हिंदी निबंध लेखन : स्वरूप, प्रकार एवं कला

हिंदी निबंध लेखन

हिन्दी साहित्य की गद्य-विधाओं में निबंध का एक महत्वपूर्ण और विशिष्ट स्थान है। यह केवल विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, बल्कि लेखक के व्यक्तित्व, दृष्टिकोण, कल्पनाशक्ति, भावनात्मक संवेदनशीलता और तार्किकता का भी दर्पण है। निबंध लेखन का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि पाठक को विषय के साथ जोड़ते हुए उसे भावनात्मक और … Read more

हिंदी निबंध का विकास : एक ऐतिहासिक परिदृश्य

हिंदी निबंध का विकास

यह विस्तृत लेख हिंदी निबंध के ऐतिहासिक विकास को चार प्रमुख युगों—भारतेंदु युग (1868–1900), द्विवेदी युग (1900–1920), छायावाद युग (1918–1936) और छायावादोत्तर युग (1936–1947)—में विभाजित करके प्रस्तुत करता है। इसमें प्रत्येक युग की पृष्ठभूमि, प्रमुख निबंधकारों, उनकी रचनात्मक विशेषताओं और साहित्यिक योगदान का गहन विश्लेषण किया गया है। लेख में भारतेन्दु हरिश्चंद्र, बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण … Read more

हिंदी के निबंधकार और उनके निबंध : एक संपूर्ण सूची

हिंदी के निबंधकार और उनके निबंध

हिंदी साहित्य के गद्य रूपों में निबंध एक महत्वपूर्ण और सशक्त विधा है, जिसने साहित्य को विचार, ज्ञान और अभिव्यक्ति की नई दिशा दी। निबंध केवल किसी विषय पर विचार प्रस्तुत करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह पाठक को सोचने, समझने और नए दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इसकी खूबी यह है … Read more

हिन्दी निबंध साहित्य: परिभाषा, स्वरूप, विकास, विशेषताएं, भेद और उदाहरण

हिन्दी निबंध साहित्य: परिभाषा, स्वरूप, विकास, विशेषताएं, भेद और उदाहरण

साहित्य की विविध विधाओं में निबंध का स्थान अत्यंत विशिष्ट है। यह केवल एक गद्य रचना नहीं, बल्कि लेखक के अंतर्मन की अभिव्यक्ति, उसकी विचारशीलता और विश्लेषण क्षमता का सजीव दस्तावेज होता है। निबंध लेखक के व्यक्तित्व की झलक प्रस्तुत करता है और विषय को एक वैयक्तिक दृष्टिकोण से उजागर करता है। निबंध को परिभाषित … Read more

पूर्व भारतेंदु युग: हिंदी गद्य की नींव और खड़ी बोली का आरंभिक विकास

पूर्व भारतेंदु युग: हिंदी गद्य की नींव और खड़ी बोली का आरंभिक विकास

“पूर्व भारतेंदु युग” हिन्दी साहित्य के उस परिवर्तनशील समय को उजागर करता है, जब गद्य ने कविताओं की छाया से निकलकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनानी शुरू की और खड़ी बोली ने लेखनी का स्वर पकड़ा। यह युग 13वीं शताब्दी से 1868 ईस्वी तक फैला था और इसमें हिन्दी गद्य अपने शैशव अवस्था में था। इस … Read more

भारतेंदु युग (नवजागरण काल) की समय-सीमा, स्वरूप और युग-निर्धारण की समीक्षा

भारतेंदु युग (नवजागरण काल) की समय-सीमा, स्वरूप और युग-निर्धारण की समीक्षा

हिंदी साहित्य के आधुनिक काल का प्रारंभ जिन साहित्यिक विशेषताओं, रचनात्मक नवीनताओं और सामाजिक चेतना से होता है, वह सब “भारतेंदु युग” की देन है। यह युग न केवल साहित्य के क्षेत्र में परिवर्तन लाया, बल्कि नवजागरण की वह चेतना भी प्रस्तुत की जिसने राष्ट्रवाद, सामाजिक सुधार और आधुनिक सोच की नींव रखी। इस युग … Read more

हिन्दी साहित्य के सर्वप्रथम कवि: एक विमर्श

हिन्दी साहित्य के सर्वप्रथम कवि: एक विमर्श

हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत समृद्ध, बहुआयामी और बहुपरतीय है। इसकी जड़ें भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषिक परंपराओं में गहराई से समाई हुई हैं। परंतु जब बात आती है हिन्दी साहित्य के प्रथम कवि की पहचान की, तो यह प्रश्न एक विमर्श का विषय बन जाता है। साहित्येतिहास के अनेक विद्वानों ने अपने-अपने शोध … Read more

हिंदी के प्रमुख एकांकीकार एवं एकांकी | लेखक और रचनाएँ

हिंदी sसाहित्य के प्रमुख एकांकीकार एवं एकांकी

एकांकीकार एवं एकांकी” शीर्षक के अंतर्गत यह लेख हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण नाट्य विधा — एकांकी — और इसके प्रमुख लेखकों की रचनात्मक योगदान को उजागर करता है। हिंदी एकांकी लेखन का आरंभ 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में हुआ, जब जयशंकर प्रसाद ने “एक घूँट” जैसी ऐतिहासिक एकांकी की रचना की। इसके पश्चात रामकुमार … Read more

हिन्दी एकांकी: इतिहास, कालक्रम, विकास, स्वरुप और प्रमुख एकांकीकार

हिंदी एकांकी:इतिहास, कालक्रम, विकास, स्वरुप और प्रमुख एकांकीकार

‘एकांकी’ हिन्दी साहित्य की एक विशिष्ट और प्रभावशाली विधा है, जो कम समय में अधिक प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता रखती है। यद्यपि ‘एकांकी’ शब्द अंग्रेजी के ‘वन-ऐक्ट प्ले’ से लिया गया है, लेकिन इसका स्वरूप भारतीय साहित्यिक परंपरा से पूर्णतः अपरिचित नहीं रहा है। भारतीय नाट्य परंपरा में भी एक दृश्यीय, संवाद प्रधान और … Read more

हिंदी नाटक और नाटककार – लेखक और रचनाएँ

हिंदी नाटक और नाटककार – लेखक और रचनाएँ

यह लेख हिंदी नाट्य साहित्य के तीन प्रमुख युगों—भारतेन्दु युग, प्रसादयुग और प्रसादोत्तर युग—का विस्तृत ऐतिहासिक और साहित्यिक अध्ययन प्रस्तुत करता है। इसमें हिंदी के पहले नाटक ‘नहुष’ (1857, गोपालचंद्र गिरधरदास) से लेकर भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, भीष्म साहनी, गिरीश कर्नाड जैसे महान नाटककारों के योगदान का क्रमबद्ध विवरण है। लेख … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.