हिन्दी की जीवनी और जीवनीकार : जीवनी लेखक और रचनाएँ

हिन्दी की जीवनी और जीवनीकार

“हिन्दी की जीवनी और जीवनीकार : जीवनी लेखक और रचनाएँ” लेख हिंदी साहित्य में जीवनी लेखन की दीर्घ, समृद्ध और निरंतर विकसित होती परंपरा का व्यवस्थित और शोधपरक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसमें 16वीं शताब्दी से लेकर 21वीं सदी तक के प्रमुख जीवनीकारों और उनकी कृतियों की कालक्रमानुसार सूची दी गई है, जिसमें न केवल … Read more

जीवनी – परिभाषा, स्वरूप, भेद, साहित्यिक महत्व और उदाहरण

जीवनी – परिभाषा, स्वरूप, भेद, साहित्यिक महत्व और उदाहरण

साहित्य में मनुष्य के जीवन और उसकी घटनाओं का वर्णन एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। मानव इतिहास में अनेक महापुरुषों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, योद्धाओं, समाजसेवकों और कलाकारों ने समाज को प्रेरित किया है। उनके जीवन के संघर्ष, उपलब्धियाँ, विचार और आदर्श नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनते हैं। इन्हीं जीवन प्रसंगों का कलात्मक, तथ्यपरक और सजीव … Read more

हिंदी की आत्मकथा और आत्मकथाकार : लेखक और रचनाएँ

हिंदी की आत्मकथा और आत्मकथाकार

हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में आत्मकथा एक अपेक्षाकृत नवीन किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण विधा है। इसमें लेखक स्वयं अपने जीवन की घटनाओं, अनुभवों, संघर्षों, उपलब्धियों और विफलताओं को ईमानदारी और आत्मविश्लेषण के साथ पाठकों के सामने रखता है। आत्मकथा केवल आत्मवृत्त नहीं होती, बल्कि यह व्यक्ति के समय, समाज, संस्कृति और मनोवैज्ञानिक स्थिति का भी … Read more

आत्मकथा – अर्थ, विशेषताएँ, भेद, अंतर और उदाहरण

आत्मकथा – अर्थ, विशेषताएँ, भेद, अंतर और उदाहरण

मानव जीवन विविध अनुभवों, घटनाओं और भावनाओं से परिपूर्ण होता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ घटनाएँ और प्रसंग ऐसे होते हैं जो उसके व्यक्तित्व, विचारों और जीवन-दृष्टि को गहराई से प्रभावित करते हैं। जब कोई लेखक अपने इन्हीं व्यक्तिगत अनुभवों और जीवन की घटनाओं को साहित्यिक रूप में, अपनी ही दृष्टि से, पाठकों … Read more

हिंदी निबंध लेखन : स्वरूप, प्रकार एवं कला

हिंदी निबंध लेखन

हिन्दी साहित्य की गद्य-विधाओं में निबंध का एक महत्वपूर्ण और विशिष्ट स्थान है। यह केवल विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, बल्कि लेखक के व्यक्तित्व, दृष्टिकोण, कल्पनाशक्ति, भावनात्मक संवेदनशीलता और तार्किकता का भी दर्पण है। निबंध लेखन का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि पाठक को विषय के साथ जोड़ते हुए उसे भावनात्मक और … Read more

हिंदी निबंध का विकास : एक ऐतिहासिक परिदृश्य

हिंदी निबंध का विकास

यह विस्तृत लेख हिंदी निबंध के ऐतिहासिक विकास को चार प्रमुख युगों—भारतेंदु युग (1868–1900), द्विवेदी युग (1900–1920), छायावाद युग (1918–1936) और छायावादोत्तर युग (1936–1947)—में विभाजित करके प्रस्तुत करता है। इसमें प्रत्येक युग की पृष्ठभूमि, प्रमुख निबंधकारों, उनकी रचनात्मक विशेषताओं और साहित्यिक योगदान का गहन विश्लेषण किया गया है। लेख में भारतेन्दु हरिश्चंद्र, बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण … Read more

हिंदी के निबंधकार और उनके निबंध : एक संपूर्ण सूची

हिंदी के निबंधकार और उनके निबंध

हिंदी साहित्य के गद्य रूपों में निबंध एक महत्वपूर्ण और सशक्त विधा है, जिसने साहित्य को विचार, ज्ञान और अभिव्यक्ति की नई दिशा दी। निबंध केवल किसी विषय पर विचार प्रस्तुत करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह पाठक को सोचने, समझने और नए दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इसकी खूबी यह है … Read more

हिन्दी निबंध साहित्य: परिभाषा, स्वरूप, विकास, विशेषताएं, भेद और उदाहरण

हिन्दी निबंध साहित्य: परिभाषा, स्वरूप, विकास, विशेषताएं, भेद और उदाहरण

साहित्य की विविध विधाओं में निबंध का स्थान अत्यंत विशिष्ट है। यह केवल एक गद्य रचना नहीं, बल्कि लेखक के अंतर्मन की अभिव्यक्ति, उसकी विचारशीलता और विश्लेषण क्षमता का सजीव दस्तावेज होता है। निबंध लेखक के व्यक्तित्व की झलक प्रस्तुत करता है और विषय को एक वैयक्तिक दृष्टिकोण से उजागर करता है। निबंध को परिभाषित … Read more

पूर्व भारतेंदु युग: हिंदी गद्य की नींव और खड़ी बोली का आरंभिक विकास

पूर्व भारतेंदु युग: हिंदी गद्य की नींव और खड़ी बोली का आरंभिक विकास

“पूर्व भारतेंदु युग” हिन्दी साहित्य के उस परिवर्तनशील समय को उजागर करता है, जब गद्य ने कविताओं की छाया से निकलकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनानी शुरू की और खड़ी बोली ने लेखनी का स्वर पकड़ा। यह युग 13वीं शताब्दी से 1868 ईस्वी तक फैला था और इसमें हिन्दी गद्य अपने शैशव अवस्था में था। इस … Read more

भारतेंदु युग (नवजागरण काल) की समय-सीमा, स्वरूप और युग-निर्धारण की समीक्षा

भारतेंदु युग (नवजागरण काल) की समय-सीमा, स्वरूप और युग-निर्धारण की समीक्षा

हिंदी साहित्य के आधुनिक काल का प्रारंभ जिन साहित्यिक विशेषताओं, रचनात्मक नवीनताओं और सामाजिक चेतना से होता है, वह सब “भारतेंदु युग” की देन है। यह युग न केवल साहित्य के क्षेत्र में परिवर्तन लाया, बल्कि नवजागरण की वह चेतना भी प्रस्तुत की जिसने राष्ट्रवाद, सामाजिक सुधार और आधुनिक सोच की नींव रखी। इस युग … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.