काव्य और कविता : परिभाषा, उदाहरण, अंतर, समानता एवं साहित्यिक महत्व

काव्य और कविता : परिभाषा, उदाहरण, अंतर, समानता एवं साहित्यिक महत्व

काव्य और कविता हिंदी साहित्य की दो महत्वपूर्ण विधाएँ हैं, जिन्हें अक्सर समानार्थी समझा जाता है, किंतु इनके स्वरूप और प्रयोजन में सूक्ष्म अंतर पाया जाता है। प्रस्तुत लेख में काव्य और कविता दोनों की परिभाषाओं का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है, जिसमें आचार्यों और साहित्यकारों के मतों का उल्लेख करते हुए इनके सौंदर्य, भावनात्मक … Read more

काव्य के सौन्दर्य तत्व: प्रयोजन, उल्लास और आधुनिक संदर्भों में उनकी प्रासंगिकता

काव्य के सौन्दर्य तत्व: प्रयोजन, उल्लास और आधुनिक संदर्भों में उनकी प्रासंगिकता

“काव्य के सौन्दर्य तत्व” लेख में भारतीय काव्यशास्त्र की उन गहन धारणाओं का विस्तृत विवेचन किया गया है, जो साहित्य को न केवल मनोरंजन का साधन बनाते हैं, बल्कि जीवन के उच्च आदर्शों, मानवीय भावनाओं और समाजोपयोगी मूल्यों का मार्गदर्शन भी प्रदान करते हैं। इस लेख में मम्मट द्वारा बताए गए काव्य के छः प्रयोजनों … Read more

काव्य : स्वरूप, इतिहास, परिभाषा, दर्शन और महत्व

काव्य : स्वरूप, परिभाषा, दर्शन और महत्व

मानव जीवन के आरम्भ से ही भावनाएँ, अनुभूतियाँ और कल्पनाएँ उसकी चेतना का अभिन्न हिस्सा रही हैं। जब मनुष्य ने अपनी भावनाओं और अनुभवों को शब्दों में पिरोने का प्रयास किया, तभी साहित्य का उदय हुआ। साहित्य की विभिन्न विधाओं में काव्य (Poetry/Kavya) सबसे प्राचीन और प्रभावशाली विधा है। काव्य मात्र शब्दों का खेल नहीं … Read more

कविता : स्वरूप, विशेषताएँ, भेद, इतिहास, विधाएँ और महत्व

कविता : स्वरूप, विशेषताएँ, भेद, इतिहास, विधाएँ और महत्व

मानव सभ्यता के आरंभ से ही भावनाओं, विचारों और अनुभवों को अभिव्यक्त करने का सबसे सुंदर माध्यम कविता रही है। यह केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि हृदय की गहराइयों से निकली हुई भावनाओं की लहर है, जो पाठक या श्रोता के मन में कंपन उत्पन्न करती है। जब कोई भाव लय, छंद और अलंकारों … Read more

आलोचना और आलोचक | हिन्दी में आलोचना का स्वरूप एवं विशेषताएँ

आलोचना और आलोचक

“आलोचना और आलोचक” हिंदी साहित्य के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आलोचना केवल दोष निकालने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि साहित्यिक रचनाओं का वस्तुनिष्ठ, विवेचनात्मक और सृजनात्मक मूल्यांकन है, जो पाठकों को रचना के वास्तविक स्वरूप और उसके प्रभाव को समझने में मदद करता है। एक कुशल आलोचक अपनी निष्पक्ष दृष्टि, व्यापक अध्ययन, संवेदनशीलता … Read more

आलोचना : स्वरूप, अर्थ, व्युत्पत्ति, परिभाषा, प्रकार, विकास और उदाहरण

हिन्दी साहित्य में आलोचना

साहित्य के विकास में आलोचना की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। आलोचना न केवल रचना के गुण-दोषों का विवेचन करती है, बल्कि लेखक, पाठक और समाज के बीच एक सार्थक संवाद भी स्थापित करती है। आलोचना का उद्देश्य केवल त्रुटियाँ निकालना नहीं है, बल्कि रचना के सौंदर्य, उद्देश्य और प्रभाव को समझना तथा उसे उचित … Read more

रिपोर्ताज और रिपोर्ताजकार – लेखक और रचनाएँ | अर्थ, उत्पत्ति, हिंदी साहित्य में विकास

रिपोर्ताज और रिपोर्ताजकार – लेखक और रचनाएँ

हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में ‘रिपोर्ताज’ अपेक्षाकृत नई लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण विधा मानी जाती है। यह न केवल किसी घटना का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करती है, बल्कि उसमें लेखक की संवेदनशील दृष्टि, साहित्यिकता और भावनात्मक ताप भी समाहित होता है। रिपोर्ट और रिपोर्ताज में सूक्ष्म लेकिन निर्णायक अंतर है—रिपोर्ट मात्र तथ्यों का संकलन है, … Read more

रिपोर्ताज – अर्थ, स्वरूप, शैली, इतिहास और उदाहरण

रिपोर्ताज – अर्थ, स्वरूप, शैली, इतिहास और उदाहरण

हिंदी साहित्य में गद्य विधाओं की विविधता अत्यंत व्यापक है। निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र, यात्रा-वृत्तांत, डायरी, आत्मकथा, जीवनी, कहानी, उपन्यास जैसी अनेक विधाओं के बीच रिपोर्ताज अपेक्षाकृत नई किंतु विशिष्ट विधा है। यह विधा आधुनिक युग की सामयिकता, यथार्थ चित्रण और पत्रकारिता-प्रभावित प्रस्तुति की देन है।रिपोर्ताज का मूल उद्देश्य किसी महत्वपूर्ण घटना, परिस्थिति, सामाजिक आंदोलन या … Read more

हिन्दी के यात्रा-वृत्त और यात्रा-वृत्तान्तकार – लेखक और रचनाएँ

हिन्दी के यात्रा-वृत्त और यात्रा-वृत्तान्तकार – लेखक और रचनाएँ

मानव स्वभावतः जिज्ञासु है। अज्ञात को जानने, देखने और अनुभव करने की उसकी इच्छा उसे स्थान-स्थान की यात्राओं के लिए प्रेरित करती है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना ही यात्रा कहलाता है, और जब यात्री अपने अनुभवों, दृश्यावलियों, लोगों, संस्कृति, भूगोल, रीति-रिवाज और भावनाओं का विवरण लिखित रूप में प्रस्तुत करता है, तो … Read more

यात्रा-वृत्त : परिभाषा, इतिहास, विशेषताएँ और विकास

यात्रा-वृत्त : परिभाषा, इतिहास, विशेषताएँ और विकास

मनुष्य स्वभाव से जिज्ञासु और अन्वेषणप्रिय है। वह अपने आस-पास की दुनिया को देखने, समझने और अनुभव करने के लिए निरंतर यात्रा करता है। यात्रा केवल भौगोलिक स्थानांतरण नहीं है, बल्कि यह अनुभवों, भावनाओं और दृष्टिकोणों का भी विस्तार है। जब किसी व्यक्ति के यात्रा अनुभव को साहित्यिक रूप में लिखा जाता है, तो उसे … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.