अपभ्रंश भाषा (तृतीय प्राकृत): इतिहास, विशेषताएँ, वर्गीकरण और काल निर्धारण

अपभ्रंश भाषा (तृतीय प्राकृत): इतिहास, विशेषताएँ, वर्गीकरण और काल निर्धारण

भारतीय आर्यभाषा-परिवार के इतिहास में अपभ्रंश भाषा का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह भाषा संस्कृत और प्राकृत जैसी प्राचीन भाषाओं तथा आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के बीच की एक कड़ी के रूप में विकसित हुई। अपभ्रंश न तो पूर्णतः प्राकृत है और न ही आधुनिक भाषाओं के समान, परंतु दोनों के बीच संक्रमण की यह … Read more

प्राकृत भाषा (द्वितीय प्राकृत): उत्पत्ति, विकास, वर्गीकरण और साहित्यिक स्वरूप

प्राकृत भाषा: उत्पत्ति, विकास, वर्गीकरण और साहित्यिक स्वरूप

प्राकृत भाषा भारतीय आर्यभाषाओं के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण चरण है। 1 ई. से 500 ई. तक प्रचलित इस भाषा को ‘द्वितीय प्राकृत’ कहा गया है। यह वह काल था जब संस्कृत अपने साहित्यिक और धार्मिक गौरव में प्रतिष्ठित हो चुकी थी, और आम जनमानस की भाषा एक सरल, बोलचाल पर आधारित, स्वाभाविक भाषिक … Read more

पालि भाषा (प्रथम प्राकृत): उद्भव, विकास, साहित्य और व्याकरणिक परंपरा

पालि भाषा: उद्भव, विकास, साहित्य और व्याकरणिक परंपरा

भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा में पालि भाषा का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह भाषा न केवल बौद्ध धर्म की मौलिक ध्वनि रही है, बल्कि इसे भारत की प्रथम देश भाषा भी कहा जाता है। पालि भाषा ने बौद्ध साहित्य, विशेषतः त्रिपिटकों के माध्यम से भारत सहित दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों—लंका, बर्मा, तिब्बत … Read more

लौकिक संस्कृत : इतिहास, उत्पत्ति, स्वरूप, विशेषताएँ और साहित्य

लौकिक संस्कृत : इतिहास, उत्पत्ति, स्वरूप, विशेषताएँ और साहित्य

भारतीय भाषाओं और साहित्य के विस्तृत संसार में संस्कृत भाषा का स्थान सर्वोपरि है। यह न केवल भारत की शास्त्रीय भाषा है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक तथा धार्मिक उपलब्धियों का प्रमुख माध्यम भी रही है। संस्कृत का इतिहास अत्यन्त प्राचीन और बहुआयामी है, जिसे मुख्यतः दो रूपों में विभाजित किया जाता है—वैदिक संस्कृत … Read more

वैदिक संस्कृत : इतिहास, उत्पत्ति, विकास, व्याकरण और वैदिक साहित्य

वैदिक संस्कृत : इतिहास, उत्पत्ति, विकास, व्याकरण और वैदिक साहित्य

(1500 ई.पू. – 800 ई.पू. का महान भाषाई एवं सांस्कृतिक युग) भारतीय भाषाओं के इतिहास में वैदिक संस्कृत का स्थान अत्यंत प्राचीन, महत्वपूर्ण और आधारभूत माना जाता है। 1500 ई.पू. से लगभग 800 ई.पू. तक प्रचलित यह भाषा मानव सभ्यता में उपलब्ध सबसे पुरानी, शुद्ध और वैज्ञानिक भाषाओं में से एक मानी जाती है। इसका … Read more

भारतीय आर्य भाषा : उत्पत्ति, स्वरूप और सांस्कृतिक–भाषाई विकास

भारतीय आर्य भाषा : उत्पत्ति, स्वरूप और सांस्कृतिक–भाषाई विकास

भारतीय उपमहाद्वीप की भाषाई परंपरा अत्यंत प्राचीन, समृद्ध और विविधताओं से भरी रही है। हिंदी तथा अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं का इतिहास वस्तुतः वैदिक युग से प्रारंभ माना जाता है, किन्तु वैदिक संस्कृत के उद्भव से पहले भारत की भाषिक स्थिति क्या थी, इसका कोई प्रत्यक्ष लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। भारतीय आर्य भाषा का … Read more

अवधी भाषा : इतिहास, क्षेत्र, साहित्य, विशेषताएँ और महत्त्व

अवधी भाषा : इतिहास, क्षेत्र, साहित्य, विशेषताएँ और महत्त्व

भारतीय भाषिक परंपरा अत्यंत संपन्न और बहुरंगी है। उत्तर भारत के भाषायी मानचित्र को देखें तो हिंदी की विभिन्न बोलियाँ एक अनूठे सांस्कृतिक संसार की रचना करती हैं। इनमें अवधी अपनी माधुर्यता, सहजता, भाषिक विविधता तथा अद्वितीय साहित्यिक धरोहर के कारण सबसे प्रतिष्ठित मानी जाती है। यह बोली केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि उत्तरी … Read more

छत्तीसगढ़ी भाषा : इतिहास, क्षेत्र, विशेषताएँ, साहित्य और सांस्कृतिक महत्व

छत्तीसगढ़ी भाषा : इतिहास, क्षेत्र, विशेषताएँ, साहित्य और सांस्कृतिक महत्व

भारत की भाषिक विविधता विश्वभर में अद्वितीय मानी जाती है। उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक, और मध्य भारत से पूर्वी भारत तक, हर क्षेत्र में भाषाओं और बोलियों का समृद्ध संसार बिखरा हुआ है। इन्हीं भाषाई धरोहरों में एक अत्यंत महत्वपूर्ण, मधुर और विशिष्ट भाषा है—छत्तीसगढ़ी। यह बोली सिर्फ भाषा नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ … Read more

बघेली भाषा : इतिहास, क्षेत्र, भाषिक विशेषताएँ और सांस्कृतिक महत्व

बघेली भाषा : इतिहास, क्षेत्र, भाषिक विशेषताएँ और सांस्कृतिक महत्व

भारतीय भाषाओं की समृद्ध परंपरा में क्षेत्रीय भाषाएँ एवं बोलियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। वे केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक पहचान, सांस्कृतिक धरोहर तथा ऐतिहासिक निरंतरता का प्रतीक भी हैं। इन्हीं में से एक है बघेली, जिसे प्राचीन परंपरा और विशिष्ट भाषाई स्वरूप के कारण विशेष महत्व प्राप्त है। बघेली को कभी-कभी … Read more

पूर्वी हिन्दी : विकास, बोलियाँ, भाषिक विशेषताएँ और साहित्यिक योगदान

पूर्वी हिन्दी : विकास, बोलियाँ, भाषिक विशेषताएँ और साहित्यिक योगदान

भारत की भाषाएँ सदियों से निरन्तर विकसित होती रही हैं। इन्हीं में से एक महत्त्वपूर्ण भाषा-समूह है पूर्वी हिन्दी, जिसे हिन्दी भाषा के पूर्वी शाखा-समूह के अंतर्गत अत्यधिक महत्त्व प्राप्त है। पूर्वी हिन्दी का साहित्यिक, भाषिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक मूल्य इतना समृद्ध है कि उसने हिन्दी की सम्पूर्ण संरचना और साहित्य-परंपरा को गहराई से प्रभावित … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.