियाणा का है।
- भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उर्वरक उपभोक्ता है, जिसका मतलब है कि देश उर्वरकों का बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है।
- उर्वरक (Fertilizer) के उत्पादन में भारत में पहले, दूसरे एवं तीसरे स्थान पर राज्यों का क्रम निम्नलिखित है –
- गुजरात
- तमिलनाडु
- उत्तरप्रदेश
- 1951 ई. में सिकंदरी, झारखण्ड में सार्वजनिक क्षेत्र का पहला उर्वरक कारखाना स्थापित किया गया था।
- भारत में उर्वरक का पहला निजी क्षेत्र का (Private) कारखाना 1906 ई. में रानीपेट तमिलनाडु में स्थापित किया गया।
प्रमुख रासायनिक उर्वरक उत्पादक राज्य
उर्वरक उद्योग के राज्य | सम्बंधित राज्य में स्थित उर्वरक उद्योग का स्थान |
---|---|
बिहार | बरौनी |
झारखंड | सिंदरी |
पश्चिम बंगाल | बर्नपुर, हल्दिया, खारदाह |
तमिलनाडु | नवेली, रानीपेट, ईन्नौर, कोयम्बूटूर, तुतिकोरिन, अवाड़ी |
गुजरात | कंडला, बड़ोंदरा, भावनगर |
आंध्र प्रदेश | रामागुंडम, विशाखापत्तनम, मौलाअली |
छत्तीसगढ़ | कोरबा, भिलाई |
कांच उद्योग
भारत में काँच उद्योग का केंद्रीयकरण रेल की सुविधा वाले स्थानों में देखा जा सकता है और इस उद्योग का विकास मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, और तमिलनाडु में हुआ है। यहां काँच का निर्माण कुटीर और कारख़ाना दोनों रूपों में किया जाता है।
नीचे दिए गए बिन्दुओं में काँच उद्योग की और जानकारी दी गई है –
- उत्तर प्रदेश राज्य के फिरोजाबाद और शिकोहाबाद क्षेत्र भारत में काँच उद्योग के महत्वपूर्ण केंद्र हैं। यहां काँच के उत्पादों का निर्माण होता है और यहां एक व्यापक परिसर में उद्यमिता दिखती है।
- काँच उद्योग का विकास मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, और तमिलनाडु में हुआ है। ये क्षेत्र भारत में काँच उत्पादन के बड़े केंद्रों के रूप में उभरे हैं और इस उद्योग को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
- काँच का निर्माण कुटीर और कारख़ाना दोनों रूपों में किया जाता है। छोटे पैम्बड़े में काँच निर्माण के लिए कुटीर और बड़े पैम्बड़े में उद्यमों द्वारा कारख़ाना स्थापित किए जा सकते हैं।
इस जानकारी से यह साबित होता है कि काँच उद्योग भारत में व्यापक रूप से फैला हुआ है और यह विभिन्न राज्यों में महत्वपूर्ण केंद्रों के रूप में विकसित हुआ है।
चर्म उद्योग
नीचे दिए गए स्थान चर्म उद्योग के महत्वपूर्ण केंद्र हैं –
- कानपुर -कानपुर भारत में चर्म उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र है और यह जूते बनाने के लिए प्रसिद्ध है।
- तमिलनाडु – तमिलनाडु भी चर्म उद्योग के महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक है।
- आगरा – आगरा भी चर्म उद्योग के केंद्रों में से एक है और यहां चमड़े के उत्पादों का विशेषता से निर्माण किया जाता है।
- कोलकाता – कोलकाता भी चर्म उद्योग का महत्वपूर्ण केंद्र है और यहां विभिन्न चमड़े के उत्पाद बनाए जाते हैं।
- पटना – पटना भी चमड़े के उत्पादों के लिए मुख्य केंद्रों में से एक है।
इन स्थानों पर चर्म उद्योग का विकास हो रहा है और इसके माध्यम से उपभोक्ताओं को विभिन्न प्रकार के चमड़े के उत्पाद उपलब्ध हो रहे हैं। भारतीय चर्म निर्यात परिषद की स्थापना चमड़े के उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए की गई है।
मोटरगाड़ी उद्योग
मोटर गाड़ी उद्योग को विकास उद्योग के नाम से जाना जाता है। भारत में मोटरगाड़ी उद्योग की शरूआत 1928 में मुंबई में जनरल मोटर्स की स्थापना से मानी जाती है। मोटरगाड़ी उद्योग से सम्बंधित प्रमुख इकाइयाँ निम्नलिखित हैं –
- हिंदुस्तान मोटर्स (कोलकाता) – हिंदुस्तान मोटर्स एक प्रमुख ऑटोमोबाइल निर्माता है और इसका मुख्यालय कोलकाता में है।
- प्रिमियर ऑटोमोबाइल लिमिटेड (मुंबई) – प्रिमियर ऑटोमोबाइल लिमिटेड मुंबई में स्थित है और विभिन्न ऑटोमोबाइल उत्पादों का निर्माण करता है।
- अशोक लेलैंड (चेन्नई) – अशोक लेलैंड चेन्नई में स्थित है और यह विभिन्न वाहनों का निर्माण करने वाली एक अन्य बड़ी कंपनी है।
- टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी लिमिटेड (मुंबई) – टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी लिमिटेड भी मुंबई में स्थित है और वाहनों का निर्माण करती है।
- महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड (मुंबई) – महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड मुंबई में स्थित है और विभिन्न ऑटोमोबाइल उत्पादों का निर्माण करती है।
- मारुति उद्योग लिमिटेड (नवी दिल्ली) – मारुति उद्योग लिमिटेड भारत की सबसे बड़ी पैसेजर कार निर्माता कंपनियों में से एक है और इसने भारतीय बाजार में अपनी मौजूदगी बनाए रखी है।
रेल उपकरण उद्योग
चितरंजन (पश्चिम बंगाल) के इंजन बनाने का सबसे पुराना कारख़ाना है। इस कारखाने की स्थापना 26 जनवरी, 1950 के दिन चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स के नाम देहुई गई। वर्तमान में वहाँ विद्युत इंजन का निर्माण हो रहा है।
इसके अलावा, भारत में अन्य कई स्थानों पर भी रेलवे इंजन निर्माण हो रहा है –
- डीजल से चलने वाले इंजनों का निर्माण वाराणसी में होता है – वाराणसी में डीजल से चलने वाले इंजनों का निर्माण होता है, जो रेलवे यातायात के लिए उपयोग होते हैं।
- रेलवे इंजन निर्माण का कार्य झारखंड के जशेदपुर में होता है – झारखंड के जशेदपुर में रेलवे इंजन निर्माण का कार्य हो रहा है, जो रेलवे सेवा के लिए उपयोग किए जाते हैं।
- रेलवे के डिब्बे बनाने का प्रमुख केंद्र चेन्नई के पेराम्बूर में है – चेन्नई के पेराम्बूर में 1952 ई. में स्थापित किए गए स्थान पर रेलवे के डिब्बे बनाने का प्रमुख केंद्र है।
- पंजाब के कपूरथला में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री – पंजाब के कपूरथला में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री स्थित है, जो रेलवे कोचों का निर्माण करती है।
- रायबरेली (UP) और कचरापारा (पश्चिम बंगाल) में रलवे कोच फैक्ट्री – रायबरेली (उत्तर प्रदेश) और कचरापारा (पश्चिम बंगाल) में रेलवे कोच फैक्ट्री की नई उत्पादन इकाई लगी है।
- बिहार के मढ़ौरा में डीजल इंजन व मधेपुरा में विद्युत इंजन का कारख़ाना – बिहार के मढ़ौरा में डीजल इंजन और मधेपुरा में विद्युत इंजन का कारख़ाना स्थित है।
- पश्चिम बंगाल के दनकुनी में विद्युत व डीजल इंजन के अवयव बनाने की दो फैक्ट्री – पश्चिम बंगाल के दनकुनी में विद्युत और डीजल इंजन के अवयव बनाने की दो फैक्ट्री स्थित हैं।
जलयान निर्माण उद्योग
भारत में जलयान-निर्माण का प्रथम कारख़ाना 1941 ई. में सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी द्वारा विशाखापत्तनम में स्थापित किया गया था। भारत सरकार द्वारा 1952 ई. में अधिग्रहण करके इसका नाम हिंदुस्तान शिपयार्ड किया गया।
भारत में जलयान निर्माण के कुछ प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयाँ हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित है –
- हिंदुस्तान शिपयार्ड (विशाखापत्तनम) – भारत में जलयान-निर्माण का प्रथम कारख़ाना 1941 ई. में सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी द्वारा विशाखापत्तनम में स्थापित किया गया था। इसे भारत सरकार ने 1952 ई. में अधिग्रहण किया और इसका नाम हिंदुस्तान शिपयार्ड रखा गया है।
- गार्डनरिच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (कोलकाता) – यह एक अन्य प्रमुख जलयान-निर्माण इकाई है जो कोलकाता में स्थित है।
- गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (गोवा) – गोवा शिपयार्ड भी भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक स्थान है जो जलयान-निर्माण का कारख़ाना है।
- मंझगाव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (मुंबई) – मंझगाव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड भी जलयान-निर्माण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण इकाई है और मुंबई में स्थित है।
वायुयान निर्माण उद्योग
हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड (HAL) भारत में वायुयान निर्माण के क्षेत्र में प्रमुख कंपनी है, जो पहले “हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड” के नाम से जानी जाती थी और अब इसे “हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड (HAL)” के नाम से जाना जाता है। यह कंपनी 1940 ई. में बंगलुरु, कर्नाटक में स्थापित की गई थी।
HAL भारतीय वायुसेना, भारतीय नौसेना, और अन्य रक्षा और वायुयान से संबंधित उद्योगों के लिए विभिन्न प्रकार के वायुयानों का निर्माण करती है। HAL की इकाइयाँ बंगलुरु के अलावा कई अन्य शहरों में भी स्थित हैं, जो वायुयान निर्माण कार्य में संलग्न हैं।
- कोरापूट (ओड़ीशा) – HAL का एक इकाई कोरापूट, ओड़ीशा में है जो वायुसेना के लिए वायुयानों के निर्माण में शामिल है।
- कोरबा (छत्तीसगढ़) – HAL की इकाई कोरबा, छत्तीसगढ़ में भी वायुयान निर्माण कार्यों में संलग्न है।
- नासिक (महाराष्ट्र) – हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स की एक इकाई नासिक, महाराष्ट्र में है, जो वायुयानों के निर्माण के क्षेत्र में कार्यरत है।
- बैरकपुर (पश्चिम बंगाल) – एक अन्य इकाई बैरकपुर, पश्चिम बंगाल में स्थित है, जो वायुयान निर्माण के क्षेत्र में संलग्न है।
- लखनऊ (उत्तर प्रदेश) – HAL की इकाई लखनऊ, उत्तर प्रदेश में भी वायुयानों के निर्माण कार्य में संलग्न है।
- हैदराबाद (तेलंगाना) -HAL की इकाई हैदराबाद, तेलंगाना में भी वायुयान निर्माण के क्षेत्र में कार्यरत है।
- कानपुर (उत्तर प्रदेश) -कानपुर में भी HAL की एक इकाई है, जो वायुयानों के निर्माण में शामिल है।
भारत के अन्य उद्योग
उपरोक्त दिए गए उद्योगों के अलावा कुछ अन्य उद्योग हैं जिनके नाम और संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है –
दवा निर्माण उद्योग
दवा निर्माण के मुख्य केंद्र – मुंबई, दिल्ली, कानपुर, हरिद्वार, अहमदाबाद, पुणे, बंगलूरु, विशाखापत्तनम, हैदराबाद आदि जगह पर है।
अभीयंत्रिकी उद्योग
प्रमुख स्थान- हटिया, दुर्गापुर, विशाखापत्तनम, नैनी, बंगलुरु, अजमेर, जादवपुर आदि।
भारी इंजीनियरिंग निगम लिमिटेड (HEC) राँची की स्थापना 1958 ई. में की गई थी।
बिजली के सामान बनाने के उद्योग
भोपाल, हरिद्वार, रामचंद्रपुरम (हैदराबाद), तिरुचिरापल्ली एवं कोलकत्ता बिजली के सामान बनाने के महत्वपूर्ण केंद्र है।
टेलीफोन उद्योग
बंगलुरु एवं रूपनारायणपुर टेलीफोन उद्योग के महत्वपूर्ण केंद्र है।
ऊनी वस्त्र उद्योग
भारत में ऊनी वस्त्र की पहली मिल 1876 ई. में कानपुर में स्थापित की गई। परंतु इस उद्योग का वास्तविक विकास 1950 ई. के बाद ही हुआ है। पंजाब में लुधियाना, जालंधर, घारीवाल, अमृतसर इस उद्योग के महत्वपूर्ण केंद्र है।
भारत में ऊनी वस्त्र उद्योग के उत्पादन में भारत के राज्यों में पहले स्थान पर राजस्थान, दूसरे स्थान पर कर्नाटक तथा तीसरे स्थान पर जम्मू काश्मीर है I
ऊनी वस्त्र के महत्वपूर्ण केंद्र
ऊनी वस्त्र उद्योग के राज्य | सम्बंधित राज्य में स्थित ऊनी वस्त्र उद्योग का स्थान |
---|---|
कर्नाटक | बंगलुरु, मैसूर |
जम्मू कश्मीर | श्रीनगर |
उत्तर प्रदेश | मिर्जापुर, आगरा, मुज्जफरपुर, शाहजहांपुर |
राजस्थान | जयपुर, भीलवाडा, बीकानेर, जोधपुर |
भारत की महारत्न कंपनियों के नाम
भारत में आठ महारत्न कम्पनियाँ है जिनके नाम निम्नलिखित है –
- भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL)
- गेल (इंडिया) लिमिटेड (GAIL)
- नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड (NTPC)
- स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL)
- कोल इंडिया लिमिटेड (CIL)
- इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (IOCL)
- ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड (ONGC)
- भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL)
भारत की नवरत्न कंपनियों के नाम
भारत में 16 नवरत्न कम्पनियाँ है, जिनके नाम निम्नलिखित हैं –
- भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL)
- कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (CONCOR)
- हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL)
- महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL)
- नेशनल बिल्डिॉस कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन लिमिटेड (NBCC)
- एनएलसी इंडिया लिमिटेड (NLC)
- पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड (PFC)
- राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (RINL)
- शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SCI)
- इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड (EIL)
- हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (HPCL)
- नेशनल एल्युमीनियम कंपनी लिमिटेड (NALCO)
- एनएमडीसी लिमिटेड (NMDC)
- ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL)
- पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (POWERGRID)
- रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (REC)
महारत्न तथा नवरत्न कंपनियों के अतिरिक्त भारत में 74 अन्य कम्पनियाँ हैं, जिनको को ‘मिनिरत्न’ का दर्जा प्राप्त है ।
भारत में उद्योग से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- पशमीना ऊँन की प्राप्ति बकरी से होती है।
- अंगोरा ऊँन की प्राप्ति खरगोश से होती है।
- भारत का प्रथम आधुनिक ऊँन कारखाना कानपुर में स्थापित किया गया था।
- ऊँन का सर्वाधिक उत्पादक राज्य कर्नाटक है ।
- रेशम का सर्वाधिक उत्पादक राज्य कर्नाटक है।
- जूट का सर्वाधिक उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल है।
- भारत का कॉटनोपोलिस मुंबई को कहते हैं।
- भारत का मैनचेस्टर अहमदाबाद को कहते हैं।
- पूर्व का बोस्टन अहमदाबाद को कहते हैं।
- दक्षिण भारत का मैनचेस्टर कोयंबटूर को कहते हैं।
- उत्तर भारत का मैनचेस्टर कानपुर को कहते हैं।
- केंद्रीय रेशम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान मैसूर व बरहामपुर में अवस्थित है।
- संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन-विएना अंतरराष्ट्रीय मानक संगठन जेनेवा में स्थित है।
- गन्ने का सर्वाधिक उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है।
- गन्ने का सर्वाधिक प्रति हेक्टेयर उत्पादकता वाला राज्य तमिलनाडु है ।
- सर्वाधिक चीनी कारखाने महाराष्ट्र में हैं।
- गन्ना उत्पादन के लिये सर्वाधिक आदर्श जलवायु क्षेत्र दक्षिण भारत है ।
- विश्व में चीनी उत्पादक अग्रणी देश (अवरोही क़म)- ब्राज़ील, भारत, चीन, थाईलैंड, पाकिस्तान है।
- भारत में सर्वाधिक चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश है।
- हिन्दुस्तान मशीन टूल्स लिमिटेड-बंगलूरू (1953)
- भारी इंजीनियरिंग निगम लिमिटेड-राँची (1958)
- खनन एवं संबद्ध मशीनरी निगम लिमिटेड-दुर्गापुर (1965)
- भारत हैवी प्लेट्स एंड वैसल्स लिमिटेड-विशाखापत्तनम (1966)
- तुंगभद्रा स्टील प्रोडक्ट्स लिमिटेड-मैसूर (कर्नाटक) व आंध्रप्रदेश
- नेशनल इंस्ट्रमेंट्स लिमिटेड-कोलकाता
- बड़ोदरा (गुजरात) स्थित ‘भारतीय रेल राष्ट्रीय अकादमी’ को देश के पहले रेल विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया जा रहा है।
- भारत में जलयान निर्माण उद्योग क्षेत्र में लगभग 8 सार्वजनिक एवं 19 निजी क्षेत्र की कंपनियों संलग्न है।
- हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड, विशाखापत्तनम (पूर्व नाम-सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी-1941, जिसे भारत सरकार द्वारा वर्ष 1952 में अपने अधिकार में ले लिया गया) की स्थापना 1952 में हुई।
- कोचीन शिपयार्ड भारत का आधुनिक तथा सबसे बड़ा पोत प्रांगण है, जिसका निर्माण वर्ष 1972 में जापान के सहयोग से हुआ।
- हुगली डॉक एंड पोर्ट इंजीनियर्स लिमिटेड की दो इकाइयाँ सैकिया और नाज़िरगंज में अवस्थित हैं।
- मुंबई स्थित मझगाँव डॉक भारतीय नौसेना के लिये जहाज, फ्रिगेट पनडुब्बियाँ आदि का निर्माण करता है। इसकी इकाइयाँ न्हावाशेवा एवं मंगलौर में हैं।
- सर्वप्रथम वर्ष 1940 में निजी स्वामित्व के अंतर्गत ‘हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड’ की स्थापना हुई, जिसका अधिग्रहण सरकार द्वारा किया गया एवं 1964 में उसका नाम परिवर्तित कर ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड’ (HAL) कर दिया गया।
- HAL द्वारा लड़ाकू विमान, एयरोस्पेस क्राफ्ट, हेलीकॉप्टर, इंजन, सुखोई मिग एवं जगुआर जैसे उन्नत विमानों का निर्माण किया जाता है।
इन्हें भी देखें –
- भारत में ऊर्जा के स्रोत | Sources of Energy in India
- भारत की चट्टानें | Rocks of India
- भारत की जनजातियाँ | Tribes of India
- भारत में खनिज संसाधन | Minerals in India
- 250+ पुस्तकें एवं उनके लेखक | Books and their Authors
- भारत के वित्तीय संस्थान | Financial
- भारत के प्रमुख संस्था, संस्थापक, संस्थान एवं उनके मुख्यालय
- भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति | Bharat Ratna Award