कृष्ण भक्ति काव्य धारा: सगुण भक्ति की कृष्णाश्रयी शाखा | कवि, रचनाएँ एवं भाषा शैली

कृष्ण भक्ति काव्य धारा

यह विस्तृत हिंदी लेख कृष्ण भक्ति काव्यधारा या कृष्णाश्रयी शाखा की समृद्ध परंपरा, दर्शन, प्रमुख कवियों, रचनाओं और उनकी काव्यगत विशेषताओं का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। मध्यकालीन भक्ति आंदोलन की इस प्रमुख शाखा में श्रीकृष्ण को ईश्वर, प्रेमी, मित्र, बालक और नायक के विविध रूपों में चित्रित किया गया है। लेख में वल्लभाचार्य के … Read more

राम भक्ति काव्य धारा: सगुण भक्ति की रामाश्रयी शाखा | कवि, रचनाएँ एवं भाषा शैली

राम भक्ति काव्य धारा

यह लेख हिंदी साहित्य के भक्ति काल की रामाश्रयी शाखा या राम भक्ति काव्य धारा का एक व्यापक और गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसमें उन कवियों और रचनाओं का विस्तृत वर्णन है जिन्होंने भगवान श्रीराम को ईश्वर के अवतार रूप में स्वीकार कर अपनी समस्त काव्य साधना उन्हीं को समर्पित कर दी। इस धारा … Read more

पूर्व मध्यकाल (भक्ति काल 1350 ई. – 1650 ई.) – हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग

पूर्व मध्यकाल (भाक्ति काल)

हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्ति काल एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं गौरवशाली युग के रूप में प्रतिष्ठित है। यह काल आदिकाल के उपरांत आता है और इसे ‘पूर्व-मध्यकाल’ या ‘मध्यकाल का प्रारंभिक भाग’ भी कहा जाता है। विभिन्न विद्वानों ने इसकी समयावधि को लेकर कुछ भिन्न-भिन्न मत प्रस्तुत किए हैं। सामान्यतः इसे 1350 ई. से … Read more

हिंदी साहित्य का आदिकाल (वीरगाथा काल 1000 -1350 ई०) | स्वरूप, प्रवृत्तियाँ और प्रमुख रचनाएँ

आदिकाल (वीरगाथा काल -1000 ई० -1350 ई०)

हिंदी साहित्य के इतिहास में 10वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी तक के काल को आदिकाल कहा जाता है, जिसे वीरगाथा काल के नाम से भी जाना जाता है। यह कालखंड भारतीय साहित्यिक परंपरा में अपनी ऐतिहासिकता, वीररस और धार्मिकता की प्रवृत्तियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। “आदिकाल” की संज्ञा सर्वप्रथम सुप्रसिद्ध साहित्यकार … Read more

हिन्दी साहित्य – काल विभाजन, वर्गीकरण, नामकरण और इतिहास

हिन्दी साहित्य का काल विभाजन, वर्गीकरण, नामकरण और इतिहास

हिन्दी साहित्य भारतीय सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग है। इसकी उत्पत्ति लोकभाषा में निहित सहज अभिव्यक्ति से हुई और यह समय के साथ-साथ विविध रूपों में विकसित होता गया। हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत समृद्ध, व्यापक और विविधता से परिपूर्ण है, जिसमें धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, नैतिक और भावनात्मक विषयों का विस्तृत चित्रण देखने को मिलता … Read more

ममता कहानी – मुंशी प्रेमचंद | सारांश, पात्र परिचय, चरित्र चित्रण, समीक्षा व उद्देश्य

ममता कहानी - मुंशी प्रेमचंद

प्रेमचंद की यह मार्मिक कहानी “ममता” समाज के झूठे दिखावे और असली मानवीय मूल्यों के बीच के अंतर को उजागर करती है। कहानी एक ऐसे धनी और प्रतिष्ठित व्यक्ति बाबू रामरक्षादास के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो बाहरी तौर पर तो समाजसेवक और उदार दिखता है, लेकिन वास्तव में स्वार्थी, अहंकारी और संवेदनहीन है। मुख्य संघर्ष:जब रामरक्षादास अपनी … Read more

शंखनाद | कहानी – मुंशी प्रेमचंद

शंखनाद | कहानी – मुंशी प्रेमचंद

“शंखनाद” मुंशी प्रेमचंद की एक प्रेरक कहानी है जो एक आलसी युवक गुमान के जीवन में आए अचानक परिवर्तन की कहानी कहती है। जब उसका बेटा धान मिठाई न मिलने पर रोता है और उसकी माँ उसे डाँट देती है, तो गुमान को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है। यह घटना उसके लिए जीवन का शंखनाद (जागृति का संकेत) बन जाती है। … Read more

धर्म संकट | कहानी – मुंशी प्रेमचंद

धर्म संकट | कहानी - मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद की संवेदनशील दृष्टि से रचित “धर्म संकट” एक ऐसी सामाजिक और नैतिक गाथा है, जो आधुनिकता की चकाचौंध, पारंपरिक मूल्यों की जकड़न, और मानवीय संबंधों की जटिलता को गहराई से छूती है। कहानी लखनऊ के प्रतिष्ठित बैरिस्टर पंडित कैलाशनाथ, उनकी आधुनिक विचारधारा से प्रभावित बहन कामिनी, और एक सरल, मर्यादित, संस्कृत विद्वान रूपचंद … Read more

हार की जीत | कहानी – मुंशी प्रेमचंद

हार की जीत | कहानी - मुंशी प्रेमचंद

“हार की जीत” मुंशी प्रेमचंद की एक अमर कहानी है, जो प्रेम, त्याग, और समाज के जटिल यथार्थ को गहराई से उकेरती है। यह कहानी दो मित्रों— शारदाचरण और केशव की प्रतिद्वंद्विता, उनके साम्यवादी विचारों, और एक अप्रत्याशित प्रेम-त्रिकोण के इर्द-गिर्द घूमती है। शारदाचरण, एक धनी ताल्लुकेदार, जो साम्यवाद के सिद्धांतों को मानता है, अपने … Read more

लांछन II | कहानी – मुंशी प्रेमचंद

लांछन II | कहानी - मुंशी प्रेमचंद

अगर संसार में ऐसा प्राणी होता, जिसकी आँखें लोगों के हृदयों के भीतर घुस सकतीं, तो ऐसे बहुत कम स्त्री-पुरुष होंगे, जो उसके सामने सीधी आँखें करके ताक सकते ! महिला-आश्रम की जुगनूबाई के विषय में लोगों की धारणा कुछ ऐसी ही हो गयी थी। वह बेपढ़ी-लिखी, गरीब, बूढ़ी औरत थी, देखने में बड़ी सरल, … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.