नयी कविता: हिंदी कविता की नवीन धारा का उद्भव, कवि और विकास

नयी कविता: हिंदी कविता की नवीन धारा का उद्भव, कवि और विकास

हिंदी साहित्य में समय-समय पर अनेक काव्यधाराएँ विकसित हुई हैं। प्रत्येक युग ने अपने समय की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप काव्यरचना की दिशा और दशा को नया मोड़ दिया। छायावाद, प्रगतिवाद, और प्रयोगवाद जैसी धाराओं के बाद जिस काव्यधारा ने हिंदी कविता को एक नया तेवर, नया स्वर, और नया शिल्प प्रदान … Read more

प्रयोगवाद (1943–1953): उद्भव, कवि, विशेषताएं, प्रवृत्तियाँ | प्रयोगवादी काव्य धारा

प्रयोगवाद  (1943–1953): उद्भव, कवि, विशेषताएं, प्रवृत्तियाँ | प्रयोगवादी काव्य धारा

हिंदी साहित्य में कविता की अनेक धाराएं समय-समय पर जन्म लेती रही हैं। प्रत्येक साहित्यिक आंदोलन अपने समय की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और मानसिक चेतना का प्रतिबिंब होता है। हिंदी कविता में एक ऐसा ही महत्त्वपूर्ण और युगांतकारी आंदोलन रहा है प्रयोगवाद, जिसकी शुरुआत 1943 ई. में मानी जाती है। इस आंदोलन ने कविता की … Read more

प्रगतिवाद (1936–1956): उद्भव, कवि, विशेषताएं, प्रवृत्तियाँ | प्रगतिवादी काव्यधारा

प्रगतिवाद (1936–1943): जन्म, कवि, विशेषताएं, प्रवृत्तियाँ

‘प्रगतिवाद’ शब्द सुनते ही मन में एक गतिशील, उन्नतिशील और परिवर्तनकामी विचारों की धारा प्रवाहित होने लगती है। यह शब्द न केवल साहित्यिक पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका प्रयोग सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के सन्दर्भ में भी किया जाता है। हिंदी साहित्य के इतिहास में ‘प्रगतिवाद’ एक ऐसे युग और आंदोलन का प्रतिनिधित्व … Read more

छायावादोत्तर युग (शुक्लोत्तर युग: 1936–1947 ई.) | कवि और उनकी रचनाएँ

छायावादोत्तर युग (शुक्लोत्तर युग: 1936–1947 ई.) | कवि और उनकी रचनाएँ

हिंदी साहित्य का इतिहास अनेक युगों, प्रवृत्तियों और आंदोलनों से समृद्ध रहा है। इन सबके बीच छायावादोत्तर युग अथवा शुक्लोत्तर युग (1936–1947) को एक अत्यंत महत्वपूर्ण परिवर्तनशील कालखंड के रूप में देखा जाता है। यह वह समय था जब हिंदी कविता छायावाद की सीमाओं से बाहर निकलकर नए विमर्शों, विषयों और प्रयोगों की ओर अग्रसर … Read more

मुक्तक काव्य: अर्थ, परिभाषा, भेद, प्रकार, उदाहरण एवं विशेषताएं

मुक्तक काव्य: अर्थ, परिभाषा, भेद, प्रकार, उदाहरण एवं विशेषताएं

हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में मुक्तक काव्य एक ऐसी शैली है, जो अपनी स्वतंत्रता, सौंदर्यबोध और भाव-गहनता के लिए जानी जाती है। यह न किसी कथा का अनुसरण करता है, न किसी पूर्व कथानक की सीमा में बंधा होता है। मुक्तक अपनी रचना में आत्मनिर्भर होता है—अपने ही भीतर अर्थपूर्ण और पूर्ण। यही कारण … Read more

छायावादी युग (1918–1936 ई.): हिंदी काव्य का स्वर्णयुग और भावात्मक चेतना का उत्कर्ष

छायावादी युग (1918–1936 ई.)

हिंदी साहित्य का इतिहास अनेक युगों में विभाजित है, जिनमें से प्रत्येक युग अपनी विशिष्ट विशेषताओं, प्रवृत्तियों और साहित्यिक दृष्टिकोणों के लिए जाना जाता है। इस क्रम में 1918 ई० से 1936 ई० तक का समय छायावादी युग के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। छायावाद ने हिंदी काव्य को केवल रूपगत या भाषा संबंधी नहीं, बल्कि … Read more

द्विवेदी युग (1900–1920 ई.): हिंदी साहित्य का जागरण एवं सुधारकाल

द्विवेदी युग: 1900–1920 ई.

हिंदी साहित्य का इतिहास अपने भीतर विविध युगों और आंदोलनों को समेटे हुए है। बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दो दशकों (1900–1920) को हिंदी साहित्य में द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है। इस युग का नामकरण उस समय के महान साहित्यकार, संपादक, आलोचक और विचारक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर हुआ, जिनकी … Read more

भारतेन्दु युग (1850–1900 ई.): हिंदी नवजागरण का स्वर्णिम प्रभात

भारतेन्दु युग (1850–1900 ई.) : हिंदी नवजागरण का स्वर्णिम प्रभात

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल अपने भीतर कई युगों को समाहित करता है, जिनमें “भारतेंदु युग” एक विशिष्ट स्थान रखता है। यह युग हिंदी नवजागरण का प्रारंभिक चरण माना जाता है और इसका नामकरण उस युग के अग्रदूत, हिंदी के महान कवि, नाटककार, पत्रकार और समाजसेवी भारतेन्दु हरिश्चंद्र (1850–1885 ई.) के नाम पर किया गया … Read more

प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता: छायावादोत्तर युग के अंग या स्वतंत्र साहित्यिक प्रवृत्तियाँ?

प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता: छायावादोत्तर युग के अंग या स्वतंत्र साहित्यिक प्रवृत्तियाँ?

हिंदी साहित्य का इतिहास केवल घटनाओं या धाराओं की श्रृंखला नहीं है, बल्कि यह समाज के भीतर चल रही वैचारिक उथल-पुथल, सांस्कृतिक जागरण और मनोवैज्ञानिक अंतर्द्वंद्व का लेखा-जोखा भी है। छायावाद यद्यपि हिंदी कविता का स्वर्णकाल रहा, परंतु उसकी भावुकता, रहस्यवाद और व्यक्तिगत संवेदनशीलता धीरे-धीरे बदलते यथार्थ से टकराने लगी। 1936 के बाद का युग, … Read more

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल और उसका ऐतिहासिक विकास | 1850 ई. से वर्तमान तक

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल

यह लेख आधुनिक हिंदी साहित्य के सबसे समृद्ध और बहुआयामी युग—आधुनिक काल (1850 ई. से वर्तमान तक)—का एक विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करता है। इसमें आधुनिक युग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन, गद्य-पद्य का विकास, एवं साहित्यिक आंदोलनों की क्रमबद्ध चर्चा की गई है। भारत में अंग्रेज़ी शासन की स्थापना के बाद हिंदी गद्य को मिली … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.