हिन्दी नाटक: इतिहास, स्वरुप, तत्व, विकास, नाटककार, प्रतिनिधि कृतियाँ और विशेषताएँ

हिन्दी नाटक: इतिहास, स्वरुप, तत्व, विकास, नाटककार, प्रतिनिधि कृतियाँ और विशेषताएँ

मानव सभ्यता के आरंभिक काल से ही मनोरंजन, शिक्षा और विचार-प्रसार के विविध साधन प्रचलित रहे हैं। गीत, वाद्य और नृत्य जैसे कलात्मक माध्यमों के साथ-साथ नाटक भी एक प्रभावशाली और लोकप्रिय विधा के रूप में विकसित हुआ। नाटक केवल श्रवण के माध्यम से ही नहीं, बल्कि दृश्य अनुभव के माध्यम से भी रसास्वादन कराता … Read more

हिन्दी साहित्य की प्रमुख कहानियाँ और उनके रचनाकार | लेखक

कहानियाँ और उनके रचनाकार

हिन्दी साहित्य में कहानी विधा का उद्भव 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। यद्यपि कथा कहने की परंपरा भारत में प्राचीनकाल से चली आ रही थी, किन्तु आधुनिक अर्थों में लिखित और संरचित ‘कहानी’ के रूप में हिन्दी साहित्य में इसका प्रारंभिक रूप 1900 ई. में ‘किशोरीलाल गोस्वामी’ द्वारा रचित “इन्दुमती” मानी जाती है। किशोरीलाल … Read more

कहानी: परिभाषा, स्वरूप, तत्व, भेद, विकास, महत्व उदाहरण, कहानी-उपन्यास में अंतर

कहानी : परिभाषा, स्वरूप, तत्व, भेद, विकास, महत्व उदाहरण, कहानी-उपन्यास में अंतर

कहानी गद्य साहित्य की सबसे प्राचीन एवं लोकप्रिय विधाओं में से एक है। यह केवल साहित्यिक रचना ही नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की सांस्कृतिक धरोहर भी है। जब मनुष्य ने बोलना सीखा और अपनी अनुभूतियों, अनुभवों, कल्पनाओं तथा विचारों को दूसरों तक पहुँचाने के लिए शब्दों का प्रयोग किया, तभी से कहानी की शुरुआत मानी … Read more

भारतेंदु युग के कवि और रचनाएँ, रचना एवं उनके रचनाकार

भारतेंदु युग के कवि और रचनाएँ, रचना एवं उनके रचनाकार

हिंदी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल के प्रथम चरण को ‘भारतेंदु युग’ के नाम से जाना जाता है। यह काल 1868 ई. से 1900 ई. तक माना जाता है और इसे हिंदी साहित्य में आधुनिकता तथा पुनर्जागरण का प्रवेश द्वार कहा गया है। इस युग के प्रतिनिधि लेखक, संपादक, कवि, नाटककार एवं पत्रकार भारतेंदु … Read more

हिंदी उपन्यास और उपन्यासकार: लेखक और रचनाओं की सूची

हिंदी उपन्यास और उपन्यासकार: लेखक और रचनाओं की सूची

हिंदी साहित्य का इतिहास विविध और बहुआयामी है, जिसमें कविता, नाटक, निबंध, आलोचना और उपन्यास जैसी अनेक विधाएँ सम्मिलित हैं। इन सभी विधाओं में उपन्यास एक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय विधा रही है, जिसने समाज, संस्कृति, राजनीति और मानवीय संवेदनाओं को गहराई से प्रस्तुत किया है। हिंदी उपन्यास की यात्रा न केवल रचनात्मक दृष्टिकोण से, बल्कि … Read more

हिंदी उपन्यास: विकास, स्वरूप और साहित्यिक महत्त्व

हिंदी उपन्यास: विकास, स्वरूप और साहित्यिक महत्त्व

हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में उपन्यास एक ऐसी विधा है जिसने समय के साथ न केवल विकास किया है, बल्कि समाज, संस्कृति, राजनीति, मनोविज्ञान, इतिहास, और दर्शन के आयामों को अपने में समेटते हुए साहित्य का एक सशक्त माध्यम बन गई है। उपन्यास जीवन का प्रतिबिंब होता है। यह मात्र कल्पना नहीं, बल्कि यथार्थ … Read more

नवगीत: नए गीत का नामकरण, विकास, प्रवृत्तियां, कवि और उनकी रचनाएं

नवगीत: नए गीत का नामकरण, विकास, प्रवृत्तियां, कवि और उनकी रचनाएं

नवगीत आधुनिक युग की एक प्रमुख काव्यधारा है, जिसकी जड़ें हिन्दी साहित्य की गीतिकाव्य परंपरा में गहराई से समाई हुई हैं। गीतिकाव्य की यह परंपरा आदिकाल से ही विद्यमान रही है। इसकी प्रारंभिक झलक विद्यापति और अमीर खुसरो की रचनाओं में देखी जा सकती है। भक्तिकाल में, विशेषतः कृष्णभक्त कवियों जैसे सूरदास, नंददास और मीराबाई … Read more

नयी कविता: हिंदी कविता की नवीन धारा का उद्भव, कवि और विकास

नयी कविता: हिंदी कविता की नवीन धारा का उद्भव, कवि और विकास

हिंदी साहित्य में समय-समय पर अनेक काव्यधाराएँ विकसित हुई हैं। प्रत्येक युग ने अपने समय की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप काव्यरचना की दिशा और दशा को नया मोड़ दिया। छायावाद, प्रगतिवाद, और प्रयोगवाद जैसी धाराओं के बाद जिस काव्यधारा ने हिंदी कविता को एक नया तेवर, नया स्वर, और नया शिल्प प्रदान … Read more

प्रयोगवाद (1943–1953): उद्भव, कवि, विशेषताएं, प्रवृत्तियाँ | प्रयोगवादी काव्य धारा

प्रयोगवाद  (1943–1953): उद्भव, कवि, विशेषताएं, प्रवृत्तियाँ | प्रयोगवादी काव्य धारा

हिंदी साहित्य में कविता की अनेक धाराएं समय-समय पर जन्म लेती रही हैं। प्रत्येक साहित्यिक आंदोलन अपने समय की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और मानसिक चेतना का प्रतिबिंब होता है। हिंदी कविता में एक ऐसा ही महत्त्वपूर्ण और युगांतकारी आंदोलन रहा है प्रयोगवाद, जिसकी शुरुआत 1943 ई. में मानी जाती है। इस आंदोलन ने कविता की … Read more

प्रगतिवाद (1936–1956): उद्भव, कवि, विशेषताएं, प्रवृत्तियाँ | प्रगतिवादी काव्यधारा

प्रगतिवाद (1936–1943): जन्म, कवि, विशेषताएं, प्रवृत्तियाँ

‘प्रगतिवाद’ शब्द सुनते ही मन में एक गतिशील, उन्नतिशील और परिवर्तनकामी विचारों की धारा प्रवाहित होने लगती है। यह शब्द न केवल साहित्यिक पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका प्रयोग सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के सन्दर्भ में भी किया जाता है। हिंदी साहित्य के इतिहास में ‘प्रगतिवाद’ एक ऐसे युग और आंदोलन का प्रतिनिधित्व … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.