अजातशत्रु | Ajatashatru | 493 – 460 ई.पू.

अजातशत्रु हर्यक वंश के प्रथम शासक बिंबिसार के पुत्र थे। अपने पिता को मौत के घाट उतारकर मगध के राजा बने। अजातशत्रु का अर्थ होता हैं “शत्रुविहीन” अर्थात् जिसका कोई दुश्मन या शत्रु पैदा नहीं हुआ हो। अजातशत्रु ने अपने सभी दुश्मनों का नाश कर दिया था। यहाँ तक कि उसको अपने पिता बिम्बिसार भी जब दुश्मन लगने लगे तो उसने उनको भी कारागार में डालकर अनेको यातनाये दी जहाँ उनकी मृत्यु हो गयी।

अजातशत्रु (Ajatashatru) हर्यक वंश से संबंध रखते थे। अजातशत्रु का दूसरा नाम कुणिक था। अजात शत्रु को बौद्ध धर्म का अनुयाई माना जाता है। इसके बेटे का नाम उदयभद्र और उदयिन था। परन्तु ज्यादातर इतिहासकारों का मानना है की ये दोनों नाम उनके एक ही पुत्र का था। उनकी मृत्यु के बाद मगध की गद्दी पर उनका पुत्र उदयिन बैठा।

अजातशत्रु (Ajatashatru) का संक्षिप्त परिचय

  • पूरा नाम- मगध नरेश अजातशत्रु।
  • अजात शत्रु के बचपन का नाम – कुणिक।
  • जन्म वर्ष- 509 ई.पू.
  • मृत्यु वर्ष- 460 ई.पू.
  • पिता का नाम- राजा बिंबीसार
  • माता का नाम- वैदेही।
  • पत्नी का नाम- राजकुमारी वजीरा।
  • पुत्र- उदयभद्र और उदयिन
  • धर्म- जैन धर्म और बौद्ध धर्म
  • आजातशत्रु के मंत्री का नाम- वस्सकार।
  • पूर्ववर्ती राजा- बिंबिसार
  • उत्तरवर्ती राजा- उदयभद्र।
  • शासनकाल- 492 ई.पू. से 460 ई.पू. तक।

अजातशत्रु (Ajatashatru) का जीवन परिचय

Ajatashatru अजातशत्रु

प्राचीन भारत का इतिहास उठाकर देखा जाए तो कई नामी-गिरामी राजाओं ने यहां पर जन्म लिया और भारतवर्ष की शोभा को बढ़ाया। कई राजा अपने काम की वजह से विख्यात हुए तो कुछ अपने सृजनात्मक कार्यों की वजह से जाने गए। कुछ राजा ऐसे भी थे जो अपनी क्रूरता और निरंकुश नीतियों के कारण गलत छवि छोड़ गए। प्राचीन समय में सत्ता प्राप्त करने के लिए कुछ राजा सभी हदों को पार करते हुए अपने परिवार के लोगों को ही मौत के घाट उतार देते थे।

मगध के राजा अजात शत्रु के बारे में भी यह बात विख्यात है कि उन्होंने अपने पिता को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया था। बिम्बिसार मगध राज्य के नरेश थे। अजातशत्रु ने मगध का सिंहासन अपने पिता राजा बिंबिसार की हत्या करके प्राप्त किया था। अजातशत्रु शूरवीर और प्रतापी राजा के रूप में जाने जाते थे। सम्राज्य विस्तार की नीति अपनाते हुए राजा इन्होने मगध साम्राज्य की सीमाओं को चरमोत्कर्ष तक पहुंचा दिया था।

अजात शत्रु (Ajatashatru)  ने मगध राज्य पर लगभग 32 वर्षों तक शासन किया था। जिसका उल्लेख “सिंहली अनुश्रुतियों” में मिलता है । इस के लगभग 32 वर्ष के सुशासन के पश्चात इसकी भी हत्या उनके पुत्र उदयन द्वारा कर दी जाती है।

अजात शत्रु ने काशी, कोसल, वज्जी, लिच्छवी और अंग जैसे जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर हर्यक वंश के साम्राज्य का विस्तार किया। यह भगवान बुद्ध के समकालीन थे। पाटलिपुत्र की स्थापना का श्रेय इनको ही जाता है। हलाकि ज्यादातर इतिहासकारों का मन्ना है कि इनके पुत्र उदायिन द्वारा इस शहर को बसाया गया।

अजातशत्रु (Ajatashatru) का राज्यारोहण

माता वैदेही और पिता बिम्बिसार का पुत्र अजातशत्रु आगे चलकर मगध का सम्राट बना। इतिहासकारों के अनुसार अजात शत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार को जेल में डाल कर सत्ता हासिल की। अजात शत्रु को कठोर दिल वाला इंसान माना जाता है।

वह बचपन से ही साम्राज्य की बागडोर अपने हाथ में लेने की महत्वकांक्षी रखता था,लेकिन सत्ता प्राप्ति में सबसे बड़ी रुकावट के रूप में वह अपने पिता को पाए । सबसे पहले राजा अजात शत्रु  ने अपने पिता बिम्बिसार से बात की और उन्हें अवगत कराया कि वह मगध साम्राज्य की बागडोर अपने हाथ में लेना चाहता है, लेकिन छोटी उम्र देख कर उसके पिता ने मना कर दिया इसके बाद अजात शत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार को बंदी बना लिया।

राजा बिम्बिसार को बन्दी बनाकर 491 ईसा पूर्व में अजात शत्रु मगध के राजा बने।

बौद्ध ग्रंथ विनयपिटक के अनुसार बुद्ध के चचेरे भाई देवदत्त ने अजात शत्रु को अपने पिता का वध करने के लिए उकसाया था। देवदत्त षड्यंत्रकारी, अत्यंत दुष्ट व फूट डालने वाला व्यक्ति था। महावंश में भी कहा गया है कि बुद्ध की मृत्यु के आठ वर्ष पूर्व अजातशत्रु ने बिम्बिसार की हत्या कर शासन प्राप्त किया। 

अजातशत्रु (Ajatashatru) का साम्राज्य विस्तार

सत्ता अपने हाथ में लेते ही अजात शत्रु ने राज्य की सीमाओं के विस्तार करने पर विशेष ध्यान दिया। काशी, कोसल, वज्जी, लिच्छवी और अंग जैसे जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर विशाल राज्य की स्थापना करने में कामयाबी हासिल की। इन पांच महाजनपदों के अतिरिक्त छठा जनपद मगध था। और इन सबके राजा अजातशत्रु थे । धीरे-धीरे अजात शत्रु ने भारत के लगभग चालीस प्रतिशत हिस्से पर अपना अधिकार कर लिया। अजात शत्रु के मंत्री “वस्सकार” कुशल राजनीतिज्ञ का परिचय देते हुए लिच्छिवियों में फूट डाल दी, परिणामस्वरूप अजात शत्रु को यह साम्राज्य भी मिल गया।

अजातशत्रु का कोसल के राजा प्रसेनजीत के साथ युद्ध

प्रसेनजीत नामक राजा का उस समय कोसल पर राज था। साम्राज्य विस्तार की नीति के तहत अजात शत्रु कोसल पर आक्रमण करके इस जनपद को अपने साम्राज्य में मिलाना चाहता था। कोसल महाजनपद को जीतने के लिए अजात शत्रु द्वारा किया गया युद्ध, उनके जीवन काल का प्रथम युद्ध माना जाता है।काशी जनपद के उत्तर क्षेत्र को पुनः अपने अधिकार में लेने के लिए राजा प्रसेनजीत ने शक्ति का प्रयोग किया।

इस घटनाक्रम को देखकर अजात शत्रु भी अपनी सेना के साथ वहां पर पहुंचे। मगध और कोसल की सेनाएं आमने सामने थी, जिसके बाद राजा अजात शत्रु और कोसल नरेश प्रसेनजीत के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ।

इस युद्ध में अजात शत्रु (Ajatashatru) ने अपनी शक्ति का लोहा मनवाया और प्रसेनजीत के साथ संधि कर ली, अब यह कौशल का पूरा क्षेत्र राजा अजात शत्रु के अधीन आ गया। इस संधि के तहत कौशल नरेश प्रसेनजीत ने अपनी पुत्री वजीरा का विवाह, मगध साम्राज्य के राजा अजात शत्रु के साथ कर दिया। काशी का पूरा क्षेत्र जो राजा बिंबिसार के अधीन था और उसे प्रसनजीत पुनः प्राप्त करना चाहता था। वह कर नहीं पाया और पुनः मगध साम्राज्य में मिल गया।

अजातशत्रु द्वारा वज्जि पर आक्रमण

जीत किसी भी राजा के उत्साह को दोगुना कर देती है। राजा अजात शत्रु के साथ भी ऐसा ही हुआ। कौशल सेना को बुरी तरह पराजित करने के बाद अजात शत्रु का हौसला सातवें आसमान पर था। बढ़ती साम्राज्य विस्तार की लालसा ने अजात शत्रु को युद्ध के लिए तैयार किया।

8 गणों वाले वज्जी संघ को अपने सम्राज्य में मिलाकर विशाल साम्राज्य स्थापित करने का सपना देख रहे राजा अजात शत्रु के लिए यह वज्जी पर हमला करने का यह उचित समय था। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह थी कि यह राज्य एकजुट था, विशाल सेना थी और ताकतवर भी थी।

तभी राजा अजात शत्रु ने अपने मंत्री वस्सकार को बुलाया और रणनीति बनाने का कार्य सौंपा। अजातशत्रु का मंत्री वस्सकार बहुत ही चतुर और कुशल राजनीतिज्ञ था, उसने वज्जी के आठों गणों में विद्रोह की स्थिति पैदा कर दी, जिससे राज्य छिन्न-भिन्न हो गया और कमजोर पड़ते इस राज्य पर अजात शत्रु ने आक्रमण कर दिया।

आठों गणों के लोगों को स्वतंत्रता चाहिए थी, इसी का फायदा उठाकर राजा अजात शत्रु ने अपने सैनिक भेजकर उनकी मदद की जिससे संपूर्ण साम्राज्य उसे प्राप्त हो गया।

अजातशत्रु द्वारा किये गए कार्य व उपलब्धियां

अजात शत्रु (Ajatashatru) ने अपने जीवन काल में लोगों की भलाई के लिए एवं साम्राज्य विस्तार के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। इन्हीं कार्यों को अजातशत्रु की उपलब्धियां माना जाता है।
अजात शत्रु की मुख्य उपलब्धियां है:–

  • महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण पर अजात शत्रु ने भी बुध की अस्थियां प्राप्त करने का प्रयास किया था यह अजातशत्रु के समय घटित होने वाली सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक थी।
  • अजात शत्रु (Ajatashatru) ने भगवान बुद्ध की अस्थियां लाकर उनकी स्मृति में राजगृह की पहाड़ियों पर एक स्तूप का निर्माण करवाया था।
  • बौद्ध संघ की पहली संगीति राजगृह की वैमर पर्वत की सप्तपरणी गुहा में हुई थी।
  • अजात शत्रु के समय बुध की प्रथम संगीति में सूत पीतक और विनय पिटक का संपादन हुआ, यह अजात शत्रु की उपलब्धियों में गिना जाता है।
  • बौद्ध धर्म के संरक्षण और विशाल साम्राज्य विस्तार की वजह से राजा अजात शत्रु को एक महान राजा के रूप में ख्याति प्राप्त हुई, यह भी उनकी एक उपलब्धि है।

अजातशत्रु (Ajatashatru) की मृत्यु

हर्यक वंश के सभी राजाओं के बारे में यह बात प्रचलित है कि उनके परिवार और प्रिय जनों द्वारा ही उनकी हत्या की गई और यही वजह है कि इसे हर्यक वंश के साथ-साथ पितृहंता वंश के नाम से जाना जाता हैं।

जिस तरह राजा अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार की हत्या कर दी थी, उसी प्रकार राजा अजातशत्रु के बारे में भी कहा जाता है कि उनके पुत्र उदयन द्वारा 460 ईसा पूर्व में उनकी हत्या कर दी गई। अपने पिता अजात शत्रु की हत्या करने के बाद उदयन सत्ता पर अपना अधिकार कर लेता है और शासन की बागडोर अपने हाथ में ले लेता है।


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