गोदान उपन्यास | भाग 13 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 13 – मुंशी प्रेमचंद

13.गोबर अँधेरे ही मुँह उठा और कोदई से बिदा माँगी। सबको मालूम हो गया था कि उसका ब्याह हो चुका है; इसलिए उससे कोई विवाह-सम्बन्धी चर्चा नहीं की। उसके शील-स्वभाव ने सारे घर को मुग्ध कर लिया था। कोदई की माता को तो उसने ऐसे मीठे शब्दों में और उसके मातृपद की रक्षा करते हुए, … Read more

गोदान उपन्यास | भाग 12 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 12 – मुंशी प्रेमचंद

12.रात को गोबर झुनिया के साथ चला, तो ऐसा काँप रहा था, जैसे उसकी नाक कटी हुई हो। झुनिया को देखते ही सारे गाँव में कुहराम मच जायगा, लोग चारों ओर से कैसी हाय-हाय मचायेंगे, धनिया कितनी गालियाँ देगी, यह सोच-सोचकर उसके पाँव पीछे रहे जाते थे। होरी का तो उसे भय न था। वह … Read more

गोदान उपन्यास | भाग 11 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 11 – मुंशी प्रेमचंद

11.ऐसे असाधारण कांड पर गाँव में जो कुछ हलचल मचना चाहिए था, वह मचा और महीनों तक मचता रहा। झुनिया के दोनों भाई लाठियाँ लिये गोबर को खोजते फिरते थें। भोला ने क़सम खायी कि अब न झुनिया का मुँह देखेंगे और न इस गाँव का। होरी से उन्होंने अपनी सगाई की जो बातचीत की … Read more

गोदान उपन्यास | भाग 10 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 10

10.हीरा का कहीं पता न चला और दिन गुज़रते जाते थे। होरी से जहाँ तक दौड़धूप हो सकी की; फिर हारकर बैठ रहा। खेती-बारी की भी फ़िक्र करनी थी। अकेला आदमी क्या-क्या करता। और अब अपनी खेती से ज़्यादा फ़िक्र थी पुनिया की खेती की। पुनिया अब अकेली होकर और भी प्रचंड हो गयी थी। … Read more

गोदान उपन्यास | भाग 9 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 9 – मुंशी प्रेमचंद

9.प्रातःकाल होरी के घर में एक पूरा हंगामा हो गया। होरी धनिया को मार रहा था। धनिया उसे गालियाँ दे रही थी। दोनों लड़कियाँ बाप के पाँवों से लिपटी चिल्ला रही थीं और गोबर माँ को बचा रहा था। बार-बार होरी का हाथ पकड़कर पीछे ढकेल देता; पर ज्योंही धनिया के मुँह से कोई गाली … Read more

गोदान उपन्यास | भाग 8 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 8 – मुंशी प्रेमचंद

8.जब से होरी के घर में गाय आ गयी है, घर की श्री ही कुछ और हो गयी है। धनिया का घमंड तो उसके सँभाल से बाहर हो-हो जाता है। जब देखो गाय की चर्चा। भूसा छिज गया था। ऊख में थोड़ी-सी चरी बो दी गयी थी। उसी की कुट्टी काटकर जानवरों को खिलाना पड़ता … Read more

कबीर दास जी के दोहे एवं उनका अर्थ | साखी, सबद, रमैनी

कबीर दास जी के दोहे

कबीर दास जी के दोहे अपने अन्दर मानव कल्याणकारी होने के कारण विश्व प्रसिद्द तथा अत्यंत लोकप्रिय हैं। कबीर दास जी हिंदी साहित्य की निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे। कबीर दास जी को पढना लिखना नहीं आता था। कबीर दास जी की वाणी को साखी, सबद, और रमैनी तीनों रूपों में उनके शिष्यों … Read more

कबीर दास जी | जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएँ एवं भाषा

कबीर दास

कबीर दास जी भारत के एक महान संत तथा हिंदी साहित्य की मध्यकालीन भक्ति-साहित्य की निर्गुण धारा (ज्ञानाश्रयी शाखा) के अत्यंत महत्त्वपूर्ण और विद्रोही संत-कवि के रूप में जाने जाते हैं, जो जीवन पर्यन्त समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। कबीर दास जी हिंदी साहित्य की निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे। … Read more

आख़िरी तोहफ़ा | कहानी – मुंशी प्रेमचंद

आख़िरी तोहफ़ा

1सारे शहर में सिर्फ एक ऐसी दुकान थी, जहाँ विलायती रेशमी साड़ी मिल सकती थीं। और सभी दुकानदारों ने विलायती कपड़े पर कांग्रेस की मुहर लगवायी थी। मगर अमरनाथ की प्रेमिका की फ़रमाइश थी, उसको पूरा करना जरुरी था। वह कई दिन तक शहर की दुकानोंका चक्कर लगाते रहे, दुगुना दाम देने पर तैयार थे, … Read more

गोदान उपन्यास | भाग 7 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 7 – मुंशी प्रेमचंद

7. यह अभिनय जब समाप्त हुआ, तो उधर रंगशाला में धनुष-यज्ञ समाप्त हो चुका था और सामाजिक प्रहसन की तैयारी हो रही थी; मगर इन सज्जनों को उससे विशेष दिलचस्पी न थी। केवल मिस्टर मेहता देखने गये और आदि से अन्त तक जमे रहे। उन्हें बड़ा मज़ा आ रहा था। बीच-बीच में तालियाँ बजाते थे … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.