गुरु-शिष्य परम्परा: भारतीय संस्कृति की आत्मा और ज्ञान की धरोहर

गुरु-शिष्य परम्परा | भारतीय संस्कृति की आत्मा और ज्ञान की धरोहर

भारतीय संस्कृति और सभ्यता की नींव सदैव ज्ञान, साधना और परम्परा पर आधारित रही है। इस परम्परा की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है – गुरु-शिष्य संबंध। गुरु वह होता है जो अपने ज्ञान, अनुभव और आचरण से शिष्य को अंधकार (अज्ञान) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर ले जाता है। शिष्य वह होता है जो गुरु से … Read more

नाट्यशास्त्र : उद्भव, विकास, अध्याय, टीकाएँ एवं भारतीय नाट्य परम्परा

नाट्यशास्त्र : उद्भव, विकास, अध्याय, टीकाएँ एवं भारतीय नाट्य परम्परा

भारतीय संस्कृति में कला का स्थान सदैव सर्वोपरि रहा है। नृत्य, संगीत, अभिनय और काव्य जैसी ललित कलाएँ केवल मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि जीवन-दर्शन की अभिव्यक्ति भी मानी जाती हैं। इन्हीं कलाओं का संगम हमें भरतमुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र में प्राप्त होता है। यह नाट्यकला का सर्वप्राचीन और सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है, … Read more

सरस्वती पत्रिका : इतिहास, संपादक और संपादन काल

सरस्वती पत्रिका : इतिहास, संपादक और संपादन काल

हिंदी साहित्य के इतिहास में अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन पत्रिकाओं ने न केवल साहित्यिक धारा को दिशा दी बल्कि भाषा, समाज, राष्ट्र और संस्कृति के विकास में भी योगदान दिया। इन्हीं पत्रिकाओं में “सरस्वती” को सबसे प्रमुख और प्रभावशाली पत्रिका माना जाता है। इसे हिंदी साहित्य की अग्रणी और सर्वश्रेष्ठ पत्रिका … Read more

लेखक: परिभाषा, प्रकार और प्रमुख साहित्यकार

लेखक: परिभाषा, प्रकार और प्रमुख साहित्यकार

मानव सभ्यता के विकास के साथ ही लेखन कला का भी उत्थान हुआ। लेखन ने न केवल ज्ञान के संरक्षण और प्रसार का कार्य किया, बल्कि समाज की सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक संरचना को भी गढ़ा। लेखन को विचारों, भावनाओं और अनुभवों को अभिव्यक्त करने का सबसे सशक्त साधन माना जाता है। यही कारण है … Read more

भारतीय दर्शन और उनके प्रवर्तक | Darshan & Pravartak

भारतीय दर्शन और उनके प्रवर्तक

भारतीय दर्शन और उनके प्रवर्तक मानव जीवन की गहरी आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाते हैं। भारत में दर्शन का अर्थ केवल बौद्धिक चिंतन नहीं, बल्कि तत्व का साक्षात्कार और आत्मा की मुक्ति का मार्ग बताना है। आस्तिक और नास्तिक दोनों प्रकार की दार्शनिक परंपराएँ यहाँ विकसित हुईं—सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत … Read more

संप्रदाय और वाद : उत्पत्ति, परिभाषा, विकास और साहित्यिक-दर्शनिक परंपरा

संप्रदाय और वाद : उत्पत्ति, परिभाषा, विकास और साहित्यिक-दर्शनिक परंपरा

मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ विचारधाराओं का उदय और विस्तार हुआ है। जब लोग किसी एक विचार, मान्यता या धार्मिक परंपरा को संगठित रूप से स्वीकार करते हैं और उसका अनुकरण करते हुए जीवन जीते हैं, तो उससे संप्रदाय का जन्म होता है। इसी प्रकार साहित्य और दर्शन के क्षेत्र में जब किसी विशेष … Read more

हिंदी साहित्य की विधाएँ : विकास, आधुनिक स्वरूप और अनुवाद की भूमिका

हिंदी साहित्य की विधाएँ : विकास, आधुनिक स्वरूप और अनुवाद की भूमिका

मानव जीवन अभिव्यक्ति की एक सतत यात्रा है। अपने अनुभवों, भावनाओं, विचारों और कल्पनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए उसने भाषा का निर्माण किया। भाषा से साहित्य जन्मा और साहित्य ने समय-समय पर अपने स्वरूप, रूप-विधान और शैलियों का विस्तार किया। यही विविधता साहित्य की “विधाओं” में प्रकट होती है। वास्तव में विधाएँ साहित्य को … Read more

हिन्दी साहित्य की प्रमुख पत्र–पत्रिकाएँ और उनके संपादक

हिन्दी साहित्य की प्रमुख पत्र–पत्रिकाएँ और उनके संपादक

हिन्दी साहित्य का इतिहास केवल कवियों, लेखकों और उनकी कृतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें पत्र–पत्रिकाओं का भी अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पत्र–पत्रिकाएँ किसी भी भाषा और साहित्य के विकास की धुरी होती हैं। इन्होंने न केवल साहित्यिक चेतना को जागृत किया, बल्कि सामाजिक–राजनीतिक आंदोलनों को भी बल प्रदान किया। भारत में राष्ट्रवादी … Read more

सप्तक के कवि : तार सप्तक से चौथा सप्तक | हिंदी साहित्य की नयी धारा का ऐतिहासिक विकास

सप्तक के कवि : तार सप्तक से चौथा सप्तक | हिंदी साहित्य की नयी धारा का ऐतिहासिक विकास

हिंदी साहित्य में समय-समय पर अनेक धाराएँ और काव्य प्रवृत्तियाँ विकसित हुईं। छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नयी कविता जैसी धाराओं ने न केवल कविता की संवेदनाओं को गहराई दी, बल्कि भाषा, शिल्प और अभिव्यक्ति के नए आयाम भी स्थापित किए। इन्हीं धाराओं में प्रयोगवाद और नयी कविता का जो विकास हुआ, उसका संगठित रूप हमें … Read more

मिश्र काव्य : परिभाषा, स्वरूप, प्रमुख छंद व उदाहरण

मिश्र काव्य : परिभाषा, स्वरूप, प्रमुख छंद व उदाहरण

हिंदी साहित्य में काव्य का महत्व अत्यंत प्राचीन और व्यापक है। काव्य मानव मन के भावों, अनुभूतियों और कल्पनाओं का सजीव चित्र प्रस्तुत करता है। हिंदी साहित्य में काव्य को मुख्यतः तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है – शुद्ध काव्य, गद्य काव्य और मिश्र काव्य। शुद्ध काव्य में भाव और भाषा की श्रेष्ठता प्रधान … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.