पूर्व भारतेंदु युग: हिंदी गद्य की नींव और खड़ी बोली का आरंभिक विकास

पूर्व भारतेंदु युग: हिंदी गद्य की नींव और खड़ी बोली का आरंभिक विकास

“पूर्व भारतेंदु युग” हिन्दी साहित्य के उस परिवर्तनशील समय को उजागर करता है, जब गद्य ने कविताओं की छाया से निकलकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनानी शुरू की और खड़ी बोली ने लेखनी का स्वर पकड़ा। यह युग 13वीं शताब्दी से 1868 ईस्वी तक फैला था और इसमें हिन्दी गद्य अपने शैशव अवस्था में था। इस … Read more

भारतेंदु युग (नवजागरण काल) की समय-सीमा, स्वरूप और युग-निर्धारण की समीक्षा

भारतेंदु युग (नवजागरण काल) की समय-सीमा, स्वरूप और युग-निर्धारण की समीक्षा

हिंदी साहित्य के आधुनिक काल का प्रारंभ जिन साहित्यिक विशेषताओं, रचनात्मक नवीनताओं और सामाजिक चेतना से होता है, वह सब “भारतेंदु युग” की देन है। यह युग न केवल साहित्य के क्षेत्र में परिवर्तन लाया, बल्कि नवजागरण की वह चेतना भी प्रस्तुत की जिसने राष्ट्रवाद, सामाजिक सुधार और आधुनिक सोच की नींव रखी। इस युग … Read more

हिन्दी साहित्य के सर्वप्रथम कवि: एक विमर्श

हिन्दी साहित्य के सर्वप्रथम कवि: एक विमर्श

हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत समृद्ध, बहुआयामी और बहुपरतीय है। इसकी जड़ें भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषिक परंपराओं में गहराई से समाई हुई हैं। परंतु जब बात आती है हिन्दी साहित्य के प्रथम कवि की पहचान की, तो यह प्रश्न एक विमर्श का विषय बन जाता है। साहित्येतिहास के अनेक विद्वानों ने अपने-अपने शोध … Read more

हिंदी के प्रमुख एकांकीकार एवं एकांकी | लेखक और रचनाएँ

हिंदी sसाहित्य के प्रमुख एकांकीकार एवं एकांकी

एकांकीकार एवं एकांकी” शीर्षक के अंतर्गत यह लेख हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण नाट्य विधा — एकांकी — और इसके प्रमुख लेखकों की रचनात्मक योगदान को उजागर करता है। हिंदी एकांकी लेखन का आरंभ 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में हुआ, जब जयशंकर प्रसाद ने “एक घूँट” जैसी ऐतिहासिक एकांकी की रचना की। इसके पश्चात रामकुमार … Read more

हिन्दी एकांकी: इतिहास, कालक्रम, विकास, स्वरुप और प्रमुख एकांकीकार

हिंदी एकांकी:इतिहास, कालक्रम, विकास, स्वरुप और प्रमुख एकांकीकार

‘एकांकी’ हिन्दी साहित्य की एक विशिष्ट और प्रभावशाली विधा है, जो कम समय में अधिक प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता रखती है। यद्यपि ‘एकांकी’ शब्द अंग्रेजी के ‘वन-ऐक्ट प्ले’ से लिया गया है, लेकिन इसका स्वरूप भारतीय साहित्यिक परंपरा से पूर्णतः अपरिचित नहीं रहा है। भारतीय नाट्य परंपरा में भी एक दृश्यीय, संवाद प्रधान और … Read more

हिंदी नाटक और नाटककार – लेखक और रचनाएँ

हिंदी नाटक और नाटककार – लेखक और रचनाएँ

यह लेख हिंदी नाट्य साहित्य के तीन प्रमुख युगों—भारतेन्दु युग, प्रसादयुग और प्रसादोत्तर युग—का विस्तृत ऐतिहासिक और साहित्यिक अध्ययन प्रस्तुत करता है। इसमें हिंदी के पहले नाटक ‘नहुष’ (1857, गोपालचंद्र गिरधरदास) से लेकर भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, भीष्म साहनी, गिरीश कर्नाड जैसे महान नाटककारों के योगदान का क्रमबद्ध विवरण है। लेख … Read more

हिन्दी नाटक: इतिहास, स्वरुप, तत्व, विकास, नाटककार, प्रतिनिधि कृतियाँ और विशेषताएँ

हिन्दी नाटक: इतिहास, स्वरुप, तत्व, विकास, नाटककार, प्रतिनिधि कृतियाँ और विशेषताएँ

मानव सभ्यता के आरंभिक काल से ही मनोरंजन, शिक्षा और विचार-प्रसार के विविध साधन प्रचलित रहे हैं। गीत, वाद्य और नृत्य जैसे कलात्मक माध्यमों के साथ-साथ नाटक भी एक प्रभावशाली और लोकप्रिय विधा के रूप में विकसित हुआ। नाटक केवल श्रवण के माध्यम से ही नहीं, बल्कि दृश्य अनुभव के माध्यम से भी रसास्वादन कराता … Read more

हिन्दी साहित्य की प्रमुख कहानियाँ और उनके रचनाकार | लेखक

कहानियाँ और उनके रचनाकार

हिन्दी साहित्य में कहानी विधा का उद्भव 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। यद्यपि कथा कहने की परंपरा भारत में प्राचीनकाल से चली आ रही थी, किन्तु आधुनिक अर्थों में लिखित और संरचित ‘कहानी’ के रूप में हिन्दी साहित्य में इसका प्रारंभिक रूप 1900 ई. में ‘किशोरीलाल गोस्वामी’ द्वारा रचित “इन्दुमती” मानी जाती है। किशोरीलाल … Read more

कहानी: परिभाषा, स्वरूप, तत्व, भेद, विकास, महत्व उदाहरण, कहानी-उपन्यास में अंतर

कहानी : परिभाषा, स्वरूप, तत्व, भेद, विकास, महत्व उदाहरण, कहानी-उपन्यास में अंतर

कहानी गद्य साहित्य की सबसे प्राचीन एवं लोकप्रिय विधाओं में से एक है। यह केवल साहित्यिक रचना ही नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की सांस्कृतिक धरोहर भी है। जब मनुष्य ने बोलना सीखा और अपनी अनुभूतियों, अनुभवों, कल्पनाओं तथा विचारों को दूसरों तक पहुँचाने के लिए शब्दों का प्रयोग किया, तभी से कहानी की शुरुआत मानी … Read more

भारतेंदु युग के कवि और रचनाएँ, रचना एवं उनके रचनाकार

भारतेंदु युग के कवि और रचनाएँ, रचना एवं उनके रचनाकार

हिंदी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल के प्रथम चरण को ‘भारतेंदु युग’ के नाम से जाना जाता है। यह काल 1868 ई. से 1900 ई. तक माना जाता है और इसे हिंदी साहित्य में आधुनिकता तथा पुनर्जागरण का प्रवेश द्वार कहा गया है। इस युग के प्रतिनिधि लेखक, संपादक, कवि, नाटककार एवं पत्रकार भारतेंदु … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.